तीर्थंकरों को निहार नहीं होता और क्यों?

150 150 admin
शंका

किन-किन महापुरुषों को निहार नहीं होता है और इसका कारण क्या है?

समाधान

यही प्रश्न सन् १९८७ में थूबोन जी में एक बौद्ध भिक्षु ने पूछा था। मैं उन दिनों क्षुल्लक था। उसने बहुत सारे प्रश्न पूछे थे उसमें ये प्रश्न भी था। आचार्य महाराज जी से उन्होंने कहा कि ‘महाराज जी हमें एक बात समझ में नहीं आती कि तीर्थंकरो का आहार होता है पर निहार क्यों नहीं होता?’ हमारे गुरुदेव तो निराले हैं उनका जवाब देने का तरीका अलग होता है। नीचे पाटे पर बैठे थे उस पाटे पर एक लकड़ी का टुकड़ा था। उस लकड़ी के टुकड़े की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने पूछा कि इस टुकड़े को जलाओगे तो राख बनेगी? ‘हाँ महाराज राख तो बनेगी। कुछ न कुछ तो वेस्टेज होगा।’ महाराज जी ने कहा कि “इस छोटे से टुकड़े को जलाओगे तो कितनी राख बनेगी?” बोले ‘१०-२० ग्राम बनेगी। यदि एक मन लकड़ी को जलायेंगे तो और ज्यादा होगी। जितनी ज्यादा लकड़ी उसी अनुपात से राख होगी।’ महाराज जी ने कहा कि “ठीक लकड़ी जलाने से राख होगी लेकिन कपूर जलाओ तो?” महाराज जी ने कहा कि “एक टन कपूर जलाओगे तो क्या बचेगा?” बोला ‘महाराज जी समझ गए आप क्या कहना चाह रहे हैं।’ तीर्थंकरों भगवन्तों की, महान आत्माओं की जठराग्नि इतनी प्रगाढ़, प्रबल और प्रखर होती है कि जो कुछ भी वो लेते हैं, सब कपूर की तरह भस्म हो जाता है इसलिए वहाँ कुछ वेस्ट होता ही नहीं इसी कारण उनको निहार नहीं होता है।

Share

Leave a Reply