आजकल होने वाले चमत्कारों से हम क्या समझें?

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शंका

आज कल हम देखते है कि मन्दिरों में और अन्यत्र कई जगह चमत्कार देखने को मिलते हैं। उन चमत्कारों को अपनी श्रद्धा और भावना से कैसे जोड़ें और इन बातों को हम किस रूप में लें?

समाधान

आज कल एक ढर्रा बन गया है-चमत्कार को नमस्कार। दरअसल ये चमत्कार है, इससे क्या समझें और चमत्कार करने की अवधारणा कितनी सच्ची है, इसे समझें? मैं तो एक ही लाइन में ऐसा कहता हूँ कि चमत्कार को नमस्कार करने वाला भोगी होता है और नमस्कार से चमत्कार पैदा करने वाला सच्चा योगी होता है। हमें चमत्कार को नमस्कार में विश्वास कम करना चाहिए। अपने नमस्कार को इतना बलवान बनाना चाहिए, जिससे चमत्कार घटित हो। 

कई ऐसे प्रसंग हैं जो घटित होते है। कुछ दिन पहले प्रतिमा के ऊपर छत्र घूमने का प्रसंग आया। कई जगह प्रतिमाओं के पसीजने का प्रसंग आता है और कई जगह प्रतिमाओं के आँखें खोलने और बंद करने का प्रसंग आता है और ये कई-कई दिनों तक होता है। प्रतिमाओं का पसीजना प्रतिमाओं का अभिषिक्त होना आदि घटनाएँ घटती हैं। ये क्या हैं? निमित्त शास्त्र में तीन प्रकार के निमित्त बताये गये हैं भोम, अन्तरिक्ष और दिव्य। भोम निमित्त, अन्तरिक्ष निमित्त और दिव्य निमित्त में से प्रतिमाओं में घटने वाली जो अनहोनियाँ हैं इसे भोम निमित्त कहते है, ये अन्तर्गत निमित्त शास्त्र में बताया गया है। प्रायः इन सब घटनाओं को लोग चमत्कार मान लेते हैं, ये चमत्कार नहीं है, ये एक निमित्त है और इस निमित्त में अतिशय भी बताया है और उत्पात भी बताया है। इनको हमें बहुत बारीकी से समझना चाहिए, जो इनके शास्त्रों में बताया है। 

जैसे एक उदाहरण देता हूँ कि तीर्थंकर प्रतिमाओं का पसीजना अतिशय नहीं, उत्पात है। तीर्थंकर प्रतिमाओं का पसीजना अतिशय नहीं निमित्त शास्त्र में भोम उत्पात है और ऐसा लिखा है कि सात दिनों तक लगातार यदि तीर्थंकर की प्रतिमा पसीजती है, तो छः महीने के भीतर साधुओं और श्रावकों पर विधर्मियों द्वारा उपसर्ग की सम्भावना है। तो हर बात को चमत्कार और अतिशय घोषित करना शास्त्र के प्रति अनभिज्ञता का द्योतक है। 

अगर तीर्थंकर प्रतिमा अभिषिक्त होती है, तो वो अतिशय है और वो पसीजती है, तो उत्पात है। तीर्थंकर प्रतिमा आँखें खोलती है, बंद करती है और मुस्कराती है, तो उत्पात है। छत्र घड़ी के हिसाब से यदि घूमता है, तो अतिशय है और छत्र भंग होता है और डोलता है, तो उत्पात है। बहुत सारी चीजें हैं जिन्हें बारीकी से समझना चाहिए और जब भी कभी ऐसे प्रसंग घटे तो उसकी वास्तविकता को समझकर प्रचारित किये बिना हमें समझना चाहिए और यदि सही है, तो उत्सव मनाना चाहिए और यदि उत्पात का सूचक है, तो शांति कर्म करना चाहिए। 

जहाँ तक चमत्कारों की बातें है भक्तों में भक्ति का चमत्कार होता है। हम अपनी भक्ति करेंगे तो चमत्कार होगा। आचार्य समंतभद्र महाराज के नमस्कार में इतनी बड़ी ताकत थी और उन्होंने ऐसा चमत्कार किया कि जैन धर्म का पूरे विश्व में डंका पीट दिया। तो हमारा नमस्कार मजबूत होना चाहिए। प्रायः मूढ़, अन्धविश्वासी, तत्त्वज्ञान शून्य लोग थोथे क्रिया काण्डों में उलझकर इन तुच्छ चमत्कारों में ही रम जाते हैं। 

मुझसे एक युवक ने कहा कि ‘महाराज जी, मैं एक साधु के पास गया। वो नारियल फोड़कर के रत्न निकाल देते थे। जैन साधु नारियल को फोड़ते और उससे रत्न निकाल देते हैं। महाराज इसको क्या कहेंगे?’ मैंने सिर्फ इतना ही जवाब दिया कि “मैं नहीं जानता। लेकिन जब मैं छोटा था और स्कूल की आधी छुट्टी होती थी, तो बगल में कचहरी थी वहाँ घूमने चला जाता था। वहाँ जादू वाले जादू दिखाते थे और एक का दो कर देते थे और १० के नोट को बीस का नोट बना देते थे। देखते-देखते १० का २० कर देते थे और सब देखते दंग रह जाते थे लेकिन उसके बाद एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आयी कि दस का बीस करने के बाद, कार्यक्रम खत्म होने के बाद दस-दस पैसे के लिए हाथ फैलाता था। जब तुम दस का बीस करने में समर्थ हो, तो दस पैसों के लिए हाथ क्यों फैला रहे हो? ये प्रश्न तुम्हारे सामने उपस्थित होना चाहिए, ये केवल हाथ की सफाई है। इन बातों में मत उलझो। यदि किसी ने नारियल फोड़कर रत्न निकाल दिया तो इसमें कोई उपलब्धि नहीं है। उपलब्धि तो तब है जब तुम अपने जीवन को रत्नों सा मूल्यवान बना लो, तुम्हारा जीवन धन्य होगा। जड़ में उलझने की जगह चैतन्य को पहचानो।” चैतन्य चमत्कार ही सर्वश्रेष्ठ चमत्कार है इसलिए इन सब बातों में बहुत ज्यादा विश्वास करना मेरी समझ से बाहर है।

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