Letter L- LUCK

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Letter L- LUCK

एक बड़ा सेठ था। दुनिया उसे बड़ा भाग्यशाली मानती थी क्योंकि उसके पास वह सब था जिसके पीछे दुनिया लालायित होती है, उत्कंठित होती है। लोगो की नज़र में वह बड़ा भाग्यशाली था लेकिन वह खुद से बड़ा असंतुष्ट था। किसी ने उससे पूछा- लोक में तुम अपने आपको इतना भाग्यशाली मानते हो फिर भी तुम अपने आप में इतना असंतुष्ट क्यों हो? लोक में सबके सब तुम्हें इतना भाग्यशाली मानते है फिर भी तुम अपने आप में इतने असंतुष्ट, इतने दुखी क्यों? उस सेठ ने कहा- क्या बताऊँ, मैं दुखी इसलिए हूँ क्योंकि मेरे घर में सभी लोगो की लाइफ स्टाइल गलत है। कोई किसी की सुनता नहीं, सब अपने में रहते है। मुझे लगता है कि मेरे पास सब कुछ होने के बाद भी कुछ नहीं है। मैं समझता हूँ कि ऐसा एक व्यक्ति के साथ नहीं बल्कि हर व्यक्ति के साथ किसी न किसी रूप में घटित होता है। एक व्यक्ति है जो हर बात में अपने भाग्य का रोना रोता है और एक व्यक्ति वह है जो अपनी हर क्रिया से अपना भाग्य बदलता है। आप किसको अच्छा मानेंगे?

आज L लेटर की चर्चा करना है और लक से अपनी बात को शुरू करना है।

L फॉर लक (luck). आप अपने आपको लकी मानते हो कि अनलकी? क्यों अपने आपको लकी मानते हो? क्योंकि हम जैन कुल में जन्म लिए है, हम एक अच्छे इंसान के रूप में जन्म लिए है। मेरे पास सारी सुविधाएं है, अच्छी बुद्धि, अच्छा शरीर, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा परिवार है। सब कुछ अच्छा-अच्छा है इसलिए हम लकी है। अपने आपको लकी तो सब मानते है परन्तु अपने से ज़्यादा लकी को देख कर क्या सोचते है? क्योंकि तुमने अपने आपको जिस अर्थ में लकी माना है उसमे कोई समानता नहीं है। तुम अपने को लकी और भाग्यशाली मानते हो- मेरे पास ये सब है पर जैसे ही हमारे सामने कोई दूसरा आ जाए जो हमसे ज़्यादा अच्छा है तो उसे देखते ही ख्याल आता है- अरे! ये तो हमसे ज़्यादा लकी है। ऐसे धीरे-धीरे अपने आप को अनलकी मानना चालू कर देते हो। अरे क्या करू! मेरा लक ही ख़राब है। मैं हर क्षेत्र में पीछे रह जाता हूँ। लोग मुझसे आगे बढ़ जाते है। अभी कुछ दिन पहले तक तुम अपने आप को लकी मान रहे थे अब अनलकी कैसे हो गए? कुछ घटा भी नहीं, बल्कि जो था, जैसा था, उससे अब तो ज़्यादा ही है। फिर भी तुम लकी से अनलकी कैसे हो गए? ऐसा होता है कि नहीं, बोलो? क्यों? क्योकि हमने अपनी सोच बदल दी।

मैं एक बहुत विशेष बात कहने जा रहा हूँ- एक लक है जो हम लिखा कर लाए है। उसमे क्या छिपा है किसी को कुछ पता नहीं है। कौन, कहाँ से निकल करके, कहाँ पहुँच जाए, कुछ पता नहीं। रामनाथ कोविन्द को कौन जानता था? दूर-दूर तक किसी ने सोचा नहीं की राष्ट्रपति के पद के लिए ऐसा नाम भी आ सकता हैं। आचार्य श्री ने आशीर्वाद दिया था उनको भोपाल में। ऐसा लोग कहें तो मैं नहीं मानता पर वो ये बात गुरुदेव के चरणों मैं कहें कि मैं आपके पास आया था, आशीर्वाद लेने राज्यपाल के रूप में, आपका आशीर्वाद लिया और आज राष्ट्रपति बन गया। गुरु का आशीर्वाद उसमे निमित्त बना होगा लेकिन यह लक है। कौन जानता है अगले पल क्या हो जाये? अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। उस लक पर मेरा कोई जोर नहीं है। यह लक हम लेकर आये है, यह हमारे हाथ में नहीं। दूसरा लक जो मेरे हाथ में है जिसे मुझे बनाना है, जो मेरे अधीन है। वह कैसे बनाये? अपने आपको लकी कैसे बनाये? अपने आपको हर पल लकी कैसे महसूस करें? कभी भी अनलकी महसूस नहीं करें। अभी तो लकी से अनलकी हो जाते है। अपने आप को हमेशा लकी महसूस करने के लिए चार बातें कहूँगा।

