Letter ‘A’- Anger (Alphabet Series Pravchan)

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Letter ‘A’- Anger

घर में, एक तरफ से, दूषित हवा आ रही हो और दूसरी खिड़की से सुगंधित हवा आ रही हो, तो आप क्या करते हो? एक ओर से दूषित हवा हो और दूसरी तरफ से सुगंधित हवा हो तो ऐसी स्थिति में आप क्या करते हो? दूषित हवा को बंद करते हैं, सुगंधित हवा वाली खिड़की को खुली रखते हैं। हमारे जीवन में भी इसी तरह दोनों तरह का प्रवाह है, अच्छाइयों का भी और बुराइयों का भी। एक ओर से अच्छाइयों का प्रवाह आता है, तो दूसरी ओर से बुराइयों का झोंका भी आता है, बुराइयों का धुआँ भी आता है। हम अगर अपने जीवन को अगर अच्छाइयों की स्वाँस से भरना चाहते हैं तो बुराइयों के धुएँ को प्रवेश देने वाले खिड़की दरवाज़े को बंद करना पड़ेगा। जब तक हम उन्हें बंद नहीं करते, तब तक हम अपने जीवन में सुख, शांति और सुकून की अनुभूति नहीं कर सकते। ABCD चल रही है और ABCD के क्रम में अभी तक मैंने अपने जीवन में अच्छाइयों को उद्घाटित करने की कुछ बातें आपसे की। आज ABCD को नए संदर्भ में आप सबके बीच रखना चाह रहा हूं। जिसकी चर्चा मैंने पहले दिन भूमिका में कह दी थी। हमारे जीवन में कुछ ऐसी बुराइयां हैं जिनसे हम ना बचे तो जीवन में शांति और प्रसन्नता कभी नहीं आ सकती। वो बुराइयाँ क्या हैं, जब तक हम उन बुराइयों से अपने आप को बाहर नहीं निकालते अपने जीवन का उद्धार नहीं हो सकता। आज फिर से उसी ABCD को शुरू कर रहा हूं जो अब चलेगी जेठ तक।
आज है A फ़ोर एंगर (A for anger)। एंगर इस डेंजर (Anger is danger)। है कि नहीं। एंगर बुरा है। डेंजर हैं। आप कभी यात्रा करते हैं, सड़क पर चलते हैं या किसी भी इलाके में जाते हैं, कोई डेंजर ज़ोन होता है तो क्या करते हैं? डेंजर जोन होता है तो क्या करते हैं? सावधान होते हैं। कहीं प्रवचन में ट्रेनिंग लेकर के आए हैं, के जहां डेंजर है वहाँ हमको सावधान होना है। क्या हुआ? अरे महाराज यह भी कुछ पूछने की बात है जहां डेंजर दिखाई पड़ता है, हमारे जीवन में सहज सावधानी आ जाती है। आती है ? भैया, बाहर का डेंजर दिखता है, डेंजर का साइन मात्र दिखता है, तुम सावधान हो जाते हो। एंगर डेंजर है, ये तुम्हें नज़र आता है? मेरा क्रोध मेरे जीवन के लिए सबसे खतरनाक तत्व है इसका आभास है? ये ख़तरा है, भयावह है, दुखदाई है, विपत्ति में डालने वाला है। है ऐसा कभी अनुभव? क्रोध को बुरा मानते हो कि अच्छा? बुरा? अंदर से की ऊपर से? क्रोध को बुरा मानते भले हो पर बुरा स्वीकारते हो की नहीं, पहले ये देखो।

मनुष्य के जीवन की एक बड़ी दुर्बलता है क्रोध। और संसार में शायद ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जिसके जीवन में कभी क्रोध ना आया हो या किसी के क्रोध का शिकार न बना हो। क्रोध आना या क्रोध का शिकार बनना यह मनुष्य के साथ सहज रुप से जुड़ा हुआ है ।किसी न किसी रूप में सबके साथ यह बातें होती हैं। सवाल यह है कि इस क्रोध से हम अपने आप को कैसे बचाएं। जब डेंजर जोन में जाते तो क्या करते हैं आप? क्या करते हैं? सावधानी रखते हैं। और जब तक उस ज़ोन से बाहर न निकल जाए आपकी साँस अटकी रहती है। है न? जब निकल जाएँ, तब जान में जान आती है, क्योंकि वो डेंजर है। क्रोध को यदि हृदय से डेंजर मानोगे, तो जब तक क्रोध से पार नहीं होओगे, चेंज नहीं आएगा।

प्रायः लोग कह तो देते हैं कि क्रोध बुरा है लेकिन कहते हैं भैया बिना गुस्सा के काम भी नहीं चलता। गुस्से से कैसे बचे? शायद मैं आज गुस्से पर तीसरी या चौथी बार बोल रहा हूं आपके यहाँ, अलग-अलग संदर्भ में आज भी आपको चार नई बातें दे रहा हूँ।
A से ऐक्सेप्ट (Accept) करें। पहली बात, एक्सेप्टेंस होना चाहिए। ऐक्सेप्ट करने का मतलब, स्वीकार करो। स्वीकार करो, क्या स्वीकार करो? क्रोध मेरे जीवन की एक बड़ी दुर्बलता है, इसे स्वीकार करो। क्रोध मेरी कमजोरी है इसे स्वीकार करो। क्रोध बुराई है, इसे स्वीकार करो। क्रोध मेरे व्यक्तित्व को खोखला बनाता है, मेरे संबंधों को बिगाड़ डालता है, इसे स्वीकार करो। है यह स्वीकार्य? स्वीकार करते हो, की क्रोध काम की चीज नहीं है। क्रोध मेरे जीवन की दुर्बलता है, स्वीकार करते हो? है? तो फिर क्रोध करते क्यों हो? आ जाता है!!! आहा!!! अभी आएँगे, वो कहाँ से आता है, इसको खोज कर निकालेंगे । आ के साथ जाता है।

किसी व्यक्ति को कहा जाए कि तुम यह जहर खा लो समझदार आदमी खाएगा, क्यों? क्योंकि पता है यह ज़हर है। खाएँगे तो मरेंगे। जहर खाने से इंसान मरता है यह समझ रखने के कारण उसे कितना भी दबाव दिया जाए प्रलोभन दिया जाए तो भी व्यक्ति उसे स्वीकार नहीं करता। उसी प्रकार जिस दिन तुम यह स्वीकार लोगे, क्रोध एक जहर है तुम्हारे हृदय में क्रोध कभी पनप नहीं सकेगा। लेकिन यह अंदर से स्वीकार्यता है ही नहीं। जो लोग गुस्सा में जीते हैं, वो यही कहते हैं – ‘कैसे महाराज आप कहते हैं गुस्सा बिल्कुल मत करो फिर आपको क्या पता आपने दुनिया देखी नहीं, हम लोग जानते हैं। सीधी ऊँगली तो घी नहीं निकलता, थोड़ा बहुत गुस्सा तो करना ही पड़ता है। गुस्सा के बिना काम नहीं चलता।’

