Letter X- एक्स-पार्टी, एक्स-रे, जीरोक्स, एक्स-विज़न

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Letter X- एक्स-पार्टी, एक्स-रे, जीरोक्स, एक्स-विज़न

अदालती प्रक्रियाओं में कभी-कभी कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं, जिसमें कोर्ट एक्स-पार्टी जजमेंट देती है। एक्स-पार्टी जजमेंट कब होता है? जब सामने वाला अपना वात प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित न हो और दूसरे पक्षकार के द्वारा कोई अर्जेंसी (urgency) प्रकट की जाए, तो वो उसे सुने बिना एक्स-पार्टी अपना जजमेंट दे देते हैं। और जो भी एक्स-पार्टी जजमेंट होता है, वो प्रतिवादी के विपक्ष में जाता है, वादी के पक्ष में जाता है। अदालत में ऐसी प्रक्रिया कभी-कभी होती है, किसी-किसी केस में होती है। लेकिन जब कभी हम अपने जीवन में झांककर देखते हैं, तो ऐसा लगता है- हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा है, वो सब एक्स-पार्टी हो रहा है। आपको पता है- हमारा एक बहुत पुराना वाद चल रहा है, बहुत पुराना केस (case) है और उसमें वादी हार रहा है, प्रतिवादी जीत रहा है और उस हार में हमारा सब कुछ लूट रहा है, मिट रहा है। और उसकी वजह कोई गैर नहीं, हम खुद हैं क्योंकि हम अपने केस को ठीक तरीके से डील नहीं कर रहे हैं, हमारा सारा जजमेंट एक्स-पार्टी हो रहा है।

आज अल्फाबेट का कौन-सा लेटर है? एक्स (X). आज बात मैं कर रहा हूँ एक्स-पार्टी से। सारा निर्णय, सारा डिसीजन। एक्स-पार्टी क्या है? जैसे किसी की बहुत बड़ी संपत्ति हो और खुली छोड़ दी जाए। कोई दूसरा उस पर काबिज हो जाए और काबिज होने के बाद चुपचाप वो अपने कागजात बनाकर सब चीजें लीगलाइज (legalise) कर ले और सामने वाले को पता ही ना हो, तो वो चीज उसकी होती है कि नहीं होती? हो जाती है। जब सामने वाला कोई है ही नहीं, कोई दावेदार खड़ा नहीं है, तो वो सब एक्स-पार्टी डिसीजन में उसके पक्ष में चली जाती है। होती है? प्रायः माफिया लोग ऐसे ही करते हैं। पर दुनिया में जितने भी माफिया हैं, वो थोड़े-बहुत जमीन के टुकड़ों के पीछे या थोड़ी-बहुत किसी सामग्री के पीछे ऐसा करते होंगे और उनका भी कभी अंत होता है। लेकिन एक ऐसा माफिया, जिसने हमारे सर्वस्व को लील लिया है, जिसने हमारे सारे गुण-वैभव को खंडित कर दिया है, जिसने हमारे अंदर की अक्षय निधियों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। यूं कहें- जिसने हमारा सब कुछ हड़प लिया है। आपने कभी उसे पहचानने की कोशिश की? कौन है वो और क्या लूटा है उसने? कभी सोचा है? शायद! नहीं सोचा होगा। चलो, सोचने की बात तो बाद में, कभी ऐसा महसूस किया कि मेरे पास कोई निधि है और उसे कोई लूट रहा है? मेरे पास कोई निधि है, उसे कोई लूट रहा है। महाराज जी! ऐसी कोई निधि दिखती नहीं और मेरी कोई ऐसी निधि मुझे नजर नहीं आती, जिसे कोई लूटे। अभी तो हम ही दुनिया का मज़ा लूट रहे हैं। संत कहते हैं- भैया! थोड़ा गहराई से देख- ये मज़ा है कि सजा? पहचान अपने आपको। तेरे पास जो निधि है, जिस दिन तू उसे पहचान लेगा, उस दिन मालामाल हो जाएगा। फिर तुम्हें मज़ा लूटने के लिए कहीं ओर जाने की जरूरत नहीं होगी, अपने भीतर झांकेगा, मज़ा से ही भर जाएगा। ना केवल तुझे मज़ा आएगा, अपितु जो तेरे संपर्क में आएगा, वो भी मज़ा से भर जाएगा, सारा जीवन मजेदार बन जाएगा। क्या है वो? उस परम तत्त्व को पहचानो।