सबसे पहले लक की स्पेलिंग देखो। क्या है? L U C K | लक बनाना है तो L को जोड़ो, U को जोड़ो, C को जोड़ो, K को जोड़ो। ज़िन्दगी में ये चारो चीज़े जुड़ जाएँगी तो अपने आप हम लक पा लेंगे, लकी बन जायेंगे।

L क्या कहता है? अपने आप को भाग्यशाली बनाना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी लाइफ स्टाइल को बदलो। तुम्हारी लाइफ स्टाइल कैसी हैं? महाराज! मेरी लाइफस्टाइल की बात करते हो। मैं आठ बजे तो उठता हूँ और उठने के बाद अपनी नित्य क्रिया करके ऑफिस चला जाता हूँ। ऑफिस से लौट कर आता हूँ तो क्लब और सोसाइटी में जाता हूँ। रात में मौज-मस्ती करके आता हूँ और 12 बजे सो जाता हूँ। जिस व्यक्ति की ऐसी लाइफ स्टाइल है वो मनुष्य अपने भाग्य को कभी सवाँर नहीं सकता। आप अपनी लाइफ स्टाइल को देखिये कि वो कैसी है? तुमने अपने जीवन में किसको प्रमुखता दी- केवल मौज मस्ती को, कोरे भोग विलास को, किसको प्रमुखता दी या अपने जीवन को? पहले विचार करने की ज़रूरत है। जिस व्यक्ति की लाइफ स्टाइल अच्छी होती है उसका भाग्य सदैव ऊँचा होता है। जिसकी लाइफ स्टाइल ख़राब होती है उसका भाग्य भी हमेशा हमेशा के लिए ख़राब होता हैं। मैं आपसे एक सवाल करता हूँ कि लाइफ स्टाइल की बात करते हुए मैं बोलूँ कि इस आदमी की लाइफ स्टाइल बहुत अच्छी है तो आपकी आँखों के सामने कैसे व्यक्ति की छवि उभरेगी? किसको आप अच्छी लाइफ स्टाइल कहोगे? जिसकी नियमित दिनचर्या हो, जिसका बिहेवियर बहुत अच्छा हो, जिसका चरित्र बहुत उज्जवल हो, जो व्यवहार कुशल हो, मिलनसार हो, संतुलित जीवन जीता हो, आप उस व्यक्ति की लाइफ स्टाइल से प्रभावित हो, होंगे कि नहीं? उसके प्रति आपकी लाइकिंग होगी कि नहीं? और उसकी जगह कोई व्यक्ति जिसका कोई ठिकाना न हो, कोई कमिटमेंट करे और पूरा न करें, जीवन में बिल्कुल भी किसी भी प्रकार की सच्चाई न हो, तड़क-भड़क हो, उद्दंडता पूर्ण व्यव्हार हो, आचार-विचार खोटा हो, उस व्यक्ति की लाइफ स्टाइल को आप पसंद करोगे या नहीं करोगे? तो जैसे की बुरी लाइफ स्टाइल को आप पसंद नहीं करते, आपकी बुरी स्टाइल को कौन लाइक करेगा? और जब आपको लाइक नहीं करेगा, आपका लक ऊँचा कैसे होगा? आप चाहते हो कि लोग मुझे लाइक करे तो संत कहते है- लायक बनो। अपनी लाइफ स्टाइल अच्छी रखो।

आज की पीढ़ी की लाइफ स्टाइल बिल्कुल बिगड़ गयी हैं। उनकी चर्या, उनका चिंतन, उनकी सोच, उनकी प्रवृति, सबकी सब बदलती जा रही हैं, बिगड़ती जा रही हैं। सब अलग तरह की धारा में बह रहे हैं। इसके कारण मनुष्य का भाग्य सो रहा हैं। वो अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहा हैं। हमारे यहाँ पुरातन काल में कहाँ जाता था- जल्दी सोने जाओ, जल्दी उठो, ब्रह्म मुहूर्त में जग जाओ। नियमित दिनचर्या करो, योग करो, प्राणायाम करो, तन को तंदुरुस्त रखो, मन को मस्त रखो और आत्मा को सदैव प्रसन्न रख कर के जियो। ये सीख प्रारम्भ से दी जाती थी और लोग सूरज उगने के पहले बिस्तर छोड़ा करते थे। अब तो समय ऐसा आगया है कि लोगो का सूरज ही 10 बजे उगता हैं। कई तो फिर भी सो रहे होते हैं। क्या होगा?

