Letter O – On, Off, Out, Over
4 साल का एक बेटा, अपने दादा जी के साथ, शाम के समय घर के भीतरी एक कक्ष में प्रवेश किया। गाढ़ अंधेरा था। हाथ पर हाथ ही नहीं सूझता था। घुप्प अंधेरे को देख कर बेटे ने कहा- दादा! यहाँ तो घोर अंधेरा है। यहाँ क्यों आ गए? दादा ने कहा- बेटा एक मिनट रुक, उन्होंने तुरंत स्विच ऑन किया और उजाला भर गया। बेटे ने चकित होते हुए पूछा- दादा! यह उजाला कैसे आ गया? यह कहाँ से आया? अंधेरा कहाँ चला गया? आपने क्या जादू कर दिया? दादा बोले- बेटा यहाँ कुछ जादू नहीं है। यह तो बस स्विच को ऑन करने में उजाला होता है और स्विच को ऑफ करते हैं तो अंधेरा होता है। ऑफ करोगे अंधेरा होगा और ऑन करोगे तो उजाला होगा।
आज मैं आप से ज्यादा कुछ बात नहीं करूंगा। बाहर कहीं अंधेरा होता है तो आप स्विच को ऑन करने में एक पल का भी विलंब नहीं करते। आपके सामने यदि किसी चीज की जरूरत नहीं होती तो आप स्विच को ऑफ करने की भी देरी नहीं करते पर अपने इस जीवन के स्विच को कब ऑफ करना है और कब ऑन करना है, क्या इसका आपको पता है?
आज की चार बातें हैं- ऑफ (OFF), ऑन (ON), आउट (OUT) और ओवर (OVER)
कोई बड़े शब्द नहीं है, छोटे से शब्द हैं- ऑन, ऑफ आउट और ओवर।
ऑफ का मतलब- बंद कर दीजिए, रद्द कर दीजिए, उड़ा दीजिए। आप किसको-किसको ऑफ करते हैं? जो हमारे चित्त की शांति को खण्डित करें, जो हमारे मन की प्रसन्नता को लीन जाए, जो हमारे जीवन की सहजता को नष्ट करें, जो हमारे संबंधो को बिगाड़े उन सबको ऑफ कर दीजिए, ऑफ करना सीखिए। आप ऑफ करते हैं? किसको करते हैं? मूड को ऑफ कर देते हैं? बड़ी जल्दी मूड ऑफ होता है? संत कहते हैं- ‘जिसको ऑफ करना है उसे ऑफ़ करो। बुराइयों को ऑफ करो, विकृतियों को ऑफ करो, जो हमारे भीतर भरी हुई है’। उन्हें जब तक हम विनष्ट नहीं करते हैं हमारा जीवन सुखी नहीं होता है। संत कहते हैं- ‘जीवन को सुखी और संपन्न बनाना चाहते हैं तो हमें ऑफ करना है’। किनको-किनको ऑफ करना है?
जो ओड (odd) हो उसको ऑफ करो। किसको ऑफ करो- ओड को। किसको ऑफ करो, ओड किसको बोलते हैं, किसको बोलते हैं ओड़? जो ओड होता है- उसको ऑफ करो। ओड का मतलब- जो विचित्र हो, जो बुरा हो, जो अच्छा ना लगे, उसको आप ऑफ कर दो। बाहर जब कुछ भी अटपटा, विचित्र, बेढंगा, बदसूरत हमारे सामने प्रस्तुत होता है तो आप क्या करते हो? उसे अवॉइड करते हो, उससे दूर होने की कोशिश करते हो, उससे छुटकारा पाने की कोशिश करते हो। उससे तत्क्षण छुटकारा पाते हो। बाहर जब कभी ऐसी स्थितियाँ निर्मित होती है तो आप उसे दूर करने में एक पल का भी विलंब नहीं करते हैं। अपने भीतर देखो क्या-क्या चीजें हैं जो ओड है? पता है? महाराज! हम तो मोड हैं, ओड की कोई बात नहीं हम तो मोड हैं। संत कहते हैं- भैया! ऑफ और ऑन में कुछ नहीं करना है। क्या करते हैं? ऑफ से ऑन और ऑन से ऑफ होता है। तो केवल क्या करते हैं? केवल मोड ही तो चेंज किया जाता है। मूड चेंज करते हैं, मोड बदल दो, ऑफ- ऑन हो जाएगा और ऑन- ऑफ हो जाएगा।
