ब्याज का व्यापार उचित है?

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शंका

मुस्लिम community (समुदाय) सामान्यतः दयावान कम्युनिटी नहीं मानी जाती; जैनों को करुणापूरित समाज के रूप में जाना जाता है; लेकिन क्या कारण है कि मुसलमानों में सूदखोरी को गुनाह कहा जाता है और जैनियों सूदखोरी का व्यवसाय अधिकता से होता है?

समाधान

यहाँ दो दृष्टियाँ है- एक शोषण और दूसरी सहयोग की। जहाँ तक शोषण का प्रश्न है उसमें ब्याजख़ोरी क्या! हर उस व्यवसाय को जैन धर्म में निंद और निषिद्ध बताया गया है जिसमें किसी भी प्रकार का शोषण हो। लेकिन ब्याज का जो काम है, इसमें शोषण की जगह एक तरफ सहयोग की भावना भी छिपी हुई है। किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को कोई विपत्ति आई, उसने किसी साहूकार से रुपया माँगा, उसने रुपया दिया, काम पूरा होने के बाद उसके ऐवज में कुछ ब्याज दिया। उस समय उसको कितना सहयोग मिल गया, चाहे व्यापार के लिए, चाहे शादी विवाह के लिए, चाहे किसी बीमारी के लिए;अन्य किसी आकस्मिक आवश्यकता होने पर अगर रुपया देने के बाद उसको लौटाता है, उसका उस समय काम चलता है, तो कितना बड़ा उपयोग है। लेकिन यह सहयोग उदारता से होना चाहिए। अगर आप ब्याज का काम करते हैं तो सहयोग की सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। सहयोग की सीमा क्या? यदि आपकी ब्याज की दर शासन के द्वारा निर्धारित मानकों से अधिक ना हो, अंधाधुंध इंटरेस्ट(ब्याज) लेने वाले, ५%-१०% का ब्याज खाने वाले शुद्ध शोषण करने वाले हैं। ऐसे लोग अपनी संपत्ति को कभी भोग भी नहीं पाएँगे। यह घोर हिंसा और नरकादि दुर्गति का कारण है। मानक दर, जो आज १:३० पर्सेंट के लगभग जो मान्य है, बैंक १४ % लेती है, १८ लीजिए, २० लीजिए, इससे ज्यादा नहीं होना चाहिए। १८% sufficient.

दूसरी बात, आप ब्याज पर रूपया तभी दीजिये जब आपके अंदर इतनी उदारता हो कि-“यदि मैंने किसी को रुपया दिया और रूपया डूब जाए तो उसे वसूलने के लिए हम किसी का घर मकान नहीं बिकवायेंगे; उसकी छाती पर मूंग नहीं दलेंगे।” अगर आपके अंदर इतनी उदारता नहीं है, तो आप कभी भी अपनी रकम किसी को मत दें। जिन विजयकरणजी पाटनी का मैंने उल्लेख किया, विदिशा जिले के सबसे बड़े मनीलेंडर थे। मैंने उनसे एक दिन पूछा “आप ब्याज का काम करते हो।” उन्होंने मुझसे कहा “महाराज, मेरे पास रुपया रखा है सो लोगों को देता हूँ।” सन १९९२ की बात है उस समय बैंक भी अच्छा इंटरेस्ट(INTEREST) देती थी। उन्होंने कहा “महाराज, मैं १.५% से ज्यादा ब्याज किसी से लेता नहीं। और आज तक जिस को रुपया दिया उससे माँगने कभी गया नहीं। आप लोगों का आशीर्वाद है, जो हमसे रुपया लेता है पनपता है, अपने आप चुका कर जाता है। लेकिन आज तक हम किसी से माँगने नहीं गए।” इतने बड़े मनी लेंडर (MONEY LENDER) होने के बाद भी उस व्यक्ति ने सहकारिता आंदोलन का नेतृत्व किया था। जिस दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हुई पूरा विदिशा शहर बंद हुआ। यह है सहयोग की वृत्ति! ऐसे अगर आप ब्याज का काम करोगे तो यह ब्याज आपके लिए फलदाई होगा। लेकिन एक दूसरा भी उदाहरण मैं देता हूँ। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो आज दुनिया में नहीं है। वह व्यक्ति ब्याज का अँधा काम किया करते थे। कहते हैं कि उनके रुपए से वहाँ का पशु बाजार भरता था, बिना लिखा पढ़ी के ५%, ७%, १०% के ब्याज में लोगों को रुपया देते थे। अनाप-शनाप रुपया उस व्यक्ति के पास था। वह आदमी पैरालिसिस के अटैक से मरा। ६ महीने तक बिस्तर में पड़ा रहा, मर गया; उसके मरने के बाद रूपया भी डूब गया। उसके बाद उसकी पत्नी लगभग ६-७ वर्षों तक बिस्तर पर पड़ी रही। गठियावात की शिकार, अपनी सारी क्रियाएँ बिस्तर पर की। आख़िरी दिनों में तो जांघों की हड्डियाँ भी टूट गई। बेडसूळ हो गए, अंतिम ६-८ महीने तो नरक जैसा दर्द भोगा। जो धन-संपत्ति बर्बाद होनी थी वह तो हुई सो हुई; अब उसमें उनके बच्चों के हाथ में भी कुछ नहीं आया। उनका बेटा, मैं नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन उसने मुझसे कहा कि “महाराज आप किसी को भी मेरा उदाहरण देकर कह सकते हैं कि अगर अपनी पीढ़ियों को खुश-हाल रखना चाहते हो तो इस प्रकार के ब्याज का काम कभी मत करना।” उन्होंने भोग लिया। उसने कहा मेरी माँ सारा हिसाब किताब करती थी और मेरे पिताजी को वह प्रोत्साहित करती थी, तो दोनों ने पाप भोगा। 

मैं आपसे एक लाइन में कहता हूँ-“जो दूसरों का शोषण करते हैं वह अपना पोषण नहीं कर सकते!” इसलिए ब्याज का काम करें तो उसी सीमा में करें।

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