धर्म का स्वरूप क्या है? आजकल बच्चे धर्म से विमुख क्यों होते जा रहे हैं?
अभी तक धर्म का आपने स्वरूप क्या समझा है? हमने बच्चों को धर्म से जोड़ने की बात की तो उन्हें केवल इतना ही समझाया कि ‘मन्दिर जाओ, पूजा करो, पाठ करो, णमोकार जपो, गुरुजन आएं तो उनसे सम्पर्क करो’ और थोड़ा आगे बढ़े तो ‘रात्रि भोजन नहीं करो’, ये इतना हमने कर दिया, तो धर्म कर लिया। ये धर्म है लेकिन धर्म का स्वरूप यही नहीं है।
धर्म का मतलब है हमारे हृदय में श्रद्धा हो, भावना हो, जीवन में संयम और सन्तोष हो, तो हम अपने आप को धर्म से जोड़ सकेंगे। श्रद्धा, भावना, संयम, सन्तोष ये चारों बातें अगर हमारे जीवन से जुड़ गई तो हम अपने आप संयमनिष्ट हो गए और अपने जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढ़ाएँगे। हम अपने बच्चों को जब भी धर्म से जुड़ने की बात करते हैं, धार्मिक क्रियाओं से जुड़ने की बात करते हैं। यदि हम उनको अपने इमोशंस पर नियंत्रण रखने की बात सिखाएँ, उनको अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करने की कला सिखाएँ, उन्हें हम उनको bad habits (बुरी आदतों) के प्रति जागरूक बनाए तो उनके जीवन में धर्म के प्रति एक अलग प्रकार का अनुराग उत्पन्न होगा और वो ज़्यादा प्रभावी होगा। हमें उस तरफ ध्यान रखना है।
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