आप अपने जीवन व्यवहार में इस बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि किसको ऑन रखना है और किसको ऑफ करना है। आप सबके मोबाइल में, आपके कंप्यूटर में न जाने कितने सारे प्रोग्राम्स रहते हैं। उनमें से आप सबको ऑन रखते हैं क्या? क्यों? एक बार एक व्यक्ति का मोबाइल देखा तो छोटे से बच्चे ने उससे कहा- अंकल आपका ब्लूटूथ ऑन है, ऑफ कर दो। उसने फट से ऑफ किया। हमने पूछा- क्या बात है? वह व्यक्ति बोला- महाराज! ज्यादा देर तक ब्लूटूथ को ऑन नहीं रखना चाहिए। वायरस आ जाता है। ऐसे ही करते हैं आप लोग। आपके पास जितने फंक्शन है उसमें किस को ऑन रखते हैं- जो काम की है, बाकी सबको- ऑफ। अपने हाथ में रखने वाले एक गैजेट्स के प्रति तुम्हारे मन में इतनी जागरुकता है कि किसको ऑन करना है और किसको ऑफ करना है। अपने जीवन के प्रति कब जागरूक होओगे। किसे ऑन करना है और किसे ऑफ करना है, यह तो समझो? अपने जीवन के प्रति जागरूकता लाओ।
जो ओड लगे उसे ऑफ कर दो। अब हम ओड को कैसे पहचाने? दूसरों का जो व्यवहार, दूसरों की जो प्रवृत्ति, दूसरों का जो स्वभाव तुम्हें बुरा लगता है, समझ लेना तुम्हारा भी वैसा व्यवहार प्रवृत्ति स्वभाव दूसरों को बुरी लगेगी। यह सब ओड है। इसको क्या करना है- ऑफ करना है, बस मोड चेंज कीजिए। आज से यह सब ऑफ- गुस्सा ऑफ, निंदा ऑफ, चुगली ऑफ, बुराई ऑफ, क्या कर सकते हैं आप। अच्छा! यह बताओ ऑफ करने में क्या करना पड़ता है? क्या करना पड़ता है? बटन को पुश कर दो, मोड बदल गया, ऑफ हो गया। बस वह ही नहीं किया जाता है। बल्कि बार-बार कहो तो लोगों का मूड ऑफ हो जाता है कि महाराज तो पीछे ही पड़ गए एक ही बात के। यही बात होती है ना। संत कहते हैं- नहीं! समझिए! इस बात की सुनिश्चितता कीजिए कि जिन चीजों से मेरे मन की शांति खंडित होती है, जिन बातों से मेरी प्रसन्नता नष्ट होती हो, जिनसे मेरे संबंध बिगड़ते हो और जो मेरी सहजता को प्रभावित करती हो, वह सब क्या है-ओड। इस ओड को क्या करना है? क्या करना है? ऑफ करना है तो कब करोगे? आप कहेंगे कि मन मानता नहीं। यह ही तो मन है उसे ही तो मनाना है। ऑफ करना चालू कीजिए। अपना ध्येय बनाइए, दृष्टि जगाइए कि उन सब बातों से मुझे मुक्त रहना है। अब आज से यह सब काम बंद करेंगे, जो-जो चीजें बुरी है उनको मैं रोक लूंगा, तो यह ऑफ है। इससे बचें, ओड को ऑफ करें, ओल्ड को ऑफ करें।
ओड के बाद किसको ऑफ करना है- ओल्ड (Old) को, ओल्ड यानी पुराना। पुराने में क्या ऑफ करना है? घर में पड़े पुराने सामान को जो भी सामान तुम्हें पुराना लगता है तुम पल में उसे बदलने के लिए तैयार हो जाते हो। पुराने सामान को बाहर निकालने के लिए तुम्हे एक पल का भी विलम्ब नहीं लगता है। लगता है क्या? घर में पड़े पुराने सामान को बाहर निकालने के लिए तुम्हारा मन हमेशा तैयार रहता है तो अपनी पुरानी प्रवृतियों को बाहर निकालने के लिए तुम्हारा मन क्यों तैयार नहीं होता है, उसे बाहर निकालो। लोग कह रहे हैं कि बहुत कठिन है। भैया! कठिन है, लेकिन मजा भी उसी में है। जीवन का रस लेना है तो अपने रवैया को बदलना सीखिए। जो हमारा ढर्रा चला आ रहा है उसी ढर्रे पर जीने की आदत छोड़िए। जो भी मेरी पुरानी प्रवृत्तियाँ है मुझे अब उसे बदलना है। अपने अंदर एक चेंज घटित करना है। यह हमारी प्रवृत्ति में आना चाहिए। उसको बदलिए और अभी तक क्या किया? तुमने जीवन में जो कुछ भी किया वह सब पुरानी ही तो बातें हैं। कुछ है नया? बताइए? जो हम करते आ रहे हैं उसको जब तक ऑफ नहीं करेंगे तो नया शुरू भी नहीं होगा। ऑन कैसे होगा? है कोई उपकरण