Letter Q- क्वेश्चन, क्यु, कब, क्वालिटी

261 261 admin

Letter Q- क्वेश्चन, क्यु, कब, क्वालिटी

जब कभी हम अपने जीवन में झांककर देखते हैं तो हमे दिखता है कि हमें अच्छा शरीर मिला, अच्छा परिवार मिला, अच्छी बुद्धि मिली, अच्छे संस्कार मिले, अच्छा स्वास्थ्य मिला, धन-सम्पन्नता मिली। अपने अतिरिक्त जब औरों को देखते हैं, तो बहुत से ऐसे लोग भी दिखाई पड़ते हैं, जिनके पास कुछ भी अच्छा नहीं है। शरीर है तो वो रुग्ण है, स्वास्थ्य ठीक नहीं है, बुद्धि अच्छी नहीं है, किसी के माँ-बाप नहीं हैं, किसी को धन संपन्नता नहीं है, धनाभाव है, किसी के पास कुछ और परेशानी तो किसी के पास कुछ और परेशानी। बहुत सारे मनुष्य ऐसे भी देखने को मिलते हैं, जो हैं तो मनुष्य की तरह लेकिन जीवन पशुओं से भी बदतर है। न खाने को अन्न, न पहनने को कपड़े, न रहने को-सिर छुपाने को छत, कुछ भी नहीं। जब कभी ऐसे लोगों के प्रति दृष्टि जाती है, मन में कभी ऐसा सवाल उठा- ‘मुझे ये सब क्यों मिला और उन्हें ये सब क्यों नहीं मिला?’ कभी यह सवाल मन में आया? मुझे क्यों मिला?

आज अल्फाबेट का कौन सा लैटर है? Q यानी क्वेश्चन (Question). 

Question करो अपने आप से। मुझे ये क्यों मिला? क्वेश्चन कभी उठा? क्वेश्चन तो बहुत उठता है महाराज! औरों से पूछते हैं। रोज़ आप लोग हमसे पूछते हैं, तरह-तरह से क्वेश्चन ढूंढते हैं। ध्यान रखना, अगर अपने मन में उत्पन्न होने वाले सवाल को किसी और से पूछोगे, तो केवल जानकारी बढ़ेगी और अपने मन से उत्पन्न होने वाले सवाल को खुद में ढूंढोगे, तो ज्ञान मिलेगा। जानकारी बहुत बड़ी चीज नहीं है, ज्ञान वास्तविक चीज है। ज्ञान हमें सावधान करता है और उसी में समाधान मिलता है। सावधान होओगे, तब समाधान मिलेगा। अपने मन से ये सवाल पूछो। कभी तुम्हारे मन में ये सवाल उठा कि मुझे ये सब क्यों मिला? हाँ, ये सवाल तो बहुत उठा होगा- मुझे ये क्यों नही मिला? भगवन! मुझे आपने सुंदर बनाया पर उतना सुंदर क्यों नही बनाया? मुझे आपने शक्ति दी पर उस जैसी शक्ति क्यों नही दी? मुझे परिवार दिया वैसा परिवार क्यों नहीं दिया? मुझे पैसे दिए पर उतना पैसा क्यों नहीं दिया? जितने भी लोग हैं वह भगवान के दरबार मे गए भी हों, सब शिकायतें लेकर के गए होंगे। हे भगवान! ऐसा क्यों नही, ऐसा क्यों नही? ऐसा क्यों नही? कभी भगवान के चरणों में जाकर के इस बात का धन्यवाद प्रकट किया- हे भगवन! आपने जो मुझे दिया, मैं तो उसके भी लायक नहीं था। बहुत-बहुत आभारी, आपने मुझे खूब दिया, जो मिला वो बहुत मिला, मेरी योग्यता से ज्यादा मिला। कभी ऐसी सोच? विरले लोगों में होती है। सारे लोग सारी जिंदगी शिकायतें करते जीतें हैं। दृष्टि में केवल अभाव और अल्पता आती है। इसी कारण संसार मे भटकते हैं।

सवाल बहुत महत्वपूर्ण है- ‘मुझे जो मिला, वो क्यों मिला’? बोलो, क्यों मिला? इसके पीछे का कोई बैकग्राउंड है? बिना कारण के कार्य नहीं होता, ये शाश्वत नियम है। तो आज मैंने जो कुछ भी पाया है, वो क्यों पाया, पहला सवाल अपने मन से पूछो। जिस पल ये सवाल मन में उत्पन्न होगा, अंदर से तुम्हें इसका समाधान मिलेगा, जीवन का रंग-ढंग बदल जाएगा। बहुत कम लोग हैं जो ये सोचते हैं- क्यों मिला? वो तो सोचते हैं- जो मिला है, उसका मज़ा लो। संत कहते हैं- ‘मज़ा लो, ये बाद की बात है, पर पहले यह तो समझो कि मिला क्यों’? क्यों मिला? आप लोगों से पूछता हूँ- फोकट में मिला? किसी की कृपा से मिला? कैसे मिला? क्यों मिला? कुछ पता है?

