आरती- क्या और क्यों?

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शंका

आरती शब्द का क्या अर्थ है? आरती कैसे करना चाहिए? आरती करना कब से प्रारम्भ हुआ है? कुछ विद्वानों ने बताया कि पहले लाइट की व्यवस्था नहीं थी तो दीपक जलाए जाते थे। भगवान का दर्शन करने के लिए दीपक को इधर- उधर से देखने के कारण इसने आरती का स्वरूप ले लिया।

समाधान

यह एक कुतर्क है। आरती के विषय में, बहुत प्राचीन तो नहीं, लेकिन १० वीं शताब्दी तक के ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इसके लिए दो शब्द आते हैं – आरर्तीका और निराजन। ये दो शब्द हैं, इन दो शब्दों के आधार पर यह चलता रहा है। उसमें भगवान की आरती आदि करने का वर्णन है। अभिषेक के समय में भी भगवान की आरती करने का वर्णन कुछ अभिषेक पाठों में है। प्रतिष्ठा ग्रंथों में भी  लिखा- अधिवासना के बाद भगवान की आरती करो। प्रतिष्ठा ग्रंथों में भी, अब कौन से प्रतिष्ठा पाठ का था, यह तो मैं आधार पूर्वक नहीं कह सकता, लेकिन शायद जयसेन प्रतिष्ठा पाठ में भी है। पूरे अधिकार पूर्वक नहीं कह पाऊँगा क्योंकि वह मेरे स्मरण से बाहर है।

आरती शब्द का मतलब ‘आ रती, सब ओर से रति, लगाव, जुड़ाव, प्रेम की अभिव्यक्ति। किसी भी व्यक्ति की आरती उतारी जाती है। भारत में तो आरती उतारने की बड़ी परम्परा है। आरती उतारने का मतलब है उसका हार्दिक अभिनंदन करना। कोई योद्धा युद्ध से लौटकर के आता है, जीतता है तो घर में उसकी आरती उतारी जाती है। जब बेटा बहू को लेकर आता है, तो आरती उतार कर के घर में प्रवेश कराते हो। उस आरती का मतलब क्या है? उसका अभिनंदन, उसका स्वागत, कोई टोटका थोड़ी ही है। अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति में आरती का प्रयोग करने में कोई निषेध नहीं। लेकिन आरती में विवेक होना चाहिए। उसमे जीव हिंसा न हो, इसका विवेक हो और एक सीमा में हो।

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