Letter ‘H’
फोर्ब्स जैसी पत्रिकाएँ समय-समय पर अनेक प्रकार की सूची जारी करती है। कभी-कभी उसमें वह लिस्ट आती है कि दुनिया में सबसे बड़ा धनी कौन? सबसे धनी कौन? मेरे ख्याल से हर चार-छ: महीने में एक बार यह सूची प्रकाशित होती है। लेकिन आपने कभी ऐसा देखा, जब किसी पत्रिका या किसी एजेंसी ने ऐसी लिस्ट प्रकाशित की हो कि सबसे सुखी कौन? सबसे ज्यादा खुश कौन? है दुनिया की किसी एजेंसी के पास ऐसी कोई व्यवस्था? व्यक्ति के धन को मापने का पैमाना तो है, पर क्या किसी के पास खुशियों को मापने का कोई आधार है? धनी कौन? यह तो समझ में आता है। लेकिन खुश कौन? यह भी जानने की जरूरत है। खुश कौन है? खुशी कहाँ है? यह हमें जानना है। मैं आपसे सवाल करता हूँ कि आप खुश हैं या नहीं? अगर आप खुश हैं, तो मैं आपको इतना ही आशीर्वाद देता हूँ की आप सदा खुश रहें।
आज बात HAPPINESS की है। ‘H’ for ‘Happy’, Who is Happy?
आपने कहा- महाराज! हम खुश हैं, आपके दर्शन करके खुश हैं, आपके चातुर्मास से खुश हैं। कईं लोग कहते हैं कि आप से बात करने का मौका मिला इसलिए खुश हैं, आप से आशीर्वाद मिला इसलिए खुश हैं। मैं आपसे सवाल करता हूँ कि आप खुश कब होते हैं? आपको खुशी कब होती है? कुछ लोग कहते हैं कि अच्छा काम करने पर खुशी मिलती है, तो आज से आप यह तय कर लो कि अच्छा काम ही करेंगे, बुरा काम कभी नहीं करेंगे तो हम हमेशा खुश रहेंगे। अच्छा काम करते हैं तब खुशी होती है, कुछ अच्छा पा लेते हैं तो खुशी होती है। मन के अनुकूल कुछ हो जाता है तो खुशी होती है। पर मैं समझता हूँ कि हमारी अवधारणा कुछ उल्टी है। हम यह सोचते हैं कि हम यह पाएंगे तो हमें खुशी मिलेगी, यह होगा तो हम खुश रहेंगे। बोलिए, ऐसा ही होता है। आप अपने जीवन की शुरूआत से देखिए। कोई व्यक्ति अपने करियर की शुरुआत करता है, सोचता है, अच्छी जॉब मिल जाएगी तो मैं खुश रहूँगा। जॉब मिल जाती है तो बाद में सोचता है अच्छी जोड़ी मिल जाएगी तो मैं खुश रहूँगा। अच्छी जोड़ी मिल जाती है तो अच्छे बच्चे हो जाएंगे तो खुश रहूँगा। फिर सोचता है कि अपना अच्छा घर का मकान मिल जाएगा तो खुश रहूँगा। फिर मकान मिले तो मकान किसी पॉश एरिया में मिल जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा। फिर सोचता है कि गाड़ी मिल जाए तो ज्यादा खुश रहूँगा। फिर गाड़ी मिल जाए तो नई गाड़ी मिल जाएगी तो खुश रहूँगा। नई गाड़ी में भी टॉप मॉडल की गाड़ी मिल जाए तो खुश रहूँगा। ये सब क्या है? इन सब से क्या ख़ुशी मिली?
हमारी खुशी किस पर डिपेंड करती है? किस पर हमारी खुशी डिपेंड करती है? खुशी डिपेंड करती है चीजों पर और परिस्थितियों पर। मनुष्य हमेशा अपने खुशी को भविष्य में खोजता है। यह हो जाएगा तो मैं खुश रहूँगा, इससे मुझे खुशी मिलेगी, इन चीजों से मुझे ख़ुशी मिलेगी, यहाँ से मुझे खुशी मिलेगी, वहाँ से मुझे खुशी मिलेगी। जमाने में ढेर प्रकार की चीजों के प्रति वह पागल होता है और यह सोचता है कि इससे मुझे खुशी मिलेगी-इससे मुझे खुशी मिलेगी। मैं खुश रहूँगा और इसमें मैं खुश रहूँगा। सवाल यह है कि अपने मन की पड़ताल करके देखिए। तुमने जिन-जिन चीजों के बारे में सोचा कि मैं इसको पाऊंगा तो मुझे खुशी मिलेगी, इसके साथ मुझे खुशी मिलेगी। वह चीज जब पाई, तो खुशी मिली या नहीं? तुमने जो चाहा था कि बस मेरी मेरी पढ़ाई हो जाए, मेरी जॉब लग जाए, जॉब लग गई, क्या खुशी मिली? अच्छा पैकेज मिल जाए, मिल गया, क्या खुशी मिली? कहाँ है वह खुशी? मेरा बिजनेस सेटल हो जाए, बिजनेस भी सेटल हो गया, क्या खुशी मिली? मेरी शादी हो जाए, शादी भी हो गई, क्या खुशी मिली? बच्चे हो जाए, बच्चे भी हो गए, क्या खुशी मिली? तुमने जो-जो चाहा वह मिल गया, क्या तुम्हे खुशी मिली? कहाँ है वो खुशी जिसकी तुम तलाश कर रहे हो? खोजो उसको ! खोजोगे उसको या कि कंही खोई हुई है? खुशी कहाँ है? बोलो !
एक बात बताऊँ- जिन-जिन चीजों में हम यह महसूस करते हैं कि मुझे खुशी मिलती है या मिल रही है, वह खुशी किस में है? उन चीजों में है या अपने मन में? मानता हूँ कि बाहर की बहुत सारी चीजें जब हमारे जीवन से जुड़ती है, हमें सुविधाएँ मिलती है तो सुखदाई लगती है या आराम में लगती है। हम उससे अपने आप को बड़ा कंफर्टेबल फील करते हैं। सारी सहूलियत हो गई, सब चीजें मिल गई, लेकिन खुशी! कहाँ हैं ख़ुशी? खुशी अलग चीज है। अभी यहाँ बैठे-बैठे आपको ख़ुशी का अनुभव करता हूँ। यहाँ अभी आप लोग आराम से बैठे हैं। कंफर्टेबल महसूस कर रहे हैं। आप आगे बैठ गए, कैमरे में सबसे पहले मेरा चेहरा है, खुशी का अनुभव है। अगर आपके आगे कोई आकर बैठ जाए तो? आपको दबा दे तो? आपको बिलकुल भी डिस्टर्ब नहीं किया। आप जहाँ हैं, वहीं हैं, बस आपके आगे कोई आकर बैठ जाए। तो अब क्या आप अलग अनुभव करेंगे या दिमाग खराब हो जाएगा। आपकी खुशी कहाँ गई? अब क्या हुआ? क्यों आपका मन खराब हुआ? कहाँ आपकी खुशी गायब हुई?