बन्धुओं! मैं आपसे एक बात कहता हूँ, अपनी दिनचर्या में बदलाव लाइये। सूर्योदय के पहले बिस्तर छोड़ने का अभ्यास कीजिये और खुली हवा में जाइये क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त में पूरे वातावरण में सेरोटोनिन नाम का रसायन ज़्यादा संचारित होता हैं। आज जो डिप्रेशन की शिकायत आती है उसकी एक वजह सेरोटोनिन की कमी हैं। बाद मे लोग डिप्रेशन के शिकार बनकर डॉक्टर के पास जाते है तो डॉक्टर ऐसी दवाइयाँ और देते हैं जो पच्चीस प्रकार के साइड इफ़ेक्ट देती हैं। प्राकृतिक रूप से जो तुम्हे मिल रहा हैं उसे स्वीकारो जिससे तुम्हारे अंदर ऊर्जा आये, उत्साह आये, स्फूर्ति आये, उमंग जगे। वैसा कार्य क्यों नहीं करते? आलस को, प्रमाद को, संकोच को, व्यसन को, बुराई को मैं अपनी लाइफ स्टाइल में कहीं प्रवेश नहीं दूंगा। संतुलित जीवन जीऊंगा, आपका भाग्य ऊँचा होगा। दूसरी बात – अपने आप को भाग्यशाली बनाए रखना चाहते हो तो जो कुछ भी तुम्हारे पास है उसको लाइक करो। क्या करो? लाइक करो। मैं पूछता हूँ आप लाइक करते हो, नहीं करते। किसको लाइक करते हो? जो है उसको लाइक करो। अच्छा है तो लाइक करो, बुरा है तो लाइक करो, अनुकूल है तो लाइक करो, प्रतिकूल है तो लाइक करो। महाराज! यही तो मुश्किल हैं। मैं आपसे पूछता हूँ आपके पास है, जो कुछ भी है, क्या आप उन सबको लाइक करते हैं? जो तुम्हारे जीवन के साथ जुड़ते है उन सबको लाइक करते हो?

महाराज! कुछ बातो को लाइक करते है, और कुछ को डिसलाइक करते हैं। लाइक और डिसलाइक के चक्कर में देखोगे तो हिसाब लगाओगे न? लाइक करने वाली चीज़े कम होंगी और डिसलाइक वाली चीज़े ज़्यादा। एक लिस्ट बनाओ और देखो तुम किस किसको लाइक और डिसलाइक करते हो। देखोगे तो लाइक करने वाली चीज़े कम होंगी और डिसलाइक वाली चीज़े ज़्यादा। मज़ेदार बात यह है कि जिसको अभी लाइक कर रहे हो वही थोड़ी देर बाद डिसलाइक हो जाएगी। यह जो चक्कर है यही मनुष्य के चित्त को असंतुष्ट बनाता हैं। इसी से मनुष्य का जीवन दु:खी बन जाता हैं। चित्त असंतुष्ट होता है तो जीवन दु:खी बनता हैं। अपने आप को दु:खो से मुक्त करना चाहते हो- मुड़िये, जो है, जैसा है उसको स्वीकार कीजिये। अपनी स्थिति को लाइक कीजिये। बहुत सारी चीज़े है जिन्हे आप लाइक करते है, बहुत सारी चीज़े है जिन्हे आप लाइक नहीं करते हैं। जिसको-जिसको लाइक करोगे वहाँ संतुष्टि होगी और जिसको- जिसको डिसलाइक करोगे वहाँ असंतुष्टि होगी। संतुष्टि हमे प्रसन्नता देती है, असंतुष्टि से आकुलता। प्रसन्नता ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा लक हैं। इसलिए अगर अपने आपको खुश नसीब बनाना चाहते हो तो हमेशा खुश रहने का रास्ता अंगीकार करो। जो चीज़े मैं पसंद करता हूँ वह मेरे पास आये, यह मेरे हाथ में नहीं हैं। अच्छा बोलो वो कौन कौन सी चीज़े है जो तुम्हे पसंद है वो तुम्हारे पास आ गयी? जो बहुत सारी चीज़े जिन्हे हम नापसंद करते है, वह? मेरे हाथ में नहीं कि जिसे मैं पसंद करुँ उसे पा लू और जिसे नापसंद करुँ उसे हटा दू। यह मेरे हाथ में नहीं हैं। जो मिली है उन्हें मैं पसंद करुँ, यह मेरे हाथ में हैं और यदि इसे मैंने स्वीकार कर लिया तो हर पल प्रसन्न रहूँगा। पसंद करना शुरू करो।

मेरे संपर्क में एक व्यक्ति हैं। उस व्यक्ति को व्यापार में ज़बरदस्त नुक्सान हुआ। पत्नी की किडनी ख़राब हो गयी और इकलौता बेटा विक्षिप्त सा हो गया। एक साथ तीन आघात और यह सारा खेल डेढ़ माह की अवधि में हुआ। सूचना मेरे कानो तक आ गयी थी। वो व्यक्ति आया मैंने पूछा- सब ठीक तो हैं? उसके चेहरे पर सहज प्रस्सनता का भाव था, वह बोला- हाँ महाराज! आपकी कृपा से सब कुछ ठीक हैं। मै इसलिए नहीं आया हूँ कि मेरी परिस्थिति बदल जाए। गुरुदेव! मैं तो आपके चरणों में इसलिए आया हूँ ताकि मेरा साहस बना रहे, मेरे अंदर स्थिरता बनी रहे, मैं जैसा हूँ, मैं टिका रहू। व्यापर में नुकसान तो हुआ है पर मैं फिर भी घबराया नहीं। महाराज! मैं तो यह सोचता हूँ कि मैंने जब अपने व्यापार की शुरुआत की थी, आज से 35 वर्ष पहले उस वक्त मेरे पास कुल 135 रूपये थे। आपकी कृपा से आज बहुत कुछ हैं किसी भी चीज़ की कमी नहीं हैं। नुकसान हुआ तो हुआ, चलता है। मैंने इसे स्वीकार कर लिया हैं। पत्नी की किडनी ख़राब हुई है पर पूरी तरह ख़राब नहीं हुई हैं। काम चल रहा है और दवाइयाँ लग गयी हैं। मैंने सोच भी लिया था की किडनी ख़राब हुई है तो क्या कर सकते है, कोई उपाय भी नहीं हैं। परन्तु मेरी किडनी मेरी पत्नी की किडनी से मैच करती है तो मैं अपनी किडनी दे दूंगा और हम दोनों की ज़िन्दगी चल जाएगी। बेटे की स्थिति इतनी ज़्यादा कॉम्प्लिकेटेड नहीं हैं, कंट्रोल हो जाएगा। आप बस आशीर्वाद दीजिए और सब चीज़े ठीक हो जाएगी।