कर्म वह शक्ति है, जिसने हमारी आत्मा के सारे गुणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है, हमारे आत्मा पर अपना आधिपत्य जमा लिया है, कब्ज़ा जमा लिया है। कब्ज़ा जमा लिया है। उसके कारण हम उस अखंड साम्राज्य के अधिपति होने के बाद भी उसका लाभ नहीं ले पा रहे। काश! हम इसे पहचानते। कर्म ने हमारी ज्ञान की शक्ति को खंडित किया। कर्म ने हमारी दर्शन की शक्ति को खंडित किया। कर्म ने हमारे अंदर के आंतरिक सुख को छिन्न-भिन्न किया। कर्म ने हमारी आत्मा की सारी शक्तिओं को लुंठित कर दिया। काश! वो शक्ति जागृत होती, तो आज हम कहीं से कहीं होते। काश! वो शक्ति जागृत होती, तो आज हम कहीं के कहीं होते। लेकिन इसका सारा खेल एकतरफा है। ऐसा केवल इसलिए है कि हमारी उधर दृष्टि नहीं है। संत कहते हैं- ‘जानो, जागो, चेतो’। अपने आप को पहचानो, अपनी दृष्टि को संभालो। सब कुछ छिन्न-भिन्न हो रहा है, सब कुछ लुटा जा रहा है। यदि अभी सावधान नहीं होओगे, तो तुम्हारी कंगाली सुनिश्चित है। फटे हाल हो जाओगे। अभी एक बार जाग गए ना, तो सारा काम हो जाएगा। तो क्या करना है? रिव्यू देना है। एक बार रिव्यू दीजिए, इस केस को फिर से खुलवाइए और पूर्ण चेतना के साथ अपना पक्ष रखिए। फैसला तुम्हारे पक्ष में होगा। बशर्ते, तुम केस को ठीक ढंग से समझो, अपने पक्ष को ठीक ढंग से जानो और अपने पक्ष को रखने वाले अच्छे वकील का प्रयोग करो। अच्छा वकील हो, जो तुम्हारा पक्ष रख सके, जिसके बल पर तुम अपने केस को ठीक ढंग से हैंडल कर सको। तो फैसला तुम्हारे पक्ष में होगा। तुम्हे क्या करना है?

मैं कौन हूँ और मेरा क्या है?- इसे जानो। मेरा है क्या?- इसे जानो। अपने स्वरूप को पहचानो, अपने भीतर झांको। तुम्हें अपने स्वरूप का ज्ञान होगा, भान होगा और शास्त्रों से उसके सारे एविडेंस मिलेंगे। उन एविडेंसों को लेकर के सदगुरु को अपना वकील बना लो, उनके मार्गदर्शन में चलो। तुम्हारे पक्ष में फैसला होगा क्योंकि कर्म की सत्ता से बड़ी धर्म की सत्ता होती है। जिस दिन तुमने धर्म को आत्मसात कर लिया, तुम्हारी जीत पक्की और पक्की। तत्क्षण तुम्हारी जीत होगी, उसे कोई हरा नहीं सकता। तो ये एक्स-पार्टी जो काम हो रहा है, क्यों हो रहा है? सो रहे हो। जागो और सही रास्ते को अंगीकार करो, सही राह पर चलना शुरू करो। सब कुछ तुम्हारे पक्ष में होगा। और जिस दिन वो सब तुम्हारे पक्ष में होगा, तो तुम मालामाल हो जाओगे, तुम पाओगे कि दुनिया में मुझसे भाग्यशाली कोई है नहीं, मुझसे ज्यादा समर्थ कोई है नहीं, मेरे समान कोई दूसरा है नहीं।

आज की चार बातें हैं- एक्स-पार्टी, एक्स-रे, एक्स-विज़न और जेरॉक्स। बस ये चार को समझो। मुझसे कल कह रहे थे- महाराज! एक्स तो बड़ा टफ है। हमने कहा- जिसने अपने जीवन के एक्स (x), वाई (y), जेड (z) को जान लिया, उसको कुछ भी टफ नहीं है। टफ कुछ नहीं, समझने की बात है। एक्स-पार्टी जो भी होता है, वो हमारी अज्ञानता के कारण होता है। हम अपने भीतर ज्ञान जगा लेंगे, सब ख़तम होगा। अपने आप को पहचानो। मैं कौन हूँ? मेरा क्या है?