बंधुओं! जीवन भर प्रसन्न रहना चाहते हो, अपने मन को हैप्पी बनाना चाहते हो तो आज कुछ टिप्स आपको दे रहा हूँ। खुशियाँ बाहर नहीं, खुशियाँ हमारे भीतर है। खुशी को खोजना नहीं, केवल खुशी को गायब होने से रोकना है। हम ख़ुशी खोते हैं और बाद में उसको खोजते हैं। संत कहते हैं- खुशी को कहीं खोजने की जरूरत नहीं है। खुशी को खोना बंद कर दो, वह अपने आप प्राप्त है। खुशियाँ मेरे पास है। खुशियों का भंडार मेरे भीतर है, हम हर पल खुश रहेंगे। लेकिन कब? जब हम अपनी स्थिति से संतुष्ट रहेंगे तब।
सदाबहार खुश रहने का पहला मंत्र- “जो है, जैसा है, जितना है, जिस स्थिति में है, उसमें संतुष्ट रहो”। “जो है, जैसा है, जितना है, जिस स्थिति में है, उसमें संतुष्ट रहो”।
क्या आप रह सकते हैं- मेरे पास जो है उसमें मुझे संतुष्ट रहना है। जैसा है, जितना है, जिस स्थिति में है, उतने में संतुष्ट रहना है। अगर आप के अंतरंग में ऐसी संतुष्टि हैं तो जीवन में कभी दु:खी नहीं रहोगे। संतुष्टि नहीं तो तीन काल में भी कभी सुखी नहीं हो पाओगे। तुम यह सोचते हो कि मुझे वह मिले तो मैं खुश रहूँगा। यह भ्रम है। जो मनुष्य उससे खुश नहीं जो उसके पास है, तो वह उससे कैसे खुश रहेगा जिसे वह चाहता है। एक बात बताऊँ- तुम्हारे पास क्या है? यह महत्वपूर्ण नहीं है- तुम कैसे हो। यह महत्वपूर्ण है- अपार संपत्ति है फिर भी मन प्रसन्न नहीं तो वह संपत्ति व्यर्थ है और तुम बहुत साधारण हो, मन खुश है तो तुम्हारा जीवन धन्य है। तुम्हारे पास थोड़ा है और मन प्रसन्न है, संतुष्ट है, तो तुम्हारा जीवन धन्य है। तुम्हारे पास अपार धनराशि है फिर भी तुम संतुष्ट नहीं तो सारे जीवन दु:खी, दु:खी और दु:खी ही रहोगे।
जब कभी भी संतुष्टि की बात आती है तो लोगों का ध्यान केवल धन-पैसे के विषय में संतोष की तरफ केंद्रित होता है। संतुष्टि का तात्पर्य केवल धन पैसे में संतोष रखने की बात नहीं है। संतुष्टि का मतलब है-अपनी स्थिति में प्रसन्न बने रहना। जैसे हैं, जो हैं, जितना है, जिस स्थिति में हैं, बस उसको एक्सेप्ट करना, स्वीकार भाव होना, मन में अपने आप प्रसन्नता होगी। अब अपने मन से पूछो-‘क्या आप अपने जीवन से संतुष्ट हैं’? जिन जिन बातों में तुम संतुष्ट होंगे, वहाँ खुशी होगी। तलाश करके देखोगे जहाँ असंतुष्टि है वहीं खिन्नता है। आप अपने स्वास्थ्य को लेकर संतुष्ट हैं, स्वस्थ हैं, मस्त हैं तो ये चैप्टर यहीं क्लोज। लेकिन खुश नहीं हैं तो? किसी की आदत होती है कि अरे! क्या करें? कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है। सौ तरह का उपाय किया, कोई दवाई ही काम नहीं करती है। हे भगवान! ऐसा क्या हो गया, सारा पाप मेरे ही ऊपर लाद दिया। ऐसा क्यों किया? इसका रोना रोओगे तो रोते ही रह जाओगे। ठीक है, शरीर है, शरीर में तो सब के साथ बीमारियाँ लगी ही रहती है। बीमार हो तो चिकित्सा करें। मैं स्वस्थ रहूँ, ऐसी भावना भाएँ। इसमें कोई दिक्कत नहीं लेकिन अपने स्वास्थ्य की चिंता में रात-दिन रोना रोएँ, इससे बुरी बात कुछ नहीं। संत कहते हैं- ‘स्वस्थ रहने का प्रयास करो, स्वस्थ रहने की भावना भाओ, अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहो, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन स्वास्थ्य की चिंता में दुबले हो जाओ, इससे बुरी बात कोई नहीं’।
तुम जितने ज्यादा अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतित और खिन्न रहोगे, तुम्हारा स्वास्थ्य उतना ही बिगड़ेगा। हम स्वस्थ हैं, मस्त हैं, इस तरह की भावना हमेशा भाएँ। कई तरह के लोग होते हैं। मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है। कैसी विपरीत स्थिति में, अपनी शारीरिक विषमता में भी व्यक्ति प्रसन्नता टिका के रखता है, इसका जीता जागता उदाहरण है। 