आज तुम्हे कितनी फैसिलिटीज हैं। सब चीजें तुम्हारे पास हैं। तुम्हारे जीवन के लिए जो आवश्यक है, वो सब मिला है और जितना मिला है, वो कम नहीं मिला है। क्यों मिला? तुम्हारे सुकृत से मिला, तुम्हारे पुण्य से मिला। पुण्य से मिला, तुमने कुछ अच्छा किया, इसलिए ये अच्छा रिजल्ट मिला। अगर देखा जाए तो इसे दूसरे शब्दों में कहें कि तुम्हारा पुराना परफॉर्मेंस अच्छा था इसलिए जो कुछ मिला है बहुत अच्छा मिला है। कभी यह बात मन में बैठती है कि मेरे जीवन में प्रकट सारे अनुकूल संयोग मेरे पिछले पुण्यों का परिणाम है। बोलो, ऐसे तो नहीं मिला। सड़क चलते तुम्हें कोई लूला-लंगड़ा दिखाई पड़ता है, काना-कुबड़ा दिखाई पड़ता है, अंधा-बहरा दिखाई पड़ता है। उसके ऊपर नजर जाए और सोचो- अगर इसकी जगह मैं होता तो मेरा क्या होता? कभी सोचा है? किसी दीन-हीन भिखारी को तुमने देखा और उसकी तरफ दृष्टि पड़ने के बाद कभी तुम्हारे मन में आया कि इसकी जगह मैं होता तो मेरा क्या होता? किसी रोगी और पीड़ित को देखा और कभी सोचा कि इसकी जगह मैं होता तो मेरा क्या होता? किसी अनाथ और अनाश्रित को देखा और सोचा कि इसकी जगह मैं होता तो मेरा क्या होता? साथ चलते बहुत सारे ऐसे लोग दिखेंगे जिनको देख करके तुम बहुत अच्छा स्वाध्याय भी कर सकते हो। उनकी जगह आज मैं हूँ , मैं बिल्कुल अलग उनसे बिल्कुल अलग। मेरे जीवन में वो सब कुछ नहीं है, इनके जीवन में ये सब है। आखिर क्यों? क्यों? इसका उत्तर तलाशिए।

अपने आपसे ये क्वेश्चन कीजिए। मुझे ये सब मिला, तो क्यों मिला? क्या जवाब है? बोलो भाई! क्यों मिला? तो इतने दबे-दबे आवाज में क्यों बोल रहे हो? थोड़ा दम से बोलो। कोई चोरी से थोड़ी मिला है। महाराज! पुण्य से मिला है, ऐसा बोलो। निश्चित कुछ अच्छा किया है और उसका ये अच्छा परिणाम हमारे साथ जुड़ा है। इसमें कोई संशय नहीं है। पर मैं आपसे केवल इतना पूछना चाहता हूँ- दबी जबान में आप ये तो कह रहे हो कि पुण्य से मिला है तो जिस पुण्य ने इतना सब कुछ तुम्हारे लिए अनुकूलताएं दी है उस पुण्य की रक्षा का तुम्हारे मन में कभी भाव आता है? पुण्य की रक्षा का मनोभाव तुम्हारे अंदर जगा, जिसकी बदौलत मुझे ये सब कुछ मिला उसकी तरफ तुम्हारी क्या दृष्टि है? मिल गया सो मिल गया। ठीक? तो तुम्हारा कोई ऐसा एग्रीमेंट है क्या कि सौ-पचास जन्म तक ये सब मिलता रहेगा? क्या कोई एग्रीमेंट कर रखा है? फिर आगे? आगे का क्या है?

कोरल काव्य में लिखा है- अरे! तुम उन कहारों को देखो, अरे! तुम उन कहारों को देखो, जो किसी की डोली उठा रहा है और उसे देखो जो उस पर सवार है और समझ लो पुण्य की क्या महिमा है? एक कहार बनकर ढो रहा है और दूसरा सवार बनकर ढोया जा रहा है। ढोने वाला भी इंसान और जिसे ढोया जा रहा है वह भी इंसान।

कभी कोलकाता गए हो तो वहाँ बड़ा बाजार में तुम्हें एक अलग रिक्शा मिलेगा, उसको बोलते हैं इक्का। इक्का आदमी चलाता है जानवर की तरह आदमी झुकता है। हैं ना? एक आदमी इक्का चला रहा है और एक आदमी इक्का पर सवार होकर चल रहा है। आखिर ये सब क्यों? ये सवाल ही मनुष्य को आस्तिक बनाता है। इसी सवाल से उसको पुण्य और पाप के फल का बोध होता है और जिस मनुष्य के अन्दर पुण्य-पाप के फल का बोध जगता है, सच्चे अर्थों में वही भवभीरु बनता है, वही अपने जीवन को आगे निर्मल बना सकता है। तो पुण्य-पाप का बोध होना चाहिए, भयभीरुता हमारे अन्दर आनी चाहिए। मनुष्य के जीवन की एक बड़ी दुर्बलता दिखाई पड़ती है- वह सब कुछ भोगना तो चाहता है, पर मूल की तरफ उसकी दृष्टि नहीं होती। मूल की तरफ अपनी दृष्टि दौडाईये, उस तरफ सोचना शुरु कीजिए ताकि हम अपने जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ा सकें। क्यों मिला? पुण्य से मिला। बैठ रही है ये बात दिमाग में? हां? क्यों मिला? थोड़ा जोर से बोलो। (लोग बोले पुण्य से मिला)। मानते हो पुण्य को? हां? चलो, पुण्य से मिला तो किसलिए मिला? दूसरा सवाल। चार बातें करना है। पुण्य से मिला, क्यों मिला? पहला सवाल का उत्तर आ गया- पुण्य से मिला।

