विवाह में गोत्र व्यवस्था का क्या स्थान है?

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शंका

लड़का व लड़की की एक ही गोत्र में शादी करनी पड़े तो उसमें क्या विधि विधान किया जाए?

समाधान

गोत्र आदि की यह जो व्यवस्था है सामाजिक व्यवस्था है। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग व्यवस्था है। 

आप लोग पहले चारों गोत्र छोड़ते थे अब दो गोत्र छोड़ते हैं। दक्षिण भारत में मामा-फुआ में बहुत नजदीक का संबंध होता है। भाई की बेटी बहन का बेटा सम्बन्ध होता है और अच्छा माना जाता है। आचार्य महाराज के बड़े भाई महावीरजी अष्टगे हैं उनकी धर्मपत्नी उनकी बुआ की लड़की है। तीर्थंकरों के वंश में भी ऐसे विवाह हुए हैं और पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है।

गोत्रों की बात करो तो हमारी समाज में एक समाज है पद्मावती पोरवाल समाज, उनका कोई गोत्र नहीं है। पद्मावती पोरवाल समाज मुख्य रूप से फिरोजाबाद, आगरा और दिल्ली के area (क्षेत्र) में है। यह पूरा पद्मावती पोरवाल समाज का बेल्ट है। तो उस एरिया में उनका कोई गोत्र ही नहीं है। जब हम फिरोजाबाद में थे, प्राचार्य नरेंद्र प्रकाशजी ने मुझे यह बताया, वह भी इसी समाज को belong (सम्बन्ध) करते हैं, मैंने पूछा “आप लोग संबंध कैसे करते हैं?” तो कहा “महाराज, नज़दीक के रिश्ते में नहीं करते, दूर का कोई रिश्ता है तो कर लेते है, थोड़ी सी समाज है।” 

तो गोत्र आदि की व्यवस्था सामाजिक है, जैसी चल रही है सो चलाओ। मैं तो एक ही बात कहता हूँ, जिस गोत्र को आप एक खून मानते हो, तुम खंडेलवाल के गोत्रों का कभी एक ख़ून नहीं रहा। एक गाँव को एक गोत्र बनाया गया, तो यह एक खून था कहाँ? इतिहास तो यही है। डॉक्टर कस्तूरचंद कासलीवाल की कृति है “खंडेलवाल जैन समाज का इतिहास”। जयपुर के रत्न थे कासलीवाल साहब जिन्होंने बहुत अद्भुत काम किया जैन समाज के इतिहास के विषय में। आप उसे पढ़ो तो समझ में आएगा इतिहास क्या है। तो ”महाराज, क्या करें? एक गोत्र में शादी ब्याह कर लें?” हम बोलेंगे “ब्याह ही नहीं करो!” हम क्यों बोलें ब्याह करो? हमसे तो व्रत लेने की बात करो। तो, तुम जानो तुम्हारा काम जाने। जहाँ जैसे रीति हो वहाँ वैसा काम करो।” 

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