हनुमान जी की माँ – सती अंजना
(मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश)
सती अंजना के बारे में कौन नहीं जानता! इन्होंने अपने जीवन में कई मुसीबतों का सामना किया, फिर भी हार नहीं मानी, बल्कि उनका डटकर सामना किया। विवाह के बाद 22 वर्षों तक पति ने अपने से अलग रखा। बाद में, जब पति ने अपनाया भी, तो परिवार ने दूरी बना ली और चरित्र में दोष लगाकर घर से निकाल दिया। यहाँ तक कि खुद के माता-पिता ने भी तरस नहीं खाया और गर्भवती बेटी को उसके हाल पर छोड़ दिया।
इतना होने के बावजूद, किसी पर दोषारोपण नहीं किया, किसी से भीख नहीं माँगी। बस अपने कर्मों पर भरोसा रखा। जो होगा सब सही होगा, कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कर्म का खेल है, इसका सामना करेंगे, इससे लड़ेंगे, लेकिन झुकेंगे नहीं। उन्होंने अपनी एक सखी के साथ जंगल में आश्रय लिया। वहीं पर अपने पुत्र को जन्म दिया। ये पुत्र और कोई नहीं बल्कि हनुमान जी थे, जिनका जन्म जंगल में हुआ था। उत्सव तो दूर की दूर की बात है, थाली बजाने वाला भी कोई नहीं था। राजमहल में रहने वाले लोग हों या झोपड़ी में, सबको अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
कर्म सिद्धान्त ऐसा ही है! किसी के साथ भेदभाव नहीं करता, फिर चाहे प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ हों, श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, सभी ने अपने कर्मों के अनुसार फल भोगे हैं।
Edited by: Pramanik Samooh
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