कई बार ऐसा होता है कि हम highly motivated (अति उत्साहित) होते हैं, हमारे पास knowledge (ज्ञान) भी होता है, vision (दूर दृष्टि) भी होता और हम काफी दूर की चीजों को guess (आभास) भी कर सकते हैं लेकिन हमारे आसपास का surrounding (वातावरण) जैसे relatives (रिश्तेदार) , friends (मित्र) वो लोग उतना motivation (प्रोत्साहन) देने वाले नहीं होते हैं, उस समय हमें क्या करना चाहिए?
हमको अगर अपने आप को मोटिवेट करना है और आगे बढ़ाना है, तो हमेशा ऐसे लोगों के सम्पर्क में रहना चाहिए जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, जो खुद सकारात्मक हों और हमें सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करें। जो हमें उलटे Demotivate (निरुत्साहित) करें, उनसे हमें दूर रहना चाहिए जिससे हमारा Harassment (उत्पीड़न) रुके। यह एक बहुत अनुभव सिद्ध सिद्धान्त है और ये लोकजीवन की ही बात नहीं, अध्यात्म के क्षेत्र में भी यह बात आती है।
आचार्य कुन्दकुन्द ने हम मुनियों से कहा कि “अपने मुनिपने को निखारना चाहते हो, अपने को सार्थक बनाना चाहते हो तो अपने से अधिक गुण वाले श्रमण के साथ रहो। अधिक गुणे श्रमण।” अपने से जो अधिक गुण वाले जो तुम्हें अच्छी दिशा में मोटिवेट करें, जिसके कारण तुम आगे बढ़ सको वह काम करो, ये प्रयास होना चाहिए। जब कभी भी हमारे हृदय में हताशा छाने लगे, हम अपने आपको एकाकी और आश्रयहीन महसूस करने लगे, उनके चरणों में चले जाओ जिनसे हमें अच्छी प्रेरणा मिले, ऊर्जा मिले, उत्साह मिले, उनके सम्पर्क में थोड़ा समय बताओ, अपनी डिम होती हुई बैटरी को रिचार्ज कर लो और तरोताजा होकर नये उत्साह के साथ अपना काम कर लो।
हमें advise (सलाह) उन्हें ही देनी चाहिए जो advise (सलाह) को accept (स्वीकार) करें, जहाँ acceptance (स्वीकार्यता) नहीं है वहाँ हमें neutral (तटस्थ) हो जाना चाहिए।
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