एक राजा रात सपने में देखता है कि अचानक परचक्र ने आक्रमण कर दिया। परचक्र के इस अप्रत्याशित आक्रमण से वह अपने आपको बचा नहीं सका। उसे अपना सारा राजपाट छोड़कर भागना पड़ा। एकाकी जंगलों में भागा, सारे राज चिन्ह उतर गए, हालत फटे हाल भिखारी सी हो गई, तीन दिन से कुछ खाया-पिया नहीं। भिक्षा-चरी करके उसे दो रोटियाँ मिली। उसे खाने को बैठा ही था कि अचानक दो कुत्ते लड़ते हुए आए और थाली पर पाँव रखे, मिट्टी पड़ गई, पानी गिर गया, सब व्यर्थ हो गया। इसी बीच राजा की नींद खुल गई। राजा उठा अपने दरबारियों को बुलाया और पूछा कि रात मैंने सपने में ऐसा देखा, तुम यह बताओ सच क्या है, सच क्या है? रात जो मैंने सपने में देखा वह या जो अभी सामने देख रहा हूँ वह, सच क्या है? उसके दरबार में अष्टावक्र थे, यह राजा जनक के समय की बात है। अष्टावक्र ने कहा- राजन! ना यह सच है ना वह सच है, वह बंद आँखों का सपना था और यह खुली आँखों का सपना है। सच को जानोगे तो तुम उसे पाओगे जो अपना है। सच क्या है? जब तक हम सच को जानते नहीं, सच को पहचानते नहीं, जीवन के सार को प्राप्त नहीं कर सकते। सच वास्तविक यथार्थ क्या है?
आज किसका नंबर है-R, R फॉर रियल, रियल क्या है, रियलिटी क्या है, जीवन का सच क्या है, जीवन की सच्चाई क्या है? जब तक मनुष्य इसे नहीं जानता तब तक अपने जीवन का कल्याण नहीं कर सकता। ज्यादातर लोग जीवन जीते जरूर है पर अंत तक अपने जीवन की रियलिटी को जान नहीं पाते। तुमने कभी जाना कि तुम्हारे जीवन की सच्चाई क्या है, जीवन का यथार्थ क्या है, पता है, जीवन क्या है, जीवन का सच क्या है? जीवन का यथार्थ क्या है, जीवन की वास्तविकता क्या है? जो दिखाई पड़ रहा है वही जीवन है या कुछ और? जीवन क्या है? जीवन का यथार्थ जब तक हम नहीं जानते अपना कल्याण नहीं कर सकते। जैन धर्म के अनुसार वही मनुष्य अपने जीवन का कल्याण कर सकता जिसे सम्यक दर्शन की प्राप्ति हो और सम्यक दर्शन का मतलब ही है वास्तविकता का भान, सच्चाई का ज्ञान, सच का बोध। तुम्हारे जीवन की वास्तविकता क्या है? थोड़ा अपने जीवन में देखो जीवन क्या है? अपने जीवन में झांक कर देखेंगे तो हमको दिखाई पड़ेगा कभी हम खुश होते हैं, कभी खिन्न होते हैं, कभी सुखी होते, कभी दुखी होते हैं, कभी आशा होती है, कभी निराशा होती है, कभी फिक्र होती है तो कभी फक्र होता है, अच्छा लगता है तो कभी बुरा लगता है। 24 घंटे जीवन में एकरूपता नहीं होती। होती है क्या? जीवन में विषमता है। सुबह से सोने तक न जाने हम कितना रंग बदलते हैं। जगत की तरफ देखते हैं तो कोई अमीर दिखाई पड़ता है, कोई गरीब दिखाई पड़ता है, कोई बड़ा दिखाई पड़ता है, कोई छोटा दिखाई पड़ता है, कोई राजा है कोई रंक है, कोई रूपवान है, कोई कुरूप है, कोई पंडित है, कोई पागल है, कोई स्त्री है, कोई पुरुष है, यह विविधता दिखाई पड़ती है। जीवन की विषमता और जगत की विविधता इसका राज क्या है? कभी सोचा, सच्चाई को जानो। मेरे मन में पल-पल परिवर्तन क्यों आता है और संसार में यह परिवर्तन मुझे दिखाई क्यों पड़ते हैं? हमें यह जानने की आवश्यकता है। बोलो! आपको खुशी कब मिलती है? खुश तो होते हैं ना, अभी खुश हो कि नहीं। खुशी कब मिलती है, जब अच्छा काम होता है तब या दुनिया में जितने लोग अच्छा काम करते हैं, तुम्हें खुशी होती है। महाराज कोई अच्छा काम करे तब खुशी नहीं होती, मेरे मन के अनुकूल काम हो तब खुशी होती है। मन के अनुकूल हो तो खुशी और मन के प्रतिकूल हो तो खिन्नता और यह मन हमेशा अनुकूल बनता