एक्स-रे! एक्स रे का मतलब क्या होता है? रे यानि किरणें, वो किरणें जो भीतर का परीक्षण कराए। भीतर जो कुछ है, उसे देखो, एक्स-रे करो अपना। तुम्हें पता लगेगा- अरे! वहाँ तो निधान भरा है। बाहर जो कुछ दिखता था, वह सब फीका-फीका है, नीरस-नीरस, भीतर जो है, वो शाश्वत है। उसे पहचानो, एक्स-रे करो। देखिए, आप लोग एक्स-रे भी कराते हो और फोटोग्राफी भी कराते हो। हैं? हैं ना? फोटोग्राफी भी कराते हो, एक्स-रे भी कराते हो। ये ईमानदारी से बोलना- फोटोग्राफी कराते हो और एक्स-रे कराते हो, दोनों में उत्साह किसके प्रति ज्यादा रहती है? महाराज जी! फोटोग्राफी कराते हैं और एक्स-रे करानी पड़ती है। हैं ना? एक्स-रे करानी पड़ती है, फोटोग्राफी तो बस देखते ही एकदम चेहरा खिल जाता है। जितनी भी फोटो खींच जाए, खींच जाए। फोटोग्राफी आप कराने के लिए सदैव उत्सुक होते हैं, एक्स-रे कराने का उत्साह नहीं होता। क्यों? तुम्हारी दृष्टि केवल बहिर दृष्टि है। तुम बाहर की चमक में फिसलते हो, अंतर दृष्टि तुम्हारे भीतर जगी ही नहीं। जिस दिन अंतर दृष्टि जागेगी, जीवन बदल जाएगा।

अंतर दृष्टि- 1976 की बात है, गुरुदेव जब बुंदेलखंड में प्रवेश ही किए थे। अपनी मस्ती में बैठे थे। एक विद्वान थे, जिनको फोटोग्राफी का बड़ा शौक था। उन्होंने आचार्य श्री की फोटो खींची। तो जैसे ही फोटो खींची, आचार्य श्री ने हाथ ऐसे करते हुए कहा- ‘क्या फोटो खींचते हो, एक्स-रे लो तो जानो’। वो चित्र बहुत हिट हुआ। लेकिन एक वाक्य में बहुत गहरा संदेश उन्होंने दे दिया- फोटो यानि रूप, एक्स-रे यानि स्वरूप। तुम किसे महत्त्व देते हो? रूप को या स्वरूप को? बोलो। किसको? महाराज! रूप ही दिखाई पड़ता है, स्वरूप तो अभी तक पता ही नहीं चला। इसीलिए तो फटे हाल हो। अब बताओ- किसी व्यक्ति की फोटो तो सुंदर हो और एक्स-रे खराब हो तो? क्या होगा? फोटो बढ़िया आई और एक्स-रे लिया, तो वो गडबड, तो क्या होगा बताओ? नींद उड़ेगी कि नहीं? हाँ? तो भैया! फोटो रोज़ देखते हो, एक्स-रे तो देखो। एक्स-रे का क्या हाल है? उसे पहचानो और यदि कोई कमी है, तो उसे ठीक करो। उसे ठीक करो। और एक बात बताऊं- जैसे आपने एक्स-रे कराया, कोई हड्डी टूटी मिली। ठीक है! हड्डी टूटती है, तो हड्डी अपने आप जुड़ती भी है। मैं आपसे कह रहा हूँ- अपना एक्स-रे करो। अपना एक्स-रे करो और उसके लिए बाहर की किसी मशीन के पास जाने की जरूरत नहीं है, अपनी आंखें बंद करके अपने भीतर झांकने की जरूरत है। और देखो कहाँ-कहाँ टूट-फूट है, कहाँ-कहाँ विकृति है। उसे ठीक करो। वैसा ट्रीटमेंट लो। तत्त्वज्ञान वो माध्यम है, जिसके बल पर हम अपनी विकृत चेतना को ठीक बना सकते हैं। ठीक करने का उद्यम, सबको ठीक करने का उद्यम, सबको ठीक करने का प्रयास- ये हमारे भीतर घटित होना चाहिए। तो भैया! एक्स-रे। अब क्या करोगे? एक्स-रे कि फोटोग्राफी? हाँ? क्या करोगे? एक्स-रे? तैयारी है? महाराज! अभी तक फोटो के चक्कर में थे। आज मालूम पड़ा कि आप जो एक्स-रे बता रहे हैं, वो एक्स-रे कराएं। बाहर की किसी मशीन के पास जाने की जरूरत नहीं है, अपने भीतर झांकने की जरूरत है। आचार्य कुंदकुंद कहते हैं- अपना एक्स-रे करो, तो तुम्हारे मुख से स्वर फूटेंगे:

(18:50) अहम इक्को खलू शुधो दंशनान मय्यो समग्गो।

तम

मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ। ज्ञानमय हूँ, दर्षणमय हूँ, अपने आप में परिपूर्ण हूँ। जिस पल मैं अपने ज्ञान, दर्शन स्वरूपी आत्मा में स्थित होऊंगा, उसमें लीन होऊंगा, अपने सारे विकारों और विकृतियों को दूर करने में समर्थ हो जाऊंगा।

