णमोकार मन्त्र की विशेषता

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शंका

णमोकार मन्त्र की विशेषता

समाधान

णमोकार महामंत्र हमारा मूल मंत्र है। वैसे हर मंत्र अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। पर सब मंत्रों में णमोकार महामंत्र को मंत्राधीराज कहा जाता है। इस मंत्र की ऐसे अनेक विशेषताएँ है। पर कुछ उल्लेखनीय विशेषता जो णमोकार महामंत्र को अन्य मंत्रों से अलग स्थान प्रदान करते हैं; मैं आपसे कहना चाहता हूँ।

सबसे पहला यह मंत्र इकलौता ऐसा मंत्र है जो परिपूर्ण मंत्र भी मंत्र हैं, उसका एक पद भी अपने आप में मंत्र हैं और एक अक्षर भी अपने आप में मंत्र है। णमो अरिहंताणं से णमो लोए सव्व साहूणं तक चलो तो भी मंत्र, केवल णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं आदि पद को बोलो तो भी मंत्र और केवल एक-एक पद पर अ सि आ ऊँ सा पाँच अक्षर बोलो तो भी मंत्र और केवल अ बोल दों तो भी मंत्र, केवल ‘सि’ बोल दो तो भी मंत्र या ‘आ’ या ‘ऊ’ या ‘सा’ बोल दो तो भी मंत्र है। कहीं से पढ़ो, जोड़ के तोड़ के, तुम निहाल हो जाओगे, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन दुनिया के किसी भी मंत्र के पद को अक्षर को हिनाधिक कर दों तुम्हारा अनिष्ट हो जायेगा। 

दूसरी विशेषता, इस मंत्र में कोई भी बीजाक्षर नहीं है। दुनिया के मंत्रों में बीजाक्षर जुड़े होते हैं। ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं आदि अक्षर होते है, इसमें कोई बीजाक्षर नहीं। 

तीसरी विशेषता, यह किसी देवता अधिष्ठित मंत्र नहीं है। इसमें कोई देवता नहीं। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह कोई देवता नहीं। यह हमारी आत्मा की साधना संपन्न अवस्था है। इसका कोई अधिष्ठित देवता नहीं है। 

चौथी विशेषता, इस मंत्र की कोई आनुपूर्वी नहीं है। आगे से पढ़ो, पीछे से पढ़ो, बीच से पढ़ो, ऊपर से पढ़ो, निचे से पढ़ो, कैसे भी पढ़ लो। ‘१ २ ३ ४ ५’, ‘५ ४ ३ २ १’, ‘२ ४ ३ ५ १’ चाहे जैसे आप पढ़ लो णमोकार मंत्र पढ़ सकते हो।

इसकी पाँचवी और मौलिक विशेषता यह है कि यह मंत्र केवल शांतिक और पौष्टिक कार्यों में काम में आता है। इसका कभी कुप्रभाव किसी पर नहीं पड़ता। यह महामंत्र की विशेषता है। 