है। कभी खुश हो जाता कभी खिन्न हो जाता है। पल में खुश और पल में खिन्न हो जाता है। कई बार तो स्थिति ऐसी बनती है कि जिस वजह से खुश होता है उन्हीं वजह से खिन्न भी हो जाता है, उसमें कोई देर नहीं लगती। अभी आप बड़े खुशी-खुशी प्रवचन सुन रहे हैं, आपके मन की बात जारी है तो बड़ा अच्छा लग रहा है। अच्छा लग रहा है, अच्छा लग रहा है और कहीं मैं टारगेट बना दूं तो, सुन रहे वही शब्द, वही महाराज जी, वही प्रवचन, लेकिन जब तक मेरे मन को भाने वाली बात थी तो ख़ुशी आ रही थी और जैसे ही मेरे मन की विरुद्ध बात आई तो सताने लगी, तकलीफ देह बन गई है। यह मन है, तो मन पल में खुश होता है, पल में खिन्न होता है। मन की खुशी और मन की खिन्नता का रीजन क्या है, इसकी वजह क्या है, क्यों मन पल में खुश होता है, क्यों मन पल में खिन्न हो जाता है? अभी तारीफ करूंगा खिल जाओगे, अभी एक टिप्पणी करूंगा तो मन खौल उठेगा। क्यों तारीफ से मन खुश होता है और क्यों मन खिन्न होता है टिप्पणी से। इसकी वजह क्या है, कभी आपने सोचा? इन सबकी वजह है- अज्ञान। अज्ञानी प्राणी के लिए तारीफ करो वो खिलेगा और टिप्पणी करो तो खोल जाएगा। अज्ञानी पल-पल में रंग बदलता है और ज्ञानी के लिए चाहे तुम कितने गुण गाओ या गाली दो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके लिए अनुकूल हो, प्रतीकुल हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। अच्छा हो या बुरा हो कोई असर नहीं पड़ता। जो है सहजता से जीता है, सहजता से जानता है, सहजता से झेलता है। तो मेरे दु:ख का कारण क्या है। सामने वाली स्थिति या मैं स्वयं, स्वयं को जानते हो, असली कारण क्या है, वास्तविक कारण क्या है? इस सच्चाई को जानो, इस रियल को पहचानो, रियलिटी को जानो, आप क्या मानते हो? जब भी जीवन में कुछ दुविधा आती है तो किसे खोजते हो, किसे मानते हो, यह दुविधा मेरे मन की परिणति है या अगले की वजह से हो रहा है। अज्ञानी सदैव आरोप की भाषा बोलता है और ज्ञानी सहज भाव से सब बात को स्वीकार लेता है। जब तक आरोप की भाषा है तब तक आकुलता है। बड़े-बड़े ज्ञानियों के जीवन में बड़े-बड़े प्रसंग घट जाते हैं पर वे रंच मात्र भी दु:खी नहीं होते क्योंकि उनको जीवन की सच्चाई का पता है, संसार में ना कुछ अच्छा है ना कुछ बुरा है। अच्छा और बुरा तो मेरे मन की कल्पना है जो अज्ञान की उपज है। ना मुझे किसी को अच्छा मानना और ना मुझे किसी को बुरा मानना। जीवन में जो भी अच्छा या बुरा घट रहा है, यह भी मेरा नहीं है, यह कर्म संयोग से उत्पन्न है, कर्म अनुकूल सहयोग देता है तो अच्छा होता है, कर्म प्रतिकूल सहयोग देता है बुरा होता है। यह अच्छा संयोग भी मेरा नहीं है और बुरा सहयोग भी मेरा नहीं है, मैं इन सबसे परे हूँ। इस सच्चाई को जानने वाला कभी दु:खी होगा।
आज की चार बातें हैं रियल, रोल, रेंट और रिलैक्स। रियलिटी को पहचानो और यह जानो कि यह जो कुछ भी है ऊपर का है, ऊपर का मतलब किरदार, भूमिका, अदाकारी, निभाइए, जो रोल करना है रोल कीजिए लेकिन रियलिटी को जानते हुए। एक अच्छा अभिनेता उसे जो भूमिका दी जाती है उसे निभाता है, अच्छे से निभाता है। एक अभिनेता को अगर कह दिया जाए कि तुम्हें भिखारी का रोल करना है तो वह उसके लिए भी राजी है, मजूरी करना है तो उसके लिए भी राजी है, राजा बना दिया तो उसके लिए भी राजी है, सिंहासन पर बैठा दिया तो उसके लिए भी राजी है, पर अभिनेता रोल पूरा निभाता है। पर यह बताओ जो रोल करता है रियली अपने आपको वैसा मानता है क्या, रियल