(19:30) तम्मिठी दो ताच्चिदी दो

उसमें स्थिर होकर, उसमें लीन होकर के, उसमें डूबकर के मैं उन सब विकृतियों को नष्ट करूंगा।

पता तो हो- डिफॉल्ट कहाँ है? पता कब चलेगा? जब वैसी दृष्टि होगी, तब चलेगा। दृष्टि जगाइए, अंतरबोध को विकसित कीजिए, तब हमारे जीवन में कुछ नया घट सकेगा। और अंतरंग में यदि कुछ भी अवांछित दिखे, तो घबराइए मत। कुछ भी गलत दिखे, तो सोचिए मत- अरे! मुझे कहा तो कुछ ओर गया था, लेकिन दिखाई कुछ ओर पड़ रहा है। कोई चिंता मत कीजिए। कोई चिंता मत करिए क्योंकि ये जितनी भी बुराई है, ये अस्थाई है। थोड़ा भी जागरूक हुए, तो पल में दूर हो जाएगी। इन्हें विनष्ट करने के लिए ज्यादा कुछ उपक्रम करने की जरूरत नहीं है। थोडी-सी जागरूकता के बल पर अपनी सारी बुराइयों को दूर किया जा सकता है, उन्हें जीता जा सकता है। जगिए! जानिए! तुम्हारे अंदर जो भी विकृति है- काम की, क्रोध की, लोभ की, मोह की, राग की, द्वेष की, दर्प की, दंब की, ये जितनी भी विकृतियां हैं, ये विकृतियां तुम्हारा स्वभाव नही, विभाव है, कर्मजन्य है- कर्म के निमित्त से उत्पन्न हुए हैं और तुम्हारी ज्ञान चेतना जागेगी, एक पल में दूर हो जाएंगी। क्यों? एक्स-रे के बाद है जेरॉक्स।

जेरॉक्स (xerox) का मतलब? फोटोकॉपी। पता है- आप किसके फोटोकॉपी हैं? किसके फोटोकॉपी हैं, पता है? भगवान के फोटोकॉपी हैं। जो भगवान हैं, वही आप हो, पहचानो तो सही। एकदम true फोटोकॉपी। हूबहू जेरॉक्स।

भगवान कहते हैं- फोटोकॉपी नहीं, तू पूरा भगवान है। पहचान अपने आपको और जो बुराइयां हैं, वो ऊपर-ऊपर की हैं, उन्हें दूर कर, जान। देखिए! कभी-कभी जेरॉक्स मशीन में फोटोकॉपी कराने जाते हैं ना आप लोग, तो क्या होता है? कभी-कभी पॉवर की सप्लाई कमजोर होती है, पेपर कभी खराब होता है, वातावरण में मोइश्चर ज्यादा आ जाता है या कोई पुरानी पड़ी हुई मशीन होती है। तो उसमें जेरॉक्स कराते हैं। जेरॉक्स तो हो जाता है, लेकिन क्या होता है? डॉट्स आ जाते हैं, धब्बे, ब्लैकिश हो जाता है। हैं ना? हम लोगों की दशा ये ही है। सब हैं भगवान की फोटोकॉपी, पर पॉवर कमजोर होने के कारण सब काले-काले हो गए हैं। काले-काले दाग-धब्बे हैं। इन धब्बों को मिटाना है, तो अपना पॉवर बढ़ाओ। बात समझ में आ रही है? अपना पॉवर बढ़ाओ, भगवत्ता को प्रकट कर लोगे। तत्वतः हममें और भगवान में कोई अंतर नहीं है। भगवान ने भगवत्ता को प्राप्त किया, इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने पॉवर को बढ़ाया और उसे सही दिशा में लगाया। हम अपने पॉवर को जगा नहीं पा रहे हैं और जितनी पॉवर है, उसे सही जगह लगा नहीं पा रहे हैं। ठीक ढंग से अपनी पॉवर का यूज़ करिए। अपनी चेतना की शक्ति को जो सही दिशा में नियोजित करते हैं, उनकी चेतना चैतन्य हो उठती है और जो अपनी चेतना को गलत दिशा में नियोजित करते हैं, उनकी चेतना का पतन हो जाता है।

भगवान। अपने आप को भगवान मानो- मैं भगवान हूँ। जानो! तो भगवान हूँ- ये जानोगे, भगवान को पहचानोगे, तो भगवान बन पाओगे और भगवान होकर के भी अपने आपको भगवान नहीं जानोगे, तो दिन-हिन कंगाल बने रहोगे। आज सब संसारी प्राणी की यही दशा है- खुद भगवान होकर के भी भिखारी बना हुआ है। खुद भगवान होकर के भी भिखारी बना हुआ है। उसे पता नहीं कि-