25 साल के एक व्यक्ति के पूरे शरीर में गठिया बाय रोग था। मतलब आज से नहीं पुरे 22-23 साल से वह व्यक्ति गठिया बाय रोग से पीड़ित, दु:खी, पूरे रोम-रोम में ऐंठन और दर्द। लेकिन उसके बाद भी वह मस्त, कैसे? एक बार किसी ने कहा- महाराज जी! यह व्यक्ति बहुत दु:खी है, इन्हें बहुत पीड़ा है। उस व्यक्ति ने उसी समय उसकी बात को काटा और काटते हुए कहा- महाराज! मैं दु:खी नहीं हूँ, बीमार भले ही हूँ। बीमार भी मेरा तन है मेरा मन नहीं। मैं मानता हूँ कि मेरे शरीर में दर्द है पर फिर भी मैं इसलिए अपने आप को खुश रखता हूँ और अपने आप को भाग्यशाली मानता हूँ कि इस शरीर में दर्द भले ही है पर कम से कम चल फिर तो रहा हूँ, अपना काम तो कर रहा हूँ। महाराज जी! आज का मेरा यह दर्द नरकों के दर्द से बहुत थोड़ा है। इसी भावना की बदौलत वह व्यक्ति जी रहा है। दर्द में भी खुश, पीड़ा में भी प्रसन्न, क्यों? क्योंकि उसके मन में संतुष्टि है, वह अपने स्वास्थ्य को लेकर असंतुष्ट नंही। मेरे किए का फल है, मुझे भोगना है, रोकर भोगूंगा तो मुझे भोगना है, हँसकर भोगूंगा तो मुझे भोगना है और स्थिरता पूर्वक भोगना है। जब भोगना ही मेरी नियति है तो मैं इसे स्वीकार करता हूं और स्वीकार करके, भोग करके, सहन करके फ्री हो जाऊंगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी वह व्यक्ति, कतई दु:खी नहीं होता। आज भी सह रहा है। उसकी जो वेदना है उसकी वेदना को देखकर तरस आता है। अगर कोई ओर व्यक्ति इस तरह की वेदना से दु:खी हो तो वो डिप्रेशन का शिकार हो जाता, सुसाइड कर लेता। लेकिन नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं, उसे ऐसा कुछ भी नहीं किया। यह तो चीजें चलती रहती है, मनुष्य बनता है, बदलता है। अपने मन में संतुष्टि रखोगे तो चाहे जैसी स्थिति में क्यों ना हो, तुम्हारी खुशी तुम्हारे सामने रहेगी, साथ में बनी रहेगी और मन में संतोष नहीं तो तुम्हें कभी खुश या सुखी रहने का सौभाग्य नहीं मिलेगा।
एक दूसरा उदाहरण- मेरे संपर्क में एक व्यक्ति जिसके पिताजी गंभीर रुप से बीमार, एक भाई आधा पागल-विक्षिप्त, माँ की दोनों किडनियाँ खराब थी। पिताजी बीमार, भाई बीमार, माँ बीमार और उसके बाद भी वह उनकी सेवा में लगा रहे। अपना धर्म ध्यान भी करे और पूरी तरह से सेवा में तत्पर भी रहे। एक बार जब मुझे उसकी स्थिति बताई गई। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने केवल मुझसे यही कहा- महाराज! आप लोगों से हमने इतना ही सीखा है जो है उसको स्वीकार तो करना ही पड़ेगा, इसका उपाय क्या है? हम खुश हैं, मेरे कर्म का उदय है। यह घर-परिवार में तो ऐसी स्थिति चलती रहती है। कम से कम हम इतने सक्षम है कि उनकी चिकित्सा तो करा सकते हैं। इसके बाद वो चला गया। अभी 8-10 दिन पहले वो भाई आया। उसने बताया कि कुछ दिन पहले उनके पिता जी एक्सपायर हो गए और भाई, वह भी एक्सपायर हो गया। वह बोला मेरी एक जिम्मेदारी पूरी हुई। साधारण व्यक्ति अपनी थोड़ी सी प्रतिकूल स्थिति में डगमगा जाता है। लेकिन जो व्यक्ति ज्ञानी होते हैं, वह जीवन की विषमतम परिस्थिति में भी स्थिरता बनाए रखते हैं। मैं आपको क्या कहूँ, ऐसी प्रतिकूल स्थिति में भी खुद को ऐसे खुश बनाए रखने वाले लोग तो बिरले ही मिलेंगे। लेकिन ऐसे लोग भी दिखते हैं जिनके पास सब प्रकार की अनुकूलता है तो भी खुश नहीं। सब प्रकार की अनुकूलता है फिर भी खुश नहीं, वह हमेशा परेशान रहतें हैं।
एक व्यक्ति अपने मित्र के होटल में गया। वह होटल फुल था। ग्राहक आ जा रहे थे। उसका मित्र बड़ा दुःखी नजर आ रहा था। उसने मित्र को देखा और बोला- कि आज तुम बड़े दु:खी नजर आ रहे हो, बड़े खिन्न नजर आ रहे हो। तुम्हारा चेहरा भी उदास-उदास दिख रहा है। क्या माजरा है? वो मित्र बोला- क्या करूं, मंदी का दौर आ गया है। वह व्यक्ति बोला- मंदी का दौर आ गया है तो इतने उदास क्यों हो? मैं 10 घंटे से देख रहा हूँ कि 50 ग्राहक लौट गए। होटल भी हॉउसफुल है। फिर भी तुम कह रहे हो कि मंदी का दौर आ गया है। वो मित्र बोला- इसलिए ही तो कह रहा हूं कि मंदी का दौर आ गया है। पहले तो 100 ग्राहक लौटते थे, आज 50 लौट रहे हैं। कल तक तो 100 ग्राहक हॉउसफुल की वजह से लौटते थे आज 50 ही लौटे हैं।
मैं आपसे पूछता हूँ क्या ऐसा व्यक्ति कभी खुश रह पाएगा? बोलो। वह कभी खुश नहीं रह पाएगा। क्योंकि संतुष्टि चाहिए। आत्मसंतुष्टि ही खुशी देती है। लेकिन आप लोगों को खुशी आत्मसंतुष्टि से कम, आत्ममुग्धता में ज्यादा मिलती है। आत्मतुष्टि और आत्ममुग्धता में अंतर क्या है? जीवन में जितनी भी चीजें आप जोड़ते हो, किसलिए जोड़ते हो? अच्छे कपड़े पहनते हो क्या तब ख़ुशी मिलती है? अच्छी गाड़ी खरीदते हो क्या तब खुशी मिलती है? अच्छा घर बनाते हो क्या तब खुशी मिलती है? कुछ भी अच्छा आप पाते हो तो क्या आपको खुशी मिलती है? “ख़ुशी कब मिलती है कोई चीज पाते हो तब या कोई कुछ कहता है तब”?
