वह कौन सी शक्ति थी जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को तेल की जलती कढ़ाई में डाला था और तब भी उसे कुछ नहीं हुआ, पहाड़ से गिराया कुछ नहीं हुआ, सर्पों के कुण्ड में डाला कुछ नहीं हुआ? दूसरा उदाहरण -राणा जी ने मीरा बाई को विष का प्याला भेजा और वो हरि का नाम लेकर पी गई, वहाँ मीराबाई को कुछ नहीं हुआ। तीसरा उदाहरण- यीशु मसीह को क्रॉस पर टांगा गया और ऐसा कहा जाता है कि ३ दिनों के बाद भी उनमें आत्मा थी और वो जिंदा थे, तो वो कौन सी शक्ति थी?
जैन कर्म सिद्धान्त की दृष्टि से अगर विचार करें, तो जब तक हमारा पुण्य है हम पर वज्रपात भी हो जाए तो कुछ नहीं होगा। हिरण्यकश्यप-प्रह्लाद का जो सम्बन्ध है, प्रह्लाद को यातना दी गई पर प्रह्लाद का पुण्य था, वो पुण्य उनका संरक्षक था। मीरा के अन्दर निष्ठा थी और निष्ठा से उद्विपत पुण्य उनकी सुरक्षा कर रहा था। ईसा मसीह के बारे में आपने कहा उपसर्ग हुआ, तीन दिन तक आत्मा टिकी रही, जब तक हमारे प्राण हैं ऐसा हो सकता है। हमारे यहाँ पांडवों के ऊपर वैसा ही उपसर्ग हुआ, बाद में वे निर्वाण को प्राप्त हुए, कोई असंभव नहीं है। हमें अपने पुण्य पर भरोसा करना चाहिए, यह एक बहुत बड़ी ताकत है।
यह तो सतयुग की बात है अब कलयुग की बात देख लीजिए। बीसवीं शताब्दी की बात, सन् 2000 में भुज में भूकंप आया था। कितना बड़ा महाविनाश हुआ उस भुज में, आप सबको पता है, सबने सुना, एक भवन में माँ तो मर गई और बेटी ३ दिन तक मृत माँ की स्तनपान करते हुए भी सुरक्षित रह गई। बच्ची थी, किसने बचाया? जिसके बचने की कोई सम्भावना नहीं, पुण्य ने बचाया। एक घटना और है, एक मेडिकल कॉलेज की, एक व्यक्ति का शरीर एकदम कुष्ठ जैसा हो गया, बदबू बहुत आती थी, घाव इतने की मत पूछो, लावारिस व्यक्ति था। उसकी वेदना को देखकर किसी ने उसे जहर का इंजेक्शन दे दिया। कहते हैं विषस्य विषमौषधम्, वो जहर ही उसके लिए अमृत बन गया, सारी बीमारी ठीक हो गई, स्वास्थ्य लाभ हो गया। आप इसको क्या कहेंगे, पुण्य का प्रताप है, हमें उस शक्ति को स्वीकार करना चाहिए।
Leave a Reply