जिस मनुष्य की ऐसी अवधारणा होगी वो कभी ग़ुस्सा से बाहर नहीं हो सकता। ध्यान रखना क्रोध हो या कोई और, बुराइयां तभी पनपती हैं, जब हम उन्हें स्वीकार करते हैं। क्रोध को तुम जब तक स्वीकारें रखोगे क्रोध तुम्हारे जहन में भरा रहेगा। जिस दिन क्रोध को अस्वीकार कर दोगे, क्रोध अपने आप विदा हो जाएगा। अच्छा यह बताओ, आप क्रोध को चाहते हो कि नहीं चाहते हो? नहीं चाहते हैं। आपके घर में कोई बिना बुलाया मेहमान आ जाए, और आप उसकी बढ़िया खातिरदारी करते रहो, तो जाने का नाम लेगा? हाँ, लेगा क्या? आराम से डेरा बसा लिया, उसको और क्या चाहिए। है ना। तो कोई बिन बुलाए मेहमान आता है, तो आप क्या करते हैं? जल्दी पिंड छूटे, उसको घास डालते हो क्या? कोई लिफ़्ट नहीं। आया है चला जाएगा। लेकिन जो व्यक्ति बिना बुलाए मेहमान को, उसकी पूरी खातिरदारी में लग जाता है, उसका सत्कार करने लगता है, सम्मान देने लगता है तो मेहमान वहीं जड़ जमा लेता है। आपने कहा क्रोध आ जाता है, बुलाने पर आता है कि बिना बुलाए आता है? बिना बुलाए आता है तो उसकी खातिरदारी क्यों करते हो? उसको ऐक्सेप्ट क्यों करते हो? अपने आप वो रिवर्स हो जाएगा। ऐक्सेप्ट मत करो। क्रोध आया है तो आने दो, पर क्रोध में ख़ुद को मत बहने दो। स्वीकार मत करो। अरे भैया!!! गुस्सा, गुस्सा के बिना काम नहीं चलता। नहीं, जो काम ग़ुस्से से होता है, उससे हज़ार गुना काम प्रेम से होता है। जीवन में रस लेना है, तो प्रेमपूर्ण भाषा का प्रयोग करो। क्रोधपूर्ण भाषा का प्रयोग मत करो। ये तो एक कमजोरी है। हमें यह ऐक्सेप्ट करना होगा कि क्रोध बुराई है, मुझे इस बुराई को दूर करना है। यह मेरे मन की शांति को और मेरे जीवन के संबंधों को बिगाड़ने वाला है। इसके कारण मेरा धर्म-कर्म सब नष्ट भ्रष्ट हो जाता है। मुझे इस क्रोध को बिल्कुल भी पनाह नहीं देनी है। स्वीकारना है। कई लोग होते हैं, जो, जिनका मिज़ाज ही क्रोधमय होता है। थोड़ी थोड़ी बात में, एकदम क्रोध में आ जाते हैं। गुस्सा नाक पर चढ़ा होता है। नकचड़े होते हैं। थोड़ी-थोड़ी बात, कुछ हुआ और तुरंत हावी हो गए। ऐसे व्यक्ति जब चिल्ला चिल्ला के बोलते हैं, उनसे बोलो भैया तुम गुस्सा काहे कर रहे हो, तो कहता है भैया हम ग़ुस्सा नहीं कर रहे। यह तो हमारी भाषा है। क्रोध जिसकी भाषा बन जाए, उस क्रोध की क्या परिभाषा होगी?

मैं पिछले बरस अजमेर में था, तो भीड़ बहुत होती है। लोग एकदम से टूटते हैं और एकदम सामने आकर के बोलना चाहते हैं। कई बार तो लोगों की थूक भी आ जाती है। तो थोड़ा इर्द-गिर्द बेंच लगा दिया कार्यकर्ताओं ने। दूर से दर्शन करो। एक महानुभाव जब अंदर आने को हुए, बेंच के अंदर, कार्यकर्ता ने रोका। तो रोका तो क्या हुआ, एकदम चढ़ पड़े उस पर। बमक गए एकदम से। मैं देख रहा हूं मेरे सामने का खेल है। सामने वाला एकदम आपे से बाहर। बमक गया। मैंने देखा, हमने कहा दादा थोड़ा शांति से काम करो न। इतने गरम क्यों हो रहे? बोले – ‘महाराज! मैं गरम नहीं हो रहा, मैं तो निवेदन कर रहा हूं’। हमने कहा – ‘भैया! तुम्हारे निवेदन का ये रूप है, तो गुस्से का क्या रूप होगा? बोलो, क्या कहानी है। ये निवेदन कैसा निवेदन’। कितनी बड़ी कमजोरी और नादानी है। यहां हमें बहुत सावधान और सजग होने की जरूरत है। तो पहली बात ऐक्सेप्ट कीजिए। क्रोध बुराई है, क्रोध मेरी कमजोरी है, क्रोध मेरा स्वभाव नहीं, क्रोध विभाव है, विकार है। ये बोध अंदर होना चाहिए। और तुम ये सोचकर चलोगे कि भैया सब चलता है, आजकल थोड़ा बहुत तो करना ही पड़ता है और नहीं करें तो मामला गड़बड़ है। Tit for tat होना चाहिए। जैसे को तैसा होना चाहिए। ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए। ये बात यदि तुम्हारे दिमाग़ में बैठी होगी, क्रोध से कभी मुक्त नहीं हो सकोगे। क्रोध से कभी मुक्त नहीं हो सकोगे। बोध ही क्रोध से मुक्ति दिलाता है। और ये बोध अंदर गहरे होना चाहिए की क्रोध मेरे जीवन की कमजोरी है, ये मेरी दुर्बलता है, ये मेरा स्वभाव नहीं है, ये मेरे व्यक्तित्व का गुण है, मुझे बर्बाद करने वाला है। अंतर्मन से ऐसी स्वीकारोक्ति होनी चाहिए। और जब ऐसी स्वीकार्यता अंतर्मन में बैठ जाएगी, तो फिर क्रोध कभी उभरेगा नहीं। अपने आप मन शांत होगा। सहज होगा। सहजता और सरलता ख़ुद उद्भावित होगी। तो आज, मेरी बात को आप ऐक्सेप्ट कर रहे हैं? ‘महाराज! ऐक्सेप्ट तो बहुत करते हैं, पर वहीं उतनी ही देर तक जब तक सब कुछ ठीक-ठाक रहता है। जब गुस्सा हावी होता है, तो मामला ही कुछ और हो जाता है। फिर तो लगता है कि जो आए उस पर चढ़ बैठो। ये टेंडेन्सी (tendency) ठीक नहीं है। अपने अंदर बदलाव लाइए।

