Secularism (धर्मनिरपेक्षता) आजकल एक बड़ा फैशनेबल वर्ड (शब्द) हो गया है। इसका सही स्वरूप क्या है? क्या जैनत्त्व के अनेकांत में यह निहित नहीं है क्योंकि इसकी गलत परिभाषा के कारण भटकाव सा हो रहा है।
Secularism (धर्मनिरपेक्षता) का जो वर्तमान स्वरूप देखने को मिलता है, वह बढ़ा दोहरा दिखता है। एक वर्ग विशेष के प्रति लोग सेकुलरिज्म की बात करने लगते हैं और दूसरी तरफ लोग बड़े उदार बन जाते हैं। सेकुलरिज्म का मतलब तुष्टीकरण नहीं है। सच्चे अर्थों में पन्थनिरपेक्ष होने का मतलब है, सब को एक होना, सब पन्थ का एक होना।
भारत की संस्कृति अनेकता में एकता की संस्कृति है। अनेकता में एकता हमारे भारत का मूल मन्त्र है। जैसे एक गुलदस्ता होता है उस गुलदस्ते में एक नहीं अनेक प्रकार के फूल होते हैं। सब फूलों को जब सलीके से गुलदस्ते में रखा जाता है, तो गुलदस्ते की शोभा बढ़ती है। हमारे देश की संस्कृति एक गुलदस्ते की भाँति है और यहाँ रहने वाले सभी धर्म और परम्पराओं के लोग उसके एक-एक फूल की तरह उसमें जुड़कर, पत्ते की तरह जुड़ कर उसकी शोभा बढ़ा रहे हैं। गुलदस्ते को सुरक्षित रखें सबको उस दृष्टि से देखें।
हमारे यहाँ एक बहुत प्राचीन भारतीय परम्परा रही- ‘पर-धर्म-सहिष्णु होने की’- उसमें कहा गया
“धर्मं यो बाधते धर्मो न स धर्मः कुधर्मकः।
अविरोधात्तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रम!”
“एक धर्म जो दूसरे धर्म को बाधा पहुँचाए वह धर्म नहीं कुधर्म है। दूसरे धर्म के प्रति जो अविरोधी भाव रखता है सच्चे अर्थों में वही धर्म कहलाता है”- यही अनेकांत है और भगवान महावीर का अनेकांत इसी उदार दृष्टि की अभिव्यक्ति है।
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