में क्या मानता है? दर्शक मुग्ध हो जाते हैं, आँसू बहाना शुरू कर देते हैं, यह कैसा दर्दनाक दृश्य, यह कैसा संयोग, यह कैसा खौफनाक मंजर, यह कैसा उल्टा काम, आप प्रतिक्रिया दे रहे हैं और सामने वाला। हे यह तो राजा से एकदम भिखारी बन गया और सामने वाला क्या कर रहा है? उसको कोई फर्क क्यों नहीं पड़ता क्योंकि उससे पता है यह रोल है रियल नहीं है। वह रियलिटी को वह जानता है तो उसके मन में रंच मात्र भी तकलीफ नहीं होती। तो भैया! वह रोल तो दो-तीन घंटे का होता है, रोल निभाता है फ्री हो जाता है। संत कहते हैं यह जितने रूप तुम्हारे दिख रहे हैं यह भी रोल है। कर्म हमको अलग-अलग रोल देता है तो हमे रोल को निभाना भी पड़ता है। रोल को निभाइए, जैसा रोल मिले वैसा निभाइए। कभी कर्म हमको बड़ा बना देता है तो कभी छोटा बना देता है, कभी राजा बना देता है तो कभी रंक बना देता है. कभी अमीर बना देता है तो कभी गरीब बना देता है, कभी बुद्धिमान बना देता है तो कभी मूर्ख बना देता है, कभी पंडित बना देता है तो कभी पागल बना देता है, कभी रूपवान बना देता है तो कभी कुरूप बना देता है, कभी सकलांग बनाता है, दिव्याँग बनाता है, कभी विकलांग बनाता है, उसको जैसी इच्छा होती है वैसा रोल हमें देता है। तो क्या करो? जो रोल मिले उसे निभाओ लेकिन रियल को पहचानते हुए। रियली मैं ऐसा नहीं हूँ यह मेरा रोल है।
मैं सुखी दु:खी में रंक राव, मेरे गृह गोधन प्रभाव।
मेरे सूत तिय मैं सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन।
फीलिंग में अगर यह बातें हैं कि मैं सूखी हूँ या मैं दु:खी हूँ, मैं राजा हूँ, मैं रंक हूँ, मैं सौभाग्यशाली हूँ, मैं दुर्भाग्यशाली हूँ, मैं विद्वान हूँ, मैं मूर्ख हूँ, मैं रूपवान हूँ, मैं कुरूप हूँ, मेरे पुत्र है, मेरी पत्नी है, मैं बलवान हूँ, मैं कमजोर हूँ, अगर यह अनुभूति तुम्हारे भीतर आ रही है तो इसका मतलब तुमने रोल को रियल मान लिया है। जो रोल को रियल मानते है वह दु:खी रहते हैं और जो रोल करते हुए भी रियल को जानते हैं वह हमेशा सुखी होते हैं। तुम्हे क्या करना है- दुखी रहना है या सुखी बनना है? महाराज सुखी बनना है, तो सबसे पहले यह मानो कि यह सब रोल है, इस रोल को निभाना है। रोल की स्पेलिंग क्या है आर, ओ, एल, इ, तो रोल निभाइए, कैसे? आर कहता है- रिस्पॉन्सिबिलिटी के साथ, ओ कहता है- ओबे कीजिए, एल कहता है- जो भी रोल मिले उसको लाइक कीजिए और इ कहता है- जो मिले एंजॉय कीजिए, रोल हो जाएगा। रिस्पांसिबिलिटी के साथ ओबे कीजिए, लाइक करिए, एंजॉय कीजिए। जो रोल मिले अच्छे से एंजॉय करो। यह रोल है इसको मुझे निभाना है पर मैं ऐसा नहीं हूँ, मैं इससे भिन्न हूँ, यह मेरा स्वरूप नहीं है, मेरे द्वारा यह सब चीजें की जा रही है, कराई जा रही है। ठीक है, जो भी रोल है, करना है। कोई भी एक्टर कोई रोल करता है तो कैसे करता है, अपनी मर्जी से करता है या डायरेक्टर जैसा बताता वैसा करता है। फिल्म साइन करते समय यह बता दिया जाता कि ऐसा रोला है। एक्टर बोलता है ठीक है मैं इसे निभाऊंगा। मनपसंद का रोल हो या नापसंद ही का ऐसा नहीं, जैसे फिल्म की स्टोरी की मांग है, तुम्हें वही रोल करना पड़ेगा और एक बार एक्टर रोल को, पिक्चर को साइन कर देता है, उसे वह सारा रोल निभाना पड़ता है। इसमें तो फिर भी स्वतंत्रता है, किस फिल्म को साइन करें और ना करें लेकिन हमारा एग्रीमेंट अनादि का है। एक साथ साइन कराया हुआ है। जो कर्म रोल देता है वह निभाना पड़ता है और इसमें एक तरफा एग्रीमेंट है। कर्म