चिन्ता से चिन्तन की यात्रा क्या गुरु कृपा के बिना सम्भव है? मानव जीवन में चिन्तन की विकलांगता कितनी खतरनाक है कृपया प्रकाश डालें।
चिन्ता से चिन्तन यात्रा में गुरु की कृपा उपयोगी है पर यह कोई जरूरी नहीं कि गुरु की चिन्तन धारा गुरु के साक्ष्य में ही बढ़े। हाँ, जिन्हें एक बार गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हो गया वह आशीर्वाद इतना प्रभावी होता है कि उस व्यक्ति की चिन्ता खत्म हो जाती है और चिन्तन की धारा प्रारम्भ हो जाती है क्योंकि उसकी सोच की धारा बदल जाती है।
चिंतन की विकलांगता एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। जिनकी सोच संकीर्ण होती है, जिनका चिन्तन एकांगी होता है। जो एक तरफ ही बात सोचते हैं, केवल अपनी बात सोचते हैं, सामने वाले की बात नहीं सोचते, केवल अपने विचार को ही सब कुछ मानते हैं, सामने वाले के विचारों को एकदम नजरअंदाज कर देते हैं- यह समझ लेना यह सब चिन्तन की विकलांगता है और सारे झगड़ों की जड़ इस चिन्तन की विकलांगता को ही समझना चाहिए। इसलिए विकलांग चिन्तन वाला व्यक्ति अपने व्यक्तित्त्व को विकलांग बना देता है। जिसका चिन्तन प्रौढ़ और समग्र होता है वही अपने जीवन को सुंदर और व्यवस्थित बना सकता है।
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