वह एक स्वाध्यायी व्यक्ति थे। उनकी बातों को ध्यान से समझो। महाराज! कर्म का उदय आया है। स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। या तो हम रोकर करे या समता से करें। यह समयसार उस व्यक्ति के जीवन में। अभी यहाँ तीन दिन पहले एक व्यक्ति आए। अभी-अभी उनको व्यापार में लंबा नुकसान हुआ और स्वाइन फ्लू होने के कारण उनकी पत्नी की किडनी खराब हो गई, तेज़ी से होती हैं। उस व्यक्ति ने कहा- महाराज! इतना सब कुछ हुआ है। आप मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं ये सब कुछ सहन कर सकू और अपने आप को इस परिस्थिति से उबार सकू। वह व्यक्ति बिल्कुल स्थिर, बिल्कुल विचलित नहीं। क्यों? ऐसी शक्ति उस व्यक्ति के हृदय में आती है जो अपनी स्थिति की स्वीकार करता है, अपनी स्थिति को पसंद करता है। लाइक कीजिए, दुख से भी प्रीति कीजिए। अच्छे को सब लाइक करते हैं, बुरे को भी लाइक कीजिए, तब आपके जीवन में लाइक ही आएगी और जीवन ऊँचा तभी बढ़ेगा। यह शक्ति, यह क्षमता हमारे अंदर आनी चाहिए। उसको यदि हम विकसित करेंगे तो नियमतः अपने जीवन को ऊंचाई तक पहुंचने में समर्थ होंगे। तो जो मिला, उसको लाइक करो। आगे बढ़ेंगे।

एक बात बताऊं, तुम जो चाहोगे वह तुम्हारे हाथ में आयेगा ही नहीं, तुम चाहो की यह हो जाए, वह हो जाए परन्तु जो लेकर आए हो, लक वहीं देगा लेकिन अगर तुम अपनी लाइकिंग को ठीक करोगे, अच्छे अच्छे लकी लोगो से भी ज़्यादा लकी बन जाओगे। लाइफस्टाइल बदलिए, जो मिला है उसको लाइक करना सीखिए और लाइक करने के साथ ही लव भी कीजिए। जिसे आप पसंद करते हो उसे प्यार भी कीजिए। कोई जरूरी नहीं कि जिसे हम पसंद करते है उससे प्यार भी हो। बोलो, ऐसा होता है कि नहीं? ग्राहक को पसंद करते हो कि नहीं, लाइक करते हो, प्यार करते हो? क्या हो गया? पसंद करोगे पर प्यार नहीं करते हो। संत कहते है कि चीज़े सिर्फ पसंद हो, चलेगा। व्यक्ति के साथ केवल पसंद से काम नहीं चलेगा। पसंद के साथ प्यार भी चाहिए तब अपने जीवन में कुछ पा सकोगे। आपस में प्यार होना चाहिए, आपस में प्रेम होना चाहिए। यह हमारे व्यवहार के माधुर्य का मूल हैं। अगर प्यार नहीं, प्रेम नहीं तो सब बेकार। तो लव कीजिए। अंदर से वह प्यार का भाव विकसित हो। किसी के साथ भी प्रेम पूर्ण संबंध हो, आपको प्यार है? किससे प्यार है? किसी को पैसे से, किसी को बीवी से, किसी को बच्चो से, किसी को और से। सबको सबसे प्यार है पर क्या खुद को खुद से प्यार हैं? बोलो, खुद से प्यार करते हो? सबसे पहले खुद से प्यार करना सीखो। प्यार है कि नहीं, बोलो? खुद को प्यार करते हो कि नहीं? खुद से प्यार हो तो जीवन से खिलवाड़ क्यो? अगर तुम्हे खुद से प्यार होगा तो तुम खुद के प्रति सावधान एवं जागरूक हो जाओगे, खिलवाड़ क्यो? ज़िन्दगी को दाव पर लगाए बैठे हो, खुद से प्यार करो और अपनी आत्मा को पहचानो। अपने आपको जानो। जब तुम्हे खुद से प्यार होगा तब ही तुम दूसरो को प्यार देने में समर्थ बनोगे। बाकी जिसको प्यार कहते है, वह प्यार नहीं बल्कि स्वार्थ पूर्ण अनुबंध होता हैं। कोई भी प्यार कब तक लगता है? ईमानदारी से बताना। जब तक तुम्हारे हिसाब से चले तब तक प्यारा और जिस दिन उन्होंने तुम्हारे स्वार्थ पर चोट दी तो तुमने दिया धिक्कारा, उसे नकारा। अभी तक प्यारा था, अब क्या हो गया? यह प्यार कहाँ, यह प्रेम कहाँ? यह तो केवल फेम हैं। ऊपर का ढाँचा हैं। असल में जिसे प्रेम कहा जाता है वह आंतरिक है, सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति हैं। खुद से प्रेम करो, अपने जीवन से प्रेम करो, अपने जीवन के प्रति समर्पित हो जाओ। तुम्हारा भाग्य अपने आप ऊँचा उठेगा क्योंकि ऐसा व्यक्ति हर पल खुश, संतुष्ट और प्रसन्न रहेगा, आनंद में मग्न रहेगा। सच्चा भाग्यशाली वह नहीं जिसके पास संपन्नता है बल्कि वह है जिसके हृदय में अपार प्रसन्नता हैं। तो यह प्रसन्नता प्रकट कैसे होगी?उसके लिए प्रेम चाहिए। भीतर का प्रेम, अंदर का प्रेम। वह प्रेम एक बार व्यक्ति के जीवन में प्रकट हो गया तो वह अपने जीवन में सभी चीज़ों को ढालने लगता हैं।