कहता है अगर तुमने एक बार ठीक ढंग से रोल निभा लिया तो दोबारा तुम्हें कोई रोल नहीं मिलेगा और रोल बिगाड़ लोगे तो जिंदगी भर रोल करना पड़ेगा। हमने रोल लिया, लेकिन उसमें रोया, अच्छे ढंग से रोल निभाया नहीं। इष्ट-अनिष्ट, संकल्प-विकल्प के रूप में, राग-द्वेष किया, अपनी अज्ञानता के कारण यह मान लिया है कि ये रोल ही रियल है, अगर यह मान लिया है कि ये रोल रियल नहीं है, रियलिटी कुछ और है। अच्छे ढंग से रोल निभा लिया यानि वीतराग अवस्था को प्राप्त कर लिया, राग-द्वेष से मुक्त हो गए तो अब कर्म दोबारा बंध नहीं सकता तो फिर कर्म से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा। तो कर्म मुक्ति के लिए, दु:ख मुक्ति के लिए, संसार की मुक्ति के लिए, क्या करें जो हो उसको रोल मानो। जिम्मेदारी से उसे निभाओ, लाइक करो। अच्छा यह बताओ, डिसलाइक करने से कुछ होगा। आपको जो शरीर मिला, अरे मेरा शरीर सुंदर नहीं, अमुक का शरीर सुंदर है, थोड़ा और सुंदर होता तो अच्छा होता, कैसा बदसूरत भगवान ने बना दिया, हे भगवान क्या करें, ऐसा कोसने से तुम्हारा शरीर बदल जाएगा। तुम्हारी बोली, मेरी बोली थोड़ी मीठी होती तो बहुत अच्छा होता, बड़ी कर्कश है, औरों की बोली में कितनी मिठास होती है, कोयल जैसा कंठ होना चाहिए, मुझे कैसा कंठ मिल गया। ऐसा बोलोगे तो क्या तुम्हारे स्वर बदल जाएंगे, बोली बदल जाएगी? हे भगवान मेरे पास गरीबी है, मुझे अमीरी मिली होती तो बहुत अच्छा था। अरे अमीरी मिली होती तो अच्छा था ऐसा सोचने मात्र से कोई अमीर बन जाएगा। अमीरी का प्रयास करो तेरे नसीब में गरीबी ही लिखी है तो गरीबी तो तेरे को झेलना ही पड़ेगा। स्त्री हो गई पुरुष होती तो अच्छा था, पुरुष हो गया स्त्री होता तो अच्छा था। यह क्या है, या क्या यह तुम्हारी मर्जी से चलने वाला है क्या? ऐसा सोचने से कुछ परिवर्तन होने वाला है क्या? कुछ भी परिवर्तन होने वाला हीं है, ना भूतो ना भविष्यति, इस सच्चाई को समझो। जो है उसको एक्सेप्ट करो, और एक्सेप्ट करके अपने जीवन को उसी अनुरूप आगे बढ़ाने की कोशिश करो। यह मान के चलो यह रोल है और यह रियल है। दोनों के भेद को जो व्यक्ति समझ करके चलता है उसके जीवन में कभी दु:ख नहीं होता। मुझे जो निभाना है वह निभाना है, यह मेरी रिसपॉसिबिलिटी है और उसको मुझे लाइक करना है, वह देखना है, वह ही मुझे पसंद करना है। अब यह ही मेरा रूप है यही सही जिस रूप में हूँ पर यह मुझे पता है मेरा असली रूप नहीं, यह तो ऊपर का चोला है, भीतर का स्वरूप कुछ और है, वह रूप सबका एक सा है। चाहे राजा हो या रंक, बड़ा हो या छोटा, स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, रूपवान हो या कुरूप, जो भी अंतर है यह ऊपर के चोले का अंतर है। इस चोले के भीतर जो है वह सब समान है। रूप में अंतर है स्वरूप तो सबका एक है। मैं रंक बन करके भी वही हूँ जो राजा बनकर था। एक राजा के भीतर जो है वही मेरे भीतर है। यह वास्तविकता समझ में आती है, अगर समझ में आ जाए तो राग-द्वेष हो ही नहीं, अज्ञान रहेगा या नहीं, लेकिन क्या? महाराज स्वरूप का तो पता ही नहीं, रूप दिखता है इसलिए उसी में उलझते हैं। काश हम अपने जीवन के इस भ्रम को तोड़ पाते, यथार्थ को समझते, रूप को नहीं स्वरूप को पहचानने की कोशिश कीजिए। स्थितियाँ बनती है और बदलती है, इसलिए कहते हैं रियल को जानो। रियल को जानते ही क्या होगा, पता है? रियल को जान लोगे, रियल की स्पेलिंग क्या है- आर, ई, ए, एल। जैसे ही तुमने रियल को जाना आर फॉर राइट