एक्सेप्टेंसके बाद अवेयरनेस (awareness)। रखिए। क्या करिए? अवेयरनेस। ऐक्सेप्ट किया, अवेयर होईए। अवेयर होने का मतलब जागरूक होईए। सजगता के बिना हम अपने जीवन की किसी भी बुराई को समाप्त नहीं कर सकते। मैंने मान लिया यह बुराई है, यह बुरा है, यह गलत है लेकिन जब तक गलत के प्रति मैं सजग नहीं होऊंगा तब तक उससे मुक्त नहीं हो पाउँगा। प्रवचन में सुना, शास्त्र में सुना भैया ये ग़लत चीज़ है। कभी-कभी जीवन का अनुभव भी बोलता है, ये गलत है। अच्छा यह बताओ, इतने लोग, आप सब गुस्सा तो किये ही होंगे। ‘करते ही हैं, महाराज, किये होंगे क्या, करते ही हैं’।। गुस्सा करने के बाद कभी, कभी एक बार का भी ऐसा अनुभव आया, मैंने ठीक ग़ुस्सा किया? जीवन का कोई ऐसा क्षण जिसमें ग़ुस्सा करने के बाद, जब सब काम कर गुज़रो, तोड़ा-फोड़ी जो कुछ करना है कर लिया और उसके बाद तुम्हारे मन में ऐसा आया अच्छा गुस्सा किया। सबका यही अनुभव बोलता है- ‘अरे खामखां इतना गुस्सा कर दिया। हमें इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए था’। अब तक का ये अनुभव। जीवन में और कोई गलतियां करते हो एक बार उसका अनुभव हो जाता है उसे दुबारा नहीं दोहराते। ग़ुस्से का हर बार का अनुभव ये हैं की ये ग़लत है, तो फिर उसे क्यों दोहराते हो। क्योंकि उसके प्रति सजग नहीं हैं। हमारे सब-कोंशीयस (sub-conscious) में ग़ुस्सा का संस्कार इतना गहरा बैठा है, की वो चाहे-अनचाहे प्रकट हो जाता है। हमारी क्रियाएं कई तरह की होती है। एक क्रिया वो है जो हम बुद्धिपूर्वक करते और दूसरी क्रिया वो है जो अबुद्धिपूर्वक करते हैं।

बुद्धिपूर्वक क्रिया वो क्रिया जिसे हम करते हैं और अबुद्धिपूर्वक होने वाली क्रिया वो क्रिया जो होती है। बुद्धिपूर्वक की जाने वाली क्रियाओं पर हमारा काफी कुछ नियंत्रण होता है। लेकिन अबुद्धिपूर्वक चलने वाली क्रियाएँ प्रायः हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं। तो मैं अपने इस क्रोध को देखूं, मेरे क्रोध का स्तर क्या है? दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो 24 घंटे क्रोध में ही रहते हैं और कब क्रोध करते हैं उनको पता ही नहीं चलता। और कुछ वे लोग होते हैं, जो मौक़े पर क्रोध करते हैं और क्रोध करते समय उनको पता रहता है कि मैं क्रोध में हूं। अपने ही जीवन में देखिए कि कई बार ऐसा क्रोध आता जो आप चलाकर क्रोध करते हैं। किसी ने कुछ कहा, बच्चे ने गलती की। दिमाग में भर लिया अभी आएगा डॉट पिलाऊँगा। और आया उसको झाड़ लगा दिए। पत्नी से कोई गलती हुई आए और उस को फटकार दिए। ये क्या है? चलाकर किया गया क्रोध। और एक क्रोध अबुद्धिपूर्वक होने वाला क्रोध पल-पल में उभरता है, हमें पता ही नहीं लगता। कौन सी प्रकार के क्रोध की बहुलता है? चलाकर करने वाला? चलाकर करने वाले क्रोध कि बहुलता है या अपने आप होने वाले क्रोध की बहुलता है? अपने आप। ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि सब-कोंशीयस में ये feed है, भरा हुआ है, अनादि का संस्कार रचा-पचा है। उसे दूर करने के लिए हमें जागरूक होना पड़ेगा, जागरूक होना पड़ेगा। नहीं, जब कभी क्रोध हो सावधान हो जाओ ये ग़लत है। उसका एक प्रयोग है। गुस्से से बचना चाहते हैं, तो प्रथम चरण में गुस्सा करते वक्त नहीं बच पाओ तो चलेगा। ग़ुस्सा करने के बाद अपनी निंदा करो, अपनी गर्हा करो और नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर मन ही मन अपने आप को दंडित करो।

संकल्प लो कि अब दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा। ये ग़लती मैंने कर ली, यहां आप करोगे तो भविष्य में जब गुस्सा आएगा, आपके अंदर गुस्सा इधर गुस्सा उत्पन्न हुआ आपके सब-कोंशीयस में दूसरा विचार आएगा ये गुस्सा ठीक नहीं, गुस्सा ठीक नहीं गुस्सा ठीक नहीं। और वहीं धीरे-धीरे ब्रेक लगेगा। जागरूक होना पड़ेगा। अपने किसी भी प्रवृत्ति से, किसी भी नेगेटिव इमोशन से बचना चाहते हो, उसके प्रति जागरूक होईये। नहीं, ये गलत काम नहीं होना, ये ग़लत भाव नहीं आना, ये गलत व्यवहार नहीं करना। मुझे जागरूक होना है, क्योंकि ये मेरे पतन का हेतु है। वहाँ जागरूक हो जाइए। अपने सब-कोंशीयस में वैसे संस्कार डालिए-भरिए। मुझे गुस्सा नहीं करना, मुझे सावधान रहना है, मुझे सजग रहना है। जीवन की धारा ऐसे ही बदलेगी और उस धारा के परिवर्तन में ही जीवन का वास्तविक रस प्रगट होगा।।मैंने कुछ दिन पहले बोला था ऑटो सजेशन (auto-suggestion) की बात। जिन को बहुत गुस्सा आता है एक प्रयोग करके देखें। गुस्से के प्रति सजगता का यह प्रयोग है। जब कभी भी मन में गुस्सा उत्पन्न हो, आप उसके प्रति जागरुक होईये और जिस घड़ी में आप शांत हो, उस घड़ी में शांति की कामना और प्रार्थना कीजिए। जैसे क्रोध, क्रोध से बचना है। अपने मन में ये संस्कार डालिए, क्रोध मेरे जीवन की बड़ी कमजोरी है। क्रोध एक अस्थाई पागलपन है। इसे आप प्रयोग में लीजिए। मैंने अनेक लोगों से ये प्रयोग कराया और उनमें बड़े आश्चर्य जनक परिवर्तन आए। आप सब से मैं कहता हूँ भगवान के नाम की माला तो रोज फेरते हो, भगवान के नाम की प्रार्थना भी रोज करते हो, एक जाप रोज़ करो। जाप नहीं करना है उद्घोष करना है। सुबह से उठ जाओ, एकांत स्थान में छत पर कहीं बैठ जाओ और यह वाक्य बार-बार दोहराओ। क्रोध एक अस्थाई पागलपन है। क्रोध मेरी बड़ी दुर्बलता है। मुझे शांत रहना है। कोई भी एक वाक्य। मुझे क्षमा करना है। कोई भी एक वाक्य दोहराइए। बोलिए, क्रोध एक अस्थाई पागलपन है। बोलिए। थोड़ा जोर से तो बोलो पूरा देश सुन रहा है ।क्रोध एक, एक बार और देखें। चमत्कारिक प्रभाव पड़ेगा। सब कॉन्शस में ये संस्कार भरेंगे और यही आपको क्रोध के प्रति जागरुक बनाएगा। आप को प्रयोग करना होगा। आज से शुरू करिए और तीन महीने बाद मुझसे मिलिए। आप लोगों की कहानी क्या बताऊं, Prescription रोज़ लिखवाते हो, दवाई कोई नहीं खाते। महाराज! आप तो सुनाते जाओ, मजा आता है। पर सुनने भर में मजा आता है। संत कहते हैं- ‘सुनने का मजा थोड़ी देर का है जीने का मजा सारी जिंदगी का है’। तय करो तुम क्या चाहते हो? जीने की कोशिश कीजिए। उसका रस लीजिए, आनंद लीजिए।