आचार्य कुंदकुंद स्वामी समायसार में कहते है कि

अगर तुझे परम सुख की प्राप्ति चाहिए तो पहले खुद से प्रेम कर। खुद से प्रेम कर, खुद को पहचान, खुद से खुद का नाता जोड़। अगर तू खुद से प्रेम करने लग गया तो सारी दुनिया तुझसे प्रेम करने को लालायित हो उठेगी।

आप भगवान से प्रेम करते हो? सारी दुनिया करती है, कौन नहीं करता? क्यों? क्योंकि भगवान ने खुद से प्रेम किया। भगवान ने खुद को जाना, भगवान ने खुद को पहचाना तो खुद से प्रेम करो।

एदम मिरदो निच्चयम संतुट्ठो होई निच्चयमेः दम्ही।

        ए देन होई तित्तो होई दिदु उत्तम मम् सुख्खम।। … (31:13)

अपनी आत्मा में रम जाओ, उस ही में संतुष्ट रहो, उस ही से प्रेम करो। उस ही में तृप्त रहो। उसमें तुम्हे उत्तम सुख की प्राप्ति होगी। यह विडम्बना है कि मनुष्य और सभी चीजो से प्रेम करता है परन्तु जहाँ उसका प्रेम होना चाहिए, वहाँ नहीं होता। इसका नतीजा यह है कि सब कुछ होने के बाद भी जीवन भीतर से नीरस बन जाता हैं। तो हम अपने जीवन को आगे कैसे बढ़ा पाएंगे? मैने आज आपको सूत्र दिए। लक बनाना है तो लाइफ स्टाइल बदलिए, जो मिला है उसे लाइक करना सीखिए। जो है उसे लव कीजिए, अपने आप से लव कीजिए और अपनो से लव कीजिए। आप चाहते है कि हर कोई आपको लव करें? आप सब यह भी चाहते है कि सब मुझे लाइक करें। लोक में जिसे सब लाइक करते है, लव करते है, उसे भाग्यशाली माना जाता हैं। महान आत्मा! अरे! सारी दुनिया में उसका नाम हैं। कितना नाम और फेम हैं। सबकी ज़ुबान पर उनका ही नाम हैं। बंधुओ! लोग मुझे लाइक करें, लोग मुझे लव करें, लोग मुझे अपना माने, यह मेरे हाथ में नहीं हैं। पर लोगो को मैं अपना बनाऊँ, यह मेरे हाथ में हैं। लोग मुझे प्रेम करें यह मेरे हाथ में नहीं पर मैं लोगो का प्रेमी बनूँ, यह मेरे हाथ में हैं। जो हाथ में है उसे स्वीकारना चालू करो तो जीवन आगे बढ़ेगा। लाइफस्टाइल को बदलिए, लाइक करना शुरू कीजिए, लव करना शुरू कीजिए।