कभी आप अच्छी साड़ी पहन कर पार्टी में जाओ। किसी की नजर आप पर ना पड़े, तो क्या होगा? आप लोग क्या करते हैं। आपने अच्छी साड़ी पहनी। 5000 की नई साड़ी लेकर आई और आप किसी पार्टी में या किसी शादी में गई। वहाँ जाने के बाद किसी ने आप को एप्रिशिएट नहीं किया। तब आप क्या करती हैं, क्या सोचती हैं? आप दूसरों को देखती हैं और दूसरों को देख कर कहेंगे कि आप बहुत अच्छी लग रही है, आपकी साड़ी बहुत अच्छी है, बढ़िया लग रही है, खिल रही है, कलर बहुत सुंदर लग रहा है। बदले में उसने भी आपकी साड़ी तारीफ कर दी। आप भी बहुत अच्छी लग रही है, आपकी साड़ी बड़ी अच्छी लग रही है। क्यों ? ऐसा सब ही होता है। अब ये क्या हुआ? साड़ी पहनने से खुशी मिली कि सामने वाले ने आपकी साड़ी तारीफ की तब खुशी मिली? असलियत में साड़ी की तारीफ हुई तब आपको खुशी मिली। अगर कोई व्यक्ति साड़ी की तारीफ करने की जगह ऐसा बोल दे कि कौन सी साड़ी लेकर आए हो? ऐसी साड़ी कैसे ले आए हो? यह कलर तुम पर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है, तो क्या होगा? आपकी सारी खुशी हवा हो जाएगी। ये क्या हो गया अब? खुशी कहाँ हवा हो गई? कहाँ चली गईं खुशी? अगर एक आदमी ने ऐसा कहा कि साड़ी खराब है और बाकी चार आदमी ने कहा गजब, बहुत सुंदर लग रही हो, तो आप क्या करोगे? क्या कहोगे? अरे! वह आदमी खामखा टीका टिप्पणी करता है। समझ में नहीं आता उसको, इतनी बढ़िया साड़ी है, उसको समझ में नहीं आई। उसको अच्छी नहीं लग रही है, उसका तो दिमाग ही उल्टा है। अब ये क्या हो गया? उलटी-उलटी बातें चालू हो गई।
आपने शोरूम से बढ़िया-नई गाड़ी खरीदी। 15 दिन तक रोज देखा, 10 तरह की गाड़ियों को जाँचा। उसके बाद आप मनपसंद की गाड़ी लेकर आए। जिस दिन नई गाड़ी लेकर आए, आपका मन बहुत खुश था कि आज एक अच्छी गाड़ी ले आए। जिस तरह कि गाड़ी मैं सोचता था, उस तरह की गाड़ी ले आया। गाड़ी लाने के बाद आपके किसी मित्र ने कहा- इस गाड़ी में तो यह कमी है, अगर वह गाड़ी लेता तो बहुत अच्छा होता। देख। उस मित्र ने वह गाड़ी ली, इतनी अच्छी गाड़ी है। आप सोच में पड़ जाएंगे, ये सब क्या हो गया? आप सोचोगे, अरे यार! डिसीजन ही गलत हो गया। आप बताइए क्या अब? आपकी उस नई गाड़ी में बैठने के बाद भी वह मजा है या मजा गोल हो गया। असलियत में आपका तो मजा गोल हो गया।
इसी को बोलते हैं “आत्मविमुग्धता” । हम दूसरों के ऊपर या दूसरी चीजों पर निर्भर होते जाते हैं। जो मनुष्य अन्य चीजों पर निर्भर होता है, जो मनुष्य अन्य व्यक्ति पर निर्भर करता है, जो मनुष्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है, वह कभी खुश नहीं होता है। वह सदैव दु:खी रहता है। जो व्यक्ति अपने आप पर डिपेंड रहता है, वह हर पल प्रसन्न रहता है। अपने आप पर निर्भर रहिए, रहना सीखिए। दूसरों के ऊपर डिपेंड रहकर परमुखापेक्षी बने रहेंगे। सामने वाला जब चाहे तुम्हें हँसाएगा और जब चाहे तुम्हे रुलाएगा। जिंदगी ऐसे ही झूले की तरह, हिंडोले की तरह झूलते रहोगे, डोलते रहोगे, मजा नहीं ले पाओगे। संतुष्ट रहने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ अच्छा ना चाहो। अच्छा चाहो, पर अच्छा पाने से मुझे खुशी मिलेगी, इसको अपने दिमाग से निकाल दो। मैं खुश रहूँगा, तभी खुशी मिलेगी। केवल अच्छा पाने से कोई खुश नहीं होता। अपने आप को खुश रखना, जब तक आप नहीं चाहोगे, तब तक आप खुश नहीं रह सकते। अपने आप को-अपने आप से खुश रखना चाहते हो तो अपने आप से, अपने आप में संतुष्ट रहो। बस जो है, ठीक है। जो है, ठीक है। पर कुछ लोग हैं जो अपने आप से अक्सर संतुष्ट नहीं रहते। अपने आप से संतुष्ट रहना पसंद नहीं करते इसीलिए सारी जिंदगी दु:खी बने रहते हैं।
संत कहते हैं- ‘अपने जीवन का दृष्टिकोण बदलो’।
पहली बात ‘संतुष्ट रहो’। जो चाहो वह मिले, यह तुम्हारे हाथ में नहीं। जो मिला है, उसे चाहो वह तुम्हारे हाथ में है। तुम सोचोगे कि यह मिलेगा, तो मैं खुश रहूंगा। खुशी मिलना, तुम्हारे हाथ में नहीं है और यह बात तय है, मिल भी जाएगा तो तुम्हारी खुशी, तुम्हारे साथ नहीं टिकेगी। खुशी कहीं और चली जाएगी। वह फिर किसी ओर की तरफ जाएगी। फिर किसी ओर की तरफ जाएगी। जिंदगी-भर भागदौड़ की बनी रह जाएगी। जिसे तुम पाना चाहते हो, वह कभी नहीं पा पाओगे। इसलिए खुश रहना चाहते हो तो अपनी स्थिति से संतुष्ट रहो। अच्छा परफॉर्मेंस करो, अच्छा चाहो, मैं उसके लिए मना नहीं करता। अच्छे से अच्छा पाने की कोशिश करो, उसके लिए भी मना नहीं करता। लेकिन जो है उस पर और उसके परिणाम पर संतोष रखें, ऐसी भावना भी मन में हो।
