टीवी पर धार्मिक कार्यक्रमों को देखते हुए खाना पीना नहीं!

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शंका

टीवी पर धार्मिक कार्यक्रमों को देखते हुए खाना पीना नहीं!

समाधान

यह बताओ पूजा व स्वाध्याय करते समय रोटी बनाते हो क्या या प्रवचन सुनते समय रोटी खाते या बनाते हो क्या? नहीं! तो शंका समाधान भी तो एक स्वाध्याय है उसमें यह सब करते हो तो गड़बड़ नहीं होगा क्या? यह साधना है और जो शंका समाधान सुनते समय रोटी खाता और बनाता है वह शंका में पड़ा रहता है और जो सावधान चित्त होकर शंका समाधान सुनता है उसकी शंकाएँ मिटती है; वह समाधान पाता है।

इसलिए सावधान हो जाओ! समाधान पाना है तो इसे कार्यक्रम की भाँति मत देखो,यह पृच्छना नाम का स्वाध्याय है। यह तुम्हारे हृदय में उतरेगा शब्द सुनने से कल्याण नहीं होता,श्रद्धा के साथ सुने हुए शब्द हमारा कल्याण करते हैं। हमारे तीर्थंकर भगवंतों ने अपने श्रद्धालुओं के लिए एक शब्द गढ़ा ‘श्रावक’ श्रावक यानि सुनने वाला,कैसे सुनने वाला, श्रद्धा पूर्वक सुनने वाला। तुमको श्रावक बनना है की श्रोता बनना है? श्रोता बनोगे तो श्रोता की तरह काट पीट कर दोगे और श्रावक बनोगे तो सब बात को पी लोगे। वह तुम्हारे जीवन का गुणात्मक परिवर्तन करेगा। 

इसलिए अपने दिनभर की चर्या को कुछ व्यवस्थित करो सारा काम आगे से पीछे कर लो लेकिन छह से सात का समय एकदम इस कार्यक्रम के साथ जोड़ लो फिर देखो तुम्हारे जीवन में कितना बड़ा बदलाव घटित होता है। आपको अपनी दिनचर्या को ठीक करना पड़ेगा,वहीँ टाइम खाना खाने का होता है तो पहले खा लो, बाद में तो खाना ही नहीं है वर्ना और गड़बड़ हो जाएगा। पहले खाकर देख लो वर्ना इसको रिकॉर्डिंग मोड में डाल कर एक घंटे बात देख लो लेकिन कभी भी धार्मिक चैनलों के सामने खाना पीना उचित नहीं है,असाधना है। इन धार्मिक चैनल में प्रसारित होने वाले जो भी कार्यक्रम है उन्हें कार्यक्रम मत मानना, यह एक अनुष्ठान है जो तुम्हारे जीवन का गुणात्मक परिवर्तन कर सकता है। उसमें उसी भाव धारा के साथ जुडो, सहातिशय पुण्य का बंध तुम्हें हो जाएगा घर बैठे इसलिए इसमें कंजूसी मत करो सावधानी रखो।

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