भगवान मोक्ष जाने के बाद क्या करते हैं? और केवल ज्ञान की परिभाषा क्या होती है?
सारा करना-धरना छूट जाने का नाम ही तो मोक्ष हैl जब तक करना-धरना है तब तक संसार है और करना-धरना छूट जाने का नाम ही मोक्ष है। मोक्ष जाने के बाद किसी भी प्रकार की क्रिया नहीं रहती है। वे केवल जानते और देखते हैं, हम लोग जानते और देखते हैं लेकिन जानने और देखने में हम लोग अटक जाते हैं। हम इष्ट-अनिष्ट, संकल्प-विकल्प करते हैं। किसी को अच्छा और किसी को बुरा मानकर के चलते हैं। लेकिन जो सिद्ध भगवान होते हैं वे ज्ञान शरीर को धारण करते हैं केवल जानते हैं और देखते हैं। सिद्ध होने का मतलब है कृत-कृत्य हो जाना। जिसके कार्य करने योग्य कोई काम न बचा हो उसका नाम सिद्ध है। सारा करना-धरना छूटने पर ही सिद्धि की प्राप्ति होती है।
एक बार एक बच्चे ने पूछा – महाराज जी, वहाँ कुछ करना-धरना नहीं है, तो वो बोर नहीं हो जाते होंगे? हमने कहा-“जिनको ऐसा लगता है कि बोर होना है वे सिद्ध हो ही नहीं सकते हैं।” सच्चे अर्थों में जिसको संसार में बोरिंग फील होती है, जो संसार से बोर होते हैं उनके अन्दर वैराग्य का अंकुर फूटता है वो मोक्ष मार्ग में लगते है तब मोक्ष जाते हैं। केवल ज्ञान का अर्थ है सर्वज्ञ, पूर्ण ज्ञान। हम सब के पास ज्ञान है लेकिन सबके ज्ञान के बीच एक तखमण है। किसी का अधिक किसी का कम, किसी का ज्ञान मंद होता है और किसी का ज्ञान एकदम प्रखर होता है। लेकिन उसकी भी एक सीमा है; वैज्ञानिकों के अनुसार आज के समय में दुनिया के सबसे ज्यादा विज्ञानी व्यक्तियों का जो दिमाग है वह अधिकतम ६ प्रतिशत एक्टिव होता है पूरा दिमाग काम करे तो न जाने क्या से क्या हो जाये! ये समझिये कि जो केवल ज्ञानी होते हैं वे अपनी योग साधना के बल पर अपने मस्तिष्क को पूरी तरह सक्रिय कर देते हैं और उसके सक्रिय के कारण उनका ज्ञान पूर्ण विकसित हो जाता है; इतना विकसित हो जाता है कि देहातीत होने के बाद भी वह ज्ञान बना रहता है।
केवलज्ञान एक ऐसा ज्ञान है जो जगत के चराचर को अपने ज्ञान का विषय बना लेता है। जिसके बाहर कुछ भी शेष न रहे उस ज्ञान का नाम केवल ज्ञान है।
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