दूसरा सवाल- किसलिए मिला? किसलिए मिला? पाप करने के लिए? लोग बोलते हैं- सदुपयोग करने के लिए। क्या करने के लिए-सदुपयोग और आप कर क्या रहे हो? क्या कर रहे हो, बोलो? हां? कोई आदमी जेल में हो और उसकी सी-आर(CR) को देखकर थोड़े समय के लिए पे-रोल(pay-roll) पर छोड़ दिया जाए और बाहर आकर के वो उपद्रव करना शुरू कर दे तो उसका क्या हाल होगा? हां? वापस जेल में जाएगा, फिर दोबारा कभी उसको बेल मिलेगी? बता दूं- हम सब जितने हैं, सब पे-रोल पर आए हुए हैं। सब पे-रोल पर आए हुए हैं। यहाँ उपद्रव करोगे तो ऐसी जगह जाओगे कि निकलना ही मुश्किल। बात समझ में आ रही है? किसलिए मिला? तुम्हे ये सारे शुभ-संयोग मिले हैं, योग मिला है, प्रयोग करो। कैसा प्रयोग करो? सदप्रयोग करो। आँखें मिली पर क्या कर रहे हो आँखों से? प्रभु के दर्शन! आँखें मिली, तो प्रभु का दर्शन करो। तुम क्या करते हो? आँखों से भगवान के दर्शन करते हो या रुपसियों को निहारते हो? किधर दृष्टि? कान मिला तो भगवान की वाणी सुनते हो या दुनियादारी की बातें। जिह्वा मिली तो उससे प्रभु का नाम जपते हो या लोगों को अंट-शंट बकते हो। जिह्वा मिली, अटर-शटर खाते हो या कुछ मीठा बोलते हो? शरीर है तुम्हारे पास बल है, शक्ति है तो इसका प्रयोग किसी की सेवा के लिए या किसी को सताने के लिए? धन है तो इसका प्रयोग औरो  के हित के लिए या अपने अभिमान की पुष्टि के लिए? सेवा के लिए या सुरा-सुंदरी के लिए? परमार्थ के लिए या पाप के लिए? अपने मन में यह सवाल करके देखिए कि क्या कर रहे हैं? मिला तो सब अच्छा पर अच्छा मिलने के बाद यदि अच्छा करो तो अच्छा मिलने का मज़ा है। अगर अच्छा ना करो, तो इस अच्छे का क्या मज़ा? जो अच्छा मिला उससे भी अच्छा करो। तो पुण्य से मिला, आपने एक्सेप्ट किया। किसके लिए मिला? पुण्य के लिए मिला कि पाप के लिए मिला और कर क्या रहे हो? हिसाब लगा लो 24 घंटे में कितनी देर पुण्य करते हो और पाप में कितना मगन रहते हो? ये क्वेश्चन अपने से करना, आज तो केवल क्वेश्चन मार्क है। क्यों है? क्वेश्चन मार्क कि कितने समय हम पुण्य करते हैं, कितने समय पाप करते हैं? हिसाब लगाओगे तो ज्यादातर समय पाप में ही खपता दिखता है।

अब बताओ- ऐसा करके क्या पाओगे? गड़बड़ाओगे की नहीं? ये बताओ, रामलाल ने आपको दस लाख रुपए दिए कि इसको अपने पास रखना और आपने रामलाल के रुपयों को श्यामलाल को दे दिया। अब रामलाल क्या करेगा? रामलाल से रुपए लेंगे तो आप रामलाल को ही देंगे कि श्यामलाल को? रामलाल के रुपए को रामलाल को दोगे कि श्यामलाल को? रामलाल से रूपए लेकर तुम कभी श्यामलाल को देने की गलती नहीं करते पर अपने भीतर झांककर देखो। तुम रामलाल का रुपया रामलाल को दे रहे हो या श्यामलाल को सौंप रहे हो? विचार कर लो।

तुम्हें पुण्य से सब कुछ प्राप्त हुआ और उसको तुम पाप में लगा आ रहे हो यानी रामलाल का माल श्यामलाल को दे रहे हो। और ऐसा करोगे तो रामलाल हमेशा को नाराज हो जाएगा। फिर अपनी कृपा कभी नहीं बरसाएगा। ज़िन्दगी भर दरिद्रता का अनुभव करना होगा। इसलिए पुण्य से उपार्जित संसाधनों का पुण्य में प्रयोग कीजिए पाप में कभी मत्त मत बनिये। सावधान होइये कि बुराई में मेरा एक पाई न जाए और अच्छाई में पूरा हृदय खोल दीजिए। कोशिश कीजिए। लोगों की मानसिकता बड़ी विचित्र होती है, अच्छे कार्य के लिए तो उसे बार-बार उत्साहित करना पड़ता है और बुरे कामों के लिए पहले से मन तैयार रहता है। पुण्य के कार्य में रुपया लगाते समय आदमी सौ-सौ बार सोचता है और पाप के कार्य में लगाने के लिए आँख मूंदकर करता है। क्या है टेंडेंसी (tendency)?

