ऑस्ट्रेलियन लेखक रोनडाबर्न (Rhonda Byrne) की तीसरी पुस्तक ‘द मैजिक’ (The Magic) में एक लाइन है “जो कृतज्ञ हैं उनको ब्रह्मांड से और बहुत कुछ दिया जाएगा, जो कृतज्ञ नहीं है उनको ब्रह्मांड से सब कुछ ले लिया जाएगा” क्या आपके प्रवचन से इसी से सम्बन्धित हैं?
ये जितने भी लेखकों की बात तुम लोग करते हो, वो हमारी ही बात दोहराते हैं, तुम लोगों को हिंदी समझ में नहीं आती, आज वो बोल रहे हैं- gratitude (कृतज्ञता) , thanks giving (धन्यवाद), divine forgiveness (दिव्य क्षमा) , यह क्या है? यह तो हमारा मूल धर्म है, हमने जब से होश संभाला तब से ये सीखा,
‘होऊ नहीं कृतज्ञ कभी न द्रोह न मेरे उर आवे‘
तुम्हें वो बातें समझ में नहीं आती, हिंदी समझना सीखो। मैं समाज से कहूँगा, जो हमारी मूलभूत संस्कृति उसे पहचाने, हमारी संस्कृति में कृतज्ञता को सबसे बड़ा गुण और कृतघ्नता को सबसे बड़ा पाप कहा गया। यह लिखा गया है कि “और सब पापों का तो फिर भी प्रायश्चित्त हो सकता है, पर अभागे कृतघ्नी का कभी उद्धार नहीं होगा” यह बात हमारे शास्त्रों में हैं। जिसे सबसे बड़ा गुण कहा गया वह कृतज्ञता है।
वहाँ से जब कृतज्ञता “gratitude” बनकर आती है तब तुम्हारा attitude (मनोभाव) बदलता है, बड़ी विचित्रता है! जो बातें सन्तो के मुख से निकलती है यदि उन्हें श्रद्धा से सुनो तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा, पर क्या करें? आपकी सोच इतनी पेशेवर हो गई है कि आपको केवल पेशेवरों की बात समझ में आती है, सन्तो की बात समझ में नहीं आती। पेशेवर की बात पूरी तरह व्यापारिक होगी और सन्त की बात सदैव परमार्थिक होगी। व्यापारिक बातें करने वाले यदि तुम्हें प्रेरित करेंगे भी तो जो तुम्हारा बदलाव होगा उसमें तुम्हारी सोच totally calculative (पूरी तरह से गणनात्मक) ही होगी, पर सन्तो की बात सुनकर तुम्हारे जीवन में बदलाव होगा तो तुम्हारी सोच आध्यात्मिक होगी। तुम ऐसे लोगों की बात सुनकर संपन्न बन सकते हो पर सन्तो की बात सुनोगे तो संपन्न बनो या न बनो, सज्जन बन सकते हो; तुम्हारा चरित्र बल ऊँचा होगा, तुम्हारा आचार ऊँचा होगा, तुम्हारा विचार ऊँचा होगा, तुम्हारा व्यवहार ऊँचा होगा और तुम्हारा व्यापार अच्छा होगा।
दृष्टिकोण बदलिए! पर आप लोगों को मुफ़्त में मिलता है इसलिए उसका कोई मूल्य नहीं; पर पहले पैसे देकर आते हैं -लाखों -लाख रुपए लगते हैं – वो अच्छा लगता है। मुझे विरोध नहीं है पर मैं सभी से कहता हूँ, बातें तो वही है, थोड़ा मुलम्मा (पॉलिश, लेप) चढ़ा के दिया जाता है। सुनने में तो वो अच्छी लगती हैं, उसका दुष्परिणाम क्या है? हमारी समाज की जो नई पीढ़ी भटक रही हैं, वह उनकी ही follower (समर्थक) बन जाती है, जिनका निजी जीवन झाँक कर देखोगे तो उनके चरित्र की कोई गारंटी नहीं ले सकते, जो व्यसनों में डूबे हों, बुराइयों में डूबे हों, उनकी बातें केवल बातें होती हैं; और जो जीवन में तप, साधना और संयम से जुड़े हैं, उनकी बातें बातें नहीं मन्त्र होते है-वह काम का है, उसे समझो-जो हमारे तन्त्र को बदले और जीवन में कुछ नया घटित करने के लिए प्रेरित करे।
ध्यान रखना! अंगुलिमाल किसी मोटीवेटर (motivator) से नहीं बदले, अंगुलिमाल का हृदय सन्त ने बदला। यह चमत्कार है, यह transformation है, “रूपांतरण” समझ में नहीं आता। क्या बदलाव? यह सब आज की मीडिया की भूमिका है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (electronic media) – हमारी भाषा, हमारी भूषा, हमारी भावना, हमारा भोजन- सब बदल गया, सोच भी बदल गई। मैनें एक बार कहा था -भारत और पश्चिम में इतना ही अन्तर है, उन्होंने परमाणु खोजा, हमने परमात्मा खोजा; वे पदार्थ की ओर भागते हैं, हम परमार्थ की ओर भागते हैं। – अन्तर यही है। हम जो करेंगे परमार्थ के लिए करेंगे और वो जो करेंगे पदार्थ के लिए करेंगे, वे करते हैं भोग के लिए, हम करते हैं योग के लिए, वे करते हैं संग्रह के लिए, हम करते हैं त्याग के लिए! जीवन किस से अच्छा बनता है? आप तय कीजिए।
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