ऐसा? है ऐसा कोई डिवाइस जिसमें एक ही साथ ऑन और ऑफ दोनों मोड चलते हो? है कोई ऐसा डिवाइस, हाई टेक्नोलॉजी के इस युग में कोई डिवाइस डेवलप हुआ हो जो एक ही साथ ऑन मोड़ में भी हो और ऑफ मोड़ में भी मतलब ऑन और ऑफ दोनों चलाता हो? नहीं ना, बंधुओं! शांति को प्राप्त करना चाहते हो तो अशांति के कारणों को ऑफ करना ही पड़ेगा। आनंद का रस लेना चाहते हो तो अवसाद के कारणों को ऑफ करना ही पड़ेगा। जब तक वैसा नहीं करोगे जीवन में कोई रस नहीं घटेगा। जीवन में कोई मजा नहीं आएगा। तो अपनी प्रवृतियों को ऑफ करिए। अभी तक का ढर्रा क्या है- भोग-विलास? मौज-मस्ती? विषय-कषाय? राग-रंग? इसके अलावा क्या किया? अपने अतीत को थोड़ा टटोल कर देखो कि तुमने क्या किया? यही सब तो किया। यही सब किया। इसी कारण हमारा जीवन दु:खी रहा। संत कहते हैं- नहीं! जो पुराना ढर्रा है उसको बदलो। अब हम नया कुछ करेंगे। जीवन में कुछ नया करेंगे। पुरानी चाल नहीं चलेंगे। आचार्य कहते हैं- अपनी पुरानी प्रवृतियों को जब तक नहीं बदलोगे तब तक तुम्हारा सुधार ही नहीं होगा। यह मान कर चलो कि जो तुम आज कर रहे हो अनादि से वही कर रहे हो। वही करते आए हो। बदलो! इसमें सिवाय दु:ख और अशांति के हमें आज तक कुछ मिला ही नहीं। अपने जीवन में सुख शांति का रस लेना चाहते हो तो अपनी इस पुरानी प्रवृत्ति को छोड़ो।
तीसरी बात- ओपोजीशन (Opposition) को ऑफ करो। अब हम किसी का अपोज़ नहीं करेंगे। आज से तय कर लो कि हम किसी का अपोज़ नहीं करेंगे। सपोर्ट ना कर पाएं चलेगा पर अपोज़ नहीं करेंगे। मन की कैसी दुर्बलता है- छोटी-छोटी बातों में हम एक दूसरे को अपोज़ करना शुरू कर देते हैं। जब मन में किसी को अपोज़ करने का भाव प्रकट होता है तो सामने वाला आत्मीय व्यक्ति भी अपना आत्मीय ना बन कर के प्रतिद्वंदी दिखने लगता है। यह हमारे जीवन को तार-तार बनाता है। इससे अपने आप को बचाइए, इसे ऑफ। अब वैर- विरोध किसी से भी नहीं और सभी से प्रेम और आत्मीयता का जीवन जी पाएँगे। अगर इस तरह से हम चलना शुरू करेंगे तो निश्चित तौर पर हम अपने जीवन का उत्थान करने में समर्थ होंगे तो आप अपोज ना करें।
चौथा ऑफ है- ऑफेंस (offence). कोई अपराध हम नहीं करेंगे। आज से यह तय करो। जैसे संगीन अपराध तो आप बिल्कुल नहीं करते लेकिन एक दूसरे के विरुद्ध कहीं प्रकार के अपराध रोज चलते हैं, वह अपराध नहीं करेंगे। तो यह ऑफ हो गया। इसको हमने ऑफ कर दिया।
अब हमे ऑन करना है। शुरू करना है- किसको? ऑन यानी चालू कर देना, शुरु कर देना। किसको- चार चीजों को ऑन करो।
नंबर वन ऑब्जरवेशन (Observation). अपने आप को ऑब्जरवेशन करना शुरू करो। अपने आप को ऑब्ज़र्व कीजिए। कभी अपने भीतर झाँककर देखने की कोशिश की कि मेरे अंदर क्या खूबियाँ हैं, क्या खामियाँ हैं, मेरे अंदर किस-किस प्रकार के डिफ़ॉल्ट हैं, कहाँ -कहाँ मुझे सुधार करने की जरूरत है? ऑब्ज़र्व किया है कभी? औरों को ऑब्जर्व करते हैं। कहते हैं अभी ऑब्जरवेशन में हैं। संत करते हैं- पर को आब्जर्व करते-करते तो जीवन बीत गया, खुद को आब्जर्व करने की कोशिश करो। अपने आप को ऑब्जर्व जरूर कीजिए। अपना परिवेक्षण कीजिए, अपना आत्म अवलोकन कीजिए, सेल्फ ऑब्जरवेशन कीजिए। मैं प्रतिदिन सोने से पहले कुछ पल के लिए विचार करता हूँकि सुबह से शाम तक