आज के आधुनिक युग में भौतिक सुविधाएं बहुत बढ़ गईं हैं, उसके बावजूद भी मनुष्य दुःखी, तनाव-ग्रस्त और हताश क्यों है?
यही तो कारण है कि सुविधा ही दुविधा बन गयी है। जितनी सुविधा है, उतनी दुविधा है। हम लोग इस धारणा को निर्मूल कर दें कि सुविधा से शांति मिलती है। बाहर की सुविधाएँ मन की सुख शांति नहीं देती, सहूलियत देती हैं। शांति सहूलियतों से नहीं आती, शांति अंतर की संतुष्टि से आती है। आपके मन में संतोष होगा तो सारा काम होगा अन्यथा कुछ नहीं।
एक आदमी के दिमाग में तनाव है, और तनावग्रस्त व्यक्ति अपने मन को बहलाने के लिए 100 साधन का इस्तेमाल कर सकता है। कोई पिक्चर जा सकता है, कोई नशा कर सकता है, कोई क्लब में जा सकता है, कोई घूमने-फिरने जा सकता है, लेकिन कितनी देर? उसे उससे शांति कितनी देर? थोड़ी देर तक मन बहला आएगा। लेकिन उसी वक्त यदि उसे कोई अच्छा मोटिवेशन मिल जाए और धर्म की समझ बना दे और उसे कह दे कि तुम अपने जीवन की जो भी स्थिति से स्वीकार करो, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं, उसके अंदर के उत्साह और उमंग को जगा दे; एक पल में उसका मन बदलता है और शांति हो जाती है।
मन को बहलाने से शांति नहीं मिलती; मन को बदलने से शांति मिलती है। तुम्हारे भौतिक साधन मन को बहलाने के साधन हैं और धर्म का तत्व मन को बदलने का माध्यम है। मन को बदलोगे तभी शांति होगी और कोई रास्ता नहीं।
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