तो अवेयरनेस, क्रोध के प्रति अवेयर होइए। जागरूक रहिएगा तो कभी क्रोध नहीं आएगा। देखिए, आप अपने दफ्तर में हो और आपका बॉस आप पर झाड़ लगाए तो क्या करते? चुपचाप सहन करते हैं, गुस्सा करते हो क्या? क्यों नहीं? ‘अरे महाराज! उस से पंगा लेंगे तो फिर रहेंगे कहाँ, खाएंगे क्या? उस से पंगा लेना ठीक नहीं। तो वो कितना भी उल्टा-पुल्टा बोल दे सहन करते’। दुकान में बैठे हो, ग्राहक आ गया माथा चाट रहा है, गुस्सा करते हो। कई कई बार तो ग्राहक इतना तक कह देता की आप तो लूट रहे हो। बोलता है के नहीं। सहन करते हो कि नहीं? और तुम्हें कोई लुटेरा बोल दे तो। वो शब्द दुकान में सह लेते हो, बाहर व्यवहार में क्यों नहीं सहते? दफ़्तर में बॉस की झाड़ पल में सह लेते हो, दुकान में ग्राहक की खोटी बात बहुत मुस्कुराते हुए सुन लेते हो। घर में घरवाली की बात क्यों नहीं सुन पाते? वहां क्यों कमजोर हो जाते हैं, क्यों? किसकी कमी है? उस घड़ी विवेक है की यहाँ गुस्सा करूंगा तो नुक़सान होगा। घर में कोई विवेक नहीं। ग़ुस्सा कर देते हो। जैसे दुकान और दफ्तर में तुम्हारे मन में विवेकपूर्ण जागरूकता रहती है वैसी जागरूकता यदि घर व्यवहार में हो जाए, तो तुम्हारे मन में कभी क्रोध नहीं आ सकता। बोध जगा रहेगा, क्रोध शांत होगा। वो जागरूकता होनी चाहिए की नहीं, बोलो? गुस्सा करने वाले से कोई प्यार करता है। कोई गुस्सा करे उस पर प्यार करोगे? नहीं करते। तो गुस्से से प्यार क्यों करते हो? गुस्से से प्यार है, पल-पल में ग़ुस्सा। ऐसा क्यों? गुस्सा करने वाले से कोई प्यार नहीं करता। कोई गुस्सा करेगा तो प्यार करेगा क्या? एक बार मैंने अजमेर में पूछा कि भाई अगर कोई तुम पर गुस्सा करे तो तुम उससे प्यार करोगे? गुस्सा करे तो तुम उससे प्यार करोगे? सभा में एक युवक बैठा था। मैंने पूछा – ‘यदि तुम पर कोई गुस्सा करे तो तुम उसे प्यार करोगे’? सभा में एक बैठा था बोला – ‘महाराज! गुस्सा करे तो प्यार करेंगे। महाराज अगर गुस्सा करें, तो महाराज से प्यार करेंगे’। हमने कहा – ‘हद हो गई भाई, जब तुम महाराज के गुस्से को प्यार कर सकते हो तो ग़ैर के गुस्से को भी प्यार करना सीखो। उसे स्वीकार करो। ऐक्सेप्ट करो। अवेयर रहो’।

