कभी-कभी कर्म के बाद भी फल क्यों नहीं मिलता?

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शंका

कभी-कभी कर्म के बाद भी फल क्यों नहीं मिलता?

समाधान

कर्म करने के बाद भी समय पर फल इसलिए नहीं मिलता कि या तो आपका कर्म पर्याप्त नहीं हैं  समझ गये या तो कर्म आपका पर्याप्त नहीं हैं| कर्म का तात्पर्य पुरुषार्थ से है यानि आपका पुरुषार्थ अधूरा है अथवा जिसका आप फल चाहते हैं उसके ऊपर जो आवरण पड़ा है वह सघन है| कहीं चट्टान हो उस पर घन का प्रहार करते है तब चट्टान टूटती है लेकिन कोई व्यक्ति दो चार घन मार दे और चट्टान न टूटे तो यह नहीं सोचना चाहिए की घन मारने से चट्टान नहीं टूटती| यह सोचना चाहिए की चट्टान पर घन मारने से ही टूटेगी लेकिन जितनी मैंने मारी है उतने से नहीं टूटेगी, चट्टान ज्यादा मजबूत है इस पर और अधिक घन के प्रहार की जरूरत है इसलिए जब तक यह चट्टान न टूटे घन मारते रहो, मारते रहो, मारते रहो चट्टान अवश्य टूटेगी।

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