आज परिवार में छोटे-बड़े में इतने मतभेद हैं, किस कारण से?
घर परिवार में मतभेद आज से नहीं तीर्थंकरों के युग में भी रहा है। मतभेद का पहला उदाहरण भरत और बाहुबली के प्रसंग में हम देख सकते हैं। भाई-भाई के बीच में ऐसी लड़ाई तीर्थंकरों के युग में हुई, यह मनुष्य के अन्दर की कषाय है जिसका ये कुफल है। जो मतभेद होते हैं उसके पीछे कुछ खास कारण है- एक है आसक्ति, दूसरा है आग्रह, तीसरा है अहंकार; और चौथा है अपने मन में उत्पन्न होने वाली प्रगाढ़ महत्त्वकांक्षा। यह सब चीजें जब जीवन में जुड़ती है, तो इस तरह के मतभेद दिनों दिन बढ़ते जाते हैं। यह तो एक कारण है इन सबका एक अन्तरंग कारण है, पुण्य की क्षीणता। हम पढ़ते हैं- सम्यक् दृष्टि जीव के विषय में कि जो सम्यक् दृष्टि जीव होता है वह ऐसे परिवार में जन्म लेता है जिसमें उसकी सर्वत्र जय जयकार होती है, हर कोई उसको मान देता है, सम्मान देता है।
“ओजस तेजो विद्या वीर्य यशो वृद्धि विजय विभव सनाथा, महाकुला महारथा मानव तिनका भवंति दर्शन पूता” जिनकी ऐसी पुण्याई होती है उनकी पुण्य की छाया में सब कोई अपने आप आ जाते हैं। ये मान करके चलना चाहिए कि घर-परिवार में यदि सब लोग एक नायक के नेतृत्व में चल रहे हैं तो ये नायक का पुण्य है और घर-परिवार में मतभेद उभर रहे हैं तो समझना उस घर के मुखिया का पुण्य क्षीण हो रहा है। वे लोग भाग्यशाली है जिनका परिवार आज भी बना हुआ है। मेरे सम्पर्क में बहुत सारे परिवार हैं, एक परिवार तो आपका ही उदाहरण बना हुआ है कि मुट्ठी बन्धी हुई है। परिवार में ५०-५० आदमी एक चूल्हें में भोजन करने वाले हैं। ऐसे भी बहुत सारे परिवार हैं, एअभी मुझसे एक सज्जन मिले थे, आठ भाइयों का परिवार आज भी एक ही चूल्हे में भोजन कर रहा है और बड़े प्रेम से रह रहे हैं, इसको कौन करा रहा है, उस परिवार के मुखिया का पुण्य जो सबको बांधे है और जब व्यक्ति का पुण्य होता है, तो उसके व्यक्तित्त्व में भी वैसी विलक्षणतायें प्रकट होती है। उसके अन्तरंग में वैसी उदारता, वैसी सहिष्णुता आती है जो सबको साथ लेकर के चलने की वृत्ति बनाती है नतीजा सब साथ हो जाते हैं।
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