श्रद्धा का चमत्कार

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शंका

महाराजजी, जैन दर्शन के अनुसार कोई किसी का बिगाड़ या सुधार नहीं सकता। और लोग कहते हैं जो पुण्य से होता है वह पुण्य से होता है। मेरा बेटा ३० फीट से गिरा, मैं तो मानता हूँ कि गुरु का आशीर्वाद था जो वह एकदम सुरक्षित है। महाराज जी, कृपया बताएं कि इसमें पुण्य है, जिनेन्द्र भगवान की महिमा है या गुरु का आशीर्वाद है?

समाधान

सबसे पहले तो मैं तुम्हें और तुम्हारे बेटे को इस बात के लिए सराहना करता हूँ तुम्हारे भाग्य की और आशीर्वाद देता हूँ कि इतना छोटा सा बच्चा ३० फीट से गिरकर भी सलामत है। और मुझे जब बताया तो मुझे याद आ गई हनुमान की बात इतने ऊपर से गिरा था तो चट्टान टूट गयी, हनुमान का कुछ नहीं हुआ। निश्चित यह बच्चा कुछ पुण्यशाली है और बड़ा होकर विलक्षण निकलेगा। अब रहा सवाल कि क्या आशीर्वाद से हुआ या जो होना था सो हुआ? 

बंधुओं, आशीर्वाद कुछ नहीं करता तुम्हारी श्रद्धा सब कुछ करा लेती है। श्रद्धा का प्रताप है, आशीर्वाद का नहीं। आशीर्वाद तो केवल निमित्त है। तुम्हारे हृदय में श्रद्धा हो तो उस श्रद्धा के बदौलत किसी का साधारण सा आशीर्वाद भी तुम्हारे जीवन में असाधारण चमत्कार घटित कर सकता है। और श्रद्धा के अभाव में तुम भगवान का आशीर्वाद भी पा लो तो कुछ लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए खेल श्रद्धा का है। 

अपने-अपने कर्मानुसार संयोग बनते हैं और संयोग ही हमारे जीवन में फलते हैं यह जीवन का एक बहुत बड़ा सच है। तो फिर आशीर्वाद क्यों लेते हैं क्यों देते हैं? निश्चित कभी हम लोग किसी को आशीर्वाद के हाथ नहीं उठाये तो लोग कहते हैं “महाराज, आशीर्वाद तो दो।”  आशीर्वाद क्या करता है? संतों के आशीर्वाद से उनकी साधना की तरंगें मिलती हैं, पॉजिटिव waves मिलती हैं। जो आपके भीतर एक नई भाव तरंग को उत्पन्न करते हैं। उनके हाथ से जो उनके rays निकलती हैं, waves निकलती हैं, वह अपने भीतर के जो कर्मों के मॉलिक्यूल हैं उनको प्रभावित करते हैं। उससे हमारे कर्मों का रसायन बदलता है। और कर्मों के रसायन के परिवर्तन से हमारे भाव में भी कुछ अंशों में परिवर्तन आ जाता है। और वह परिवर्तन हमारे जीवन में सुख दुःख का कारण भी बन जाता है। मतलब आशीर्वाद कुछ नहीं करता यह कहना भी गलत है और आशीर्वाद सब कुछ कर देता है यह सोचना भी गलत है। तुम्हारे अंदर श्रद्धा है तो आशीर्वाद सब कुछ कर सकता है और तुम श्रद्धा से शून्य हो तो तुम्हारा आशीर्वाद से कुछ नहीं होगा।

मैं एक घटना सुनता हूँ। एक राजा था। अचानक परचक्र ने आक्रमण किया, उस अप्रत्याशित हमले में अपने आप को संभाल नहीं सका, उसका सारा राज्य छिन लिया। सेना की छोटी सी टुकड़ी भर बची थी। उस स्थिति में सबको खो दिया। उसे एक संत से मिलना हुआ, वे बड़े सिद्ध पुरुष थे। वो उनके पास गया और अपनी व्यथा कही। संत ने कहा “देख, घबड़ाओ मत। तू युद्ध जीत सकता है कि नहीं इसका फैसला मैं अभी कर देता हूँ। मेरे पास एक चमत्कारी सिक्का है। और मैं इस सिक्के को उछाल दूँ तो तू head या tail बोल देना। जो बोलेगा वह आ गया तो समझ लेना तेरी जीत निश्चित है”। संत ने सिक्का उछाला, राजा ने हेड कहा, देखा तो हेड आया। संत ने कहा “निश्चित तू जीतेगा। तू चिंता मत कर। जा, तेरी सेना थोड़ी जरूर है पर विजय सुनिश्चित है।” संत की प्रेरणा पाकर उसने अपनी सैन्य शक्ति को फिर से संगठित किया और उस अपने प्रतिपक्षी राजा पर हमला कर के अपना खोया हुआ साम्राज्य जीत लिया और जैसे उसने अपने साम्राज्य को पाया फिर से संत के चरणों में गया। संत के चरणों में गया, और उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि “गुरुदेव, आपकी कृपा से मैंने खोया हुआ साम्राज्य पा लिया। किन शब्दों में आभार प्रकट करूँ आपका? मैं बहुत कृतज्ञ हूँ।” वह संत के प्रति इस प्रकार का आभार प्रकट करने लगा तो संत ने कहा कि “मेरा इसमें कुछ नहीं है।” “आप नहीं करते तो कैसे होता? आप ही के सिक्के ने तो मुझे जिताया।”  “तो अच्छा, हाथ बता”। हाथ बढ़ाया, संत ने अपने झोले से सिक्के को निकला और उसकी हथेली पर रखा। बोले “देख, यह सिक्का। एक काम कर इस सिक्के को पलट कर देख।” पलट कर देखा तो वह भोचक्क रह गया क्योंकि उस सिक्के के दोनों तरफ हेड था। संत ने कहा मैं यही कहता हूँ मैंने कुछ नहीं किया मैंने तो तेरी श्रद्धा को जगा दिया, मैंने तेरे विश्वास को जगा दिया, उसका परिणाम आ गया।

तो आशीर्वाद का चमत्कार नहीं तुम्हारी श्रद्धा का चमत्कार होता है। इसलिए मैं आपसे एक संदेश देना चाहता हूँ। जीवन व्यवहार में अपने झोले में हमेशा अपने जेब में एक ऐसा सिक्का रखों जिसके दोनों तरफ़ केवल हेड हो, टेल हो ही ना! सब पॉजिटिव, सब पॉजिटिव, सब पॉजिटिव! देखो जीवन कितना आगे बढता है।

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