मैंने जो कुछ भी किया, सोचा, कहा, लोगों से बात की, उसको याद करता हूँ। सारे विचारों को रिकॉल करता हूँ और देखता हूँ किसमें क्या सही था या क्या गलत था। उसी समय सुनिश्चित करता हूँ कि अब कभी ऐसा मौका आएगा तो यह नहीं करूँगा और यह में करूँगा। इसको ऑफ करूँगा और इसको ऑन करूँगा। नतीजा मैं रोज-रोज अपने भीतर एक निखार पाता हूँ। मेरे अंदर सुधार होता है यह मेरा अपना एक्सपीरियंस है। आप भी यह घटित करिए। कभी सोचते हो? लेखा-जोखा करोगे, दुकान का, धंधा का, व्यापार का, बिजनेस का, उसमें तो हिसाब-किताब पूरा है। पूरा जोड़-घटाव लगाओगे। लेकिन भैया अपनी आत्मा का, अपने स्वभाव का, अपनी प्रवृतियों का, अपने बर्ताव का, अपने व्यवहार का, इसका तुमने कभी ऑब्जरवेशन किया, क्या? कोई नहीं? क्यों? महाराज! हमें क्या करना है? हम तो दूध के धुले हैं। यह कमजोरी है। जीवन में बदलाव घटित करने का यह एक मंत्र है- ‘आत्मावलोकन’। अपने जीवन में व्यवहारिक जीवन में सुधार लाना हो या अपना आध्यात्मिक उत्कर्ष करना हो दोनों के लिए सेल्फ ऑब्जरवेशन की बहुत सख्त आवश्यकता है। ऑब्जरवेशन शब्द बहुत व्यापक है। हमें अपनी प्रवृतियों की भी जाँच-पड़ताल करनी है। और अपने भावों को भी बहुत अच्छे से परखना है।
ऑब्जर्व तो कर लिया। ऑब्जर्व करने के बाद कहते हैं- केवल ऑब्जरवेशन को ऑन करने से काम नहीं होगा। तो क्या चाहिए- ऑपरेशन (Operation).
क्या करिए- ऑपरेशन करिए। ऑपरेशन का मतलब, ऑपरेशन का एक अर्थ तो जगत में प्रसिद्ध है- सर्जरी करना, शल्य क्रिया करना और ऑपरेशन का अर्थ है- क्रियान्वयन करना। क्रियान्वयन कीजिए, उसको एक्टिवेट कीजिए। हमने जो ऑब्जर्व किया उस ऑब्जरवेशन से जिस निष्कर्ष पर हम पहुँचे हैं तो उसका ऑपरेशन होना चाहिए। ऑपरेशन नहीं हो तो फिर क्या मतलब? इतने दिनों में तुमने बहुत कुछ जाँचा, सुना, परखा, सब कुछ किया, लेकिन उसके आगे ऑपरेशन के क्षेत्र में जीरो। ऑपरेशन ऑफ। ऑपरेशन चालू करो। जैसे शरीर में कोई घाव हो तो शल्यक्रिया के बिना वह ठीक नहीं होता वैसे ही मन के इस घाव को भी हम अपने ऑब्जरवेशन के बाद जब तक ऑपरेशन नहीं करेंगे ठीक नहीं कर सकते। ऑपरेट करना शुरु कीजिए। आप लोगों की दशा कैसी है यह बताओ? खूब सुनते हो, मजा आता है, हँसते हो, मुस्कुराते हो, तालियाँ बजाते हो। उसके बाद बोलते हो, उसके बाद की जरूरत नहीं है, इतना ही ठीक है, वही सब ठीक है। यह हमारे जीवन की कितनी बड़ी दुर्बलता है? तुम लोगों की दशा वैसे आदमी की तरह है जिसे बहुत बड़े डॉक्टर का अपॉइंटमेंट मिल गया। डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन भी लिख दिया और प्रिस्क्रिप्शन लेकर घूम रहा है। देखो मेरा डायग्नोसिस हो गया। डाक्टर ने यह दवाई दी है, यह इसका प्रिस्क्रिप्शन है। अब मैं ठीक हो जाऊंगा। क्या होगा? बोलो, ठीक होगा? ऐसे आदमी को क्या बोलोगे? क्या बोलोगे? ऐसे आदमी को पागल बोलोगे। थोड़ा आब्जर्व करो, कहाँ बैठा है ऐसा आदमी? कहाँ है वो पागल? कौन है वो पागल? यह पागलपन आखिर कब तक चलाओगे। पागलपन को बंद कीजिए, समझदारी शुरू कीजिए। सच्चे अर्थों में अब तक की जो जिंदगी है वह पागलों सी जिंदगी है। समझदारी के जीवन की शुरुआत कीजिए। उसे ऑफ कीजिए इसे ऑन कीजिए। जीवन का मजा है, परम रस है, परम आनंद है, तो क्या करें?
