प्रति पल मन में रहता है कि हम व्रती बन जाएँ, घर से कोई लगाव भी नहीं है। बस एक खतरा बना रहता है कि यह बच्चे अनुभवहीन हैं कहीं व्यापार का बेड़ा गर्क न कर दें और हम घर में पड़े रहते हैं, क्या करना चाहिए?
दुनिया से चले जाओगे तो क्या करोगे? यह तो तुम्हारे अन्दर का अज्ञान है, किसी के किए कुछ होता नहीं और किसी के रोके कुछ रुकता नहीं।
एक कहावत है बेटे की योग्यता का आभास तभी होता है जब बाप मरता है यानि जब तक तुम पकड़े रहोगे तब तक बेटे अपनी जिम्मेदारी कभी नहीं सम्भाल पाएँगे। तुम छोड़ोगे तभी बच्चों को अपनी जिम्मेदारी का आभास होगा। इसलिए एक बीच का रास्ता है कि पूरी तरह मत छोड़ो, थोड़ा ढील दो और observe (नज़र रखना) करो कि क्या कर रहे हैं? जैसे-जैसे वह ठीक ढंग से काम करने लगे तो अपनी ढील छोड़ो और जब लगे कि बच्चे पूरा सम्भाल रहे हैं तो अपने आप को एक तरफ कर लो तभी आपके जीवन का उत्थान होगा।
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