‘आज ज्ञान नहीं, अभिमान ज़्यादा है; आज दान नहीं, एहसान ज़्यादा है
नाम की भूखी दुनिया में देखो; आज पैसा नहीं पैसे का तूफान ज़्यादा है।’
पैसा जिंदगी का रास्ता है, मंजिल नहीं! पर आजकल लोग रास्ते को ही मंजिल बना लेते हैं, आज इंसानियत से बड़ा पैसा हो गया है। महाराज जी क्या इसमें सोच का कसूर है या किसी और चीज़ का?
जो व्यक्ति पैसे के पीछे इतना पागल है उससे केवल एक ही सवाल पूछना चाहिए, ‘तुम क्या चाहते हो- प्रसन्नता या संपन्नता?’ पैसे से संपन्नता मिलेगी उसमें कोई संदेह नहीं लेकिन प्रसन्नता पैसे से नहीं मिल सकती। पैसे में जब तक उलझोगे अपने मन की प्रसन्नता को खोओगे। अगर अपने अन्दर की चिरस्थाई प्रसन्नता को बरकरार रखना चाहते हो, तो पैसे का मोह त्यागो, साधन और साध्य के अन्तर को समझो।
ऐसे लोगों को हमें दुनिया के बड़े-बड़े धनपतियों का परिचय कराना चाहिए, जिन्होंने अपने जीवन में पैसे को महत्त्व दिया और आखिरी में यह कहते हुए गए कि ‘काश मैंने यह पहले जाना होता कि पैसा जीवन में बहुत कुछ है पर वह सब कुछ नहीं है, आज पैसा पाने के बाद भी मैं एक-एक क्षण बेचैनी से काटने को मजबूर हो रहा हूँ।’ हमें राजा मिडास की उस कहानी को नहीं भूलना चाहिए, जिसने सोचा कि मैं जिसे भी छुऊँ वह चीज़ सोना बन जाए और अन्त में उस सोने ने ही उसका जीना हराम कर दिया। यही हाल उन लोगों का होता है, जो पैसे के पीछे पागल होते हैं अंत में कहीं के नहीं होते, इसलिए साधन और साध्य के भेद को जरूर संभल करके चलना चाहिए।
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