कईं बार लोगों के जीवन में ऐसा देखने में आता है कि अच्छे से अच्छा पा लिया तो भी खुशी नहीं मिलती है, क्यों? क्योंकि हम हमारी खुशी का पैमाना खुद को न बना कर सामने वाले को बना लेते हैं। कोई चीज में हमको क्या मिला हम उससे नहीं देखते हैं। हम तुलना करते हैं कि सामने वाले को क्या मिला। देखिए, कैसी स्थिति बनती है? आपका बेटा स्कूल में पढ़ रहा है। हर माँ-बाप चाहते हैं कि मेरा बच्चा अच्छा मार्क्स लाए। आपके बच्चे ने स्कूल में पढ़ाई के समय अच्छे मार्क्स लिए और उसको 85% मार्क्स मिले। आपका बच्चा 85% मार्क्स लेकर आया है। आप क्या पूछते हैं? टॉप स्कोर कितना आया है? बच्चा बोला- मैं ही टोपर हूँ, बाकी सबको तो 80% से भी कम मार्क्स आया है। आपको लगा तब, सब ठीक है। पर ये क्या हो गया? वह ला सकता था 90% प्लस मार्क्स, लेकिन वह लाया 85% मार्क्स, पर सब ठीक है। क्योंकि ये अन्य बच्चो से अच्छा लाया है, आपको अच्छा लगा, इसलिए सब ठीक है। अगर वही बच्चा 90% मार्क्स लाया होता, तो आप फिर पूछते- टॉप स्कोर कितना आया है? अगर वह टॉप स्कोर 99% मार्क्स बताता है, तो आप क्या कहते- तूने सारा रिजल्ट खराब कर लिया। तुम्हारा प्रयास बहुत कमजोर था। ओर अधिक प्रयास-मेहनत करना था। अब ये क्या हुआ? 85% मार्क्स की उम्मीद थी, 90% मार्क्स लाया है तो भी खुशी नहीं क्योंकि दूसरा 99% मार्क्स लाया है।
इस तरह की जो आदतें हैं वो हमारी खुशी को गोल कर देती है।
तुमने बढ़िया गाड़ी खरीदी। मनपसंद की गाड़ी खरीदी। दूसरे दिन पडोसी उससे अच्छी गाड़ी ले आया। तो क्या होगा? आपकी ख़ुशी गोल हो गई ! अभी तक तो आपकी कार बहुत अच्छी कार थी, नई कार थी वो भी बेकार हो गई। यह सब क्या है? जब-जब हम हमारे साथ दूसरों को जोड़ते हैं या दूसरों को जोड़ने की प्रवृति अपना लेते हैं तो हमारे जीवन का सारा सामंजस्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है, छिन्न-भिन्न हो जाता है। खुशियाँ तार-तार हो जाती है। इसलिए तय कीजिए कि मुझे खुश रहना है। अगर मुझे खुश रहना है तो मैं अपनी हर स्थिति में संतुष्ट रहूँगा। अपने साथ किसी ओर को कभी नहीं जोडूंगा। जो है, ठीक है, मेरा जितना है, वह करूंगा। मैं हमेशा बढ़िया परफॉरमेंस करूंगा। जो रिजल्ट है, पर्याप्त है क्योंकि मुझे पता है, खुशी वहाँ नहीं-खुशी यहाँ मेरे हृदय में है। ख़ुशी यहाँ-वहाँ नहीं, मेरे अपने मन में है। लेकिन यह हमारा भ्रम है कि हम चीजों में खुशी खोजते हैं। आप जब तक चीजों में खुशी खोजते रहोगे, सारी जिंदगी खुशी ढूंढते रहोगे, दु:खी बने रहोगे। ख़ुशी किसी को नहीं मिलेगी। खुशी को ढूँढ़ते रह जाओगे।
दुनिया में ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं जिनके पास चीजों की कोई कमी नहीं है। उनके जीवन में झाँक कर देखो, या उनसे पूछो कि क्या आप खुश हो? कहने को भले ही वो बोल देंगे कि मैं खुश हूँ। लेकिन कहीं ना कहीं उनकी पीड़ा प्रकट हो ही जाएगी। जैसे ही वो आप से थोड़ा मिलेंगे या आपसे खुलेंगे वो कहना शुरू करेंगे? क्या करें बाकी तो सब ठीक है लेकिन ये कमी है, यह कमी है, वह कमी है, ऐसा है, वैसा है। क्या करें, मेरी कोई सुनता ही नहीं है, भाग्य साथ ही नहीं देता। परिस्थिति मेरी अनुकूल नहीं है, बेटा मेरा कहना नहीं मानता है, पत्नी मेरी बात नहीं सुनती है, बिजनेस भी बढ़िया नहीं चलता है, स्वास्थ्य मेरा ठीक नहीं रहता है, आजकल समाज में भी मुझे कोई पूछता नहीं है। क्या करूं? इस तरह की 50 कहानियाँ सुनाना शुरू कर देंगे। ये अब क्या हो गया? अब इसकी जरूरत क्या है? एक बात बताइए। आप अपना यह गाना दूसरों को सुनाओगे, तो क्या आपकी समस्या हल हो जाएगी? समस्या हल होगी या नहीं। अगर हल नहीं होगी तो फिर क्यों सुनाते हो? कुछ लोग कहते हैं- अपना मन हल्का करने के लिए ध्यान रखना, अपना मन हल्का नहीं होगा, पर वजन जरूर हल्का हो जाएगा। रेपोटेशन ओर चली जाएगी। लोग बोलेंगे- ये आदमी बाहर से तो टिप-टोप दिख रहा है पर अंदर से खोखला है। जिसका मन हल्का होता है, उसके मन में इस तरह की कोई बात या बोझ आता ही नहीं है।
जब तक तुम दूसरे को देखते रहोगे तुम्हारे मन में असंतोष आएगा। असंतोष आएगा तो ईर्ष्या आएगी, विद्वेष आएगा, द्वेष आएगा, दुर्भावना आएगी, बैर-वैमनस्य का भाव आएगा। प्रेम और सद्भाव तुम्हारे ह्रदय में प्रकट ही नहीं हो सकेंगे और जब तक यह प्रकट नहीं होंगे तो खुशी कैसे आएगी। तुम बस दूसरों को देखो ही नहीं। अपने आप को देखो, अपने आप में संतुष्ट रहो। अपने भीतर झांको, ओर आगे बढ़ जाओ।
लेकिन क्या बताएं, जितने लोग आगे बढ़ते हैं वो ही ज्यादा परेशान होतें हैं। आगे बढ़ने वाले लोग ज्यादा परेशान होतें हैं। पीछे वाले लोगों को कोई परेशानी नहीं है। देखिए, रिजल्ट आता है तो सबसे ज्यादा टेंशन किसको होती है? टॉप टेन वालों को होता है या पीछे वालों को। बाइसवें या तीसवें नंबर वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता। पीछे वाले लोग तो बोलेंगे- हमने तो जो पाया, वही ठीक है। लेकिन जो टॉप टेन वाले होते हैं, उनको ज्यादा टेंशन होती है। इसी तरह से जो ज्यादा हाइट पर रहते हैं वह ज्यादा टेंशन में रहते हैं। जो बीच वाले होते हैं वह मजे में रहते हैं।
संत कहते हैं- ‘जिंदगी का मजा लेना है तो बस बीच में रहो, ज्यादा ऊपर उड़ने की कोशिश कभी मत करो, जीवन सदा सुखी बना रहेगा’।
खुशी क्या है? ख़ुशी खुद में केंद्रित है, मन में छिपी है। हमारे अंदर वह आर्ट होनी चाहिए, वह कला होनी चाहिए। हम क्यों दूसरों को देखते हैं? क्या दूसरा खुशी देता है? यह अपेक्षा क्यों? आत्मतुष्टि होगी तो परमुखापेक्षिता नहीं होगी और आत्ममुग्ध बने रहोगे तो ऐसा ही चलता रहेगा।
पहली बात- “अपनी स्थिति से संतुष्ट रहें”।
दूसरी बात- “वर्तमान में जीना सीखें”।
