स्त्री पर्याय के लिए सूतक-पातक की व्यवस्था
हाँ, लड़कियों के सूतक के विषय में कई तरह की बातें हैं। हमने जब सूतक पातक संबंधी ग्रंथों को देखा तो उसमें लिखा कि किसी का पुत्र मरे तब तो अगर बड़ा हो गया है तो बारह दिन का सूतक या दस दिन का सूतक मानते हैं। लेकिन पुत्री मरे, वह विवाहित हो तो अविवाहित हो तो। विवाहित पुत्री अपने घर में मरे तो तीन दिन का, अविवाहित पुत्री मरे तो भी उसका तीन दिन का ही सुतक। पुत्री के मरने पर तीन दिन का सूतक और पुत्र के मरने पर दस दिन या बारह दिन का सूतक। इसी प्रकार कई जगह ऐसा कहते हैं कि कन्या का कभी भी सूतक नहीं लगता क्योंकी वह पराई मानी जाती है पर घर की मानी जाती है। कई जगह ऐसी परंपराएं हैं। सूतक पातक के संदर्भ में मैंने एक दिन गुरुदेव से जब पूछा तो उन्होंने कुल यही कहा यह सब समाज के रितियाँ है, सामाजिक धर्म है। जहाँ जैसी परी पाठी चले वैसे चलने दो। इसमें इंटरफेयर मत करो। जिनके यहाँ कन्याओं का सूतक मानते हैं सो मानो और जिनके यहाँ नहीं मानते हो वह नहीं मानो। जहाँ तक विधान की बात है उसके अनुसार कन्याओं के सूतक का कोई विधान देखने को नहीं मिला।
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