ऑब्जरवेशन, ऑपरेशन और तीसरी बात- ऑब्लिगेशन (Obligation). ऑब्लिगेशन का मतलब- अपनी प्रतिबद्धता।
हमारी जो प्रतिबद्धताऐं है उसको मैं पूरी तरह ऑन रखूँ, उसे कम ना होने दूँ। बहुत व्यापक शब्द है ये ऑब्लिगेशन। आप लोग एक-दूसरे को ओब्लाइज करते हैं, अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं। ऑब्लिगेशन का मतलब है- अपना जो कमिटमेंट है, अपनी जो प्रतिबद्धता है उसको फुल फिल करें। किसके प्रति तुम्हारा क्या ऑब्लिगेशन है? माता-पिता के प्रति तुम्हारा ऑब्लिगेशन है। अगर है, तो ठीक है, नहीं है तो आज से ऑन करो। माता-पिता के प्रति समर्पण का भाव रखो। उनके प्रति आदर और श्रद्धा की भावना रखो और अपने कर्तव्य का अच्छे से पालन करो। गुरु के प्रति ऑब्लिगेशन हो, प्रभु के प्रति ऑब्लिगेशन हो, समाज के प्रति ऑब्लिगेशन हो, परिवार के प्रति ऑब्लिगेशन हो। जहाँ जिसके प्रति जितना जरूरी है वह प्रतिबद्धता होनी ही चाहिए। तो ऑब्जरवेशन, ऑपरेशन, ऑब्लिगेशन- यह तीनों ऑन होंगे तो ऑरिजनेशन (Origination) होना शुरू हो जाएगा। आपके भीतर गुणों का भंडार प्रकट होने लग जाएगा इसको ऑन कीजिए। समझ में आया- किसको-किसको ऑन करना है। अपना ऑब्जरवेशन और ऑपरेशन शुरू कर दो बाकी सारे काम अपने आप हो जाएंगे। मुश्किल यह है कि यह ही नहीं होता है।
तो ऑफ-ऑन के बाद तीसरी बात- आउट (Out).
आउट का मतलब- बाहर निकलना। कहीं जाते हैं इन और आउट लिखा होता है। आउट यानी बाहर निकलना। मैं आप से कहता हूँ- कुछ से आउट होइए और कुछ को आउट करिए। कुछ बातों से बाहर निकलिए और कुछ बातों को बाहर निकालिए। क्या है ये? जहाँ झगड़ा झंझट झमेला हो उससे बाहर निकल जाओ, आउट हो जाओ, पचड़े में पढ़ो ही मत। जहाँ खड़े होने से विवाद उत्पन्न होता है वहाँ से आउट हो जाओ। कोई मतलब नहीं वहाँ हमें जाना ही नहीं। जहाँ से उलझन हो वहाँ से आउट होने में ही लाभ है। लेकिन जो हमारे भीतर है उसे हम जब तक आउट ना करें तो भी मजा नहीं आएगा। जो मेरे भीतर की बुराइयाँ है उन्हें बाहर निकलना ही पड़ेगा, आउट कीजिए। अगर आपने अपने भीतर की बुराइयों को आउट करोगे तो जिंदगी में कभी आउट नहीं होओगे, समझ गए। एक ही आउट के बड़े अर्थ हैं- आउट करना और आउट होना बहुत अंतर है। अपने जीवन की बुराइयों को आउट कीजिए, बाहर निकालिए। जिंदगी भर आप अपने जीवन को संभाले रखोगे। तुम्हारे जीवन के शांति और सलामती बनी रहेगी और यदि उन बुराइयों को तुम अपने भीतर रखोगे तो जीवन में कभी संभल नहीं पाओगे, आउट करें।
किनको आउट करें? बहुत महत्वपूर्ण बात है।
नंबर वन- ऑब्जेक्शन (Objection) नहीं करें। ऑब्जेक्शन- आपत्ती हमें किसी से कुछ नहीं करना। ऑब्जेक्शन को आउट करो। ऑब्जेक्शन को अपने अंदर से निकालो और जहाँ ऑब्जेक्शन हो वहाँ से भी आउट हो जाओ, उलझो मत। ऑब्जेक्शन को आउट करो और जहाँ ऑब्जेक्शन हो वहाँ से आउट हो जाओ। तुम लोगों की दशा क्या है? जहाँ ऑब्जेक्शन है वहाँ ही ज्यादा घुसोगे। निषेध में जिज्ञासा, जिस बात के लिए मना किया जाए वही कर्म करते हो। वही काम करते हो तो उलझते हो। मजा ही उसमें आता है जो आम लोगों के लिए है उसमें जाने में मजा नहीं, जो खास हो वहाँ जाने में मजा है। संत कहते हैं- नहीं! किसी को ऑब्जेक्ट नहीं कीजिए, आपत्ति मत कीजिए। जहाँ आपत्ति हो वहाँ से बाहर हो जाइए।