मनुष्य दु:खी क्यों है? या तो अतीत का बोझ दिमाग में बांधे रहते हैं या भविष्य की चिंता में उलझ जाते हैं। बंधुओं! अतीत तो व्यतीत हो गया है, अब उससे उलझने से कोई फायदा नहीं है। इस बोझ को उतारो। अतीत-व्यतीत हो चुका है, वो तो भोगा हुआ यथार्थ है। अगर अतीत का लाभ उठाना चाहते हो तो अतीत के अनुभव से पाठ पढ़ो। अतीत से अनुभव लो और उस अनुभव को अपने वर्तमान में उतारो तो तुम्हारा भविष्य निर्मल हो जाएगा। लेकिन अतीत-व्यतीत में कुछ गलती हो गई और उसी को याद करते रहोगे तो वर्तमान भी कब व्यतीत हो जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। दिमाग बोझिल बना रहेगा। सुखी नहीं हो पाओगे।
एक युवक किसी कुशलतम, सफलतम व्यापारी के पास पहुँचा। उससे पूछा कि आपकी सफलता का राज क्या है? व्यापारी ने उत्तर दिया- ‘सही निर्णय’। युवक ने पूछा कि आपने सही निर्णय की क्षमता कैसे पाई? व्यापारी ने कहा- ‘अनुभव’। युवक ने पुनः पूछा अनुभव कैसे पाया? व्यापारी ने कहा- ‘गलत निर्णय’। युवक हैरान रह गया और पुछा कि गलत निर्णय से सही निर्णय कैसे लिया। आपने गलत निर्णय से सही निर्णय का अनुभव कैसे पाया? व्यापारी ने कहा- ‘अपने प्रत्येक गलत निर्णय की समीक्षा की और तय कर लिया कि दोबारा ऐसी पुनरावृत्ति नहीं करूंगा नतीजतन मैं सही निर्णय लेने में सक्षम हो गया’।
अगर तुम्हारे पास वह दृष्टि हो तो अपने अतीत की हर भूल से कुछ सीख ले सकते हो। अपने भविष्य को सुधार सकते हो। दृष्टि होनी चाहिए। वैसे निर्णय की दृष्टि होनी चाहिए। वह दृष्टि नहीं, तो सब व्यर्थ और अर्थहीन हो जाएगा। अतीत में जो भी हो, बिना मतलब की अर्थहीन बातों को भुलाओ। वह भूत है, भूत को अगर लगा कर रहोगे तो दुखी रहोगे। बिना मतलब की बातों को दिमाग में हावी मत होने दो। आपके दिमाग में कैसी-कैसी बातें चलती है? आप लोग क्या सोचते हो? उसने यह किया था, उसने यह बोला था, उसने ऐसा कर दिया, उसको यह नहीं करना चाहिए था, उससे ऐसा गलत काम हो गया, मुझ से यह गलती हो गई, वह गलती हो गई, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। ऐसा आप सोचते हैं। ये क्या था? क्या था? क्या था? क्या था? क्यों गा रहे हो? उन बातों को दिमाग से बाहर निकालो। वह बीत गया। Past has Past. वह जा चुका है। अब लकीर पीटने से क्या होगा? अपने अतीत से सीख लो कि आगे से मैं ये गलती नहीं करूंगा। ऐसी सिचुएशन आएगी तो मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा। अगर आप अपने वर्तमान को सुधारोगे तो भविष्य उज्जवल होगा। अगर उन्हीं बातों को पकड़ कर बैठ जाओगे तो क्या कभी सुखी रह पाओगे? बताइए, आप कभी सुखी नहीं रह पाओगे।
किसी व्यक्ति ने 10 बरस पहले आपसे कुछ उल्टी-सीधी बात बोली। वो बात आपको आज भी याद है या भूल गए? अगर 10 बरस बाद भी वो आदमी आपको दिखता है, तो क्या उसको देख कर आपको खुशी होती है? क्या होता है? आप किस प्रकार सोचते हैं? महाराज, आपको क्या बताएं आँखों के सामने पूरी रील आ जाती है, पूरी पिक्चर घूम जाती है, खून खौल जाता है। ये जीवन की बड़ी विचित्रता है। जीवन में जितने भी प्रसंग बीतते हैं, उनमें अच्छे प्रसंग तो बहुत कम याद रहते हैं लेकिन कड़वे प्रसंग सब याद रहते हैं।
एक भाई ने बोला- महाराज जी! आपको कैसे सब याद रहता है? हमें तो कुछ याद ही नहीं रहता। आपको इतनी सारी बातें कैसे याद रहती है? आप तो सत्र, तारीख़, घटना सब बता देते है। आपको कैसे ये सब याद रहता हैं? हमने कहा अच्छा! याद तो तुम्हें भी सब रहता है। वह बोला- महाराज! मुझे तो कुछ भी याद नहीं रहता। मैंने पूछा- ‘20 बरस पहले तुम्हें किसी ने गाली दी वह तुम्हे याद है क्या’? वह व्यक्ति बोला- ‘मुझे तो याद है’। मैंने कहा- तुम्हारे याद रखने ओर हमारे याद रखने में अंतर क्या है? क्या अंतर है? तुम गंदी बातों को याद रखते हो, हम अच्छी बातों को याद रखतें हैं। तुम अपने घर में कचरे का डब्बा रखते हो, हम अपने पास इत्र की शीशी रख रखतें हैं। कचरे के डब्बे में सड़ांध आती है और इत्र की शीशी में अच्छी खुशबू आती है । अच्छी स्मृतियों को इत्र की शीशी में रखिए और बुरी स्मृतियों को डस्टबिन में रखिए। बुरी स्मृतियों के डस्टबिन को अपनी छाती से मत चिपकाओ। इनको हटाओ, उसको उठाकर कूड़ाघर में फेंक दो। क्या मतलब है? उन बातों को याद करने से और दोहराने से जिससे मेरी खुशियाँ खत्म होती है। मुझे उन बातों को महत्व नहीं देना है। बस वर्तमान में जो चल रहा है उसे ही देखना है। अच्छी बातों को याद रखना सीखिए और बुरी बातों को भुलाना सीखिए। एक नई शुरूआत कीजिए।
अब तक प्रवचन में मैंने क्या-क्या कहा यह आपको याद नहीं रहा होगा। अगर किसी दिन किसी व्यक्ति पर कोई टीका टिप्पणी कर दी, या किसी को टारगेट बना दिया हो तो वो सब आपको जरूर याद होगा। आप लोग क्या करतें हैं, क्या कहते हैं? महाराज जी ने अमुक व्यक्ति को अच्छा टारगेट बनाया। ये सब क्या है? यह जो प्रवृत्ति है, बुरी बातों को ध्यान में रखने की, इस प्रवृत्ति से अपने आप को ऊपर उठाने की जरूरत है।
सदा खुश रहिए। अतीत की बातों को भुलाइए और भविष्य की चिंता में मत उलझिए। अपने भविष्य के प्रति सतर्क रहिए पर अपने भविष्य के प्रति शंका मत कीजिए। हमेशा एक बात को ध्यान रखिए जो कल देगा वह कल की व्यवस्था भी देगा। जो चोंच देगा वो चुग्गा भी देगा। चींटी के कण की और हाथी के मण की व्यवस्था अपने आप हो जाती है। चिंता करने से किसी का कोई solution सलूशन नहीं मिलने वाला है।