अप्रोच, तुम्हारी एप्रोच कैसी हो जाएगी, कैसी होगी- राइट एप्रोच, देखो एप्रोच राइट है कि नहीं। हर चीज में राइट एप्रोच रखो, सही रखो, सही दृष्टि रखो, इसी का नाम सम्यग दृष्टि है। अभी तो हम सब उल्टा काम कर रहे हैं। रीयल का उल्टा क्या होता है- फॉल्स, जाली, नकली, झूठा। हम उसी में उलझ करके रह जाते हैं। इस फॉल्स एप्रोच से अपने आपको हटाए। राइट एप्रोच से जीवन को जानने का सही तरीका अपनाएं और जो व्यक्ति सही तरीके को अपना लेता है, वास्तविकता को जान लेता है, वह सुख में, दु:ख में, सहयोग में, वियोग में, हानि में, लाभ में, अच्छे और बुरे में, स्थिरता रखता है। वह सोचता है यह तो जो है, सो है।
एक व्यक्ति का बेटा मर गया, 25 साल का जवान बेटा दुर्घटना का शिकार होकर मर गया। व्यक्ति को जैसे ही समाचार मिला, घटना स्थल पर पहुंचा। अपने बेटे के अंत्येष्टि की क्रिया में तैयारी में जुट गया। अर्थी सजाने की प्रक्रिया हल्की सी शिकन तक नहीं। उसके मित्र गण आए, बंधु जन आए, एक ने कहा- हाए! तुम्हारे ऊपर वज्राघात हुआ, तुम्हारे जीवन की आशा का दीपक बुझ गया। एक ने कहा- तुम्हारे बुरे बुढ़ापे की लाठी टूट गई। एक ने कहा- काल ने तुम पर कैसा दुष्प्रहार किया है। हे भगवान! तुम्हारे साथ यह क्या हो गया। वह सबकी बातों को सहज भाव से सुनता रहा, सुनता रहा और किसी ने पूछ लिया- क्या बात है, तुम सदमा खा गए क्या? ज्यादा सदमे में हो क्या? तुम कुछ बोल नहीं रहे हो क्या बात हो गई? उसने बोला- क्या बोलूं? तुम मुझे एक सवाल का उत्तर दो, क्या कोई व्यक्ति यदि तुम्हें कोई धरोहर दे और समय पर मांगने के लिए आए, तो तुम क्या करोगे? वह सज्जन बोले सहर्ष लौटा देंगे तो बस यही तो मैं कह और कर रहा हूँ। आज से 25 वर्ष पूर्व कर्म ने पुत्र के रूप में धरोहर मुझे सौंपी थी, आज उसने वापस ले लिया तो लौटाने में क्या संकोच, मैं सहज भाव से लौटा रहा हूँ। न यह पहले मेरा था ना अब यह मेरा है। मैंने जीवन की वास्तविकता को जाना है कि जिसने जन्म लिया उसका मरण निश्चित है। ना हम कुछ लेकर आए हैं न हम लेकर जाएंगे। ना कोई हमारा है ना हम किसी के हैं और जो करेंगे सो भरेंगे। जीवन की वास्तविकता मैं जानता हूँ। कर्म की धरोहर थी सो चला गया। ना बेटा मेरा पहले था ना अब है। ना मैं उसका पिता ना वह मेरा बेटा, वह तो नदी-नाव संयोग था। मेरे और मेरे बेटे का सहयोग इतने ही दिनों का था आज पूरा हो गया। ऐसा व्यक्ति कभी दु:खी होगा, बताओ यह हकीकत है कि नहीं। हकीकत यही है पर लोग क्या करते हैं। इस हकीकत को स्वीकारने में संकोच करते हैं। आखरी में क्या करते है- चलो! यही होनहार थी। जब सारी मशक्कत पूरी हो जाएगी तब बोलेंगे। अरे भैया! इतना घूम फिर करके आने की जरूरत क्या है, सीधे-सीधे एक्सेप्ट करो ना। राइट एप्रोच रखो, सही दृष्टि रखो, हर चीज को सच्चाई भरी निगाह से देखो। अगर राइट एप्रोच रखोगे ना तो इ यानि ईजी बने रहोगे। फिर कोई प्रॉब्लम नहीं होगी, कोई टेंशन नहीं रहेगा, एकदम ईजी, सहज, सरल। रंच मात्र भी खिंचाव नहीं, रंच मात्र भी तनाव नहीं। राइट एप्रोच रखोगे, ईजी बनोगे तो ए मतलब एडजस्ट हो करके रहोगे। सबको एडजेस्ट कर लोगे और सब में डजेस्ट हो जाओगे। जैसा देश वैसा भेष, जैसी अवस्था, जैसी व्यवस्था, यथा अवस्था तथा व्यवस्था, सबमें एक जैसे हो जाओगे। एडजेस्टमेंट का पावर आ जाएगा और एल तुम्हारा जीवन लवली बन जाएगा। तुम सबके पसंद के हो जाओगे। यह रियल का चमत्कार है। राइट एप्रोच, ईजी रहो एडजेस्ट करके रहना सीखो, जीवन अपने आप लवली बन जाएगा। रियल को पहचानो बाकी सबको रोल मानो। जीवन में जो कुछ भी घट रहा है उसे एक रोल मान करके निभाओ।