नंबर दो- जो ऑकवर्ड (awkward) है उससे आउट हो जाइए। ऑकवर्ड किसको बोलते हैं- बेढंगा, बेमतलब की चीज। बिना काम की बातें, फिजूल की बातों से बाहर निकल जाइए, आउट हो जाइए। आप लोगों को तो उसी में मजा आता है। और देखिए! कैसे फिजूल की बातों में लोगों का जी उलझता है।
एक आदमी था। रोज अपने ओटे पर बैठकर दातुन करता था। दातुन करता तो संयोग से उसी समय एक सांड आता और उसके दो सींग बड़े ही सुंदर आर्च का आकार लिए। बहुत सुंदर आर्च का आकार लिए हुए ऐसा बिल्कुल जैसे ऊपर सिरे से एक दूसरे से जुड़ा हुआ हो। एक दिन उस व्यक्ति के मन में ख्याल आया मैं इस सांड के सींग में अपनी गर्दन को घुसाउँगा तो घुसेगी की नहीं? सांड के सींग में मेरी गर्दन घुसाउँगा तो घुसेगी की नहीं? अब रोज समय पर दातुन करना और उसी समय सांड का आना और दिमाग में कीड़ा काटना। सांड के सींग में मेरी गर्दन घुसाउँगा तो घुसेगी की नहीं, सींग में मेरी गर्दन घुसाउँगा तो घुसेगी की नहीं, सींग में मेरी गर्दन घुसाउँगा तो घुसेगी की नहीं। घंटों बीतता यही सोचता। दिन बीत गए,यही क्रम चलता रहा। एक दिन उसने सोचा बहुत झंझट हो गई, खूब झंझट हो गई, क्यों ना एक दिन प्रयोग करके देख लिया जाए। और जैसे ही सांड आया उसने उसके सींग में अपनी गर्दन को घुसाया। फिर उसका क्या हुआ होगा आपको पता है, कहने की जरूरत नहीं।
पर बंधुओ! उस व्यक्ति पर तो तुम्हें हंसी आ रही है, थोड़ा अपने मन से तो पूछो तुम कितनी बार सांड के सींग में अपनी गर्दन घुसा आते हो, बोलो? बिना मतलब की बातों में रुचि लेना सांड के सींग में अपना गर्दन घुसाना जैसा ही है। जो ऑकवर्ड है उस से बाहर हो जाइए। अपनी पोजीशन को भी ऑकवर्ड ना बनने दे। साफ-सुथरा, व्यवस्थित रहिए, आनंद आएगा।
ओब्स्टेकल (Obstacle) से आउट होइए। ओब्स्टेकल मतलब- अवरोध, अपने द्वारा कभी किसी के लिए कोई गतिरोध ना पैदा करें। गतिरोध ना उत्पन्न करें, किसी के लिए बाधा और रुकावट ना बने और अपने सामने कोई बाधा रुकावट आए तो उसे दूर करें। ओब्स्टेकल को आउट करिए उससे दूर कीजिए। बाधाओं को पार करोगे तभी मंजिल तक पहुंच पाओगे। कभी किसी के लिए बाधा मत बनो और सामने आने वाली बाधा को कभी नजरअंदाज मत करो। उस बाधा को दूर करने का साहस और संकल्प मन में जगाओ। जीवन आगे बढ़ेगा, तो हमें आउट करना है? किसको आउट करना है-आउट करना है ऑब्जेक्शन को, आउट करना है ऑकवर्ड को, आउट करना है ओब्स्टेकल को। और आउट करना है ओफैंस को। ऑफेन्स का मतलब अत्याचार, दमन, पीड़ा देना ,सतना , कष्ट करना, निर्दयता अपनाना। जिसको पूरी तरह आउट कर दो। कभी किसी पर अत्याचार मत करो। कभी किसी को मत सताओ। अपने अंदर की इस प्रवृत्ति को बाहर निकालो और कोई तुम पर अत्याचार करें तो उसको भी तुम आउट करो। जीवन तभी सफल होगा। अत्याचार करो मत, अत्याचार सहो मत, समझ गए।
तो क्या हो गया ऑफ, ऑन, आउट और तीनो काम कर दिए तो ओवर (Over).
