पिछले जन्म के पुण्य और वर्तमान के प्रयत्न के बीच की रेखा?

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शंका

हमें जो कुछ भी आज मिला है, जैसे जिनधर्म, मनुष्य भव और गुरु का सानिध्य- ये सब पूर्व भव के कर्मों से मिला हुआ है। इन सबके मिलते हुए भी हम मोक्ष मार्ग में लगें इसका निर्धारण कैसे होगा? यदि यह पुरुषार्थ से होगा तो पूर्व जन्म के कर्म और इस जन्म का पुरुषार्थ, इसकी सीमायें हम किस तरह से निर्धारित कर सकते हैं?

समाधान

पहली बात तो दो शब्द हैं –योग और प्रयोग। ये जितनी भी अनुकुलतायें मिली हैं ये पूर्वकृत पुण्य से ही मिली हैं और इसके साथ हमने कुछ प्रयास किया है, तो भी मिली हैं, क्यों? यह मिलना योग है, मिल जाना मात्र हमारे लिए लाभदाई नहीं है। योग का जब हम प्रयोग करें तब हमें उसका सच्चा लाभ मिलेगा तो जो योग मिला, उसका प्रयोग करें और उसका प्रयोग कब होगा जब हम उसका सही मूल्याँकन करें। 

आपने पूछा है कि हमारे पिछले पुण्य और वर्तमान के प्रयत्न के बीच की सीमा क्या है? पुण्य की backing है, योग है, और उसके साथ यदि हमारी बुद्धि निर्मल होती है और उस योग का सही प्रयोग करते हैं तो अल्प पुरुषार्थ में भी महा परिणाम पाया जा सकता है। योग का दुरुपयोग करते हैं तो हमें रसातल में पहुँचा देगा। एक व्यक्ति है जो अपने जीवन में सर्व प्रकार की अनुकूलताओं को पाकर धर्म ध्यान में लगकर अपने जीवन का उद्धार करता है और एक व्यक्ति है जो इन अनुकूलताओं की उपेक्षा करके भोग-विलासिता में अपने जीवन को खपा देता है। तपस्या करने के लिए भी स्वस्थ शरीर चाहिए और भोगों में रमने के लिए भी शरीर का स्वास्थ्य चाहिए। स्वस्थ तन मिलना पुण्य का योग है, पर साधना करना उसका सही प्रयोग औए विलासिता में डूबना उसका दुरुपयोग। यह सब चीजें निर्भर किस पर करती हैं? केवल पुण्य-पाप पर नहीं, हमारी बुद्धि पर, बुद्धि- जो दुर्लभता से प्राप्त होती है, 

‘धन कण कंचन राज सुख सब ही सुलभकर जान, दुर्लभ है संसार में एक जथारत ज्ञान।’ 

यह बुद्धि प्रयास से नहीं मिलती, ये बुद्धि पुण्य से नहीं मिलती, किसी की कृपा से नहीं मिलती, हमारे लिए बहुत सारी चीजें ऐसी है जो जन्म से प्राप्त हो जाती हैं, अनायस मिल जाती है जैसे जन्म लिया शरीर मिला, इसके लिए किसी को प्रयास की जरूरत नहीं, शरीर के साथ माँ-बाप मिल जाते हैं उसके लिए भी हम प्रयत्न नहीं करते हैं और जिस दिन जन्म लेते है शरीर के पोषण के लिए माँ का दूध भी मिल जाता है, यह सहज प्राप्त है। फिर माँ-बाप की कृपा से पढ़-लिख जाते हैं, हमारा पालन-पोषण हो जाता है। यह माँ-बाप की कृपा से संयोग से हमें प्राप्त हो जाता है। मनुष्य अपने पुरुषार्थ के बल पर धन पैसा कमा लेता है यह प्रयोग सिद्ध है लेकिन इन सबको पाने के साथ सद्बुद्धि पाना यह मात्र नियोग है। सहज, संयोग, प्रयोग और नियोग, जिन का नियोग ठीक होगा, उनकी बुद्धि निर्मल होगी। वे धर्म में लगेंगे, अपने जीवन का उत्कर्ष करेंगे और जिन का नियोग खोटा होगा वो तीर्थंकरों का सानिध्य पाकर भी अपने आपको नहीं सुधार पाएँगे। राजा श्रेणिक भगवान महावीर का खास भक्त होने के बाद भी एक संयम नहीं ले पाया। क्यों? चाहता नहीं था ऐसी बात नहीं थी, मन में आता भी था, तत्त्व को समझता भी था लेकिन नियोग खराब था। क्या था नियोग? सप्तम नरक का नियोग था; पर हाँ, अपने सतप्रयोग से उसने उस नियोग में थोड़ा परिवर्तन तो कर लिया। सप्तम नरक से प्रथम नरक में आ गया, 33 सागर से 84,000 वर्ष तक आ गया और अब उसने अपने जीवन में ऐसा संयोग किया कि उनका नियोग अति उत्तम होने वाला है और उनके निमित्त से अनेकों के नियोग बनने वाला है। यह चीजें हैं जो हमें समझना चाहिए, कई चीजें ऐसी हैं जो योग सिद्ध है, सब कुछ होने के बाद भी हमारे जीवन में घटित नहीं हो सकती इसलिए क्या करें? योग का सही प्रयोग करने की कोशिश करें। अपना नियोग क्या है ये हमें पता नहीं पर हम यही मानकर चलें कि जैसा हम प्रयोग करेंगे वैसा ही नियोग बनेगा।

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