किसलिए मिला? दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं- एक वे जो पुण्य से प्राप्त संसाधनों का सदुपयोग कर सद्गति के पात्र होते हैं, सारी मानवता के आदर्श बनते हैं और दूसरे वे जो पुण्य से प्राप्त संयोगों का दुरुपयोग करते हैं, मानव जाति का कलंक बन जाते हैं, दुर्गति के पात्र बनते हैं।

हमारे सामने दो आदर्श हैं- एक श्री राम, एक भरत चक्रवर्ती और एक रावण। भरत चक्रवर्ती और रावण दोनों ने वैभव पाया। भरत चक्रवर्ती ने वैभव पाया तो सोने का मंदिर बनाया कैलाश पर्वत पर और रावण ने वैभव पाया तो सोने की लंका बनाई। बात समझ में आ रही है? भरत ने सोना पाया, वैभव पाया तो सोने का मंदिर बनाया और रावण ने सोना पाया तो सोने की लंका बनाई। नतीजा क्या निकला? भरत का वैभव आज भी सुरक्षित है, भरत के नाम से ही भारत का नाम पड़ा और सोने की लंका धू-धू के जल उठी वो किसी काम की नहीं है। हमें नसीहत लेने के लिए ये उदाहरण पर्याप्त है। जो अपने संसाधनों का सदप्रयोग करता है, वो अजर-अमर हो जाता है और जो उनका मिसयूज़ करता है वो बर्बाद हो जाता है। तुम्हें तय करना है- मुझे आबाद रहना है या बर्बाद होना है। तुम्हें तय करना है। किसलिए? ये सवाल अपने मन से पूछो, ये सब मुझे किसलिए मिला और जिसके लिए मिला वही कार्य करो। पुण्य से प्राप्त सारे संसाधनों का सदुपयोग करके आत्मा के कल्याण के पथ को अंगीकार करो, आत्मोद्धार के रास्ते पर चलो। कब पुण्य क्षीण हो जाएगा कोई पता नहीं चलेगा। दुनिया में बहुत बड़े-बड़े लोग हुए, जिन्होंने अपने पुण्य का दुरूपयोग किया, चाहे वह सद्दाम हुसैन के रूप में हो, चाहे वह ओसामा बिन लादेन के रुप में हो, चाहे वीरप्पन जैसे आतताई लोगों के रूप में हो। जब तक उनके पुण्य का जोर था, तब तक सब चलता रहा। पुण्य क्षीण हुआ, बेमौत मारे गए। तो किसी-किसी का यहीं सब हो जाता है खेल खत्म। किसी का थोड़ा आगे चलता है जिसकी जैसे बैलेंस शीट है। पर बंधुओं! मैं आपको कहता हूँ- आए हो तो भरकर के जाओ खाली होकर मत जाना। जितना लेकर आए हो उससे अधिक लेकर के जाने की तैयारी करो तब तो तुम्हारी उपलब्धि है। और लेकर आए और सब गवाँ दिए तो कंगाली तो तुम्हारे साथ जुड़ी ही रहेगी।

एक पिता के 3 पुत्र थे। पिता ने तीनों को 50-50 हजार रुपए की पुंजी दी और कहा- तीनों के तीनों व्यापार करो। साल भर बाद मैं देखूंगा और तुम तीनों में से जिसका व्यापार सबसे अच्छा होगा, जो ज्यादा कमाएगा, उसको मैं अपना उत्तराधिकारी बना दूंगा। पहले ने सोचा- इतनी महंगाई के जमाने में पचास हजार से क्या होता है? उसने कहा- चलो, भाग्य आजमालो, उसने सट्टे पर पैसा लगा दिया। कहा- अगर चल गए तो भाग्य चमक जाएगा लेकिन सट्टा हार गया, दांव चूक गया तो पैसा पानी में गया। दूसरे ने सोचा- क्या करें? पिताजी ने कहा है तो चलो कैसे ही काम करो और पचास हजार रूपए में एक परचूनी की दुकान खोली। परचूनी की दुकान से जैसे-तैसे खींच तान के अपना काम चलाने लगा। तीसरा बहुत समझदार था। उसने पिता के पैसे को हाथ भी नहीं लगाया। पहले छ: महीना दूसरे की दुकान पर नौकरी की, अनुभव लिया, काम सिखा। उसके बाद पिता की गुड विल और अपने कौशल के बल पर उसने अपनी एक दुकान खोली। दुकान में लाखों करोड़ों का माल भर लिया और काम बहुत तेजी से चल पड़ा। साल पुरा हुआ तो पिता ने तीनों बेटों को बुलाया। पहले बेटे को बुलाया, वो मुँह लटकाए खड़ा था। बोला- पिताजी! क्या करूं? भाग्य ने साथ नहीं दिया, लगता है गलत मुहूर्त पर चला था। गलती खुद करेंगे और दोष मुहूर्त को देंगे। पिताजी बोले- क्या हुआ? बेटा बोला- मैंने सट्टे पर रुपया लगाया, दांव चूक गया। पिता ने कहा- तुने अनर्थ कर दिया, तूने अनर्थ कर दिया। दूसरे बेटे से पूछा- तेरी क्या स्थिति है? बस आपकी कृपा से खुशहाल हूँ। मेरे पैसों का क्या हुआ? बोला- पैसे, पूंजी सुरक्षित है। क्या किया? ये परचून की दुकान की। क्या कमाया? बेटा बोला- बस खींचतान के खाना पूरा। पिता ने कहा- तूने व्यर्थ कर दिया। तीसरे से पूछा- तुमने क्या किया? बोला- चलो, आप चल कर खुद दुकान देख लो। दुकान देखा तो लाखों का माल भरा पड़ा है। अनेक ग्राहक आए जा रहे हैं। अनेक कर्मचारी काम कर रहे हैं। बोले- ये कहाँ से ले आया? बोले- ये आपकी दुकान है। तेरी दुकान? ये दुकान कैसे हो गई? बोले- बस, आपकी कृपा से। बोले- पचास हजार में इतनी दुकान कैसे कर लिए? बोले- भले ही आपने रुपए पचास हजार दिए थे, पर आपकी गुडविल तो पचास करोड़ से बड़ी थी तो  मैंने आपकी गुडविल का प्रयोग किया। मैंने आपकी गुडविल का प्रयोग किया और आपने जो पचास हजार दिए थे साल भर में मैंने आपके आशीर्वाद से पाँच लाख की अपनी पूंजी बना ली। ये इतनी कमाई है कि दिन दुगनी रात चौगनी आगे बढ़ेगी। पिता ने तीसरे बेटे को अपनी छाती से लगा लिया और कहा- आ बेटे! आ, मुझे तुझ से ही ऐसी अपेक्षा थी। छाती से लगा दिया। मैं आपसे पूछता हूँ- अगर तुम्हारे तीन बेटे हों, तो तुम किसको पसंद करोगे? पहले वाले से तो बात करना भी पसंद नहीं करोगे। किसको चुनोगे? तीसरे को चुनोगे ना? तो