मैं अनंत गुणों का धाम हूँ, पहचान तो ले एक बार।

भगवान को बाहर खोजने की जरूरत नहीं है, भगवान मेरे भीतर हैं।

मेरे भीतर क्या, मैं खुद में भगवान हूँ, खुद ही भगवान हूँ, पहचान तो लें।

मैं खोज रहा था भगवान को, भगवान खोज रहे थे मुझे।

मैं खोज रहा था भगवान को, भगवान ढूंढ रहे थे मुझे।

अचानक हम दोनों मिल गए। अचानक वे मिल गए।

ना तो वे झुके, ना मैं झुका।

ना वे मुझसे बड़े थे, ना मैं उनसे लघु था।

एक आवरण मुझे विभक्त किए था, वो हटा और मैं भगवान हो गया।

अपनी शक्ति को पहचानिए। शक्ति को पहचानेंगे, तभी उसकी अभिव्यक्ति हो सकेगी और तब कहीं जाकर हम अपने जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकेंगे। तो कहते हैं- जेरॉक्स है, भगवान हो, पहचानो। भगवान के सामने हम क्यों जाते हैं, मंदिर में दर्शन करने? देखने के लिए कि हम सही कॉपी हैं कि नहीं? और मेरी कॉपी में कहाँ-कहाँ गड़बड़ियां हैं? उसको कहाँ-कहाँ सफाई करना है?- वो देखते हैं। जो डिफॉल्ट है, उसको साफ करो। एक कॉपी खराब हुई, दूसरी कॉपी बनाओ। दूसरी खराब हुई, तीसरी कॉपी बनाओ। तीसरी खराब हुई, चौथी कॉपी बनाओ। और जिस दिन साफ कॉपी हो जाएगी, तो तुम्हें कॉपी करने की जरूरत नहीं, लोग तुम्हारी कॉपी करना शुरू कर देंगे और जीवन धन्य हो जाएगा। मोक्ष मार्ग इसी का नाम है। इसी तरीके से व्यक्ति आगे बढ़ता है और अपने जीवन को सतपथ पर ले जाने में समर्थ होता है।

तो एक्स-पार्टी, एक्स-रे, जेरॉक्स और आज की मुख्य बात- एक्स-विज़न। एक्स-विज़न मतलब? एक्स-विज़न- ये शब्द कॉइन किया हुआ है और इसका अर्थ है- ‘A Person who is dominant in every situation’, ‘एक ऐसा व्यक्ति, जो हर स्थिति में शशक्त और मजबूत बना रहे’।

एक्स-विज़न- अपने अंदर ऐसा विज़न जगाओ, जो हर स्थिति में तुम्हें मजबूती दे, सशक्त बनाए रखे। कहीं से तुम अपने आपको कमजोर महसूस ना करो। सच्चे अर्थों में ऐसी दृष्टि और क्षमता से संपन्न लोग हीं अपने जीवन का उत्कर्ष कर पाते हैं। हम तीर्थंकर भगवंतों के जीवन चरित्र को पलट कर देखते हैं, तो ये पाते हैं- उन्होंने किस तरीके से अपने जीवन को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाया। दुनिया की सारी शक्तियां इधर से उधर हो गई, पर वो हिले नहीं। रंच मात्र नहीं हिले। आपसे मैं कहना चाहता हूँ- जीवन में अनेक प्रकार के उतर-चढ़ाव आते हैं, अनुकूल-प्रतिकूल संयोग-वियोग होते हैं। उस समय आपकी क्या मनःस्थिति रहती है? मजबूत बने रहते हो या टूट जाते हो? परिस्थिति! परिस्थिति की चोट है, उस चोट को खाकर के तुम मजबूत भी बन सकते हो, तो उनके आगे मजबुर भी हो सकते हो।

संत कहते हैं- ‘परिस्थितियों के आगे मजबुर नहीं, मजबूत बनो’। मजबुर बनने में कोई बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो तब है, जब हम मजबूत बनें।

एक्स-विज़न! वो व्यक्ति कभी दुखी नहीं हो सकता। वो हर विफलता में सफलता खोजता है। हर विपत्ति में संपत्ति पा जाता है। चाहे जैसी विसंगति हो, संगति बिठाता है और विषमता में भी समता प्रकटाने की सामर्थ्य पाता है। क्या आपका विज़न है? कैसा विज़न है?

