लोगों की धार्मिक क्रियाएँ बहुत लेकिन अन्तरंग में परिणाम अच्छे क्यों नहीं?
अन्तरंग के परिणाम तभी अच्छे होंगे, जब हम अपने धार्मिक क्रियाओं के प्रयोजन को ठीक ढंग से समझेंगे। आज कल लोग धार्मिक क्रियाएँ करते हैं उसका प्रयोजन ठीक ढंग से नहीं समझ सकते है।
ज्ञानमूलक क्रिया ही सही अर्थों में फलवान बनती है। इसलिए आप जो भी क्रिया करें ज्ञानमूलक तरीके से करें। आपने कहा “जैन धर्म की प्रभावना तो बहुत हो रही है लेकिन तप की प्रभावना नहीं हो रही है”; ऐसी बात नहीं है। देखा जाए तो आज का युग बहुत स्वर्णिम युग है। एक युग था जिस समय धर्म का ध्वंस होता था और आज का युग है जिसमें धर्म की प्रभावना हो रही है। ४०० साल पीछे जाओ तब एक युग था जिसमें मन्दिर तोड़ा जाता था। आज हम ऐसे युग में जन्म लिए जिसमें मन्दिर बनाया जाता है। कितना बड़ा परिवर्तन है। हम तो स्वर्ण युग में जी रहे हैं। अब यह बात और है कि जितने लोग धर्म करते हैं वह पूरी तरह से अपने धर्म को निभा पाए या ना निभा पाएँ। लेकिन अगर धर्म के आंतरिक प्रयोजन को आप स्वीकारोगे तो आपके भीतर बदलाव आए बिना नहीं रहेगा।
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