आपको क्या बताऊं- भविष्य को लेकर लोग कैसे-कैसे चिंता करते हैं? एक बहन मेरे पास आई। पेट में बच्चा, प्रेगनेंसी के 2 महीने हुए थे। वह महिला बोली- महाराज जी! आशीर्वाद दीजिए, बहुत अच्छे से आशीर्वाद दीजिए। हमने उसे अच्छे से आशीर्वाद दिया। हम तो साधु हैं, हम तो आशीर्वाद अच्छे से ही देते हैं। वह महिला बोली- महाराज जी! आज बहुत सीरियस मैटर है। मैंने कहा- आप बताइए कि क्या बात है? तब वह महिला बोली- महाराज जी! मैं 2 महीने से प्रेग्नेंट हूँ, आप अच्छे से आशीर्वाद दो। आप ऐसा आशीर्वाद दो कि मेरा बच्चा बड़ा होकर अच्छा बच्चा बन जाए। महाराज जी! आजकल बहुत गड़बड़ होता है, इसलिए मुझे चिंता है, मुझे डर है कि मेरा बच्चा कहीं बिगड़ ना जाए। आप तो अच्छे से आशीर्वाद दीजिए। हमनें सोचा- अभी बच्चा पैदा नहीं हुआ, बच्चा भी पैदा नहीं हुआ, वह तो अभी पेट में ही है और उसको डर है कि बच्चा कहीं बिगड़ ना जाए। हमने कहा- बच्चा बिगड़ेगा तब बिगड़ेगा, मुझे तो तुम ज्यादा बिगड़ी हुई दिख रही हो। तुम सुधरो तो बच्चा अपने आप सुधर जाएगा।
यह कहाँ की चिंता है? यह किस प्रकार की चिंता है? यह चिंता नहीं एक प्रकार का फितूर है और इस प्रकार के फितूर से भरे हुए लोग, जीवन में कभी खुश नहीं रह सकते। तीन लोक की सारी संपत्ति भी उनके चरणों में आ जाएं, तो भी वह कभी खुश नहीं रह सकते। क्योंकी ऐसे लोग खुद से परेशान होते हैं। सावधान रहिए, हमें ऐसा नहीं करना। हमेशा वर्तमान को देखिए और वर्तमान में जीने का अभ्यास कीजिए। बस जो है, ठीक है, प्रेजेंट है, उसको हम जिएं और आगे बढ़ें। हम भविष्य की व्यवस्था करें, पर भविष्य की चिंता में ना उलझें। अच्छा भविष्य बने यह भाव हमेशा मन में हो। कहीं मेरा भविष्य बिगड़ न जाए, इसकी चिंता करने से कोई लाभ नहीं होगा, उसमे ओर अधिक उलझ जाओगे। इस उलझन से अपने आप को बाहर निकालिए।
पहली बात- ‘अपनी स्थिति से संतुष्ट रहें’।
दूसरी बात- ‘वर्तमान में जीना सीखिए’।
तीसरी बात- ‘प्रतिक्रियाऐं कम कीजिए और प्रतिक्रियाओं से प्रभावित भी मत होइए’।
प्रतिक्रियाऐं कम कीजिए और प्रतिक्रियाओं से प्रभावित मत होइए। आप देखिए आपको किसी ने कुछ बोला, आप तुरंत रिएक्ट करते हो। किसी ने आप के साथ अपशब्द या कुछ एक शब्द भी जोड़ा आप तुरंत प्रभावित होते हो। अरे! उसने ऐसा कह दिया, वैसा कह दिया, ऐसा-वैसा कह दिया। ध्यान रखो जब तक दूसरों की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित होते रहोगे, कभी खुश नहीं रह पाओगे। दूसरे लोग अक्सर उलटी-उलटी प्रतिक्रियाएं देते रहते हैं और उनकी इस तरह की प्रतिक्रियाओं में रहोगे तो जीवन ही उल्टा-पुल्टा हो जाएगा।
एक कहानी है। एक बाप-बेटा कहीं जा रहे थे। बाप घोड़े पर बैठा था और बेटा पैदल चल रहा था। उन्हें देखकर लोगों ने कहा- रे! कैसा जमाना आ गया, बाप घोड़े पर और छोटा सा बच्चा पैदल चल रहा है। उस आदमी को बात समझ में आई। उसने कहा- चलो ठीक है, बेटा, तुम घोड़े पर बैठ जाओ, मैं पैदल चलता हूँ। बेटा घोड़े पर बैठ जाता है। लोगों ने फिर प्रतिक्रिया की। अरे! कैसा जमाना आ गया है। बुढ़ा-बाप पैदल चल रहा है और जवान बेटा घोड़े पर बैठा है। उस आदमी को फिर बात समझ में आई उसने कहा- बेटा, चलो दोनों घोड़े पर बैठ जाते हैं। वो दोनों घोड़े पर बैठ जातें हैं। लोगों ने फिर प्रतिक्रिया की। कैसा जमाना आ गया है, कैसा कलयुग आ गया है, एक मरियल सा घोड़ा उस पर दोनों हाथी बैठे हैं। उन्हें फिर बात समझ में आई। उन्होंने कहा- चलो हम दोनों घोड़े को हाथ में उठा लेते हैं। लोगों ने फिर प्रतिक्रिया की। कैसा जमाना आ गया है ! अजीब पागल है यह लोग घोड़ा बैठने की चीज है या उठाने की, इसकी सवारी की जाती है या इसे हाथ पर उठाया जाता है।
ये लोग हैं, तुम्हें जीने नहीं देंगे। तुम लोगों की बातों से जितना प्रभावित होंगे तुम्हारा जीवन उतना ही दुखी होगा। अपने आप में भावित रहो। अपने आप से कुछ अच्छा-बुरा विचार करके काम करो। कोई किसी प्रकार की प्रतिक्रिया दें तो रंच मात्र भी प्रभावित ना होओ। अपने भीतर एक क्षमता डेवलप कीजिए कि हमें प्रतिक्रियाओं से हरपल-हरक्षण बचना है। आपको किसी ने कुछ उल्टा-पुल्टा बोला तो आपको तुरंत गुस्सा आता है। गुस्सा आने के बाद क्या आपको खुशी होती है। सामने वाले ने एक शब्द भी बोला तो आपने उसके शब्दों को पकड़ लिया। वह शब्द आपके ज़हन में, हृदय में उतर गए। कान से आपने वह शब्द सुना आपके हृदय में उतरा और अपने हृदय को मथ डाला। जैसे शांत सरोवर में एक कंकड़ डाला ओर कंकर डालने के बाद उसमें एक वलय उत्पन्न हुआ। उस वलय से उसके चारों और वलय की एक सीमा बढ़ती गई। वलय से वलय बढ़ते हुए वह पूरे सरोवर को प्राप्त कर लेता है वैसे ही एक शब्द आपके कान में आए और प्रतिक्रिया से पूरा तन-मन सब कुछ उद्वेलित हो जाता है।