संत कहते हैं- तुम इस दुनिया में आए हो, हर प्राणी बराबरी का पूंजी लेकर के आया है लेकिन ज्यादातर लोग अपनी इस जिंदगी की पूंजी को विषयों के दांव पर लगा देते हैं। कुछ लोग हैं, जो खींच-तान के अपने जीवन का गुजारा करते हैं और इस दुनिया से जाते हैं। खाली होकर के जाते हैं। बहुत विरल लोग हैं, जो जितना लेकर आते हैं, उससे कई गुना उपार्जित करके जाते हैं। आए हो, कमाई करो, उपार्जित करके जाओ, कुछ लेकर के जाओ, अर्न (earn) करो, उपार्जन करो। अच्छे कार्यों में अपने संसाधनों को तुम जितना अधिक लगाओगे, तुम्हे उतना अधिक उपार्जित होगा। तो किसलिए मिला? किसलिए मिला? जोर से तो बोलो। हां, लगे तो आप लोग सुन रहे हो, टेस्टिंग होते रहना चाहिए। पुण्य के लिए मिला, अच्छा करने के लिए मिला।

नंबर तीन- कितने दिन के लिए मिला? यह और बता दो, कब तक के लिए मिला? है ठिकाना? बोलो। जो चीजें मेरे पास हैं, गारंटी ले सकते हो पूरी जिंदगी के लिए मुझे मिला? कब तक के लिए मिला? बोलो, कह सकते हो? वाह! मिल गया महाराज, पैसा कमा लिए, पड़ा है, जिंदगी भर तक तो चलेगा। मेरे बाल बच्चों तक की व्यवस्था मैंने कर रखी है। दो चार पीढ़ी की व्यवस्था? कोई गारंटी? किसी की एक-आध, कोई ऐसा इस संसार में हो, जो ये कहे कि नहीं, मेरे लिए मेरे दो चार पीढ़ियों की व्यवस्था मुझे मिल गई। कोई हिसाब नही। नही मिला ना? इस जीवन के लिए? इसका भी कोई ठिकाना! जो चीजें तुम्हारे पास हैं, वो पूरे जीवन बना रहे। जैसा आज तुम्हारा स्वास्थ्य है, कल वैसा बना रहे, है इसकी सुनिश्चितता? जितनी आज तुम्हारे पास संपत्ति है, कल भी वैसी संपत्ति बनी रहे, वो है व्यवस्था? आज जैसा परिवार है, कल तुम्हारा परिवार वैसा ही बना रहे, है ऐसी व्यवस्था? आज तुम्हारे पास जितनी शक्ति है, कल भी उतनी ताकत बनी रहे, है ऐसी व्यवस्था? आज जितना प्रभाव है, कल भी उतना प्रभाव बना रहे, है ऐसा प्रबंध? क्या हो गया? ये क्यों नाड़ हिला रहे हैं? पता है कि ये सब कल नहीं होने वाला। ये पूरी तरह पता है  कि जो आज है, वो कल नहीं रहने वाला। पता है कि नहीं?- पहले ये और बता दो। हां? थोड़ा जोर से। पता है, हैं ना? ताकि देशभर के लोगों को मालूम पड़े कि लोग सुन रहे हैं। पता है, फिर इतना अभिमान क्यों? फिर इतनी आसक्ति क्यों? बोलो। जब तुम्हें पता है कि इसमें कुछ भी टिकाऊ नहीं है, पल दो पल का भरोसा नही है, आज है; कल रहे ना रहे इसका कोई भरोसा नहीं, तो फिर किसका अभिमान?

आगाह अपनी मौत से, कोई बसर नहीं।

सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं।

अभी तो आपको पूरी खबर है कि यहाँ से जाकर क्या-क्या करना है। कहने को कह रहे हो- पल की खबर नहीं। जिस पल ये संवेदना जागृत हो जाएगी, उसी पल जीवन बदल जाएगा। कितनी देर के लिए मिला है? सब क्षणभंगुर है, नश्वर है, आज है; कल रहे ना रहे। तो क्यों ना मैं इनका सदुपयोग करूं? इनके पीछे मैं क्यों उलझुं? जितनी देर है, उतनी देर इनका उपयोग करूं, उपभोग करूं नहीं तो एक दिन तो छूटना है।