मेरे संपर्क में एक युवक, देखो! अध्यात्म को आत्मसात करने का परिणाम क्या निकलता है? एक युवक, वो अपने भाई पर अंधा विश्वास करता था। पिताजी नहीं थे। दोनों भाई का साझे में कारोबार था। भाई पर अंधा विश्वास, लेकिन बड़े भाई की नीयत में खोट आ गई और उसने सारी संपत्ति हड़प ली। व्यापार में नुकसान दिखाकर, जो आकस्मिक निधि थी उस फर्म (Firm) की, उसको भी हथिया लिया। उसके ऊपर थोड़ी-सी लाइबिलिटी भी दे दी फर्म की। कुछ नहीं, एक पांच हजार स्क्वेयर फुट का मकान भर उसके पास था। पांच हजार स्क्वेयर फुट का एक मकान भर बचा और बाकी सब कुछ चला गया। उसके ऊपर एक बड़ा वज्राघात था। उसके मित्रों ने मुझ तक वो समाचार पहुंचाया। मैं भी एक बार सुनके रह गया। हमने कहा कि देखो, आज का जमाना कैसा है! पर पर्सनल मैटर था, कह तो कुछ सकता नहीं था। तीन दिन बाद वो मेरे पास आया, अपनी धर्मपत्नी के साथ। मैंने उससे पूछा- भैया! क्या हाल है? बोला- महाराज! सब ठीक हूँ। चेहरा एकदम सहज मुस्कान भरा। जैसे normally आता था, वैसे ही जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अगर किसी को पता नहीं है, तो कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि इस व्यक्ति के साथ कुछ अघट घटा है। मैंने ही उससे पूछा- भैया! क्या है? मैंने सुना है। बोले- महाराज! आप लोग जो सुनाते हैं, वही आपने सुना है। संसार है, महाराज! कोई पूर्व जन्म का कर्जा होगा, सो निपट गया। मैं भैया को दोषी नहीं ठहराता। भैया का इस बात का आभार मानता हूँ कि चलो, कम से कम एक मकान तो दिया। अगर मकान नहीं देते, तो मैं तो रोड पर आ जाता। मेरा कोई पिछले जन्म का कोई ऐसा पाप होगा, जो आज चुक गया। मैंने उनका कभी पैसा खाया होगा, सो हो गया। महाराज! मैं आपके पास केवल एक ही आशीर्वाद के लिए आया हूँ कि हवा के झोंके से ये शाख टूटी जरूर है, पर आप आशीर्वाद दो- इसे सूखने ना दूं, कलम बनाकर स्वतंत्र पेड़ बना सकूं। ऐसा आशीर्वाद दो कि इसे सूखने ना दूं, कलम बनाकर स्वतंत्र पेड़ बना सकूं। उसे कई लोगों ने कई तरह की सीख दी। कुछ लोगों ने कहा कि तुम अपने भाई पर केस कर दो। उस व्यक्ति ने कहा- जिस भाई को मैंने पिता की तरह पूजा, चंद पैसों की खातिर उस भाई पर केस करने से अच्छा तो मैं मर जाना पसंद करूंगा। उसने रिफ्यूज कर दिया- कोई केस नहीं, कुछ नहीं और जो मेरे कर्म का उदय है, उसे मैं भोगुंगा, सामना करना होगा। ठीक है, ये संयोग है। जब पैसा था तो भी मेरा नहीं, आज पैसा नहीं है तो भी मेरा नहीं। सहज बना रहा। व्यक्ति बहुत स्ट्रॉन्ग था अंदर से और सोच बहुत पॉजिटिव। गुडविल बहुत अच्छी थी। ऐसी स्थिति में उसके मित्र उसके साथ आए। ये घटना 1999 की है और उस समय कुछ मित्रों ने उसको साथ रखकर के एक रियल एस्टेट की कंपनी में उसे जोड़ा। इस आदमी का तजुर्बा, अनुभव था, ज्वाइंट वेंचर में एक रियल एस्टेट की कंपनी बनाई और उस कंपनी ने इतनी ग्रोथ की, इतनी ग्रोथ की कि आज बहुत मजबूत स्थिति में खड़ा है। हजार-हजार फ्लैटों का प्रोजेक्ट लेकर के काम कर रहा है। ये समय की स्थिति। किसकी वजह से? एक्स-विज़न। दूसरा होता, तो रोता- महाराज! आशीर्वाद दो, कोई मंत्र दो, भैया की बुद्धि फिर जाए। कोई ऐसा रास्ता दो, जिससे मेरे पास संपत्ति आ जाए। ये हो जाए। वो हो जाए। कमजोर मन वाले लोग सदैव आरोप की भाषा गढ़ते हैं। कमजोर मन वाले लोग सदा आरोप की भाषा गढ़ते हैं और पक्के मन वाले लोग हर आरोप में अवसर ढूंढते हैं, अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं। अवसर ढूंढिए, अवसर तलाशिए। हर मोर्चे पर शशक्त बनिए। कहीं कमजोर मत बनिए।