किसी व्यक्ति ने आपको जो भी कहा या मानो किसी ने तुम्हें गधा कह दिया। आपके दिमाग में क्या विचार आता है- अच्छा, उसने मुझे गधा कहा। बहुत बढ़िया है, मुझे गधा कहता है। मैं अभी बता दूंगा कि उसकी क्या औकात है? मुझे गधा कहने वाला शायद जानता नहीं, कि मुझे गधा कहने का क्या परिणाम होगा। मैं गधा हूँ या वो गधा है। मैं उसे गधा दिखता हूँ, वो मुझे गधा कहता है इस तरह के कईं तरह के विचार आपके मन में आते हैं। सामने वाले ने तो तुम्हे केवल एक बार गधा कहा, तुमने खुद को न जाने कितनी बार गधा कहा या गधा बना लिया। आप बताइए- बनाया कि नहीं। वह व्यक्ति तो एक बार कहकर गुजर गया ओर तुमने एक शब्द से प्रभावित होकर अपने आप को कितनी बार गधा बना दिया। मन अशांत होता है या नहीं। दु:खी होता है या नहीं। हमारा मन इसी वजह से दु:खी होता है। थोड़ी-थोड़ी बातों में ही बड़े-बड़े झगड़े खड़े हो जाते हैं। थोड़ा सा कुछ कहा कि मुंह फुला कर, गुस्सा करके बैठ जाते हैं। मुहँ फूलाने के लिए नहीं खिलाने के लिए मिला है। मन हमेशा प्रसन्न रखो कि तुम सदा सुंदर फूल की तरह खिले-खिले रहो और तुम्हें देखने वाला भी खिल जाए। लेकिन आप लोगों में अक्सर ऐसा देखते हैं कि मुरझाए-मुरझाए ही दिखते हैं। ऐसा लगता है जैसे जान ही नहीं और थोड़ा भी कुछ उल्टा होता है, प्रतिकूल होता है, तुरंत रिएक्ट होता है। अच्छे का रिएक्शन तो तुम कभी करते नहीं पर बुरे एक्शन रिएक्शन तो जरूर होता है। जब-जब तुम रिएक्ट करोगे, तुम्हारी खुशी गायब हो जाएगी। अपने आप को हमेशा हैप्पी बनाए रखना चाहते हो तो रिएक्शन से बचिए। किसी से भी प्रभावित मत होइए। मैं किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं करूँगा और मेरी क्रिया की अगर कोई प्रतिकिया करता है तो मैं उसे इग्नोर करूँगा। मैं किसी भी घटना से प्रभावित नहीं होउंगा। अपनी राह चलूँगा ओर आगे बढूँगा। जीवन हमेशा ठीक बना रहेगा।
चौथी बात ‘सब तरफ सकारात्मक रहे, पॉजिटिव बने रहे’। अपने अंदर की पॉजिटिविटी को आप जितना स्ट्रांग बनाएंगे, आपका जीवन उतना ही अधिक खुशियों से भरा रहेगा। हर हालत में अपने आप को पॉजिटिव बनाकर रहो। किसी भी तरह की उलझन कोई बात मन में मत रखो।
एक परिवार दर्शन के लिए आया। उनके साथ उनका 18 साल का पुत्र भी था। उनका पुत्र फिजिकली डिसएबल था। कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा था। 18-19 साल का वह बालक ओर उसके कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा था। वह परिवार आया तो उनके साथ में किसी व्यक्ति ने कहा- महाराज जी, इन्हे आशीर्वाद दीजिए। इनका बेटा ऐसा है। मैंने उसकी माँ की तरफ देखा। माँ ने एक बात कही, उसे सुनकर बड़ा अच्छा लगा, वह बात मैं आपको बता रहा हूँ । महिला बोली- मेरे बेटे का शरीर ऐसा है। निश्चित है, कोई माँ नहीं चाहेगी कि उसका बेटा ऐसा अपंग हो, पर मैं खुश हूँ। मैं इस बात से खुश हूँ क्योंकि भले ही कमर के नीचे का हिस्सा खराब है, कम से कम कमर के ऊपर का हिस्सा तो ठीक है। बेटा बोल तो पाता है। यदि कमर के ऊपर का भी खराब होता, तो हमारा क्या होता। कमर के नीचे के हिस्से के खराब होने से बाकी क्रियाएँ भले ही मुझे करानी पड़ती है पर कम से कम रोटी तो अपने आप से खा लेता है। महाराज जी! बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं जिनके सारे काम उनके मां-बाप को करने पड़ते हैं। मैं आपसे पूछता हूँ- अगर इस तरह की सकारात्मक सोच मन में बैठ जाए तो क्या जीवन कभी दु:खी होगा? मैं कहता हूँ कि जीवन कभी दुःखी नहीं हो सकता। चाहे आप अपने शरीर की स्थिति को देखो, चाहे परिवार की स्थिति को देखो, समाज की स्थिति को देखो या व्यापार-कारोबार की स्थिति को देखो, हर जगह सकारात्मक बनकर चलिए। अपना दृष्टिकोण पॉजिटिव बनाइए। हर जगह सकारात्मक बनकर चलने की कोशिश कीजिए। जीवन में कभी कोई कठिनाई नहीं आएगी। आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए।
एक व्यक्ति के कपड़े की दुकान थी। दुकान बड़ी अच्छी चलती थी। व्यापारी ने अपने यहाँ लिख रखा था- ‘सही माल यहाँ से खरीदें’। उसकी चलती दुकान को देखकर वहीं बाजू या बगल में ही एक व्यक्ति ने उसी तरह की कपड़े की दुकान खोली। दुकान पर लिखा- ‘सही माल उचित मूल्य पर यहाँ मिलता है’। पहले व्यापारी ने अपने यहाँ लिखा- ‘सही माल यहाँ से खरीदें’ ओर दूसरे ने लिखा ‘सही माल उचित मूल्य पर यहाँ से खरीदें’। आजू-बाजू में दुकान ओर दो तरह के वाक्य –‘सही माल यहाँ से खरीदे’-‘सही माल उचित मूल्य पर यहाँ से खरीदें’। ग्राहकों को कुछ समझ में नहीं आया। ग्राहक थोड़े इधर-उधर बिदकने लगे। पहले वाले ने सोचा क्या करें? उसने एक नया स्लोगन लिखा कि ‘सही माल खरीदने के लिए प्रवेश यहाँ से करें’। उसकी सकारात्मक सोच थी कि अब ग्राहक यहाँ से प्रवेश करेंगे तो मामला अपने आप ठीक हो जाएगा।
मामला ठीक हुआ या नहीं यह अलग बात है पर अपना समय उलझन और उलझने में ना लगाएँ। अपना समय अपने रास्ते को प्रशस्त करने में लगाएँ। जब भी जीवन में कोई समस्या, परेशानी, कठिनाइयाँ आए तो उन कठिनाईयों के बारे में विचार करने में समय न लगाएँ। कठिनाई से उबरने का रास्ता खोजें। उसके प्रति सकारात्मक बनकर ही हम ज्यादा खुश रह सकेंगे। अपने जीवन को ज्यादा अच्छे से जी सकें, ज्यादा रस ले सकें, तभी हर पल हैप्पी रह सकेंगे। इसलिए आज मैंने आपको हमेशा सदाबहार खुश रहने का मंत्र दिया है आप उसे अपनाइए ओर अपने जीवन को उसी तरह आगे बढ़ाने की कोशिश कीजिए। निश्चित ही आपके जीवन में बड़ी उपलब्धि होगी।
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