काल अवधि पर सम्यक दर्शन या सम्यक दर्शन से अंतर कोड़ा कोड़ी?
चाकू यदि तरबूज पर पड़ता है या तरबूज चाकू पर पड़ता है तो कटता तो तरबूज ही है, चाकू पर तरबूज पड़े तो और चाकू तरबूज पर पड़े तो कटता तरबूज ही है; हमें प्रयोजन तरबूज के कटने से है। आगम में दोनों प्रकार का विधान आता है। आचार्य पूज्यपाद के कथन अनुसार, जब अर्ध पुदगल परावर्तन काल शेष होता है तब सम्यक दर्शन की प्राप्ति होती है। जब हम आचार्य वीरसेन को सुनते हैं तो वे कहते हैं कि वह अपने सम्यक्त रूप परिणाम के महात्म्य से अनंत संसार को अर्ध पुदगल परावर्तन मात्र कर देता है।
आचार्य वीरसेन की उक्ति है –
अनादी मिथ्या द्वष्टी अनन्त संसरियो, ति करण परिणामेन अनंत संसार बोलावियून अद्य पुग्गल परियठ मित्त कदो।
एक अनादि मिथ्या दृष्टि अनंत संसारी सम्यक रूप परिणाम तीन करण रूप परिणाम की प्रधानता से अनंत संसार को छेद कर अर्ध पुद्गल परावर्तन मात्र कह देता है, कर देता है तो दोनों प्रकार का विधान मिलता है।
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