तीसरी बात एनालिसिस (analysis) करो। हर बात का विश्लेषण करके देखो। मेरे अंदर जो गुस्सा है आपने गुस्सा का अंतर विश्लेषण करो। एनालाइज (analyze) करो। मैं गुस्सा करता हूं, मेरे गुस्से में कितनी कमी हुई। कुछ कमी हुई कि नहीं हुई। इतने दिन से प्रवचन सुन रहे हो। चार महीना तो हो गए लगभग। क्यों? जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर पूरा हो जाएगा, 4 महीना हो जाएगा। 4 महीने से रोज सुन रहे हो। लेकिन, लेकिन गुस्सा कितना कम हुआ। कभी विश्लेषण किया। फ़र्क़ पड़ा है, कम हुआ है, खत्म नहीं हुआ। चलो कम होगा तो खत्म भी हो जाएगा। शुरू तो हो। अपना अंतरविश्लेषण हर मनुष्य को करना चाहिए। मैंने क्या खोया क्या पाया? मेरे अंदर क्या परिवर्तन घटित हुआ? क्या चेंज आया इन बातों को देखना चाहिए। अक्सर होता ये है की व्यक्ति बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, पर छोटी -छोटी बातों में बड़ी-बड़ी गलतियां कर देता है। यदि मनुष्य अपनी समझ ठीक रखें, तो उसके साथ ऐसी गलती कभी नहीं हो। बहुत सहजता से अपने जीवन को आगे बढ़ाने में समर्थ हो जाए और जीवन का पूरा रस ले। एनालिसिस करना सीखिए। हर चीज को उचित तरीके से देखने की कोशिश कीजिए। और आप अपना अंतर विश्लेषण कीजिए कि मेरे अंदर कितना परिवर्तन आया है। रोज नापिये। थर्मामीटर (Thermometer) से बुखार नापते हैं न, वैसे ही अपने आप को नापिये। ग़ुस्सा है तो कितना है? अभी कह रहे, कम हो गया तो कम पर चलेगा? इतना ही रखो। कितना डिग्री का ग़ुस्सा है? यह देखो। पर एक बात ध्यान रखना, गुस्से को तो जब तक खत्म नहीं करोगे ना तब तक खतरा ही खतरा है। उसे पूरी तरह खत्म करके ही छोड़ो। अब तुम लोगों की हालत है अलग। 105 डिग्री बुखार तो बुखार-बुखार-बुखार करते हो। तुरंत इलाज। ड्रिप (drip) लगाओ, इंजेक्शन लगाओ, बुखार को डाउन करो। और 99 पर आ गया, 99 आ गया चलेगा। भैया, 105 जैसे बुखार है, वैसे 99 भी खतरनाक बुखार है। और कभी-कभी तो, ये जो 99 का बुखार होता है ना, वो ज्यादा भयानक हो जाता है। 99 बुखार है, कुछ उसका इलाज नहीं कर रहे, क्रोसिन (crocin) ले-लेकर उसको दबाए हुए है। और पता लगा वही बीमारी बढ़ते-बढ़ते मल्टीपल आर्गन डिसेबल डिजीज (multiple organ disable disease) बन गई। ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ता है। होता है कि नहीं। 99 फ़ीवर है, 100 फ़ीवर है, कुछ नहीं है हल्का-हल्का-हल्का क्रोसिन खाओ ठीक हो जाएगा, ठीक हो जाएगा, ठीक हो जाएगा। और वो बीमारी भीतर ही भीतर बढ़ी और क्या किसका रूप ले ली – मल्टीपल आर्गन डिसेबल। तुम्हारी किड्नी (kidney) को अटैक (attack) किया, लिवर (liver) को अटैक किया, लंगस (lungs) को अटैक किया, आंतों को अटैक किया। एक साथ सब काम। यहां तक ब्रेन (brain) को अटैक कर लेते, हार्ट (heart) को भी कवर कर लेते हैं। व्यक्ति फिर कहीं से रिकवरी (recovery) नहीं पा पाता। वो करे नहीं हो पता। जिंदगी से हाथ धोना पड़ता है। कौन से बुखार से? 99 बुखार से। एक बात बताओ 105 डिग्री का बुखार 3 घंटा और 99 डिग्री का बुखार एक हफ्ता। बोलो, नुकसान होगा कि नहीं। होगा। वो तो ख़ून जलाएगा, जीवन बर्बाद करेगा। कोई व्यक्ति तेज क्रोध करता है, तो मुझे क्रोध तेज़ नहीं है। मैं तो बहुत थोड़ा क्रोध करता हूं। हल्का क्रोध करता हूं। लेकिन हल्का क्रोध लंबे समय तक करने वाला भी क्या सुरक्षित है? वो 99 का बुखार है, जिंदगी भर लगा हुआ है। इसका भी उपचार करो। जीवन में सुधार करो। अंतर विश्लेषण, क्रोध को कम करने में ही चैन मत रखो। क्रोध को ख़त्म करने की मन में भावना जगाओ। मुझे क्रोध नहीं करना। शांत रहने की प्रवृत्ति रखना है तो जीवन में आनंद आएगा। पहली बात ऐक्सेप्ट कीजिए, दूसरी बार अवेयर रहिए, तीसरी बात ऐनालायीज कीजिए।
चौथी बात- ऐंगल चेंज कीजिए। चेंज द ऐंगल। देखने का नजरिया बदलिए। दृष्टिकोण बदलिए। जो गलत है, उसको सही देखने की कोशिश कर लीजिए। क्रोध शांत हो जाएगा। बुराई में अच्छाई देखना शुरू कर दीजिए, क्रोध शांत हो जाएगा।

आपको ग़ुस्सा कब आता है? बोलो, ग़ुस्सा कब आता है? मन से विपरीत होता है, सामने वाला मन के विपरीत करता है तो गुस्सा आता है। तो तुमने आजतक सामने वाले के मन का किया है क्या? ये पक्का है। सामने वाला मेरे मन के विपरीत करता है, मुझे ग़ुस्सा आता है। मान लिया। ठीक है उसने मेरे मन के विपरीत किया, मेरे मन में गुस्सा आया, तो ये बताओ तुमने अब तक सब के मन का किया है क्या ? ये पक्का है कि मैंने आजतक किसी के मन के विपरीत नहीं किया? तो भैया हो तो बराबर चोर-चोर मौसेरे भाई, फिर ग़ुस्सा किस पर? किस पर गुस्सा, किस लिए गुस्सा? जिसे तुम बुरा मान रहे हो, अगर देखने का नजरिया बदल जाए तो वही अच्छा लगने लगेगा। जिस पर गुस्सा आ रहा है, उसकी जगह खड़े होकर के सोचना शुरू कर दो।

तुमने, किसी को कोई काम बताया। काम बताया और अगले ने काम नहीं किया। आपने पूछा वह काम हुआ। जैसे ही उसने कहा नहीं हुआ, और तुमने गोलियां दागनी शुरू कर दी। है ना, शब्दों की बौछार शुरू- ‘तुम तो एकदम नालायक निक्कमे हैं, कुछ काम के नहीं, कई बार कहता हूँ, कुछ करते नहीं है। तुमसे कुछ हो ही नहीं सकता’। पता नहीं क्या-क्या बोलोगे? कभी ये सोचने की इच्छा क्यों नहीं होती की उसने काम क्यों नहीं किया? ऐसा भी तो हो सकता है कि उसने करने की कोशिश की होगी पर कर नहीं पाया। एक है काम नहीं किया और एक है काम नहीं कर सका। दोनों में अंतर है कि नहीं? काम नहीं किया ये उपेक्षा है और काम नहीं कर सका ये मजबूरी है। उपेक्षा में अवज्ञा है। ठीक है उसने मेरी बात को इग्नोर कर दिया। मेरी बात को वजन नहीं दिया और उसने मनमाना कर दिया। लेकिन सामने वाला ऐसा भी तो हो सकता है की करना चाहता हो और कर ना पाया हो। होता है की नहीं होता है? कई काम ऐसे होते है, जो आप चाहते हैं और कर नहीं पाते। कम से कम किसी व्यक्ति को आपने कुछ कहा और आपके कहे अनुसार वो नहीं किया। तो क्या उस समय हम ये नहीं सोच सकते की ये आदमी अब तक तो जो जो मैंने कहा वह सब किया। मेरी बात को कभी टालता नहीं। आज नहीं किया ज़रूर इसकी कोई मजबूरी होगी। शायद कर ना सका हो तो हम इससे ये ना कहें कि तुमने यह काम क्यों नहीं किया। क्यों भैया क्या यह काम हो गया? नहीं हुआ। क्या बात है, कोई परेशानी आ गई क्या? कोई मजबूरी आ गई क्या? देखिए स्टेटमेंट कितना बदल गया? उस समय आग थे, अब क्या हो गया? पानी। सामने वाले के दिल को आप कब जीत पाओगे? आग बनकर के कि पानी बनकर के?