इसकी महिमा तो हर वह व्यक्ति जानता है जिसने इसका प्रयोग किया। अन्य मंत्रों को सिद्ध करना पड़ता है, इस णमोकार मंत्र को केवल श्रद्धा से बोलना भर पड़ता है। इसकी अचिन्त्य महिमा है। कई लोगों ने प्रयोग किया णमोकार मंत्र लिखने के माध्यम से तो उसका परिणाम देखा कि व्यक्ति के स्वास्थ्य में जबरदस्त प्रभाव पड़ा। णमोकार मंत्र के शुद्ध लेखन से त्रियोग की शुद्धि होती है अगर मन से, वचन से और काय की एकाग्रता पूर्वक, एक निश्चित स्थान पर, निश्चित समय में, शुद्धि पूर्वक कोई णमोकार मंत्र लिखता है। एक महिला कानपुर की थी, मछली की तरह तड़पती थी, पाँच -सात उसके ऑपरेशन हो गए थे। जब हमारा विहार कानपुर में हुआ तो मेरे संपर्क में आए। उन्होंने अपनी व्यथा कही, वह जीवन से हार चुकी थी। मैंने उनसे कहा कि “तुम एक काम करो णमोकार मंत्र लिखो।” और ४ बजे से ५ बजे तक का समय दिया, एक आसन पर बैठकर लिखने के लिए कहा और स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन कर के मौन होकर के लिखें। आप सुनकर आश्चर्य करोगे ३ महीने में उसे आराम मिल गया। आज भी हमारे पास वह परिवार आता है, अब उनको कोई औषधि की जरूरत नहीं है और बिल्कुल ठीक है। हक़ीक़त यह थी कि जिस वक्त मैंने उनसे बोला था, कह दिया था ३ महीना में तुम्हें आराम मिल जाएगा लेकिन मेरे मन में भी इतना कॉन्फिडेंस(confidence) नहीं था कि बोल तो दिया; हो जाएगा कि नहीं हो जाएगा। पर उनके कॉन्फिडेंस लेवल को स्ट्राँग करने के लिए मजबूत बनाने के लिए मैंने कहा और उसका चमत्कारिक परिणाम देखा। मेरे मन में केवल एक श्रद्धा थी और एक गणित था। श्रद्धा यह थी कि यह महामंत्र चमत्कारीक है जिससे हमारे पाप की असंख्यात गुना निर्जरा होती है। और गणित यह कि जपने में मन भागता है पर लिखने में मन वचन काय तीनों एकाग्र होंगे और एकाग्र वह मन से यदि कोई इस मंत्र का आराधन करेगा तो शत प्रतिशत परिणाम उसका मिलेगा। उसके बाद मैंने कई लोगों को बताया उनके रोग शोक दूर हुए। 

णमोकार मंत्र की महिमा आप जानना चाहते हैं तो एक और प्रसंग सुनाना चाहूँगा। जैन जगत के एक प्रतिष्ठाचार्य थे बाबा सूरजमल। वो ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। अपनी सीट पे बैठे थे और उसी समय एक औघड़ बाबा आया। औघड़ बाबा थोड़े झक्की मिजाज के होते हैं। उन्होंने आते ही लोगों को धमकाकर पूरा कंपार्टमेंट खाली करा लिया। जब बाबा जी से कहा तो बोले “मेरा तो रिजर्वेशन है, मैं क्यों उठूँ? मैं अपनी सीट पर बैठा हूँ।” उन्होंने कहा कि “बच्चा ऊठ! नहीं तो तुझे कच्चा खा जाऊँगा।” पर यह पक्के थे और बिलकुल डगमगायें नहीं और दृढ़ता पूर्वक अपने स्थान पर बैठे रहे। जब देखा कि यह नहीं मान रहा है, तो उस साधु को गुस्सा आ गया। उसने इनके विरुद्ध मंत्र प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। जब साधु ने मंत्र प्रयोग करना शुरू किया उनकी भाव भंगिमा को देखें तो बाबाजी ने चुपचाप णमोकार मंत्र जपना शुरू कर दिया। यह णमोकार जपें और उधर वह साधु पसीने में तर्। पसीना-पसीना! हालत खराब हो गई। काफी देर बीत गयी, दो ढाई घंटे बिताने के बाद वह उठा टॉयलेट में गया। और जब टॉयलेट से वापस नहीं लौटा तो लोगों को शंका हो गयी। टॉयलेट अंदर से बंद, जब अंदर झाँक कर देखा गया तो बाबा वही ढेर हो गया था। उसकी मृत्यु हो गई थी। वजह उस व्यक्ति ने गुस्से में आकर मारण मंत्र का प्रयोग किया। मारण मंत्र के प्रयोग के विषय में ऐसा कहा जाता है कि वह निष्फल नहीं जाता। जिसे टारगेट बनाया जाता उसको अटैक करता है और यदि reverse हो गया तो जिसने उसे प्रयोग में लिया है उस पर अटैक हो जाता है। णमोकार मंत्र से बाबा जी की चारों ओर ऐसा सुरक्षा कवच बन गया था कि उसका सारा अस्त्र उस पर ही वापस कर दिया और मामला बिगड़ गया। इस तरीके से अपने को समझ कर चलना चाहिए। यह महामंत्र है इसकी महिमा अनुपम है। उसे उसी ढंग से देखना चाहिए।

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