एक व्यक्ति एक ऐसे राज्य में पहुंच गया, जहाँ उस दिन वहाँ के नए राजा के चुनाव का दिन था। और वहां राजा का चुनाव कोई मत डालकर के नही होता था, वहां हस्ती पटबंध से चुनाव होता था। हस्ती पटबंध का मतलब ये होता है कि हाथी को एक माला उसकी सूंड में दे दी जाए और हाथी अपनी माला जिसके गले में डाल दे, वो वहां का राजा। तो हस्ती पटबंध विधि से जैसे ही वो पहुंचा, उस दिन राजा के चुनाव का दिन था, हाथी को माला दी गई और हजारों लाखों की भीड़ में हाथी सीधे उसके गले में माला डाल दिया। जैसे ही गले में माला पड़ी, सब तरफ जय-जयकार हो गई और सब ने उसे अपने राजा के रूप में स्वीकार लिया। उसे भी एक पल को बड़ा आनंद आया हो। अहो भाग्य! कहाँ पहुंचा, आज तो मैं सीधे रंक से राजा बन गया। लेकिन अगले ही पल उसको साँप सूंघने लगा क्योंकि जब वहाँ का कानून पढ़कर के सुनाया गया कि यहाँ का कानून यह है कि जो भी राजा बनेगा, उसे 5 बरस के लिए राज्य मिलेगा और 5 बरस पूर्ण होते ही नगर की सीमा से बहती हुई नदी, जो मगरमच्छों और घड़ियालों से भरी है, उसमें छोड़ दिया जाएगा। इस पार नहीं आ सकता। घबरा गया। एक तरफ राज्य मिलने का सुख, तो दूसरी तरफ मरने का खतरा। पर तभी दिमाग से काम लिया, बोले- 5 बरस कोई थोड़ा समय नहीं है, बहुत है, देखते हैं। उसने राज-काज शुरू किया, बहुत अच्छा सुराज किया। उसने केवल गद्दी पर ही राज्य नहीं किया, जनता के हृदय में भी राज करने लगा। ऐसा राजा, लोग कहते हैं कि सैकड़ों वर्षों में ऐसा राजा कोई नहीं हुआ। जनता बड़ी खुशहाल, प्रसन्न। क्रम चलता रहा। जैसे-जैसे 5 वर्ष की अवधि पूरी होने को हुई, जनता के मन में चिंता बढ़ने लगी लेकिन राजा निश्चिंत। जनता इसलिए चिंतित थी कि अब हमें अपने प्राण प्रिय राजा को खोना पड़ेगा। पर सब के सब विवश थे क्योंकि सभी के सभी वहाँ के कानून से बंधे हुए थे। पूरी अवधि हुई, राजा को बताया गया। राजा ने कहा- मैं इस राज्य के कानून को जरुर स्वीकारूंगा। राजा ही नहीं स्वीकारेगा तो कौन स्वीकारेगा? मुझे शिरोधार है। आखिरी दिन राजा को हाथी पर बिठाकर नगर से विदाई दी गई। लाखों जनता अश्रुपूरित नेत्रों से राजा को अंतिम विदाई दे रही थी। नदी के तट पर हाथी रूका, राजा को हाथी से उतारा गया। राजपुरोहित ने वहां के कानून को पढ़कर के सुनाया और कहा- अब यहां के कानून के मुताबिक, आप इस पार नहीं आ सकते। आपको उस पार ही जाना होगा। राजा ने कहा- ठीक, मैं यहां के कानून का सम्मान करता हूँ, अब मैं इस पार नहीं उस पार ही जाऊंगा और लोग देखें, तो आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उस नदी पर सुंदर पुल बना हुआ था और उस पार नगर बसा हुआ था। वो पांव पैदल चलकर इस पार से उस पार चला गया और सुरक्षित हो गया।

कहानी अच्छी लगी आपको? लगी ना? ये कहानी किसकी है? तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी मिला है, 5 बरस के राज की भांति है। इस डुरेशन (duration) में उस पार जाने के लिए पुल बना लो तो सेफ हो, नहीं तो नरक और निगोध के मगरमच्छों और घड़ियालों के शिकार बनने से नहीं बच सकते। पुल बनाओ, नगर बसाओ। अच्छा करोगे तो सब कुछ अच्छा होगा, नहीं तो कब खेल खत्म हो जाए पता नहीं। लोग कहते हैं- अरे! देखो तो, अभी तो सब अच्छा था,अच्छा था, अचानक क्या हो गया? जो होता है, वो अचानक ही होता है। समझो। क्यों मिला? किसलिए मिला? कितने दिन के लिए मिला? कब तक के लिए मिला? यह सवाल अपने मन से बार-बार पूछो। क्यों मिला? किसलिए मिला? कब तक के लिए मिला?