अब आखरी बात- लीव (Leave) कीजिए। लीव मतलब? छोड़ दीजिए, किसको? कुछ भी हो- छोड़ो, लेट इट गो। छोड़ने की आदत डालिए, भूलने की आदत डालिए। अपने दिमाग पर वज़न डालना बंद कीजिए। हर पल मस्ती मज़े में रहोगे तो कभी भी किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। चीज़ों को पकड़ कर रखोगे तो चित्त भारी होता चलेगा और चीज़ों को छोड़ने के आदी रहोगे तो मन हल्का रहेगा। क्या चाहते हो? मन को हल्का रखना या बोझ रखना? एक मजदूर अपने से ढाई गुना वज़न उठा करके भी मस्त दिखता हैं और कहने को एक बड़ा आदमी जिसके शरीर पर कोई वज़न नहीं दिखता फिर भी ज़्यादा थका हारा दिखता हैं। क्यो? तन पर कोई बोझ नहीं, मन पर बोझ हैं। मन पर किसका बोझ है? सब प्रकार की नकारात्मकता जिसके चित्त पर बैठी रहेगी वह व्यक्ति बोझिल होगा। वह कभी सुखी नहीं हो सकता। तो अपनी लाइफस्टाइल को बदलिए, लाइक करना सीखिए, लव करना सीखिए और लेट गो बोलना शुरू कर दीजिए। लीव कर दीजिए। जीवन आगे बढ़ेगा। जीवन में उन्नति होगी। तो पूरा लक बना दूँ?

लक में L तो बता दिया। यह सब चीज़ आयेंगी और अपने आप आयेंगी अगर U उड़ जाए। U मतलब understanding यानी समझ, किसकी? जीवन की और जीवन के व्यवस्था की समझ। इसे आप समझ जाओ और सब अपने आप घटित होने लगेगा। जीवन क्या हैं? जीवन की व्यवस्था क्या हैं? ऐसी व्यवस्था है जीवन में की जो तुम चाहो वह तुम्हे मिल जाए? एक भी व्यक्ति चाहे वह चक्रवर्ती भी क्यो ना हो कि जो चाहे वह मिल जाए? जो चाहो वह मिल जाए यह तुम्हारे हाथ में बिल्कुल नहीं हैं। तुम्हारे क्या किसी के भी हाथ में नहीं हैं।

एक बार एक युवक आया। काफी राइज किया था। सेल्फ मेड था लेकिन कुछ ज़्यादा फेक रहा था, अपनी सेखी बघार रहा था। अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहा था। जो व्यक्ति अपने जीवन को समझता है, उस व्यक्ति में और एक अज्ञानी में इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जितनी उपलब्धि हासिल करता है उतना विनम्र होता है, अपनी उपलब्धियों की चर्चा अपने मुख से नहीं करता, दुनिया उसकी उपलब्धियाँ गिनाती हैं और अज्ञानी व्यक्ति अभिमानी हो जाता है। थोड़ी सी उपलब्धि को बढ़ा चढ़ा करके कहना शुरू कर देता हैं। उसे अपनी उपलब्धियाँ गिनानी पड़ती है और कभी-कभी हास्य का पात्र बनना पढ़ता हैं। वह अपनी बातें गिना रहा था। महाराज! आज मैं बहुत आगे बढ़ गया हूँ और मेरा कॉन्फिडेंस बहुत बढ़ गया है और आज में इस मुकाम पर पहुंच गया हूँ कि जो चाहूँ, सो कर लूँ। मैने उसकी पूरी बातें सुनी, बहुत देर तक बातें करता रहा। मैं भी सुनते-सुनते उकता गया लेकिन पूरी बात सुनने के बाद लगा की इस व्यक्ति को एक डोज़ तो देना ही पड़ेगा। मैने उससे कहा- भाई! आज तुम्हारी बातो को सुनकर मैं इस निष्कर्ष पर पहूँचा हूँ कि अब मुझे अपनी धारणा बदलनी पड़ेगी। अभी तक मैं सोचता था कि आदमी का सोचा कुछ हो नहीं सकता। अब तुम्हारी बातों से मैने ये समझ लिया कि जो चाहो वह हो सकता हैं। मुझे अपनी धारणा बदलनी पड़ेगी। मेरी बात को सुनकर वह सकपकया, वह बोला- नहीं, नहीं, महाराज! ऐसी बात नहीं है। लेकिन आप लोगों का आशीर्वाद है इसलिए जैसा चाहे वैसा हम कर सकते हैं। यह सब आदमी पर डिपेंड करता है। मैंने कहा- बिल्कुल ठीक, मैंने बोला कि तुम यह कह रहे हो कि मैं जो चाहूँ वह कर सकता हूँ, तो वह आदमी बोला- महाराज! हाँ, डिपेंड करता है। हमने कहा- तुम्हारा जो यह शरीर है, 20 साल बाद क्या ऐसा ही रहेगा? वह आदमी बोला- महाराज! इसका तो मैं नहीं कह सकता। मैंने कहा- अच्छा! अभी तुम्हारा जीवन है, 20 दिन बाद क्या तुम्हारे जीवन की गारंटी है, तुम जिंदा रहोगे, मेरे पास आओगे। क्या इसकी कोई गारंटी है या तुम कोई गारंटी ले सकते हो? तुम्हारा जो स्वास्थ्य है, अभी जैसा है, कल तुम बीमार ना पड़ो, उसका। इस पर वह आदमी बोला- प्रिकॉशन तो ले ही सकते हैं। मैंने बोला- प्रिकॉशन की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं तो गारंटी की बात कर रहा हूँ। कल तुम्हें कोई बीमारी ना लगे, इस बात की गारंटी दे सकते हो। अभी तुम्हारे जितने भी संबंधी हैं वह सब तुम्हें लाइक करते हैं, भविष्य में भी ऐसे ही लाइक करते रहे, क्या तुम इसकी गारंटी दे सकते हो। वह बोला- महाराज! अभी तक तो मुझे ऐसा ही लगता है। ऐसा ही लगता है, लेकिन तुम उनके साथ कुछ मिसबिहेव कर लो तो फिर। मैंने कहा- अभी तुम्हारे पास इतना पैसा है, कल भी उतना ही पैसा रहे इस बात की गारंटी है। वह बोला- महाराज! मैंने अपना सिस्टम ऐसा बना लिया कि सब ठीक रहेगा। मैंने कहा ठीक है तुमने सिस्टम कैसे भी बना लिया हो या सही बना लिया हो पर गवर्नमेंट की पॉलिसी बदल जाए तो, एक पॉलिसी चेंज हो जाएगी और तुम मुँह ताकते रह जाओगे। तब उसे उसकी भूल समझ में आई। हमने कहा- तुम कहते हो सब मेरे हाथ में हैं लेकिन तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है। तुम्हारे क्या किसी के हाथ में कुछ भी नहीं है। सबके सब हाथ खाली हैं कुछ भी नहीं है। भले ही कहने को तुम अपने हाथों में कितना भी भरे हो। ना तुम्हारा शरीर तुम्हारा है, ना तुम्हारा स्वास्थ्य तुम्हारे हाथ में है, ना तुम्हारे संबंधी तुम्हारे हाथ में है, ना तुम्हारी संपत्ति तुम्हारे हाथ में है। अरे! तुम्हारा जीवन ही तुम्हारे हाथ में नहीं है तो फिर किसकी बात करते हो।