ओवर का मतलब, ओवर का मतलब क्या होता है? ओवर का मतलब- काम ओवर, काम खत्म, मेरा काम खत्म, प्रवचन भी ओवर, मेरा काम खत्म। आप बोलेंगे- महाराज जी! ऐसा मत कीजिए। ओवर यानि परिपूर्णता। अगर यह तीनों चीजें आ गई तो जीवन में परिपूर्णता आएगी। जीवन को परिपूर्ण बनाना है तो इन बातों का ध्यान रखना ही पड़ेगा लेकिन ओवर का एक दूसरा भी अर्थ होता है ओवर यानी जीवन में अति आ जाना, अति। मैं आप से कहता हूँ अपने जीवन को परिपूर्ण बनाना चाहते हो तो चार अतियों से बचो। छोटी- छोटी बातें हैं, लेकिन यह है हमारे बड़े काम की।
चार अति- नंबर वन- ओवरलोड (Overload). ओवरलोड मतलब- अति भार अपने ऊपर ना लादे, औरों के ऊपर भी ना लादें। आज के समय में सब लोग ओवरलोडेड हैं और जब ओवरलोड होता है तो क्या होता है? आपकी डिवाइस हैंग हो जाती है, होती है ना। क्यों हैंग हुई? क्योंकि उसके ऊपर ओवरलोड है। तो जब एक जड़ वस्तु को ओवरलोड करने पर वह हैंग होती है तो अपनी चेतना पर ओवरलोड डालोगे तो दिमाग हैंग होगा कि नहीं होगा । बताओ! वहाँ जब ओवरलोड होता है तो तुरंत फालतू चीजों को तुम डिलीट करते हो क्योंकि फंक्शन नहीं कर पा रहा है, सारा काम कर रुक रहा है। एक मिनट की भी देर नहीं करते हो। नोटिस आया ओवर लोड हो रहा है तो इमिडिएटली हटाओ, इसको हटाओ। एडवाइज आती है और आप उसको उसी पल हटा देते हो। अरे भैया! जो रोज हम तुम लोगों को नोटिस देते हैं, एडवाइज देते हैं, बहुत ओवरलोड हो चुके हो, कुछ वजन कम करो, कुछ वजन कम करो, कुछ भार हल्का करो, तुम लोगों को समझ में क्यों नहीं आता है? क्यों समझ में नहीं आता है? यह ओवरलोड क्यों? उसे कम कीजिए, उसे घटाइए, ओवरलोड से बचें।
दूसरी बात- ओवर ड्यूटी (Over Duty) से बचें। ओवर ड्यूटी में लगे हैं, सब मशीन बने हुए है। व्यापार-धंधे में आजकल आदमी पूरी तरह निचोड़ रहा है, क्यों? भागदौड़ है, 8 घंटे की जगह 16 घंटा काम कर रहे हैं लोग। अरे भैया! तुम आदमी हो मशीन नहीं। एक मशीन को भी ज्यादा देर तक यूज़ करो तो मशीन गर्म हो जाती है, आपको मशीन को भी रेस्ट देना पड़ता है। तो फिर यह इंसान है, इंसानी जीवन है, यह ओवर ड्यूटी क्यों? यह अतिरिक्त भागम-भाग क्यों? यह आपाधापी क्यों? यह भाग-दौड़ क्यों-किसके लिए? विचार करो। ओवर ड्यूटी करोगे तो कभी शांत नहीं रह पाओगे। जीवन कभी सुखी नहीं बन पाएगा, इसलिए ओवर ड्यूटी से बचें।
और नंबर तीन- ओवर एस्टीमेट (Over estimate)। इसका मतलब ताकत से ज्यादा काम मत कीजिए। आजकल सब के साथ यही हाल है, सब कर्जा लेकर घी पी रहे हैं। वह ओवर एस्टीमेट काम कर रहे हैं। हमारे यहाँ एक ग्रंथ है- ‘नीति वाक्य अमृतम’ आचार्य सोमदेव सूरी का। उस ग्रंथ में अनेक प्रकार की नीतियाँ है- अर्थनीति भी है। धर्म अर्थ, काम, मोक्ष चारों के विषय में बातें हैं। उसमें मैनेजमेंट की बहुत सारी बातें हैं। उसमें से आप लोगों के काम की बात आपको बता रहा हूँ।
बिजनेस के संदर्भ में उसमें तीन बातों से बचने की प्रेरणा दी है। उसमें लिखा है कि कभी ओवर एस्टीमेट बिजनेस मत करो। जितनी चादर उतना पाँव । गाँठ के पैसे से नुकसान हो जाए तो रात की नींद नहीं उड़ेगी पर बाजार के पैसे में नुकसान हो जाए तो होश जाएंगे खो बैठोगे। पार्टियाँ फेल क्यों होती है? ओवर एस्टीमेट, ताकत है एक करोड़ की और दस करोड़ की इंडस्ट्री लगा दी। बैंक से लोन ले लिया और कोई टेक्निकल प्रॉब्लम आ गई, व्यापार चला नहीं तो NPI क्या हुआ? गए काम से। टेंशन वह तो मीटर घूमेगा। मेरे संपर्क में ऐसे कई लोग हैं जो लोग इस ओवर एस्टीमेट के चक्कर में कभी वह अरबपति थे, आज एकदम जमीन पर आ गए। छः सौ-पाँच सौ करोड़ की हैसियत, बैंकों से पैसा उठा लिया। 