माँ का मातृत्व
(मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश)
एक दिन श्रीकृष्ण की माँ देवकी के घर में आहार के लिए दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराजों का आगमन हुआ। देवकी ने बड़े भक्ति भाव से उनका आहार करवाया लेकिन उसके हृदय में मुनिराजों के प्रति मातृत्व भी उमड़ने लगा। उन दो मुनिराजों के जाने के बाद, मुनिराजों के दो जोड़े एक-एक कर क्रम से फिर से आहार के लिए आये। देवकी ने उन दोनों मुनिराजों के जोड़ो को क्रमशः आहार कराया। लेकिन हर बार मुनिराजों के प्रति ममता की अनुभूति बढ़ती गई। तीसरे जोड़े के मुनिराजों को आहार कराते समय देवकी की छाती से दुग्ध की धारा भी बह निकली। देवकी के मन में दो सवाल खड़े हो गये। एक ही मुनिराज मेरे यहाँ तीन बार क्यों आये और मुनिराजों को देखकर मेरे अन्दर मातृत्व क्यों उमड़ा? देवकी ने दोनों सवालों का समाधान भगवान नेमिनाथ से पूछा।
भगवान ने कहा “देवकी! एक ही मुनिराज तीन बार नहीं आये। तीनों बार तीन अलग-अलग युगल आये और छहों का रूप एक था क्योंकि छहों सगे भाई थे और सुनो देवकी! यह जो मुनिराज थे, ये और कोई नहीं श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व उत्पन्न हुए तुम्हारे ही छह पुत्र थे। अपने पुत्रों को जीवन में पहली बार मुनि के रूप में देखा उसी वजह से तुम्हारे हृदय में मातृत्व उमड़ पड़ा”।
मातृत्व इस संसार के पवित्र भावों में से एक है। माँ अपने बच्चों से भले ही कितनी दूर क्यों न हो, वह चाहकर भी अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती। स्त्री की परिपूर्णता मातृत्व से ही होती है। बालक भले ही संसार की नजरों में कितना ही बड़ा क्यों न हो जाये, पर माँ का दृष्टिकोण हमेशा एक जैसे मातृत्व से ही ओत-प्रोत रहता है।
Edited by: Pramanik Samooh
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