एक बात अपने दिल-दिमाग में अच्छे से स्थापित कर लीजिए कि कर्म के हर आघात को आपको अकेले ही भोगना है। दूसरा आपके साथ खड़ा हो सकता है, पर आपके साथ भोगेगा नहीं। वो अपने कर्म को भोगेगा, आप अपने कर्म को भोगोगे। यदि रोकर के भोगोगे, कर्म हावी होगा और मजबूत बनकर के भोगोगे, कर्म पस्त पड़ जाएगा। क्या चाहते हो? मजबूत बनिए। हर मामले में अपने आपको डोमिनेट रखिए। लोग औरों पर डोमिनेट होना चाहते हैं, पर कर्म उसको डोमिनेट कर देते हैं। जब तक बहीर दृष्टि रहेगी कर्म डोमिनेट होगा, अंतर दृष्टि जगेगी तुम कर्म को डोमिनेट करोगे, कर्म पर हावी हो जाओगे, कर्म की सत्ता को उखाड़ने में समर्थ हो जाओगे। वो शक्ति अपने भीतर विकसित कीजिए। एक बार जाग गई, सब जग गया। तो हम एक्स-विज़न अपनाएं। व्यापार, व्यवसाय में नुकसान हो- एक्स-विज़न। अचानक कोई विपत्ति आ जाए- एक्स-विज़न। लोग थोड़ी-थोड़ी बातों में डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं, टूट जाते हैं, लेकिन जिनकी अंतरदृष्टि होती है, वो उस स्थिति में भी बहुत चैतन्य रहते हैं।

परसो एक व्यक्ति आए, कैंसर के शिकार, पूरे शरीर में इंफेक्शन फैला हुआ था। लेकिन जब उस व्यक्ति से मैंने बात की, उसके मनोबल को देखकर के मेरा मन प्रभावित हो उठा। उसने कहा- महाराज! आप लोगों से एक ही बात सीखा है: ‘बीमारी तन में होती है, आत्मा में नहीं’। तन में बीमारी होती है, आत्मा में नहीं। लोग कहते हैं- मुझे कैंसर है। पर मैं मानता हूँ- मुझे कोई बीमारी नहीं क्योंकि मेरी दृष्टि में मेरी देह नहीं, मेरी आत्मा है। ये दृष्टि! वो व्यक्ति जो खुद कैंसर से पीड़ित है, उस व्यक्ति के अंदर ये दृष्टि। मैं कहता हूँ- ये आदमी मर भले जाए, पर इसको कोई मार नहीं सकता, मर करके भी अमर होगा। और जो व्यक्ति अपनी मानसिकता को कमजोर बना लेते हैं, वो जीते जी भी मुर्दे के समान होते हैं। जागरूक रहिए! कैसी भी विपत्ति आए, अपने आपको कमजोर मत करिए।

एक राजा था। उसका एक वजीर था, बड़ा अध्यातमनिष्ठ, निर्भीक आदमी। अचानक राजा उसकी किसी बात से छुब्ध हो उठा और उसे प्राण दंड का आदेश दे दिया, सुली पर चढाने का आदेश। सन्योगतः जिस दिन उसे सुली पर चढाने का आदेश दिया गया, वो उसका जन्मदिन था और वो अपने मित्रों और प्रशंसकों के बीच अपना जन्मदिन मना रहा था। हजारों लोग एकत्रित थे। सब लोग उनके जन्मदिवस का जश्न मना रहे थे। इसी मध्य राजा का फरमान आया। स्तब्धता छा गई। सब के सब स्तब्ध। पूरे वातावरण में सन्नाटा। लेकिन तत्क्षण उस वजीर ने कहा- नाच-गान चालू करो। बंद क्यों कर दिया? जो उत्सव चल रहा था, उसे चलने दो। सबने कहा- प्रभु! यह उत्सव क्या, ये तो मातम मनाने का क्षण है। तुम्हारे लिए कल सुबह सुली पर चढ़ना है, ये राजा की आज्ञा है। बोले- ठीक है! कल चढ़ना है ना, आज थोड़ी चढ़ना है। अब जब सुली पर चढ़ना है, तो चढ़ूंगा और मैं नाचते-नाचते सुली पर चढ़ना चाहूंगा। इसलिए मैं चाहता हूँ- जब तक सुली पर मुझे न चढ़ाया जाए, मैं भी नाचूं, तुम भी नाचो। नाचते-नाचते सुली पर चढ़ूंगा। जब सुली पर चढ़ना ही मेरी नियति है, तो रोकर के क्यों नाचूं? नाच-गान चालू हो गया। राजा ने गुप्तचरों से पता लगाया- क्या मामला है? राजा को मालूम पड़ा- वहाँ तो कोई फर्क नहीं पड़ा, वहाँ तो उत्सव मनाया जा रहा है। और वो भी उत्सव जैसे किसी का जन्म हुआ है। और वो भी जन्म-वनम ऐसा नहीं, बुढ़ापे में लंबे प्रतीक्षा के बाद किसी को पुत्र की प्राप्ति हुई हो, ऐसा जन्म हुआ, ऐसा जश्न मन रहा है। राजा ने उस मंत्री को बुलाया, अपना फरमान वापस लेते हुए कहा कि मैं अपना आदेश वापस लेता हूँ क्योंकि जो जीना जानता है, उसे कोई मार नहीं सकता। जो जीना जानता है, उसे कोई मार नहीं सकता।

