आगम अनुसार साधु चरण छतरी का क्या प्रावधान है?

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शंका

आगम अनुसार साधु चरण छतरी का क्या प्रावधान है?

समाधान

जितने भी साधु, त्यागी-व्रती हो, उनकी समाधि हो तो चरण छतरी बनाने की कोई अनिवार्यता नहीं है। यदि मैं भगवती आराधना की बात करूँ तो आपको सुनकर बड़ा ताज्जुब होगा, भगवती आराधना में लिखा है कि किसी मुनि महाराज की समाधि हो जाए तो चरण-छतरी बनाने की तो बहुत दूर की बात है, उनका दाह संस्कार करने के लिए भी नहीं कहा गया। कहा गया है कि “उनके शव को जंगल में ऐसे ही छोड़ दो”, और लिखा “छोड़ देने के बाद यह देखो कि तीन दिन तक उनके शव को किस-किस प्राणी ने खाया है और किस दिशा में घसीट कर ले गया? किस अंग पर उनका प्रहार हुआ है?” इसके आधार पर उस जीव की भावी गति का अनुमान लगाने का विधान किया है। ये चरण छतरी बनाने का कोई अनिवार्य विधान नहीं है। इतने आचार्य, इतने मुनि समाधि को गए, उन सब के चरण छतरी दिखते हैं क्या? सबकी चरण छतरियाँ होती तो पूरा भारत मुनियों की चरण छतरी से पटा हुआ होता। 

कुछ विशिष्ट साधकों की भक्ति वश श्रावकगण छतरी बनाते हैं। लेख लिखा मिला, आचार्य भद्रबाहु श्रुतकेवली ने छठवीं शताब्दी में कटवा की पहाड़ी पर संलेखना ग्रहण की, पर छतरी तो आज भी नहीं है। सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य ने विशाखाचार्य के रूप में संलेखना ली, उनका उल्लेख प्रशस्ति में लिखा हुआ है, परन्तु छतरी आज भी नहीं है। इसलिए यह कहना कि मुनि महाराज, आर्यिका, क्षुल्लक अथवा त्यागी वृती की समाधि के बाद उनकी चरण छतरी बनानी ही है, यह ठीक बात नहीं है। अनुकूलता है तो बनाओ, नहीं है, तो मत बनाओ, इसकी कोई अनिवार्यता नहीं है। हमारे आचार्य महाराज तो कहते हैं, “देश काल को देखकर कार्य करना चाहिए, इसका कोई अनिवार्य विधान नहीं करना चाहिए।”

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