आपने किया नहीं? पति से कहा था की आज आपको मार्केट से ये चीज लेकर आना है। बेचारा सुबह से शाम तक दुकान में हारा-थका, दफ्तर में हारा-थका आया और जैसे ही घर आकर के पाँव रखा, घरवाली ने यह तो नहीं पूछा कि कैसे हो, क्या है, पानी पी लो बैठ जाओ शांति से। वो चीज़ लाए क्या? आपको तो कुछ होता ही नहीं है। क्या हो गया? क्या होता है? बोलो। ऐसा होता है के नहीं होता? ऐसा ही होता है। आए और फ़ाइअरिंग शुरू। फ़ाइअरिंग शुरू। एक युवक था, हमारे पास आता था। रात में वैयावृत्ति के बाद, 10:00 बजे के बाद 11:00 बजे तक वह नीचे तीन-चार लड़के आपस में गप्प-गोष्ठी करते रहते थे। 11:00 के बाद जाते थे। एक रोज मैंने पूछा भैया क्या बात है, तुम लोग घर इतनी देर से क्यों जाते हो? बोले – ‘महाराज ! उसी में सुरक्षा है’। ‘क्या बात है’? बोले – ‘महाराज ! घर पहले जाओ तो सुनना पड़ती है। घर जाने पर सुनना पड़ती है’। विचित्र बात है, घर जाएंगे सुनना पड़ेगा, डर लगता है इसलिए देर से जाते। सब सो जाए चुपचाप अपन भी बाजू में जाके सो जा। कौन झेले? रोज-रोज का काम है महाराज जी। तो क्या है ये? आप ध्यान रखना सुनके सबको अपना बना लोगे, सुना करके तो अपने को भी ग़ैर कर दोगे। सीख लीजिए, सुनेगे सुनाएंगे नहीं।

चेंज द एंगल। अपना नजरिया बदलिए। कोई कुछ नहीं किया, तो उसपे आरोप मत जड़िए। ये सोचिए इसकी कोई मजबूरी होगी। मेरी इच्छा कुछ है, और वह कर नहीं रहा है। मुझे दिख रहा है वह कर सकता है, फिर भी नहीं कर रहा है। तो समझिए, इसमें भी उस कोई अच्छी भावना होगी। भोजन के लिए बैठे हैं। आपके मनोनुकूल भोजन नहीं है। आपको चटपटा चाहिए और पत्नी ने तो यह लौकी की सब्जी, दाल और फुल्के परस दिए। क्या करते हो? अच्छा भोजन चाहिए और साधारण भोजन मान लो चौके वाला भोजन आ गया, तो क्या प्रतिक्रिया करते हो? क्या करोगे प्रतिक्रिया बोलो? क्या हो गया? कभी ऐसी घटना घटी कि नहीं घटी तुम लोगों के साथ? मान लो ऐसा हो जाए तो क्या करते हो? अरे बोलो तो। हम अपना एक्सपीरियंस स्ट्रांग करना चाहते हैं। यह क्या रख दिया? गुस्सा आएगा कि नहीं? आएगा। अब पता नहीं उस समय क्या प्रतिक्रिया करोगे? कई लोग तो थाली को उड़नतश्तरी बना देते हैं। होता है। भैया, उस वक़्त अपना ऐंगल चेंज करो और यह सोच लो कि मेरी धर्मपत्नी के मन में मेरी हेल्थ कॉन्शियसनेस (health consciousness) बढ़ गई है। वो मेरे स्वास्थ्य की सलामती चाहती है। इसलिए मुझे सादा भोजन दे रही है कि मेरे को प्रॉब्लम ना हो तो क्या बुराई है। ये मेरा हित चाह रही है। ऐसा नहीं सोच सकते क्या? वो मेरा हित चाह रही हो, ऐसा भी तो सोचा जा सकता है। और अगर ऐसा सोचने में आ जाए तो गुस्सा आ सकता है क्या? बोलो। ऐंगल चेंज कर दो। कोई कितना भी कुछ कहे, ठीक। उस समय अगर अपने ऐंगल को थोड़ा सा चेंज कर देते हैं, सोचने का दृष्टिकोण बदल देते, तो मामला ही अलग हो जाता है। पति भोजन कर रहा था, सब्जी में जरूरत से ज्यादा मिर्च थी। और मिर्च की झाँस बहुत तेज़ चल रही थी। वो बेचारा खाए, आँखों से आँसू आए। पत्नी की नजर पड़ी, की पति तो रोटी खा भी रहा है और आँसू भी आ रहे हैं। पूछा क्या बात है, आज रो क्यों रहे हो? बोले – ‘भई रो थोड़े ही रहा हूं, ये तो आनंद के आँसू हैं’। आनंद ! क्या बोले, ‘किस बात का आनंद आ रहा है’? बोला – ‘इतना स्वादिष्ट ,भोजन बनाया तुमने की आनंद आ रहा है। तो उसने कहा सब्जी और डाल दूं क्या? बोले अब ज्यादा आनंद बर्दाश्त नहीं होगा, इतना ही ठीक है।तो क्या हुआ ऐक्सेप्ट कीजिए, अवेयर होईए, एनालिसिस कीजिए और एंगल बदलना सीखिए। क्रोध से आप बहुत कुछ बच जाओगे।

यह तो हुआ ख़ुद के गुस्से की बात। अब सामने वाला अगर ग़ुस्सैल है क्या करें? उसको कैसे झेलें? उसे कैसे झेलें? उसके लिए भी चार बात।
सबसे पहले एडमिट (admit) कीजिए। एडमिट कीजिए यानी क्या कीजिए? स्वीकार लीजिए। क्या स्वीकारिये? ये इसका नेचर (nature) है, ये इसका स्वभाव है। कोई बात नहीं है। बोलते हैं थोड़ी देर के लिए बोलता है आदमी, बाद में शांत हो जाता है। भाव अच्छा है। थोड़ा बहुत गुस्सा आ जाता है, चलो उसको स्वीकार करो।

अगर सामने वाले के नेचर को स्वीकार कर लोगे, उसके गुस्से को एडमिट करना सीख जाओगे, तो आपका कोई रिएक्शन नहीं होगा। प्रतिक्रिया नहीं होगी। और उससे फिर जीवन का क्रम अपने आप संतुलित हो जाएगा। सब व्यवस्थित होगा। तो रिएक्ट मत कीजिए, एडमिट कीजिए। ठीक है भाई, हो गया बोल ले। देखिए, अपने आप शांत हो जाएगा। शांत हो जाएगा। एडमिट कीजिए। और एडमिट करने के बाद आप देखिएगा कि उसमें कुछ परिवर्तन आएगा। नहीं आएगा तो आप उससे प्रभावित नहीं होंगे। लेकिन लोग स्वीकार नहीं पाते।