और आखिरी सवाल- मेरा क्या है? बोलो, क्या है तुम्हारा? लिस्ट बनाओ। मेरा ये है- वो है थोड़ा बनाओ तो। असेसमेंट तो सब अपना करते ही रहते हैं। बोलो, जिन-जिन चीजों को तुमने अपना मान रखा है, उसमें से एक भी चीज ऐसी है, जिसे तुम अपनी कह सकते हो? बोलो, क्या है तुम्हारा? मैं ही पूछूं? ये बैंक बैलेंस तुम्हारा है? ये प्रॉपर्टी तुम्हारी है? ये गाड़ी-घोड़े तुम्हारे हैं? ये व्यापार धंधा तुम्हारा है? ये परिवार तुम्हारा है? ये शरीर तुम्हारा है? तो तुम्हारा क्या है? बोलो, क्या है तुम्हारा? क्या बोल रहे हैं? आत्मा तो दिखती है नहीं? उसका तो अता ही पता नहीं है। जिस पल ये सवाल तुम्हारे हृदय में गहराएगा, उसी क्षण भेद विज्ञान प्रकट होगा। मोक्षमार्ग में उहा बहुत बड़ा स्थान रखता है। उहा यानि प्रश्न, स्वयं से स्वयं का प्रश्न। दूसरों से पूछना बहुत सरल है, अपने आप के विषय में सोचना और सवाल खड़ा करना बहुत दुर्लभ है। और सवाल करो- ये सब क्या है? ये सब संयोग से मेरे पास है, ये सच है; पर मेरे नहीं, ये उससे भी बड़ा सच है। मेरे पास है, मेरे साथ है, ये सच है, पर मेरे नहीं, ये उससे बड़ा सच है। इस सच को पहचानो। मेरा कुछ भी नहीं है, ये तो केवल मेरे मन का वहम है, भ्रम है, जिसे मैंने अपना मान रखा, अपना बना रखा और संसार की दौड़ में दौड़ता जा रहा हूँ, दौड़ता जा रहा हूँ । एक दिन सब कुछ छोड़कर के चला जाऊंगा, हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा। इससे पहले कि मेरे जीवन की कहानी पूर्ण हो, मैं अपने जीवन को गति देना शुरू करूं, आगे बढ़ना शुरू करूं, बढ़ाना शुरू करूं। तब कहीं जाकर के मैं अपने जीवन में कोई सार्थक उपलब्धि घटित कर सकूंगा। क्या है मेरा? तो कहते हैं- ये जिसको आज तक अपना माना, वो सब तो पर है। मेरा क्या है? मेरा केवल ‘मैं’ हूँ।

अहमको खलुशुधो दशन नान मयी(43:20 )

सदरूपी परमाणु नहीं मत किंच भी अन्नम पर्मनुमित्तंपी

मैं एक शुद्ध अविनाशी, अजर-अमर आत्मतत्त्व हूँ। ज्ञान दर्शन स्वभावी हूँ।

नव्यात्ती मझ कुंचमी अन्नम पत्मनुमित्तमापी (43:41)

मुझसे भिन्न जगत का एक परमाणु बराबर भी पर द्रव्य मेरा नहीं है।

ये समझ अंदर विकसित हो जाए, सारी आसक्ति दूर हो जाएगी और आसक्ति गई, आकुलता ख़तम। आज एक भाई कह रहा था- पैसों की तृष्णा मिटती नहीं। हम उनसे कहते हैं- परमेश्वर को पहचानोगे तभी पैसा छूटेगा। अंदर का मूल्य जानोगे तो बाहर की चीजें मूल्यहीन लगने लगेगी। जिन्हें जड़ ही आकर्षित करता है, उसकी बुद्धिजड़ता क्रांत हो जाती है और जो अपनी चेतना को पहचान लेता है, वो सारे पापों की जड़ उखाड़ फेंकता है। जड़ उखाडिये, जन्मांतरों से जड़ जमाए हुए हैं। जागिए, चेतना को जगाइए। ये संसार है, सब लोग लगे हुए हैं। क्वेश्चन करिए, ये तौर बदलिए। समझ गए? तब जीवन में आगे आएगा।

चार Q की बात करनी है, अभी एक Q हुआ है। क्यों मिला? किसलिए मिला? कब तक के लिए मिला? और मेरा क्या है? ये 4 क्वेश्चन आपको पूछना है।

ये क्वेश्चन अगर अपने मन से पूछोगे, तो तुम्हारे जीवन की दिशा बदलेगी, नहीं तो तुम सब इसी संसार के queue में लगे रहोगे। Queue यानी? क्या? कहां लगे हो? Queue- जो व्यक्ति अपनी दिशा नही बदलता, वो इसी queue में लगा रहता है और जो दिशा बदल लेता, उसके आगे लोग queue लगाए रखते हैं। हैं ना? एक लाइन में लगा है, एक के पीछे लाइन लगी है। क्या चाहते हो? बोलो। एक लाइन में लगा है, एक के पीछे लाइन लगी है। क्यों? क्यों लगाती है लाइन, प्रभु-परमात्मा के चरणों में दुनिया? क्यों लगाती है लाइन, संत-महात्मा के पीछे दुनिया? केवल इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने आप को जाना है, पहचाना है और उनसे हमें वो प्रेरणा मिलती है, जो संसार में कहीं नहीं मिलती। तो भैया लाइन में लगे हो, लाइन बदलो, सही लाइन पे आओ। हम लोगों के आगे लाइन लगती है, हम आपको लाइन में लगा भी देते हैं। लगते हैं कि नहीं? लाइन में लगिए, सही लाइन पकड़िए। क्यों? लाइन बदलिए। सब संसार के queue में खड़े हैं। दिशा को बदलिएगा, तो इस लाइन से बाहर निकलिएगा, अपने जीवन का अंत अच्छा कर पाइएगा और जैसी हमारी दिशा बदली, हम queue से बाहर आएंगे, हमारे अंदर की क्वालिटी अपने आप प्रकट होने लगेगी, हमारे अंदर गुणात्मक परिवर्तन आएगा, हमारा सम्पूर्ण जीवन क्वालिटेटिव बन जाएगा।