यह अंडरस्टैंडिंग है। बोलो! जिस दिन यह बात समझ जाओगे कभी अनहैप्पी नहीं होओगे, हर पल प्रसन्न रहोगे, आनंद में रहोगे। और जो समझते हैं वही सच्चे अर्थों में भाग्यशाली हैं, वही लकी है। समझने की कोशिश करो, सिस्टम को जानो।

एक बात बोलूं सिस्टम को जानें और सिस्टम को स्वीकारें कभी तकलीफ नहीं होगी। अभी आप यहाँ कितने आराम से इत्मीनान से ज़मीन पर बैठे हैं, नीचे क्या गद्दा लगा हुआ है? आराम से बैठे हैं, आराम से अपनी मस्ती में बैठे हैं, आनंद आ रहा है। महाराज! गद्दा तो भले ही नहीं लग रहा पर इस पल तो गद्दे से भी बैठने से ज्यादा आराम है, कंफर्ट फील कर रहे हैं। क्यों? आप यहाँ आकर बैठे हैं, आराम से बैठे हैं, आपको कोई तकलीफ नहीं है, नहीं खुशी है। और यही बात अगर आप किसी व्यक्ति के घर जाएं, सोफा लगा हुआ हो और आपको नीचे कालीन बिछी हो, मखमल की। आपको बैठने को इशारा करें, तो क्या होगा? खुद तो सोफा पर बैठे हैं और मुझे नीचे बैठने को कहा है। अब क्या होगा? नीचे बैठोगे या बाहर आ जाओगे। सवाल क्या है? नीचे बैठने से तकलीफ हुई है या फिर कुछ और? महाराज! नीचे बैठने से तकलीफ बैठने से नहीं, वहाँ नीचे बैठने का मतलब, वह नीचे बैठा नहीं रहा, वह मुझे नीचा दिखा रहा है। क्या हो गया? नीचा दिखा रहा है, अंतर क्या है? यहाँ आप नीचे बैठे हैं, आप आराम से कंफर्ट फील कर रहे हैं, ठीक है, आनंद है, कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन वहाँ नहीं, क्यों आपका मन उसको एक्सेप्ट नहीं कर रहा है? ऐसे ही थोड़ा आगे और बढ़ाओ, सोफा साइड में है, नीचे फर्श बिछा है एक चटाई बिछी है। वह आदमी खुद भी नीचे बैठा है। और आपको भी नीचे बैठने के लिए इशारा कर रहा है। बैठोगे कि नहीं बैठोगे। बताओ, क्यों भैया! यह इनका सिस्टम है यहाँ का यह सिस्टम है। तो

सिस्टम को एक्सेप्ट करने वाला मनुष्य कभी दु:खी नहीं होता और सिस्टम के अगेंस्ट जाने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।

कुर्सी वाले पीछे बैठे हैं, यह अगर कुर्सी यहाँ आगे लगाले, तो क्या होगा? यह सिस्टम है? कुर्सी है तो पीछे बैठो। अब कुर्सी को आगे लगाओगे तो कोई जरूर आकर कहेगा क्यों आप सबके लिए रोड़े बन गए हो, उठो! आप पीछे जाओ, आपको मन मार करके पीछे जाना पड़ेगा।

