मुनियों के द्वारा विहार कि तिथि की घोषणा न करने का कारण
इसका राज जानना है तो उन्हीं से पूछो। जो बताते हैं, उन से बताने का राज पूछो और जो नहीं बताते उनसे नहीं बताने का राज पूछो। एक बार मैंने गुरुदेव से पूछा कि “गुरुदेव! आप पहले से निश्चय तो करते ही होंगे, कुछ ना कुछ तो सोचते ही होंगे फिर इतने श्रावक आते है , हल्का- फुल्का इशारा क्यों नही देते?” उन्होंने कहा – “देखो, पहली बात तो मैं अंतिम क्षण मे निर्णय लेता हूं और दूसरी बात यदि हमने पहले से वचन दे दिया, किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए तो वचन भंग होता है।” ज्ञान सागर जी महाराज ने हमारे गुरुदेव को आखिरी समय में एक शब्द कहा था- वचन मत देना, आये तो प्रवचन देना।
मैंने आचार्य श्री को बहुत नज़दीकी से देखा है, उस वचन को आज तक वे बहुत कुशलता से निभा रहे हैं| वह कभी किसी को वचन नहीं देते है। मैंने इतना तक देखा कि अगर कोई बोले, “महाराज श्री, आपके पास कब आ जाए?” आना है तो आ जाओ, मैं मिल जाऊंगा ऐसा नहीं बोलते, सामायिक के बाद देख लेंगे। देख लेना, देखो, इसी में अपनी बचत है। आगम की दृष्टि से यदि कोई कार्यक्रम पूर्व घोषित हो जाए तो इसमें कोई दोष नही है। आप लोगों को तो उसी में अच्छा लगता है। लेकिन हमारे गुरु महाराज कहते है, नहीं, कुछ अलग होना चाहिए।
आचार्य श्री का सन् 1975 मे फिरोजाबाद चातुर्मास हुआ। उनकी कृपा से 2002 में हमारा भी वही चातुर्मास हुआ। उन दिनों गुरूदेव रोज प्रवचन करते थे। प्रतिदिन प्रवचन करते थे, चातुर्मास चल रहा था और कल के प्रवचन का सब्जेक्ट पहले दिन घोषित कर दिया जाता था। ऐसे रोज किसी न किसी विषय पर प्रवचन होते थे, उनकी घोषणा होती थी। एक दिन जब विहार का समय नज़दीक आया, पूछा गया कि महाराज श्री! कल आपका किस विषय पर प्रवचन होगा? महाराज श्री कुछ नहीं बोले, कल का विषय तो बता दीजिए। आचार्य श्री ने कहा कल का विषय- अतिथि। सब निश्चिंत हो गए, अतिथि है तो अतिथि पर प्रवचन होगा। लोग प्रवचन के टाइम पर आये पर गुरुदेव ने सवेरे ही वहां से विहार कर दिया| लोग सुबह आठ बजे प्रवचन सुनने आए तब तक तो आचार्य श्री राजाखेताल तक पहुंच गए। 6 किलोमीटर आगे बढ़कर पहुंचे गये। सब हड़बड़ाकर कर पहुंचे, कल तो प्रवचन घोषित था और आपने विहार कर दिया? आचार्य श्री बोले – मैंने क्या कहा था ? आपने कहा था कल अतिथि पर प्रवचन होगा। बोले – वही तो मैं कर रहा हूँ , अतिथि कौन? जिसके आने की तिथि और जाने की तिथि फिक्स ना हो उसका नाम अतिथि, वही तो मैं कर रहा हूँ।
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