सभी तीर्थंकर भगवान होते हैं, पर सभी भगवान तीर्थंकर नहीं!
तीर्थंकर भगवान होते हैं पर भगवान तीर्थकर क्यों नहीं होते?
तीर्थंकर और भगवान में वैसे कोई अंतर नहीं हैं। अंतर केवल इतना है कि तीर्थंकर चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं और द्वादशांग की रचना करते हैं। तो जो द्वादशांग की रचना करें और चतुर्विध संघ मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका रूप चार प्रकार के संघ की स्थापना करें उनको तीर्थंकर कहते हैं।
तीर्थंकर का मतलब क्या? जो तीर्थ को करें उसका नाम तीर्थंकर। और तीर्थ का मतलब क्या है? द्वादशांग और उस पर आधारित चतुर्विध संघ है। तो इसकी जो रचना करते हैं वह तीर्थंकर कहलाते हैं। और उस तीर्थंकर के काल में जब उनने कर दिया और दूसरे भगवान को केवल ज्ञान हो गया। एक ही काम को दूसरों को करने की जरूरत नहीं पड़ती। तो द्वादशांग बन चुका होता है, चतुर्विध संघ की स्थापना हो चुकी होती है तो वह काम वो करते नहीं हैं। तो जिसका जो कार्यक्षेत्र है, वही करते हैं। इसलिए तीर्थंकर को हम तीर्थंकर कहते हैं और बाकी को केवल भगवान।
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