तीसरी बात जीवन में जो कुछ भी मिला है उन सब को रेंटल मानो रेंट है। रेंट की चीजें, किराए की चीजें अपनी कुछ भी नहीं है। तुम्हारे साथ जितने भी संयोग जुड़े हैं, किसके है? तुम्हारे या किराए के, मानने को राजी हो? अभी हम से कह रहे हो किराये के है। अंतर्मन क्या बोलता है? सच्चाई यही है कि सब किराए के हैं, कांटेक्ट बेस पर मिले हैं। आज दुनिया में तो फिर भी तुम अपनी बल-जोरी से दूसरों के किराए के मकान को कब्जा जमा करके अपना बना लो। बहुत से पुराने लोग हैं किराए में एक बार बैठ गए तो बैठ गए, फिर निकलना ही मुश्किल। औरों की तो बात जाने दो कईयों ने तो मंदिरों के मकानों में भी कब्जा जमा लिया। यहाँ की व्यवस्था का लाभ उठाते हुए लोग ऐसा कर सकते हैं। पर बंधुओ! परमार्थ के क्षेत्र में ऐसा कभी कुछ भी नहीं हो सकता क्योंकि कर्म जितने दिन के लिए तुम्हें चीजें दे सकता है, जितने दिन का कांटेक्ट होता है, सारे संयोग इतने दिन तक के लिए होते हैं। जैसे ही समय पूरा होता है कर्म का सारा सिस्टम ऑनलाइन है, ऑटोमेटिक यहाँ से वहाँ शिफ्ट हो जाता है। ऑटोमेटिक शिफ्ट हो जाता है। कब, क्या हो जाए कोई पता नहीं, इसलिए इसे किराए का मानो। किराए का मानोगे तो क्या फायदा होगा? अभिमान नहीं होगा, आसक्ति नहीं होगी, आकुलता नहीं बढ़ेगी और व्यर्थ की आकांक्षाएं नहीं जगेगी। किराए के घर में आप कितने भी सुंदर घर में रहे, फाइव स्टार होटल में भी रहो तो उसे अपना मानने का भाव होता है, क्या? सोचते हो भैया! चार दिन के लिए आया है, छोड़ना है, चलो ठीक है। सारी फैसिलिटी है, उसका का उपयोग भी कर रहे हो, लेकिन नहीं वह अपना नहीं है। उसका मान नहीं उसमें आसक्ति नहीं, अभिमान नहीं, आसक्ति नहीं, उसकी आकांक्षा नहीं, आकांक्षा नहीं तो आकुलता भी नहीं। अपनी जगह में हो तो आप किसी टैक्सी से चल रहे हो। आजकल तो सब तरह की टैक्सी या मिलती है। मान लीजिए आपने टैक्सी के रूप में मर्सिडीज ही लिया है या और कोई बड़ी गाड़ी बुला ली। वो टैक्सी में कहीं डाइस हो जाए, हल्की खरोच आ जाए आपको कुछ फर्क पड़ेगा, नहीं पड़ेगा ना और आपकी खुद की गाड़ी हो तो, महाराज उस पर तो खरोच बाद में आएगी सीने में खरोच पहले आ जाएगी। फिर भी मैं बोलता हूँ तुम्हारी गाड़ी खड़ी है और तुम्हारा पोता अगर उसमें खंरोच करे एक पत्थर से तो क्या होगा? इमानदारी से बोलना- वह खरोंच यहाँ सीने में आती है। एक बात बताओ जितनी बड़ी गाड़ी होती है ना उतनी गहरी खरोच होती है। गाड़ी जितनी बड़ी, खरोंच उतनी बड़ी। अब सवाल यह है कि गाड़ी पर खरोंच आ जाने से तकलीफ है कि मेरी गाड़ी पर खरोंच आने से तकलीफ है। समझ में आ रही बात, तुम्हारे अंदर जितनी भी खरोच है ना यह सब इस ‘मेरी’ की वजह से है। जब तक यह मेरी, मेरी, मेरी, बनी रहेगी, हृदय में खरोंचे उत्पन्न होते रहेगी। यह खरोच निरंतर बनी रहती है। खरोंच ना आए इसके लिए क्या करे, तो समझो कि यह मेरी है ही नहीं, यह सच्चाई है। जो बात है वह सही है कि झूठी। सही तो यही है पर तुमने झूठी को सही बना रखा है, मान रखा है। सब किराए की चीजें हैं मेरी नहीं है। मेरे पास है यह सत्य या अर्ध सत्य हो सकता है पर मेरी नहीं है यह 100% सत्य है या मेरी है यह पूरी तरह सत्य है, किराए की है।
जिंदगी एक किराए का घर है, इससे एक दिन बदलना पड़ेगा।
मौत तुझको जब आवाज देगी, तुम्हें घर से निकलना पड़ेगा।
