धर्म ही जीवन का आधार है, उसको जीवन में कैसे उतारें?

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शंका

धर्म ही जीवन का आधार है, उसको जीवन में कैसे उतारें?

समाधान

जिस दिन समझ में आ जाएगा न कि धर्म मेरे जीवन का आधार है, उस दिन फिर उतारने के लिए सवाल ही नहीं आएगा। हम लोग शब्दों में कहते हैं ‘धर्म मेरे जीवन का आधार है’ अन्तरमन कब कहता है?  

सुबह से उठते हैं आप, दिनचर्या की प्लानिंग करते हो, दिमाग में क्या दौड़ता है? सबसे पहले ‘आज मुझे किस से लेना है, किस से देना है, किस-किसकी रिश्तेदारी में जाना है, किससे मिलना है, किसको समय देना है?’ ये ही बातें पहले आती है। सबसे पहले णमोकार जपने का मन होता है? भगवान याद आते हैं? मुझे अपने जीवन को पवित्र बनाना है? मुझे अपने जीवन का कल्याण करना है, याद आता है? कुछ लोगों में संस्कारवश ऐसा आ जाता है। सच्ची बात तो यह है कि लोग धर्म को मानते हैं पर धर्म को अपने जीवन की प्राथमिकताओं की सूची में सबसे निचले पायदान पर रखते हैं। हो सकता है सुबह उठते ही आप भगवान का भी नाम लेते हों। मान लीजिए अभी आप यहाँ शंका समाधान के लिए आए, रास्ते में आपके पास मैसेज आ गया। किसी आदमी ने साल भर से आपका पैसा रोका हुआ था, अब फोन किया ‘भैया मैं सुजानगढ़ आया हूँ, पेमेंट ले लो’ क्या करोगे? शंका समाधान में आओगे कि उससे पेमेंट लेने उसके पीछे भागोगे? बोलो क्या करोगे? पेमेंट लेने जाओगे, हो सकता है वो postpone हो जाए, फिर आप दोनों तरफ से गए, न वो मिला न शंका समाधान मिला। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य के मन की दुर्बलता है, वह धर्म की बात करता जरूर है लेकिन धर्म के प्रति जैसी गहरी निष्ठा होनी चाहिए वैसी निष्ठा देखने में नहीं मिलती है। जैसे-जैसे हमारी निष्ठा गहराएगी, जीवन में स्वत: परिवर्तन घटित हो जाएगा।

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