एक बार एक बहन जी आई, बोले महाराज जी कोई उपाय बताइए बहुत परेशान हूँ। चेहरा एकदम देखा तो एकदम उदास था। क्या बात हो गई? बोले – ‘हमारे पति को बहुत गुस्सा आता है, महाराज जी। बहुत ग़ुस्सा आता है। बर्दाश्त नहीं होता’। मैंने उनकी ओर देखा, बोले कितने बरस हो गए शादी के? बोले 32 वर्ष। बोले 32 वर्ष झेल लिया, तो 2-4-10 वर्ष और झेल लो और क्या? झेलना है। इतने साल कैसे झेला? बोले महाराज अभी तक तो हमने चला लिया, पर महाराज, बहुएँ आ गईं, नाती पोते हो गए, मगर उनको कुछ सुधार ही नहीं आता। उनको सुधारना चाहिए। ध्यान रखो, अगर किसी के अंदर गुस्सा है ना, तो आप उसके गुस्से को सुधारने की बात मत करिए। स्वीकारने की बात करिए। प्रायः ये होता है, लोग शिकायत करते हैं, महाराज इनको बहुत गुस्सा आता है। इनको बहुत गुस्सा आता है। इनको बहुत गुस्सा आता है। अरे स्वीकारलो न, झेल लो। कितनी देर गुस्सा करेगा, अगला। ठीक है आदत है। अगर इनको बकने से शांति मिलती है, बक लेने दो, हम झेल लेंगे। स्वीकार करिए। रीऐक्शन मत कीजिए। अगर आपके अन्दर यह कला विकसित हो गई, कठिनाई नहीं होगी। मेरे सम्पर्क में एक व्यक्ति है। उनकी धर्मपत्नी एकदम ग़ुस्सैल और वो एकदम शांत। मैं कहूँ की वो जो धर्मपत्नी उसी के लायक है दूसरा कोई नहीं झेल सकता। एकदम पूरब-पश्चिम, आग और पानी। पर मैंने देखा कि वह कुछ भी बोले पति चुपचाप मुस्कुराए। और कोई प्रतिक्रिया ना दे। दो-चार मौक़े तो ऐसे आए कि मेरे सामने अपने पति को ऐसे जलील कर दी की एक-आध बार मुझे भी तरस आ गया। कैसा बोल रही। और मजे की बात, पति को छोड़ कर सबसे मीठा बोले। पति पर गुस्सा। मैंने एक दिन पति की और देखा, बोला भाई तुम्हारी हालत तो बड़ी गंभीर दिख रही, कैसे झेलते हो? बोले महाराज बस आपने कहा है ना आप लोग कहते वही अपना रहा हूं, प्रैक्टिकल (practical) कर रहा हूं। आप तपस्या करके निर्जरा कर रहे हैं ,मैं इस समस्या से अपनी निर्जरा कर रहा हूं। शांति। चुपचाप रहते हैं महाराज। बोलने में बवाल होता है। सुन लो, काम खत्म। उसका नेचर है। ज़िंदगी ऐसे ही चलेगी। शादी के 50 बरस बीत गए और 10-5 बरस हैं, चले जाएँगे।खेल आपस में होता है।

एक माताजी ने अपने पति की शिकायत की, की महाराज इनसे कहिए गुस्सा कम करें। उम्र काफ़ी हो गई थी 75-80 के बीच की। माताजी ने अपने पति की शिकायत की, कि महाराज जी ये बहुत गुस्सा करते हैं। तो एक युवक मेरे साथ था, उसने कहा महाराज हमने एक बात तो, एक एक्सपीरियंस आ गया कि हमको भी अभी 50-60 साल की जिंदगी ऐसी ही लड़ते-लड़ते गुजारनी। ज़िंदगी ऐसे ही चलेगी गृहस्थी की। नोक-झोंक होगा। एडजस्ट कीजिए। उसे एडमिट कीजिए। आप अगर स्वीकार नहीं करोगे, संबंध नहीं बनेंगे। ख़ुद की ग़लती में सुधार कीजिए और दूसरे की गलती को स्वीकार लीजिए। खुद की कमी को स्वीकारोगे के अरे कमी है चलता है। तो नहीं। मेरे अंदर कमी है, स्वीकारो और सुधारो। और सामने वाले की कमी है, ये उसका नेचर है। चलो भई उसकी ये आदत है। चले धीरे-धीरे-धीरे-धीरे परिवर्तन हो जाएगा। हम उससे प्रभावित नहीं होंगे। जीवन में बदलाव घटित होगा। तो नम्बर वन एडमिट कीजिए।

दूसरा- अवॉइड (avoid) कीजिए। अवॉइड करिए मतलब, उसकी बात को नज़रंदाज कर दीजिए। कुछ बोल दिया, उलजलूल बोल दिया, उलटा सीधा बोल दिया, सुन करके अनसुना कर दीजिए। उसके क्रोध को अवॉइड करना सीखिए। कहाँ होगा, कितनी देर तक, कोई आदमी कितना बक-बक करेगा, ख़ुद थक जाएगा। हाँ, ठीक है, बोल दिया बोल देने दीजिए। कितनी देर की बात है? अपने आप सामने वाले में परिवर्तन आएगा। आप अगर अवॉइड नहीं करिएगा, पकड़ लीजिएगा, तो जकड़ जाइएगा। तो अवॉइड करना सीखिए। नहीं ठीक है, जो है सो ठीक है। कोई बात नहीं, इग्नोर करो, let us go कह सकते हैं। प्रायः लोग अवॉइड नहीं करते, बल्कि उलटा आक्रमण कर देते हैं, अटैक कर देते हैं। नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देते हैं। परिणाम ख़राब होते हैं। जितना आप ऐसी बातों को नजरअन्दाज़ कीजिएगा, उतना आनंद आएगा। किंतु आप लोग अवॉइड करते हैं किसको , जो ग़ुस्सा करता है उसको। उसी से दूरी रखने लगते हो कटने लगते हो, ये रास्ता नहीं है। ग़ुस्से को अवॉइड कीजिए, गुस्से वाले को नहीं। वो तो तुम्हारा अपना है, उसको तो अपनाना है, अपना बनाकर उसे सुधारना है। जो गुस्सा करें उससे बात करना बंद कर दिए, तो ये तो गुस्से में गुस्सा और बढ़ाना है। ठीक है, उसे अवॉइड कीजिए। अवॉइड करने से काफ़ी कुछ फर्क आता है। इग्नोर करियेगा, शांति मिलेगी। पकड़ करके बैठ जाइएगा, अशांति होगी। किसी ने कुछ बोल दिया, अरे अगले ने मुझे ऐसा बोल दिया।