500 करोड़- 700 करोड़- हजार करोड़, यह काम करो और वह काम करो और यह काम करो। काम करने का मन था, प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाया गया। सारे कंसल्टेंट ने सब्जबाग दिखाएं कि ऐसा कर लेंगे, ऐसा हो जाएगा, सारी योजनाएं टाय-टाय फिश हो गई । और इतने ब्याज का भार ही पहाड़ बन गया। कह रहे हैं विजय माल्या, उसका तो नाम लेना ही पाप है उसने तो सारे देश का कबाड़ा कर दिया।
तो ओवर एस्टीमेट कभी मत करना। आप खुद अपनी संतान को यह सीख दो। मुझे मालूम पड़ा कि जब छत्तीसगढ़ अलग हुआ, अलग से बना, रायपुर राजधानी बनी। तो रायपुर में एक साल में एक हजार ओडिसी और मर्सिडीज कारें बिकी। एक साल में पहले साल में कार लेने वाले ज्यादातर यंगस्टर और उसी साल वहाँ पर बहत्तर लोगों ने सुसाइड किया और वह सुसाइड करने वाले उन्हीं कारों में घूमते थे, ऐसा मुझे किसी ने एक रिपोर्ट दिया। मतलब क्या है? सब भविष्य की कल्पनाओं को देखते हुए बाजार से रुपया उठा-उठाकर काम करना शुरू किया, शुरुआत में अच्छा लगा और गए, सो गए। सारे रियल स्टेट वालों का क्या हाल है? वह भी सब रो रहे हैं। बाजार से पैसा उठा-उठाकर पैसा जमीनों में फंसा दिया। अब बाजार के भाव गिर गए पर ब्याज का मीटर चल रहा है। अरे भाई! कम कमा कर संतुष्ट करो पर ज्यादा पाने के लालच में अपनी रात की नींद तो मत उड़ाओ। कभी ओवर एस्टीमेट, कुछ मत करो।
तो ओवर लोड, ओवर ड्यूटी, ओवर एस्टीमेट और नंबर चार ओवर कॉन्फिडेंस (Over Confidence)। यह सबसे ज्यादा खतरनाक है। ओवर कॉन्फिडेंस से भी कई लोग मरते हैं। कॉन्फिडेंस एक अच्छाई है पर ओवर कॉन्फिडेंस हमारे जीवन का अभिशाप है। कोई भी काम आप अति विश्वासी बनकर मत कीजिए। आत्मविश्वासी होना अच्छी बात है पर अति आत्मविश्वासी होना मनुष्य को उन्मादी बना देता है। उत्साह और आत्मविश्वास जीवन का एक अभिन्न अंग है लेकिन जब वह अति में बदल जाता है तो उन्माद का रूप धारण कर लेता है और वह मनुष्य को दु:खी बनाता है। अपने जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं तो एकदम तय करो ओवर कॉन्फिडेंस नहीं। हाँ कॉन्फिडेंस लूज भी नहीं करो। दोनों तरह के लोग ज्यादा मिलते हैं, एक तो है जिनका कॉन्फिडेंस जीरो हो जाता है और एक वह जो अपने आप को इतना तीस मार ख़ाँ समझते हैं, अपने आप के सामने किसी को गिनते ही नहीं है।
ओवर कॉन्फिडेंस यह दोनों चीजें हमारे लिए ठीक नहीं है इसलिए ओवर को समझिए इस प्रकार से कोई भी बात को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। यह सब ओवर है और इन सब बातों को ध्यान में रखेंगे तो हमारा जीवन धन्य होगा। हम अपने जीवन को सुखी बनाए, संपन्न बनाए, ऑफ करना, ऑन करना सीख ले, आउट करना सीख ले, ओवर पूरा हो जाएगा और फिर जीवन में जो होगा वह ओके होगा। ओके! ठीक है, तो ओके कर दूं। आप सब लोगों को मेरी बात ओके है कि नहीं। आज अपनी बात को मैं समझता हूँ एक अलग दिशा मिलती है।
शब्द छोटे हैं पर अर्थ गहरे हैं। छोटी-छोटी बातों से भी हम जीवन में गहरे अर्थ को प्रकट कर सकते हैं। हम उन अर्थों को प्रकट करना सीखें और जीवन को उसी अनुरूप आगे बढ़ाने की कोशिश करें। भगवान से यही प्रार्थना करते हैं आप सब हमेशा ओके बने रहें, आपका सब काम ओके रहे, इसलिए मैं यहीं पर विराम लूंगा।
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