कैची नहीं सुई बनो
कैची का काम है-काटना, सुई का काम हैं- जोड़ना
कैंची चलाते समय कैंची सर्र से सीधी चलती है और अपने रास्ते में आने वाली हर वस्तु को दो हिस्सों में बाट देती है। दुसरी ओर सुई धीरे-धीरे उसी कटे हिस्से को एक साथ जोड़ते चलती हैं। कई लोगों के व्यवहार में भी प्रायः यह देखा जाता है कि वह हमेशा कैंची की तरह तोड़ने की योजना बनाते रहते हैं जिससे उनके आस-पास नकारात्मक वातावरण विकसित हो जाता है। आदत वही अच्छी है जो लोगों में सकारात्मक सोच को विकसित करे। हमें विचार करना चाहिए कि काटना तो बहुत सरल है, परन्तु जोड़ने का काम महा कठिन है।
जोड़ना सिखिए, तोड़ना नहीं,
बनाने की सोचिए, बिगाड़ने की नहीं,
बसाने की सोचिए, उजाड़ने की नहीं।
मिलाने की सोचिए, मिटाने का नहीं।।
यदि समाज का नया नक्शा बनाना है तो सभी को सकारात्मक सोच से जोड़ने का सोचना होगा। जोड़ने का काम करें और यह प्रण लें कि हम जीवन भर ऐसा कृत्य नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार या समाज की छवि खंडित हो।
यदि हम जीवन भर ऐसा कोई भी कृत्य न करें जिससे हमारे कारण किसी के जीवन में कष्ट आये तो हम अपने खाते में बहुत से पुण्य का संचय कर सकते हैं।
याद रखें हम यदि मिलकर चलें तो बड़ी से बड़ी समस्याओं को चुटकी में हल कर सकते हैं। बस हमें चाहिए की हम सुई से सीख लें और अपने हर रिश्ते को जोड़कर रखें न कि कैंची की तरह बन कर सभी को स्वयं से दूर कर लें क्योंकि जीवन में समरसता एक दूसरे के प्रति आदर भाव से ही लायी जा सकती हैं।
Edited by Palak Jain Sogani, Bhopal
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