क्या हम बच्चों को आजीवन कोई त्याग लेना चाहिए?
ज़रूर लेना चाहिए, और निभाना भी चाहिए। कम से कम मद्य-मांस-मधु का त्याग तो आजीवन लेना ही चाहिए। सप्त-व्यसन का त्याग जीवन पर्यंत लेना चाहिए। यह त्याग तुम्हारे जीवन का safety guard बनेगा, सुरक्षा कवच बनेगा। यदि तुम्हारा यह त्याग बना रहेगा तो कल जब तुम पढ़ने-लिखने के लिए बाहर जाओगे, तुम्हारे मित्रगण तुमको pressurize करेंगे तो तुम कहोगे ‘नहीं! मेरा यह त्याग है, ये मैं नहीं ले सकता।’
त्याग की महिमा समझो! गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि ‘मेरी माँ ने मुझे विदेश जाते समय तीन नियम दिलवाये थे – शराब नहीं पीना, मांस नहीं खाना और परस्त्री सेवन नहीं करना।’ उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा कि ‘अगर मेरी माँ ने मुझे यह प्रतिज्ञा नहीं दिलाई होती तो मैं भ्रष्ट हो गया होता’। तो अपने जीवन को भ्रष्ट होने से बचाना चाहते हो तो यह नियम को जीवन पर्यंत के लिए लो और दृढ़ता से उसे पालो।
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