पूरी जिंदगी किराए का घर है यह कभी भी खाली करना पड़ेगा। किराए की चीज, किराए की मान के रखो और जब वापस करने का मौका आए, सहर्ष वापस कर दो, उसमें आसक्त मत हो। मन में ऐसा होगा तो कभी आसक्ति होगी ही नहीं। ना यह शरीर मेरा है, न संपत्ति मेरी है, न सगे-संबंधी मेरे है, ना ठाट-बाट मेरा, कुछ भी मेरा नहीं है। मेरा तो बस मैं हूँ बाकी सब कर्म के संयोग से उत्पन्न है। यह सब रेंटल चीजें हैं इनको भूलने में ही सार है। जब तक है उपयोग करो, उपभोग करो, पर इनमें अपना स्वामित्व आरोपित ना करो। एक ज्ञानी में और अज्ञानी में इतना ही अंतर है। ज्ञानी भी उसी घर में रहता है जिसमें अज्ञानी, पर अज्ञानी उसे अपना मानता है ज्ञानी उसे किराए का मानता है। अज्ञानी को जब उसे छोड़ना पड़ता है तो आँसू बहाता है और ज्ञानी कहता है चलो यह मकान छूटा दूसरा ढूंढे मिल ही जाएगा, कोई ना कोई मिलता ही है। यही फर्क है और कोई मौलिक अंतर नहीं है। यह सब किसका है- रेंट का है, किराए का है, रहो, किराया का मानो और समय पर किराया चुकाते रहो। मौका आए खाली करने का तो एक पल भी मत सोचो और यही सोचो किराया का घर बदलते-बदलते अनंत जन्म हो गए। प्रार्थना करो हे प्रभु! कब निज घर में आऊं ताकि किराए का झमेला ही खत्म हो जाए। एक बार निज घर में आ जाओ तो किराया का काम क्या? लेकिन क्या कहते आप लोग-
हम तो कबहुँ न निज घर आए,
पर घर फिरत बहुत दिन बीते,
काल अनंत गवाएँ,
हम तो कबहुँ न निज घर आए।
पर घर में घूमते-घूमते अनंत काल बीत गए, कबहुँ न निज घर आए मतलब एक बार निज घर में आने का भाव जगाओ, पुरुषार्थ करो। फिर किसी किराए के मकान में जाने की जरूरत नहीं होगी, फिर कोई अदला-बदली की बात नहीं होगी, फिर अच्छे बुरे की बात नहीं होगी, फिर सुंदर-असुंदर की बात नहीं होगी, फिर बड़े छोटे की बात नहीं होगी क्योंकि जिस घर की चर्चा यहाँ की जा रही है वह घर सबका एक सा है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं है, उस घर को पहचानो। अपने असली घर को पहचानो। यह सब किराए का है, किराए का मान करके उनका उपभोग करो। उनमें आसक्त मत होओ, उनमें अभिमान मत करो, उनकी आकांक्षा मत करो, तो आकुलता अपने आप समाप्त हो जाएगी।
रेंट की स्पेलिंग क्या है – आर, इ, एन, टी, इसका मतलब क्या है? किराए की चीज है, आर मतलब रिटर्न करो। जिसकी है या मौका है, रिटन, खाली करने की बात करें, भैया ले लो, तुम्हारी चीज तुम संभालो, कोई चिंता की बात नहीं है। तुमने कहा- यह लो रिटन। एक पल की भी कोई बात नहीं, रिटर्न करा। इ मतलब एक्सचेंज, एक छूटेगा तो दूसरे को बदल लेंगे। एक्सचेंज- एक ने खाली कराया तो दूसरे में चले गए। एन मतलब न्यूट्रल रहो। इसमें ही अच्छा था, यह खराब, वह मकान अच्छा था, यह अच्छा है, यह खराब है, उसमें रहते तो अच्छा था, इसमें रहते तो खराब। अरे भैया! वह भी किराए का था यह भी किराए का था जो हो गया हमने एक्सचेंज कर लिया अब न्यूट्रल रहो। टी मतलब सब टेंपरेरी है। टेंपरेरी काम खत्म करो। पर क्या बताओ आजकल के लोगों का हाल बहुत बहुत बुरा है।
