मैंने अनेकों स्थान पर नसिया जी के दर्शन किए हैं। नसिया जी वास्तव में है क्या? इसका नाम नसिया क्यों रखा गया है?
नसिया शब्द ‘निषिद्धका’ से बना है। निषिद्धका का उस स्थल को बोला जाता था जहाँ तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ। जहाँ महा मुनियों को निर्वाण प्राप्त हुआ उसे निषिद्ध निषिद्धका कहते हैं। जहाँ मुनि जनों की समाधि हुई हो उसे भी निषिद्धका कहते हैं। एकान्त स्थल पर जहाँ विशिष्ट जिनबिंबो की रचना होती हो उसको भी निषिद्धका कहते हैं।
निषिद्धका के ११ अर्थ है जिनमें कहीं किसी के निर्माण स्थल को, किसी की समाधि स्थल को, किसी साधना स्थली को और एकान्त में स्थित जिनबिंबो को लिया गया है। इसी निषिद्धका का अपभ्रंश नसिया हो गया; जो नगर से थोड़े बाहर की ओर होते थे और लोग वहाँ जाकर अपने व्रत उपवास के दिन अपनी साधना किया करते थे, तपस्या किया करते थे वो नसिया कहलाती थी।
यह भट्ठारक की नसिया है, भट्ठारक लोग यहाँ रहा करते थे। उनकी समाधि की छतरी भी बनी हुई है उस समय जयपुर के बाहर था। पहले तो जयपुर पर कोटे के अन्दर था यह तो बाद का एक्सटेंशन है ताकि जन कोलाहल से दूर होकर अपनी साधना की जा सके।
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