शंका
पूजा के उपरान्त आशिका का विसर्जन गन्धोदक से करना चाहिए या जल से करना चाहिए?
समाधान
आशिका का विसर्जन न तो गन्धोदक से करना चाहिए और न ही जल से करना चाहिए। आशिका में भगवान को थोड़े बिठाया है जो उनका विसर्जन करना पड़े? भगवान तो हृदय में विराजे हैं और आशिका में पुष्पांजली क्षेपण किया जाता है, न तीन चावल, न नौ चावल, न एक चावल। ‘स्वस्तिको परि-पुष्पांजली क्षिपेत’ ऐसा विधान है। कहते हैं ‘श्री जिनवर की आशिका…’ अरे! ठौने में भगवान थोड़े ही हैं, भगवान तो सामने हैं। श्रीजिनवर की आशिका, लीजिए शीश चढ़ाय, ये कहना चाहिए। ठौने में आशिका लेने का कोई औचित्य नहीं है।
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