शंका
ऐसा देखा जाता है कि सुगन्ध दशमी के दिन मन्दिरों में जो झांकियाँ लगाई जाती हैं उनमें सजीव पात्रों द्वारा मुनि महाराज और माताजी को दर्शाया जाता है। इसके अतिरिक्त राशि collection (एकत्रित) करने के लिए रात्रि में अभिषेक करवाए गए। ये सब कितना उचित है?
समाधान
मुनि-महाराज नाटक के पात्र नहीं है, अभिनय के पात्र नहीं। हमें ब्रम्ह गुलाल की वो गाथा याद रखनी चाहिए। फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भी जो मुनि महाराज, आर्यिका आदि का रूप बनाते हैं, महान पाप का कारण है। ऐसा कभी मत बनना, अपने बच्चों को कभी ऐसा नहीं बनाना और आयोजक भी ऐसा आयोजन न करें। हमारे गुरुदेव तो एकदम स्पष्ट ही मना करते हैं। यह भेष नाटक का भेष नहीं है, एक बार धारण किया, जीवन पर्यंत धारण करना चाहिए।
अर्थ संग्रह के निमित्त रात्रि में पूजन-अभिषेक करना कतई उचित नहीं।
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