मंदिर में सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करके जाना चाहिए?

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शंका

धार्मिक स्थानों पर कई महिलाएँ ‘नेल-पॉलिश’ (nail polish) और ‘लिपस्टिक’ (lipstick) लगाकर जाती हैं, इसके लिए आप का क्या कहना है?

समाधान

इसमें साफ कहना है कि ये सब नहीं होना चाहिए। मेरा एक स्थान पर चातुर्मास था, अनन्त चतुर्दशी का दिन था। मैं जिस मन्दिर में चातुर्मास कर रहा था वो बस्ती से दूर था। रूटीन में काफ़ी संख्या में लोग आते थे। अनन्त चतुर्दशी के दिन हजारों की संख्या में लोग आ रहे थे। वहाँ की परिपाटी थी कि अनन्त चतुर्दशी को हर मन्दिर के दर्शन के लिए लोग जाते थे। उस शहर की आबादी पच्चीस हजार थी, अनेक मन्दिर थे। मैंने देखा कि अनन्त चतुर्दशी को जो दर्शन करने के लिए महिलाएँ आ रही हैं, उनमें अच्छी-अच्छी उम्रदराज महिलाओं के होठों पर भी ‘लिपस्टिक’ लगी है। अनन्त चतुर्दशी का दिन होते हुए भी उम्रदराज महिलाओं तक के होठों पर लिपस्टिक थी। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यहाँ तो ९०-९५ प्रतिशत महिलाएँ आज लिपस्टिक लगाकर आईं हैं। मेरे पास बैठा युवक बोला कि ‘महाराज इनमें से अधिकतर उपवासी होंगी।’ उपवास भी किया और लिपस्टिक भी लगाया। हमने कहा ‘धन्य है।’ युवक बोला- ‘महाराज, ये दिल्ली के पास का नगर है, यहाँ दिल्ली और पंजाबी का कल्चर आ गया है।’

नैसर्गिक सौंदर्य के आगे कोई सौन्दर्य नहीं टिकता है, फिर भी किसी को इस तरह के प्रसाधन की सामग्री का इस्तेमाल करना है, तो उसमें अहिंसा का ध्यान रखें। दूसरी बात, कम से कम धार्मिक स्थानों पर तो ऐसा कार्य न करें। गुरु दर्शन के लिए जा रहे हैं या वहाँ किसी को रिझाने जा रहें है? क्यों होठों पर लगा रहे हैं? क्यों नेल पेंट लगा रहे हो? 

गुरु दर्शन या भगवान के मन्दिर में दर्शन करने के लिए जाओ तो इन सब चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जिस वीतराग भगवान के दरबार में आप अपना माथा टेकने के लिए जाते है, वहाँ वीतरागता का आदर्श लेकर जाओ। वहाँ भी यदि राग-रंग करके जाओगे तो कर्म खपाकर नहीं आओगे, कर्म बाँधकर आओगे। इसलिए इससे बचो। 

मुझे लगता है कि आजकल पुरुष-महिलाएँ एक समस्या पूर्ति के लिए मंदिर जाते हैं। आगम का ऐसा विधान आता है कि, पंचम काल में वैमानिक देव का आगमन इधर नहीं होता है। शायद उसी समस्या की पूर्ति के लिए आप लोग देवी-देवता का रूप लेकर भगवान के चरणों में सज-संवर के जाते हो। क्यों जाते हो?

होड़ देवों से लगाई, मनुष्य बनना न सीखा। विश्व को दामन भरोसे, मापने की कामना है। ये बहुत गलत सोच है। कम से कम यह संकल्प लेना चाहिए कि हम धार्मिक स्थानों पर जायेंगे तो लिपस्टिक, नेल-पेंट आदि सामग्री का प्रयोग नहीं करेंगे, जिसमें किंचित भी हिंसा हो। इसका परित्याग सभी को करना ही चाहिए। ये दोष हैं और हमारी मर्यादा से बाहर की चीजें हैं, और इसमें बहुत सारे अशुद्ध पदार्थ भी रहते हैं। यद्यपि कुछ प्रोडक्ट हर्बल होते हैं पर फिर भी राग और आसक्ति का प्रबल कारण होने से, इनसे धर्म के आयतनों को सुरक्षित रखना ही चाहिए।

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