क्या हमें वास्तु मानना चाहिए या नहीं?
पद्म जैन, जयपुर
सुख-दुःख हमारे कर्म के अनुसार होते हैं लेकिन जो हमारे शुभाशुभ कर्म होते हैं वे हमारे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुरूप अपना फल देते हैं। वास्तु की शुद्धि यानी क्षेत्र की शुद्धि। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव -अगर चारों का 25-25% लें तो वास्तु का अधिक से अधिक 25%है, 75% अन्यों का है। द्रव्य, काल, भाव अनुकूल हो और क्षेत्र अनुकूल न हो तो भी सफलता मिलती है।
हम देखते हैं कि जिस घर में पिताजी रहे वास्तु नहीं था, खूब बुलंदियों को छूआ और जब पिताजी मर गए और बेटा आया तो नुकसान हो गया और फिर बेटा वास्तु के चक्कर में पड़ गया। इसलिए वास्तु को मानिये, पर वास्तु को ज़्यादा मत मानिये। वास्तु कुछ भी नहीं होता यह कहना भी गलत है और वास्तु सब कुछ है, यह सोचना भी गलत है। मुहूर्त आदि भी उन्हें देखना चाहिए जिनका पुण्य क्षीण हो। जिनका मनोबल ऊँचा है, उन्हें मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं, लोग उनको देखकर अपना मुहूर्त निकालते हैं।
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