डोमिनेट करना चाहते हैं आप। सब पर डोमिनेट होना चाहते हैं। ओ हो! कई लोग बोलते हैं- डोमिनेटिव हैं। दूसरे पर डोमिनेट मत होइए, अपने आप पर होइए। और डोमिनेट करना है, तो अपने नेगेटिव इमोशन्स पर डोमिनेट होइए। उनके आगे तो चारों खाने चित्त हो जाते हैं, पस्त पड़ जाते हैं। उनको जीतो और उन दुर्बलताओं को, दोषों को, दुर्गुणों को तुम तभी जीत पाओगे, जब तुम्हारे अंदर अंतरदृष्टि होगी। वह दृष्टि जो तुम्हे शशक्त बना सके, कहीं से कमजोर ना होने दे, वो दृष्टि जगाइए। वस्तुत: हमारे जीवन के जितने भी दुःख हैं और समस्याएं हैं, वो हमारे भीतर का परिणाम है। तो समाधान भी हमारे ही भीतर है, उसे बाहर कहीं नहीं ढूंढा जा सकता। जिसकी चेतना जाग जाती है, वो वह सब कुछ पा लेता है, जो एक साधारण व्यक्ति के लिए एलभ है। और जिसकी चेतना सुप्त है, वो पाए हुए अवसर को भी खो देता है। तो अपने आपको जगाने की कोशिश कीजिए। हम जब जागरूक होंगे, अपने अंदर ऐसी दृष्टि विकसित करेंगे, तब कहीं अपने जीवन को हम मजबूत बना सकेंगे। आगे हम कभी मजबुर ना बनें, मजबूत बनें। समय का प्रहार एक हथौड़ी की तरह है। हथौड़ी कांच पर पड़ती है, कांच चकनाचूर हो जाता है और वही हथौड़ी सोने पर पड़ती है, सोना दमक उठता है। संत कहते हैं- ‘परिस्थितियों के प्रहार होने पर कांच की तरह टूटने की जगह, सोने की तरह दमकना सीखो’। कांच नहीं, सोना बनो। अपने जीवन को आगे बढ़ाओ। कांच नहीं, सोना बनो। मजबूत बनिए।

अपने भीतर एक चमक प्रकट कीजिए। आपका आत्मविश्वास प्रगाढ़ होगा, अध्यात्मिक दृष्टि होगी, सहनशीलता बढ़ेगी, सकारात्मक सोच होगी, तो ये सब चीजें स्वतः जीवन में घटित होने लगेगी और इसका अच्छा परिणाम भी सबके जीवन में घटित होगा। तो ये प्रयास हमारा होना चाहिए।

आज एक्स की बात है। तो एक्स-पार्टी जो खेल हुआ है, उससे बाहर आइए। एक्स-रे देखिए। अपने भीतर का एक्स-रे कैसा है? एक्स-रे कैसी है? उसे चेक करिए और जहाँ डिफॉल्ट है, उसको ठीक कीजिए। देखिए! एक्स-रे को मिलाना है, तो जेरॉक्स कॉपी को सामने रख लो। और एक्स-विज़न होगा, तो सब कुछ ठीक अपने आप हो जाएगा। एक्स-टाइम लाइफ लाभ मिलेगा। एक्स-टाइम मतलब दिन दुना, रात चौगुना। आप अपने आप, अपने आपको आगे बढाने में समर्थ हो जाओगे। तो हम इस चार एक्स को समझें और अपने जीवन में चार चाँद लगाने की कोशिश करें, कुछ एक्स्ट्रा क्वालिटी अपने भीतर डेवलप करें, इसी शुभ भाव के साथ विराम दे रहा हूँ।

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