किराए के प्रति भी लोगों की कैसी आसक्ति होती है देखो। पति दफ्तर से आया तो पत्नी बोली- हद हो गई अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो सकता। अब आप कुछ करिए। पति ने कहा- क्या बात हो गई क्या बर्दाश्त नहीं हो सकता, बस बहुत हो गया रहते-रहते। पत्नी बोली- अपना 5000 रुपए महीने का फ्लैट है, मेरी सारी सहेलियाँ 10000 रुपए महीने वाले फ्लैट में रहती है। मैं जब उनसे मिलती हूँ तो अपनी आँख भी नहीं मिला पाती। पति ने कहा- अपनी कमाई इतनी ही है। फ्लैट अच्छा है, हम आराम से रह रहे हैं, सब कुछ अच्छा है। पत्नी ने कहा- नहीं-नहीं, जैसे भी हो अपनी कमाई बढ़ाइए। लेकिन मैं अब इस फ्लैट में नहीं रह सकती, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो सकता। अब पति बेचारा क्या करें? अब मैं कहूंगा जिसकी पत्नी ऐसी होगी वह पति बेचारा ही होगा, और क्या? तीन चार दिन बाद जब वह दफ्तर से आया तो आते ही कहा-अजी सुनती हो। पत्नी ने बोला- क्या? पति बोला- भगवान ने तुम्हारी सुन ली। पत्नी बोली- क्या हम भी 10000 रुपए महीने वाले फ्लैट में जा रहे है? पति बोले- नहीं, मकान मालिक ने इसी का किराया 10000 रुपए कर दिया।
ऐसे लोगों को क्या कहेंगे? जिंदगी भर दु:खी रहोगे इसलिए इन्हे रेंट का मानो। यह सब किराए की चीजें है, आज है कल रहे ना रहे, कब जीवन बदल जाए कोई पता नहीं। समझो, बात छोटी है पर बहुत गहरी है। सब किराए की चीजें हैं जब तक है उपयोग करेंगे, उपभोग करेंगे, छूटेगा कोई गम नहीं और पाएंगे तो कोई हर्ष नहीं। थोड़े समय की चीजें हैं, सब टेंपरेरी है, सब टेंपरेरी है, छूट जाने वाली है इसलिए मौका आने पर रिटर्न करना है, एक्सचेंज करना है, न्यूट्रल रहना और सब को टेंपरेरी मान करके चलना है। रियल को जानते हुए, रोल करो और सबको रेंटल मानो तो ऐसा करोगे तो क्या करोगे? जिंदगी भर रिलैक्स रहोगे। रिलैक्स चाहते हो क्या? महाराज हम लोग तो रिलेक्स ही चाहते हैं और प्रवचन में आते ही बड़ा रिलैक्स फील करते हैं। रिलैक्स रहने का यही रास्ता है। अपने दिमाग में जब वजन डाल लोगे तब कभी भी रिलैक्स नहीं रह पाओगे। जब जीवन की सच्चाई को समझ लोगे तो तुमसे ज्यादा रिलेक्स और कोई नहीं हो पाएगा। हर चीज में रिलेक्स रहिए, जिंदगी में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं आएगी, किसी भी प्रकार की मुश्किल खड़ी नहीं होगी। यदि इस तरीके से कोई जीवन जीता है तो उसके जीवन में कोई कठिनाई नहीं है। पाया तो, खोया तो, आया तो, गया तो, जन्म तो, मरण तो, संयोग तो, वियोग तो, कुछ भी है यही तो जीवन है। जीवन की सच्चाई का मुझे पता है, बस यह पता चल जाए अपने आप सब चीजों को कर लेंगे। आचार्य कुंदकुंद कहते हैं कि तुमने अब तक वास्तविकता को नहीं जाना इसलिए इस संसार में भटकता रहा। जिस दिन तुम वास्तविकता को जान लोगे, सारे संसार की टक्कर, सारे संसार की पीड़ा हो जाएगी।
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जब तक तुम जीव और कर्म के भेद को नहीं जानते, सत्य और भ्रम के रहस्य को नहीं जानते तब तक अज्ञानी हो और कर्म के बंधन से बंधते हुए दु:खी बने रहोगे। जिस पल तुम उस सच्चाई को समझ लोगे भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रकट हो जाएगा। सारा भ्रम टूटेगा, परम आनंद की अनुभूति होगी। परमानंद हम सबके भीतर प्रकट हो, वह हमारे अंतरंग में घटित हो, ऐसा रिलेक्सेसन हम अपने अंदर उद्घाटित कर सके। ऐसा पुरुषार्थ और प्रयत्न हमारा होना चाहिए। आज आर से रियल, रोल, रेंट और रिलैक्स को हम ध्यान में रखें। चारों बातें यदि हम जीवन में उतार करके चलेंगे तो निश्चित है जीवन में सार्थक उपलब्धि घटित होगी। हम ऐसा करेंगे तो फिर कोई रिएक्ट नहीं होगा हम किसी को रिजेक्ट नहीं करेंगे। जो होगा सहज भाव से उसे एक्सेप्ट करने में समर्थ हो जाएंगे। हमारे जीवन की स्थिति बहुत अच्छी बन जाएगी हम अपने जीवन को सही दिशा में जोड़ सके उसी अनुरूप आगे बढ़ सके।
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