तो हमेशा कहते हैं जहाँ भी जाओ वहाँ के सिस्टम को समझो और सिस्टम को फॉलो करो। तो जैसे लोक व्यवहार में आप जिस सिस्टम को समझते हैं, सिस्टम को फॉलो करते हैं वैसे ही अपनी जिंदगी के सिस्टम को समझो और सारे जीवन उसको फॉलो करो। हमेशा प्रसन्न और खुशी बने रहोगे। कभी दुखी नहीं होगे, कुछ भी हो जाएगा सब ठीक होगा, सुधर जाएगा। अंडरस्टेंडिंग चाहिए। यह समझ विकसित हो जाए तो अध्यात्म और कुछ नहीं देता। मनुष्य की अंडरस्टेंडिंग को स्ट्रांग करता है। वह जिसके हृदय में विकसित हो गई उससे सुखी इस संसार में दूसरा कोई और नहीं हो सकता है और जिसके अंदर ऐसी अंडरस्टेंडिंग नहीं है वह कभी सुखी नहीं हो सकता तो अपने जीवन को समझे जाने पहचाने उसी अनुरूप अपने आप को ढालने की कोशिश करें जीवन धन्य होगा, जीवन को ऊँचाइयो पर पहुंचा पाएंगे।

तो पहली बात लाइक करें, लव करें, लीव करें।

अब बात कर रहा हूँ यू U- अंडरस्टैंड.

C मतलब- कंफर्ट। कुछ भी सब में कंफर्ट फील करना शुरू करें, अनकंफर्ट है क्या। बताइए कंफर्ट और अनकम्फर्ट कहाँ है, बाहर नहीं कहाँ है? मन अच्छा हो तो तुम्हें धूप भी सुहा जाएगी और मूड खराब हो तो AC में भी अनकंफर्टेबल फील करोगे। होगा ना, तो जो हो जैसा हो उसमें कंफर्ट फील करो चाहे कितना भी अनकम्फर्ट हो, एडवर्स हो, कूल बने रहोगे, ठंडे रहोगे। कूल, clam कंफर्ट बनने की कोशिश हमारी होनी चाहिए। अगर अंडरस्टेंडिंग क्लियर है तो यह सब चीजें अपने आप हो जाएगी। बात-बात में भड़कने वाले लोग जीवन का रस नहीं ले सकते हैं। छोटी-छोटी बातों में विचलित होने वाले लोग कभी सुखी नहीं हो सकते हैं। पल पल में उद्विग्न जाने वाले लोग जीवन का मजा नहीं ले पाते हैं। उन सब का जीवन रस हीन होता है इसलिए संत करते हैं अपने मन को शांत रखने की कोशिश करो और हर स्थिति में सहजता का अनुभव करो, कंफर्ट रहो। थोड़ी-थोड़ी सी बात में आप अनकंफर्टेबल फील करने लग जाते हैं। आपको तकलीफ का अनुभव होने लगता है, क्यों? अच्छी बात है, कोशिश करें कि हमें अच्छी से अच्छी सुविधाएं मिले, मेरे सभी अनुकूलताएं बने उसका भी मैं निषेध नहीं करता, लेकिन, भैया! अनुकूलताएं जुटाना मेरे हाथ में नहीं है पर जुटी हुई व्यवस्था में मन को अनुकूल बनाना मेरे हाथ में है। अपने आप को ढाल लो, सारा काम बन जाएगा कहीं भी कुछ भी हो एक सूत्र लेकर चलो मुझे कहीं भी हो कंफर्ट फील करना है, कूल बने रहना है, Calm बने रहना है, शांत रहना है, भाग्य बन जाएगा, ऊंचा हो जाएगा। जीवन को शिखर पर पहुंचाने में समर्थ हो जाओगे। और

Luck का आखिरी चरण है- K यानी काइंडनेस। हमारे जीवन में दया हो या संवेदना हो, परोपकार की भावना हो। यह अगर हमारे ह्रदय में विकसित हो गई कि मन मेरा भीगा है तो भाग्य हमेशा ऊंचा होगा। कोरल काव्य में लिखा है जिस मनुष्य का हृदय दया से भीगा नहीं है उसके चित्त में कभी धर्म के अंकुर नहीं फूटते हैं जिस प्रकार सूखी धरती में कभी बीज अंकुरित नहीं होता उसी प्रकार जिसका हृदय दया से भीगा नहीं होता उसके अंदर धर्म का अंकुरण कभी प्रस्फुटित नहीं होते हैं। तो अपने हृदय में धर्म के अंकुरण को प्रकट करना चाहते हो दया के भाव से अपने भाव को भरे रहें अपने चित्त को भरे रहें। जीवन में हर पल आनंद आएगा। हर पल बसंत बना रहेगा और यह ना हो तो सब कुछ होने के बाद भी कुछ नहीं कर पाएगा इसलिए अपना भाग्य जगाइए अपना लक बनाइए, L U C K को ध्यान रखें हर पल लकी होंगे। जीवन की सारी शिकायते समाप्त हो जाएगी। आपको किसी से कोई तकलीफ नहीं होगी, कोई कठिनाई नहीं होगी। हर घड़ी सहज होगी। हर व्यक्ति के जीवन में यह आए, हर जीवन सरल व्यवहारी हो। सभी अपने जीवन में परम आनंद ले।

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