बारिश का पानी या कुएँ का पानी-कौनसा अच्छा?
आज मेरे पास एक सज्जन आए। उन्होंने मुझे एक छन्ना दिखाया, छन्ना बिल्कुल लाल- सा पड़ा हुआ था। मैंने पूछा क्या है? तो बोले- महाराज जी, यह कुएँ के पानी को छानने के बाद का असर है। वह एक यंत्र भी लेकर आए थे, बोले- “यह बड़ा विकृत पानी है और इस पानी की वजह से नियम सागर जी महाराज की तबियत बहुत दिनों से खराब थी। उन्होंने उस पानी के बजाय बरसात के पानी को काम में लेना शुरू किया। बरसात के पानी को शुद्ध तरीके से संग्रहित करके रखा, महाराज श्री की तबियत ठीक हो गई, आज वह बहुत अच्छे हैं।
बारिश का पानी यदि सही तरीके से संग्रहित किया जाए तो ४ साल तक खराब नहीं होता, कीड़े नहीं पड़ते, बशर्ते वह पानी सीधे संग्रहित किया जाए, उसमें मिट्टी ना पड़ें, मिट्टी के अंश ना पड़ें। वे एक बोतल में पानी लेकर आए थे, बिल्कुल क्रिस्टल क्लियर पानी था। बोले- “यह बरसात का पानी है, बिल्कुल शुद्ध है। और बोले “हमने ३ साल तक बरसात के पानी को संग्रहित करके प्रयोग किए, कहीं कोई विकृति नहीं, बहुत हल्का पानी है और उसका स्वाद भी बहुत अच्छा है।”
पुराने ज़माने में राजस्थान में जो टांके की प्रणाली थी, वह बरसात के पानी की ही थी। चूलगिरी में तो पूरे पानी की व्यवस्था बारिश के पानी से ही होती है। उसका एक सिस्टम है कि जब बारिश हो तो पहली बारिश में पहले आधे घंटे की बारिश का पानी बहा दें, उसके बाद टीन वगैरह पर जो पानी गिरता है; बिल्कुल क्रिस्टल क्लियर चाँदी की तरह होता है, उसे संग्रहित कर लें। उसमें कभी कोई विकृति नहीं होगी। हमारे शास्त्रों के अनुसार वर्षा का जल प्रासुक माना गया है, यह अमृत है, प्रकृति का वरदान है। उस जल में स्वाभाविक खनिज (minerals) होते हैं, वह किसी भी तरीके से नुकसान नहीं करता और यदि आप उसकी जीवाणी उसी में करें तो बहुत गुणकारी हैं। तो जहाँ पानी की सुविधा ना हो, वे लोग बरसात के जल को संग्रहित करके अपना काम चला सकते हैं। वह जल स्वास्थ्यप्रद भी होगा और आगमानुकूल भी होगा। हालाँकि, जहाँ कुएँ का पानी शुद्ध है, या जहां आजकल बोरिंग हो गया है, उसमें अहिंसा जीवाणी यंत्र लगाकर आप जल निकाल रहे हैं यदि वह पानी अच्छा है, ज्यादा भारी नहीं है तो वह आपके लिए गुणकारी है।
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