द्रव्य श्रुत से भाव श्रुत की प्राप्ति करने के लिए हम अज्ञानी जीवों को क्या पुरुषार्थ करना चाहिए क्योंकि भाव श्रुत के बिना आत्मा में विशुद्धि नहीं आती?
सरिता जैन
द्रव्य श्रुत से भाव श्रुत की ओर बढ़ने का एक ही और बड़ा सरल उपाय है। जो हमने पढ़ा है उसको पचाना शुरू करो। वाचन के बाद पाचन। पढ़ लेना, ज्ञान पा लेना अलग चीज है और ज्ञान को पचा लेना अलग चीज है। जब ज्ञान पच जाता है तो वह आचरण में ढलता है और आचरण में ढला हुआ ज्ञान ही अनुभूति प्रदान करता है। जिनवाणी के प्रति श्रद्धान रखते हुए, जिनवाणी को भगवान की वाणी मानते हुये हमेशा इस बात के लिए प्रयासरत रहना चाहिए कि यह भगवान की वाणी है, भगवान की वाणी ही नहीं भगवान की आज्ञा है और मुझे भगवान की आज्ञा का अक्षरशः पालन करना है। यही वस्तु का स्वरूप है इस तरह की भाव-भाषना जब ह्रदय में स्फुरित होती है तो व्यक्ति के जीवन में व्यापक परिवर्तन घटित हो जाता है।
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