गुणात्मक परिवर्तन, जो हमारे जीवन की वास्तविक उपलब्धि है, वो क्वालिटी हमारे भीतर घटित होनी चाहिए। उसे हम अपने अंदर डेवलप (develop) करें। बोलो, अपने अंदर की क्वालिटी को कभी देखा? आप ये बताओ- दुनिया में कोई भी चीज लेना चाहते हो, तो कैसा चाहते हो? अच्छी क्वालिटी कि घटिया क्वालिटी? आप तो कहते हैं- महाराज! टॉप क्वालिटी चाहिए। हैं ना? दो रूपए की चीज भी खरीदते हो, तो उसके पीछे उसकी क्वालिटी देखते हो, क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए। जड की क्वालिटी को तुम चौबीस घंटे ख्याल में लेते हो, अपनी क्वालिटी को सुधारने का कभी ख्याल आता है? मेरी क्वालिटी कैसी है? किस क्वालिटी के हो? कहीं कहते हैं- अरे! बहुत बढ़िया आदमी है। किसी को कहते हैं- बहुत घटिया आदमी है। आदमी तो आदमी होता है, बढ़िया-घटिया क्या? दो हाथ-पैर हमारे, दो हाथ-पैर उसके। दो आँखे हमारी, दो आँखे उसकी। दो कान हमारे, दो कान उसके। एक नाक हमारी, एक नाक उसकी। एक मुँह हमारा, एक मुँह उसका। कोई आगे पीछे हो गया क्या? आदमी बढ़िया और घटिया कहाँ से हो गया? क्या हुआ? आदमी बढ़िया बनता है, अपने गुणों से और आदमी घटिया बन जाता है, अपने दोषों और दुर्बलताओं से।

क्वालिटी अच्छी रखो, अपने अंदर गुणों का विकास करो, गुणात्मक परिवर्तन करो, तुम्हारा जीवन बढ़िया बन जाएगा। तुम्हारी क्वालिटी सुपर क्वालिटी हो जाएगी और यदि ऐसा नहीं किए, तो जीवन तो घटिया होना ही है। आप देखिए, हम बढ़िया हैं या घटिया? मैं तो मानता हूँ- यहां जितने हैं, सब बढ़िया लोग हैं, घटिया लोग नहीं हैं। घटिया लोग तो अपने घरों में बैठे रहते हैं। बढ़िया बनिए, अपने जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश कीजिए, तब काम होगा।

मुझसे एक बार एक युवक ने पूछा- महाराज! एक बढ़िया इंसान की क्या पहचान? हमने कहा- एक पिता अगर अपने आपको बढ़िया पिता बनाना चाहता है, तो कोई भी पिता बढ़िया पिता तब बन पाएगा, जब उसका बेटा कहे कि मैं अगले जन्म में, अगर मुझे पिता मिले तो आप ही मिलें। कोई माँ एक बढ़िया माँ तभी कहला सकेगी, जब उसका बेटा कहे कि माँ! अगले जन्म में तुम ही मेरी माँ मिले। कोई पति एक बढ़िया पति तभी बन पाएगा, जब उसकी पत्नी कहे कि अगले जन्म में पति मिले, तो ऐसा ही पति मिले। कोई अच्छी पत्नी, अच्छी पत्नी तभी कहला सकेगी, जब यह कहने को आए कि अगले जन्म में ऐसी ही पत्नी मिले। है ऐसी व्यवस्था? महाराज! अगले जन्म की बात तो छोड़ो, इसी जन्म में लोग छुटकारा पाना चाहते हैं।

एक बार एक महिला अपने पति से परेशान थी। पति से परेशान थी, उसने पेपर में ऐड निकाला- पति चाहिए। विज्ञापन दिया- पति चाहिए। दूसरे दिन उसकी सहेलियों ने उससे पूछा- तुमने ऐड दिया, कोई रिस्पॉन्स आया? बोले- ढेर सारे फोन आए, सैकड़ों फोन आए। बोले- अच्छा! किसके फोन आए? बोले- सब औरतों के। ढेर सारे फोन आए। बोले- किसके फोन आए? बोले- औरतों के फोन आए। क्या बोला? सबने कहा- मेरा पति ले लो, मेरा पति ले लो। कहानी ख़तम- ये क्वालिटी है।

एक बार कुछ कपल्स मेरे पास बैठे थे। प्रसंग चला, मैंने विनोद में ये कहा कि अच्छा! ये बताओ- आपमें से ऐसी कितनी हैं, जो यह कहेंगे कि अगले जन्म में मेरा पति यही मिले? करीब सात कपल थे मेरे पास। मैंने ऐसे ही पूछा कि आप में से कितनी ऐसी हैं, जो कहेंगी कि अगले जन्म में मेरा पति, यही मेरा पति हो। अगर मैं पत्नी बनुं, तो ऐसा ही पति मिले, ये ही मेरे पति मिले। आपको बताऊं- एक ने भी नहीं कहा, एक ने भी नहीं कहा। ये तुम्हारी क्वालिटी को दर्शाता है। अपनी क्वालिटी सुधारिए। तो क्वेश्चन कीजिएगा, तो queue में नहीं लगनी पड़ेगी, क्वालिटी सुधर जाएगी और जब क्वालिटी सुधर गई, तो आप पूरी तरह क्वालिफाइड हो जाओगे और जीवन धन्य हो जाएगा।

अपने आपको क्वालिफाइड करिए, fully क्वालिफाइड। अपनी योग्यता को पूरी तरह से प्रकटा लीजिए और अपने जीवन को धन्य कर लीजिए। समय आप सबका हो गया है, इसलिए यहीं पर विराम। आज Q की बात है, ये क्वेश्चन हमारे जीवन का बहुत महत्वपूर्ण अंग है और ये क्वेश्चन हमारे अंदर जुड़ेगा, तो हमारे अंदर न केवल समाधान मिलेगा, अपितु हम सावधान भी हो सकेंगे। सब सावधान हों, समाधान को प्राप्त कर सकें, इस मनोभाव के साथ, यहीं पर विराम।

Share

Leave a Reply