धार्मिक आयोजनों में भोजन की व्यवस्था एवं भोजन करने वाले किन बातों का ध्यान रखें?

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शंका

धार्मिक आयोजनों में भोजन की व्यवस्था एवं भोजन करने वाले किन बातों का ध्यान रखें?

समाधान

धार्मिक आयोजन मे भोजन की जरूरत तो होती है; आजकल भोजन पहले, भजन बाद में होता है। भोजन की व्यवस्था करना होता है, लोग घर-परिवार छोड़कर आते हैं, आवश्यक है; पर दो-तीन बातों का ख्याल रखें। किसी भी धार्मिक आयोजन के भोजन की व्यवस्था मंदिर के द्रव्य से ना करें! निर्माल्य का पाप लगता है, मंदिर का द्रव्य, देव-द्रव्य है, आप उपभोग करते हैं तो महान पाप के भागी बनते हैं। इसलिए धार्मिक आयोजन करते समय आयोजकों को यह चाहिए कि इस भोजन के नाम पर अलग से कुछ व्यवस्था जुटाये । चातुर्मास वगैरह में जो लोग राशि संग्रहीत करते हैं वह चातुर्मास की प्रभावना के निमित्त बोलकर के करें तो उसमें सब आ जायेगा। लेकिन पूजा विधान आदि की जो बोलियां होती है, उस बोली की राशि को अगर भोजन के लिए उपयोग करते हैं तो यह ठीक नहीं। आयोजकों को चाहिए कि उसके लिए अलग से राशि संग्रहित करें अथवा उसमें PARTICIPATE करने वाले लोगों से कुछ अलग से शुल्क ले लें। यह भोजन व्यवस्था की बात हुई; अब रहा सवाल कि यदि भोजन बच जाए? तो पहले से ही ESTIMATE बनाकर उस भजन को तैयार करो; भोजन का घटना तो बहुत खराब है किन्तु बचना भी ठीक नहीं! व्यर्थ नहीं जाना चाहिए, यदि बच जाए तो गरीबों में बांट दें।

एक बार एक बड़े धार्मिक आयोजन के दौरान लोगों के काफी ठाट-बाट से व्यवस्था कर रखी थी, बाद में मिठाईयां बच गयीं। मिठाई भी काजू की कतली जैसी मिठाई! बच गई, पर्याप्त मात्रा में, क्या करें? यद्यपि उन्होंने वह पूरी की पूरी जो व्यवस्था थी, वह अलग से DONATION करके की गई थी; मंदिर की उसमें कोई भी राशि नहीं लगी थी। फिर जब यह बात आई तो उन लोगों ने उस मिठाई का विक्रय कर दिया, समाज के लोगों के लिए। ताकि बर्बादी ना हो और वह राशि जो आई वह मंदिर को दे दी गयी।  मुझे यह भी एक समझदारी की बात लगी। बाकी चीजें गरीबों को खिला देने में भी कोई बुराई नहीं है। तो इस तरह से ध्यान में रखकर के काम करना चाहिए ताकि वह आपने जो लगा दिया अब आपके घर वापस न जाए; भगवान के घर में चले जाए तो कोई बुराई नहीं; लेकिन भगवान के दरबार का एक दाना भी आपके पेट में नहीं जाना चाहिए।

साथ ही कई धार्मिक कार्यक्रमों में आप शामिल होते हैं, एक दाना भी झूठा नहीं छोड़ना चाहिए। यह झूठा छोड़ने की प्रवत्ति महान अर्थदंड है और  पापबंध का हेतु है। इसलिए ऐसी प्रवत्ति से अपने आप को यथासंभव बचाना चाहिए। कई जगह लोग बोलते हैं कि लोग विवेक नहीं रखते, एक साथ ले लेते हैं और बाद में व्यर्थ जाता है, बहुत पाप  है! तुम्हारी व्यवस्था करके जिस ने सहयोग दिया, वह व्यक्ति तो पुण्य कमा रहा है और तुम्हें निशुल्क व्यवस्था मिल रही है और तुम उसे झूठा छोड़ रहे हो। होटल में खाना खाने जाते हो, झूठा फेंकते हो क्या? वहां तो थाली भी चाट लो, अगर मौका मिले तो। यहां क्यों, इसलिए कि मुफ्त में मिल रहा है। यह बात ठीक नहीं है यह पाप का कारण है  इससे बचना चाहिए।

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