जैनों के काॅलोनियों में बसने के कारण जैन मंदिर सूने हो रहे हैं!
समाज को यह करना चाहिए की घर भले ही दूर बस जाये लेकिन संकल्प लेना चाहिए की हम मन्दिर में पूजा प्रक्षाल जरूर करेंगे। जिस मन्दिर की सेवा पूजा से तुमने अपने जीवन की उन्नति की, तुम्हारे पूर्वजों ने जिस मन्दिर की स्थापना की, प्रतिष्ठा की, जिनकी सेवा पूजा से तुम पुन्योपार्जन करके इतने समर्थ हुए कि यहाँ शहर से दूर जाकर बस सकते हो और अपने धर्म का ठीक से पालन करते हुए परिवार का निर्वाह करने में समर्थ हुए, उस मन्दिर से अपनी निष्ठा को छोड़ना नहीं चाहिए। हर हालत में पूजन करना चाहिए। कितने भी दूर हो आज साधन आपके पास सुलभ उपलब्ध है। कम से कम भगवान को भगवान भरोसे छोड़ोगे तो तुम्हारा हाल भी भगवान भरोसे हो जायेगा। इसलिए भगवान की शरण में जाओ भगवान के पूजा प्रक्षाल की व्यवस्था सुनिश्चित करो।
यदि शहर में होने के बाद भी भगवान के पूजा अर्चा की व्यवस्था नहीं है, तो यह समाज के लिए बड़ी लज्जास्पद बात है। तुम्हारी आस्था कहाँ है, यानि तुम भगवान की पूजा नहीं करते केवल अपनी सुविधा के अनुसार धर्म करते हो। सच्चे अर्थों में ऐसा व्यक्ति धर्म का सही श्रद्धालु नहीं माना जाता। कोशिश करो हफ्ते में एक बार तो कम से कम मन्दिर आओ, साथ में डब्बा ले आओ फिर दफ्तर या दूकान चले जाओ। आप रहते दूर हो पर मार्केट तो सब यहीं है। व्यवस्था करनी चाहिए, जैसे सम्भव हो वैसे।
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