एक बार ऐसा हुआ, एक व्यक्ति आया मेरे पास। सामायिक के बाद बड़ा बौखलाया हुआ। बोले क्या बात है आज बड़े तमतमाए हुए दिख रहे हो। इतनी बौखलाहट आजतक तेरे चेहरे पर नहीं देखी। क्या बात है। बोले- ‘महाराज! बहुत गड़बड़ हो गया’। बोले- ‘क्या हो गया’? ‘अब बर्दाश्त से बाहर हो गया’। बोले- ‘क्या हो गया’? बोले- ‘ये तो आपकी याद आ गई की यहाँ आ गया, नहीं तो मेरे आज हाथ काले हो जाते’। बोले- ‘क्या बात है भाई, तू इतना आपे से बाहर क्यों है? आखिर बात क्या हो गई’? बोले- ‘महाराज क्या बताऊं? मैं आज खाना खाने घर आया, थोड़ा लेट (late) आया, और जैसे ही घर आया, तो देखा मेरी घरवाली फ़ोन पर बात कर रही थी’। फ़ोन पर तो बात सब करते हैं, कर रही होगी। ‘नहीं महाराज! अपने भाई से कर रही थी। भाई से कर रही थी’। चलो किसी ग़ैर से नहीं कर रही थी, और अच्छी बात है। ‘महाराज! बात वो नहीं है’। बोले- क्या? ‘मेरी बुराई कर रही थी’। तुम्हारी बुराई। ‘महाराज! मैं रात-दिन इन लोगों के लिए अपनी जान लगता हूँ। सब कुछ करता हूं। पानी मांगती है, दूध देता हूं। फिर ये हाल। महाराज! बर्दाश्त नहीं हुआ’। बोले- ‘ठीक है, एक बार बोल दी सो बोल दी। कोई बात होगी, चलो ठीक है। वो शायद इसलिए बुराई कर रही होगी की, तुम्हारे संबंधों पर उनको नजर ना लगे’। ‘नहीं महाराज! ऐसी बात नहीं है। उसकी बातों से ऐसा लगा की वो रोज़ ऐसे बुराई करती होगी’।अरे भाई! रोज़ तो तुम ऐसे तमतमा के नही आए। इससे पहले तो तुम इतनी बौखलाहट से नहीं आए’। बोले- ‘महाराज! इससे पहले इसलिए नहीं आए कि हमने कभी सुना नहीं’। हमने कहा- ‘आज भी १० मिनट लेट आते तो? नहीं सुनते’। हम बोले- ‘भैया इतना ही तो करना है, यही सोच ले आज भी मैंने नहीं सुना। आज अगर तुमने नहीं सुना होता तो तुम्हें इतना ग़ुस्सा आता? नहीं आता’। तो जैसे कोई बात हम नहीं सुनते, हमारे मन में कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं होती। तो ऐसे ही किसी की कोई नकारात्मक बात हो तो उसे सुनकर के अनसुना करने की कला अपनाइए, जीवन में कभी ग़ुस्सा नहीं आएगा। अवॉइड कीजिए। सामने वाले के गुस्से को झेल लेंगे। आपको तकलीफ नहीं होगी।

और एक है- एडमाएर (admire) कीजिए। अवॉइड के बाद क्या? एडमाएर। जो ग़ुस्सा करे न, उसकी आलोचना मत करो, उसकी शिकायत मत करो, उसकी प्रशंसा करो। गुस्सा के क्षण करो, न करो तो बाद में करो। अरे, ये बड़े शांत हैं। बड़े सुशील हैं। मेरा बहुत ख़याल करते हैं। मेरे इनके बड़े अच्छे सम्बंध हैं। जो तुम पर ग़ुस्सा करता है २४ घंटा, जो तुमको झाड़ लगता है २४ घंटा, जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करता हर पल, जो समय-समय पर सबके बीच में ज़लील करता है, तुम्हें अगर उसे अपना बनाना है, उसका दिल जीतना है, तो एक सूत्र दे रहा हूं। कहीं भी उसकी बात आए, कोई तुमसे कहे अरे तुम्हारा पति ऐसा है या तुम्हारी पत्नी ऐसी है या तुम्हारा भाई ऐसा है या तुम्हारे बंधु ऐसे हैं, तुम्हारे लिए उसके बारे में कहे, नहीं भैया ऐसी बात नहीं है। उस जैसा इन्सान नहीं है। बहुत अच्छा है। उसमें बहुत सारी अच्छाइयां हैं। ये सब बोलो। वो कुछ नहीं, वो थोड़ी बहुत नेचर की बात है। प्रशंसा करना शुरू कर दीजिए। प्रशंसा से हर व्यक्ति अपना बनता है और आलोचना से अपना भी गैर हो जाता है।

प्रायः ऐसा कम होता है, जो गुस्सा करें या दुर्व्यवहार करे उसकी प्रशंसा। महाराज हो ही नहीं सकता। करोगे तो आनंद आएगा। करोगे तो आनंद आएगा। सामने वाले का दिल बदल जाएगा। परिवर्तन अपने भीतर और इसी के साथ जिस समय वो ग़ुस्सा करे न, जिस समय ग़ुस्सा करे, उस समय कहे क्या बढ़िया लग रहा आप जब ग़ुस्सा कर रहे न गुस्सा नहीं लग रहा है। इस समय आपके बोल अमृत जैसे झड़ रहे हैं। इस समय आपका चेहरा इतना चल रहा है कि बिल्कुल चाँद उतर आया है। बड़ा अच्छा। बोलो उस समय उसकी प्रशंसा करना शुरू कर दो। क्या होगा? हो सकता है कि नहीं? महाराज एक झापड़ और मार देगा। तो झापड़ मारे कहे अच्छा हुआ आपने झापड़ मारा, मेरे गाल का दर्द ठीक हो गया। हो सकता है कि नहीं? मुश्किल है, असम्भव नहीं। मुश्किल केवल उसके लिए है, जो अपने आप को सुधारना नहीं चाहता। और जो खुद को सुधारना चाहता है उसके लिए बहुत सरल है। प्रतिक्रियायें देकर दुखी होंओगे और प्रतिक्रियाओं को कम करने से सारा जीवन सुखी बनेगा। तो ये तो एक रास्ता है। हमें उस रास्ते पर चलने की कोशिश करनी चाहिए, उसके बारे में बार बार सोचना चाहिए। तो दूसरे के गुस्से को एडमिट (admit) कीजिए। दूसरे के गुस्से को अवॉइड (avoid) कीजिए। दूसरे के गुस्से को एडमाएर कीजिए।

और चौथी बात- अपॉलॉजी (apology), हाथ जोड़कर क्षमा माँग लीजिए, chapter closed। ‘भैया ठीक, आप गुस्सा कर रहे हैं। गुस्सा मत करो मुझसे गलती हो गई। आई एम सॉरी’। चैप्टर क्लोज। महाराज ये ही नहीं निकलता। ये सॉरी बहुत कठिन है। तो ठीक है ढोईये, ग़ुस्से को ढोईये, ज़िंदगी भर रोईए। क्या होगा? क्या होगा? कहानी वही है। अभी तक रोते आए हो, रोते रहोगे और रोते रोते ही गुजर गई सारी जिंदगी, बोझा ढोते गुजर गई सारी जिंदगी की बात आ जाएगी। अपने आप को बदलने के लिए हमें ख़ुद को तैयार होना पड़ेगा। तो अपने आप को रोकिए।

आज की चार बातें दो संदर्भ में। पहले आप ऐक्सेप्ट कीजिए, अवेयर होईये। तीसरी बात क्या कहा था? ऐनालिसिस कीजिए और ऐंगल को चेंज कीजिए और दूसरे के गुस्से के लिए आप एडमिट कीजिए, अवॉइड कीजिए, एडमाएर कीजिए और अपॉलॉजी अपनाइए। जीवन धन्य होगा।”

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