इंसान अपने फायदे के लिए जानवर को कष्ट देने और नष्ट करने में पीछे नहीं रहता है, तो क्या इंसानियत सिर्फ इंसानों तक सीमित है?
जो मानवता की अवधारणा है, वह अच्छी नहीं है। मानवता का मतलब यह नहीं है कि मनुष्य, मनुष्य की ही बात करे। सच्चे अर्थों में मानवता का मतलब है कि मनुष्य के भीतर मानवीय भाव बने, उसका हृदय संवेदनशील बने और वह सबको ध्यान में रखे। ‘जियो और जीने दो’ का आदर्श ही सच्ची मानवता है, जो खुद जिए और औरों को जीने दे। जहाँ किसी भी प्रकार की क्रूरता है वह मानवता से नीचे है।
मानवता का मतलब है जो अपने हितों की पूर्ति के लिए किसी के हितों में बाधा न बने। मैंने एक बार कहा था- भृतहरि ने मनुष्य के चार स्तर बताये हैं- राक्षस का स्तर, पशु का स्तर, मनुष्य का स्तर और देव का स्तर। राक्षस क्या है- जो सब के हितों में बाधा पहुँचाये वह राक्षस का स्तर है। पशु कौन है- जो अपने हितों की पूर्ति के लिए औरों के हितों में बाधक बन जाए; शेर को आपसे या हिरण से कोई मतलब नहीं है, अगर उसको भूख लगी है वह आपको या उसको मार के खायेगा, काम खत्म। अब मनुष्य कौन है- जो अपने हितों की पूर्ति के साथ-साथ औरों के हितों का भी ध्यान रखे, वह मनुष्य है। वह मनुष्य औरों के हितों में केवल मनुष्य ही नहीं, प्राणी मात्र के हितों का भी ध्यान रखें तो मनुष्य है। यदि मनुष्य किसी दूसरे के हितों में बाधक बनता है, तो वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है, वह पशु है। जो दूसरों के हितों की पूर्ति के लिए अपने हितों का परित्याग कर दे वह मनुष्य नहीं, मनुष्य के रूप में देवता है। इसलिए मानवता को सर्वव्यापी अर्थ में समझना है, तो जियो और जीने दो के आदर्शों को आत्मसात कीजिए।
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