शंका
जन्म, मरण, वैराग्य सभी पाप पुण्य पर आधारित है, तो मनुष्य का बाकी का जीवन कर्म अर्थात पुरुषार्थ पर क्यों निर्भर है? क्या काल लब्धि स्वयं आती है या पुरुषार्थ द्वारा लानी पड़ती है?
समाधान
भाग्य और पुरुषार्थ दोनों एक दूसरे के सापेक्ष हैं। हम जब भी कुछ करें तो ये सोचकर करें कि मैं जैसा पुरुषार्थ करुंगा वैसा ही परिणाम आयेगा। पर्याप्त पुरुषार्थ करने के बाद भी यदि अनुकूल परिणाम न आये तो सोचें कि मेरे भाग्य में यही था। सब चीजें नियोगतः हैं, ऐसा भी है; और नियोग में काफी कुछ परिवर्तन लाया जा सकता है, ऐसा भी है। क्या करें? हम जब भी करें तो अपना शत प्रतिशत समर्पित कर के करें। ताकि उत्कृष्ट पुरुषार्थ का उत्कृष्ट परिणाम आये। और पर्याप्त पुरुषार्थ करने के बाद भी अनुकूल परिणाम न आये तो मन अधीर होने लगे तो मन को धीर देने के लिए सोचें कि मेरे भाग्य में यही था।
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